क्या नेता वोटरों को नारों में उलझा पाएंगे? समझदार वोटर किसक़े साथ जाएंगे? भारत के महाराष्ट्र झारखंड राज्यों व अन्य उपचुनावों में दिए नारों से राजनीति गरमाई-वोटरों ने नारों पर मंथन करने की मानसिकता बनाई -एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया – वैश्विक स्तरपर लोकतंत्र के सबसे बड़े और सबसे पुराने देश भारत और अमेरिका में 5 नवंबर 2024 व भारत के महाराष्ट्र झारखंड मैं पूर्ण 5 वर्षीय चुनाव व कुछ राज्यों के उप चुनावों पर दुनियाँ की नज़रें लगी हुई है इसलिए कि दुनियाँ जानती है कि अमेरिका का विश्व पर दबदबा है, इसकी हरी झंडी मिलने से ही विश्व में कोई काम होते हैं, तो वही महाराष्ट्र मुंबई को भारत की राजधानी के रूप में जाना जाता है, तो झारखंड को आदिवासी गढ़, इन जनजातियों का सबसे बड़ा सुबह तो यूपी को पीएम की कुर्सी तक जाने का रास्ता माना जाता है, इसलिए विश्व की टकटकी नज़रें इसके परिणाम जानने के लिए उत्सुक है। परंतु इन चुनावी माहौल में देश व राज्यों में माहौल अति तेज गरमाया हुआ है।एक औरजहां अमेरिकी राष्ट्रपति की वूमेन विरोधी छवि तो वही हैरिस की ब्लैकिश छवी है, परंतु टक्कर जोरदार होनी है,तो वहीं भारत में इस माहौल में नारों का नगाड़ा धूम धड़ाक्के से बज रहा है। सबसे पहले यूपी सीएम ने बटेंगे तो कटेंगे नारा दिया, हरियाणा फतेह हुआ वहीं इस नारे को आरएसएस व पीएम का भी सपोर्ट आधार मिला जिससे यूपी के पूर्व सीएम युवा नेता हड़बड़ा गए, व नारा दिया जुड़ेंगे तो जीतेंगे फिर पूर्व सीएम मायावती क्यों पीछे रहेगी उन्होंने भी नारा दिया जुड़ेंगे तो आगे बढ़ेंगे, फ़िर अब पीएम ने भी एक सभा में नारा दिया एक है तो सेफ़ हैं इन सब नारों की चर्चा हम नीचे पैराग्राफ में करेंगे। अब सवाल है क्या नेता वोटरों को नारों में उलझा पाएगी? समझदार वाटर किसके साथ जाएंगे, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, भारतीय राजनीति में नारों की गूंज, बटेंगे तो कटेंगे बनाम जुड़ेंगे तो जीतेंगे प्लस जुड़ेंगे तो आगे बढ़ेंगे इक्वल टू एक है तो सेफ़ है। साथियों बात अगर हम यूपी सीएम द्वारा दिए गए नारे बटेंगे तो कटेंगे की करें तो,यूपी में उपचुनाव के बीच पोस्टर के स्लोगन की सियासत शुरू हो गई है।यूपी सीएम के नारे बंटेंगे तो कटेंगे पर संघ परिवार की मुहर के बाद इसके अब होर्डिंग दिखने लगे हैं। पोस्टर के जरिए पार्टी के हिंदुत्व के एजेंडे को धार मिल रही है। वहीं इस नारे को लेकर विपक्ष नेयूपी सीएम को घेरना भी शुरी कर दिया है।एसपी के अध्यक्ष ने सीएम के नारे पर टिप्पणी करते हुए राजनीतिक इतिहास का सबसे ख़राब नारा बताया है।सीएम ने आगरा में एक कार्यक्रम में कहा था कि आप देख रहे हैं बांग्लादेश में क्या हो रहा है? वे गलतियां यहां नहीं होनी चाहिए। बटेंगे तो कटेंगे, एक रहेंगे तो नेक रहेंगे, सुरक्षित रहेंगे और समृद्धि की पराकाष्ठा पर पहुंचेंगे। इसके बाद यह स्लोगन तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है।यूपी के साथ ही देश की राजनीति में भी इन दिनों एक नारे को लेकर जबरदस्त चर्चा चल रही है। यह नारा बटेंगे तो कटेंगे का है। यह नारा यूपी सीएम ने दिया है। अब सपा ने उनके इस नारे पर जोरदार पलटवार किया है। बता दें यूपी में नौ विधानसभा सीटों के लिए हो रहे उपचुनाव की वजह से चुनावी माहौल काफी गर्म है। इस उपचुनाव में सपा और बीजेपी के बीच जोरदार टक्कर है।बुलडोजर एक्शन के बाद अब सीएम का एक स्लोगन भी चल पड़ा है।जैसे 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में हर जगह बुलडोजर छाया रहा, अभी सीएम का दिया एक नारा सबसे ज्यादा चर्चित है,बंटेंगे तो कटेंगे- और चुनावी माहौल में सीएम की बात को संघ से लेकर पीएम तक एनडोर्स कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में सीएम के नारे बटेंगे तो कटेंगे के प्रभाव की भी परख होगी। वजह ये है कि उपचुनाव को खुद फ्रंट से लीड कर रहे यूपी के सीएम के इस नारे को विपक्ष की जातीय गोलबंदी के काट के तौर पर देखा जा रहा है। इस नारे ने हाल ही में हरियाणा चुनाव में रंग दिखाया है और महाराष्ट्र, झारखंड में भी इसकी गूंज सुनाई पड़ रही है। ऐसे में ये तय है कि यूपी उप चुनाव की रैलियों और जनसभाओं में ये नारा गूंजेगा। वहीं अब इस नारे को संघ का समर्थन मिलने के बाद 2027 में यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सियासी रणनीति इसके इर्द-गिर्द होने के संकेत भी मिल रहे हैं। साथियों बात गअगर हम यूपी युवा नेता द्वारा दिए गए नारे जुड़ेंगे तो जीतेंगे कि करें तो,यह नारा देकर कार्यकर्ताओं को बड़ा संदेश दे दिया है।