अमेरिकी राष्ट्रपति की नीतियाँ और रूस-यूक्रेन युद्ध पर ध्यान केंद्रित भारत की विकासशील अर्थव्यवस्था तेल आधारित है, शांति समझौते से रूस पर लगे प्रतिबंध हटेंगे तो भारत को बहुत फायदा होगा -एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं वैश्विक स्तर पर यह अनुमान लगाया जा रहा था कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद दुनिया में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिल सकते हैं। उन्होंने अपने चुनावी अभियान में किए गए वादों को क्रमवार पूरा करना शुरू कर दिया है। इसी कड़ी में 18 फरवरी 2025 को सऊदी अरब के रियाद में रूस और अमेरिका के विदेश मंत्रियों के बीच एक बैठक आयोजित की गई, जिसमें यूरोपीय संघ (ईयू) और यूक्रेन को आमंत्रित नहीं किया गया। रूस-यूक्रेन युद्ध विराम की संभावनाएँ लगभग तीन वर्षों से चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध के समाप्त होने की संभावना बढ़ गई है। इस वार्ता के चलते वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट देखने को मिली है। अमेरिकी प्रतिबंधों में संभावित ढील से तेल की कीमतों में और गिरावट आने की संभावना है। भारत को संभावित लाभ भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चे तेल का उपभोक्ता है और अपनी 85% से अधिक जरूरतों के लिए तेल आयात पर निर्भर है। रूस, भारत का शीर्ष कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता है। दिसंबर 2024 में भारत के कुल कच्चे तेल आयात में रूसी तेल का हिस्सा 31% था, जो नवंबर में 36% था। अगर रूस पर लगे प्रतिबंध हटते हैं, तो भारत को निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं: तेल की कीमतों में गिरावट: भारत की तेल आधारित अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जिससे महंगाई कम होगी। पेट्रोल-डीजल के दामों में कमी: जिससे परिवहन लागत घटेगी और वस्तुओं की कीमतें नियंत्रित रहेंगी। व्यापारिक लेन-देन में सुधार: प्रतिबंध हटने से रूस-भारत के बीच तेल व्यापार सुगम होगा। ऊर्जा सुरक्षा: भारत को सस्ती दरों पर तेल प्राप्त होगा, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार को भी फायदा होगा। युद्ध समाप्ति को लेकर चुनौतियाँ रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकना आसान नहीं होगा, क्योंकि: यूक्रेन के समर्थक देश: ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशों ने यूक्रेन को सैन्य समर्थन जारी रखने का संकल्प लिया है। यूक्रेन की शर्तें: राष्ट्रपति जेलेंस्की का कहना है कि वे शांति वार्ता के लिए तभी तैयार होंगे जब अमेरिका और यूरोपीय नेता एक साझा योजना पर सहमत होंगे। नाटो का रुख: नाटो लगातार यूक्रेन को समर्थन दे रहा है, जिससे वार्ता की संभावना कम हो रही है। यूरोप में असंतोष: यूरोपीय संघ के कई देश इस वार्ता से नाखुश हैं और अलग-अलग विचार रख रहे हैं। शांति प्रक्रिया में यूरोपीय संघ और यूक्रेन की अनुपस्थिति यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की ने इस बैठक में यूक्रेन को न बुलाने पर कड़ा रुख अपनाया है। उनका कहना है कि अगर यूक्रेन शामिल नहीं होगा, तो शांति वार्ता का कोई अर्थ नहीं रहेगा। अमेरिका ने अपने प्रतिनिधियों को वार्ता में भेजा है, लेकिन यह वार्ता कितनी सफल होगी, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। निष्कर्ष रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए सऊदी अरब में शांति वार्ता शुरू हो चुकी है। इस वार्ता में यूरोपीय संघ और यूक्रेन को शामिल न करने से वैश्विक स्तर पर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। यदि रूस पर लगे प्रतिबंधों में ढील दी जाती है, तो इसका सबसे बड़ा लाभ भारत को होगा, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। हालांकि, युद्ध विराम को लेकर कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं, और इस पर अंतिम निर्णय लेने में अभी समय लग सकता है। -संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र Post navigation डॉक्टर बनने के लिए क्यों देश छोड़ रहे भारतीय छात्र? क्या शिक्षा की गुणवत्ता बेहतर है या कुछ और? भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा निवेश सलाहकारों और शोध विश्लेषकों के लिए अनिवार्य नियम