महिला सशक्तिकरण की दौड़ जीतती भारतीय रेलवे -प्रियंका सौरभ ……. रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, भारत के विशाल रेलवे नेटवर्क में महिलाओं ने पुरुष-प्रधान भूमिकाओं में प्रवेश कर न केवल अपना स्थान बनाया है, बल्कि सशक्तिकरण की नई मिसालें भी स्थापित की हैं। कैबिनेट द्वारा स्वीकृत नियुक्तियों के नवीनतम दौर में पहली बार रेलवे बोर्ड में महिलाएँ नेतृत्वकारी भूमिका निभा रही हैं। वर्तमान में रेलवे बोर्ड का नेतृत्व एक महिला कर रही हैं। इसके अतिरिक्त, संचालन और व्यवसाय विकास की ज़िम्मेदारी भी एक महिला सदस्य के पास है, जबकि एक अन्य महिला सदस्य वित्त विभाग का कार्यभार संभाल रही हैं। यह भारतीय रेलवे में महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। भारतीय रेलवे ने मणिनगर रेलवे स्टेशन (गुजरात) और माटुंगा रोड स्टेशन (मुंबई, महाराष्ट्र) का प्रबंधन पूरी तरह से महिला कर्मचारियों को सौंपा है। नागपुर के अजनी रेलवे स्टेशन पर ट्रैक की मरम्मत और सफाई का काम महिला ट्रैक मेंटेनरों द्वारा किया जाता है। इन बदलावों ने न केवल महिलाओं के लिए नए रास्ते खोले हैं, बल्कि समाज में उनकी क्षमताओं को भी नई पहचान दी है। ऐतिहासिक संघर्ष और प्रेरक कहानियाँ महिला सशक्तिकरण 20वीं सदी के बाद से सबसे परिभाषित करने वाला आंदोलन रहा है। भारतीय रेलवे जैसे पुरुष-प्रधान क्षेत्र में महिलाओं का प्रवेश ऐतिहासिक रहा है। 19वीं शताब्दी में जब महिलाओं का घर से बाहर काम करना बुरा माना जाता था, तब रेल कंपनियाँ बेसहारा विधवाओं को रोजगार देकर इस रूढ़ि को तोड़ने की शुरुआत कर चुकी थीं। हालाँकि, उन्हें पुरुषों की तुलना में कम वेतन दिया जाता था। प्रारंभिक पथप्रदर्शक महिलाएँ जया चौहान: 1984 बैच की पहली महिला रेलवे सुरक्षा बल अधिकारी थीं। उन्होंने अर्धसैनिक बलों में पहली महिला महानिरीक्षक बनने का गौरव भी हासिल किया। एम. कलावती: भारतीय रेलवे सिग्नल इंजीनियर्स सेवा की पहली महिला सदस्य बनीं। वह दक्षिणी रेलवे जोन में मुख्य सिग्नल इंजीनियर के रूप में कार्यरत हैं। कल्याणी चड्ढा: 1983 बैच की विशेष श्रेणी अपरेंटिस, जिन्होंने भारतीय रेलवे मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग संस्थान में चार साल का प्रशिक्षण लिया। उनके नेतृत्व में 13 महिलाएँ सेवा में सक्रिय हैं। विजयलक्ष्मी विश्वनाथन: 1967 बैच की सदस्य, जो 1990 के दशक के अंत में भारतीय रेलवे की पहली महिला मंडल रेल प्रबंधक और 2002 में रेलवे बोर्ड की वित्त आयुक्त बनीं। मंजू गुप्ता: बीकानेर डिवीजन की डिवीजनल रेल मैनेजर और भारतीय रेलवे इलेक्ट्रिकल इंजीनियर्स की पहली महिला सदस्य हैं। उनके प्रेरक उदाहरण ने 14 और महिलाओं को इस क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए प्रेरित किया। आधुनिक पहल भारतीय रेलवे ने महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं: मुंबई-अहमदाबाद शताब्दी एक्सप्रेस के लिए सभी महिला टीटीई नियुक्त की गई हैं। डेक्कन क्वीन एक्सप्रेस को पूरी तरह महिलाओं की टीम द्वारा संचालित किया गया है। महिला नेतृत्व को बढ़ावा देने के लिए महिला-केंद्रित परियोजनाएँ चलाई जा रही हैं। वर्तमान परिदृश्य और आगे की राह भारतीय रेलवे के कर्मचारियों में महिलाओं की भागीदारी अभी भी 6-7% के बीच है, जो उनके जनसंख्या अनुपात से काफ़ी कम है। लेकिन इस क्षेत्र में महिलाओं का प्रवेश पुरुष-प्रधान समाज में लिंग समानता के लिए एक प्रेरक उदाहरण है। “प्रथम महिलाओं” की कहानियाँ साहस और दृढ़ता का प्रतीक हैं। भविष्य की संभावनाएँ भारतीय रेलवे जैसे विशाल नियोक्ता को महिलाओं के लिए अवसरों और नेतृत्व की भूमिकाओं को बढ़ावा देना जारी रखना चाहिए। साथ ही, उनकी उपलब्धियों को समाज में व्यापक पहचान और समर्थन मिलना चाहिए। महिलाओं के नेतृत्व में भारतीय रेलवे न केवल लिंग समानता की दिशा में अग्रसर है, बल्कि यह दिखा रहा है कि महिलाओं की क्षमताओं को पहचान कर कैसे हर क्षेत्र में सुधार किया जा सकता है। यह कहानी हर महिला के लिए प्रेरणा है जो अपने सपनों को पूरा करने की राह पर है। Post navigation पीएम के साथ परीक्षा पे चर्चा 2025: रिकॉर्ड तोड़ 3.50 करोड़ से अधिक रजिस्ट्रेशन और तनाव मुक्ति का अनूठा अवसर