वहकार्यकर्ताओं से एक साथ आने और आपस में जुड़ने की बात करते दिख रहे हैं। दरअसल, पिछले दिनों कई स्थानों पर पार्टी कैडर में बिखराव की आशंका जताई जा रही है। वहीं,यूपी की राजनीति में यादव वोट बैंक में बिखराव की भी आशंका गहराई है। इसलिए,युवा नेता जुड़ेंगे तो जीतेंगे का नारा देते दिख रहे हैं।युवा नेता ने कहा नारे हमेशा सकारात्मक होने चाहिए। नकारात्मक नारा हमेशा कमजोर लोग ही देते हैं। उन्होंने कहा कि हम तो कहेंगे, जुड़ेंगे तो जीतेंगे। नारे को आगे बढ़ते हुए वह कहते हैं कि पीडीए जुड़ भी रहा है और जीत भी रहा है। युवा नेता यूपी के सीएम पर हमलावर रुख अपनाते हुए दिखते हैं। यूपी क़े सीएम के बयान बटेंगे तो कटेंगे पर काफी चर्चा हो रही है। इसके पलटवार में समाजवादी पार्टी ने भी एक पोस्टर जारी किया है, जिसपर लिखा है,जुड़ेंगे तो जीतेंगे, अब यूपी की एक और प्रमुख पार्टी बसपा भी इस बयानबाजी में शामिल हो गई है। बसपा चीफ ने कहा कि बसपा का नारा,बसपा से जुड़ेंगे तो आगे बढ़ेंगे और सुरक्षित रहेंगे, है। उन्होंने कहा कि जब से बसपा ने उपचुनाव में उतरने का ऐलान किया है, सपा और बीजेपी की नींद उड़ी हुई है। यूपी की 9 विधानसभा सीटों पर 13 नवंबर को उपचुनाव होने हैं, जिसके नतीजे 23 नवंबर को सामने आएंगे। साथियों बात अगर हम पूर्व सीएम मायावती के नारे जुड़ेंगे तो आगे बढ़ेंगे की करें तो, बसपा चीफ़ ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर एक बयान जारी करते हुए लिखा,यूपी में नौ विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में बीएसपी के दमदारी से उतरने से भाजपा और सपा की नींद उड़ी हुई है। इसीलिए विकास से लोगों का ध्यान हटाने के लिए बीजेपी ने बटेंगे तो कटेंगे और सपा ने जुड़ेंगे तो जीतेंगे जैसे नारे दिए हैं। उनकी दोगली नीतियों से बचने के लिए बेहतर यही है कि आप हमेशा तक बसपा से जुड़ेंगे तो आगे बढ़ेंगे और सुरक्षित रहेंगे। साथियों बात अगर हम माननीय पीएम के मास्टर स्ट्रोक एक है तो सेफ़ हैं नारे की करें तो,पीएम ने राष्ट्रीय एकता और यूसीसी की जोरदार वकालत की। उन्होंने विपक्ष की आलोचना करते हुए कहा कि लोगों को अर्बन नक्सलियों के नए मॉडल से सावधान रहने की जरूरत है, जिनका एकमात्र एजेंडा अराजकता फैलाना और देश को अस्थिर करना है। उन्होंने कहा कि आंतरिक और बाहरी ताकतें देश की बढ़ती वैश्विक प्रतिष्ठा को देखते हुए भारत की छवि को खराब करने की कोशिश कर रही हैं।महराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनावों को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं। राजनीतिक दलों ने चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इस बीच बटेंगे तो कटेंगे के बाद अब एक हैं तो सेफ हैं का नया बयान सामने आया है।पीएम ने यूनिफॉर्म सिविल कोड का जिक्र करते हुए एक नया नारा एक हैं तो सेफ हैं दिया। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारतीय राजनीति में नारों की गूंज-बटेंगे तो कटेंगे बनाम जुड़ेंगे तो जीतेंगे + जुड़ेंगे तो आगे बढ़ेंगे=एक है तो सेफ़ है।क्या नेता वोटरों को नारों में उलझा पाएंगे? समझदार वोटर किसक़े साथ जाएंगे?भारत के महाराष्ट्र झारखंड राज्यों व अन्य उप चुनावों में दिए नारों से राजनीति गरमाई-वोटरों ने नारों पर मंथन करने की मानसिकता बनाई। -संकलनकर्ता लेखक- क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र Post navigation भाई -बहन के प्यार, जुड़ाव और एकजुटता का त्योहार भाई दूज वैश्विक छठ महापर्व 5-8 नवंबर 2024 : विश्वास श्रद्धा और प्रकृति के प्रति आभार व सूर्य देव और छठ मैया को समर्पित महापर्व