आर.के. सिन्हा

 अमेरिका में कल ही यानि 5 नवंबर को राष्ट्रपति पद के लिए मतदान होने जा रहा है। इसको लेकर सारी दुनिया के साथ भारत में भी गहरी दिलचस्पी ली जा रही है। हालांकि यह बात तो शीशे की तरह साफ है कि  अमेरिका का अगला राष्ट्रपति चाहें भारतीय मूल की कमला हैरिस बने हैं या डोनाल्ड ट्रंप, दोनों देशों के संबंध बेहतर बने  रहेंगे। भारत और अमेरिका के बीच संबंधों का एक लंबा इतिहास है, लेकिन 21वीं सदी में इन संबंधों ने एक नया आयाम ग्रहण किया है। आज यह दो लोकतांत्रिक महाशक्तियां एक दूसरे के महत्वपूर्ण भागीदार हैं, जो वैश्विक सुरक्षा, आर्थिक विकास और तकनीकी प्रगति में साथ मिलकर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

भारत और अमेरिका के संबंधों का इतिहास वैसे कहें तो जटिल ही रहा  है। 1947 में भारत की आजादी के बाद, अमेरिका ने भारत को शीत युद्ध के दौरान एक महत्वपूर्ण सहयोगी के रूप में देखा। हालाँकि, 1960 और 1970 के दशक में, भारत की गुटनिरपेक्ष नीति और अमेरिका की पाकिस्तान के साथ निकटता के कारण दोनों देशों के बीच कुछ तनाव भी देखने को मिले। 1990 के दशक में, शीत युद्ध के खत्म होने और वैश्वीकरण के उदय ने भारत-अमेरिका संबंधों में एक नया अध्याय शुरू किया। दोनों देशों ने एक दूसरे के साथ व्यापार और निवेश को बढ़ावा दिया, और सुरक्षा क्षेत्र में सहयोग को मजबूत किया।

आज, भारत-अमेरिका संबंध विभिन्न क्षेत्रों में गहरे और मजबूत हैं। भारत अमेरिका के लिए एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार है, और अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निवेशक है। दोनों देश एक दूसरे के बाजारों में अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।   दोनों देशों ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई, साइबर सुरक्षा और समुद्री सुरक्षा जैसे मुद्दों पर सहयोग को बढ़ावा दिया है।

 भारत और अमेरिका एक दूसरे के साथ तकनीकी क्षेत्र में सहयोग कर रहे हैं। भारत में टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में विकास की गति तेज है, और अमेरिकी कंपनियां भारत के बाजार में निवेश करने में रुचि रखती हैं। इसके साथ ही, दोनों देशों के बीच शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में भी मजबूत संबंध हैं। कई भारतीय छात्र अमेरिका में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए जाते हैं, और अमेरिका में भारतीय संस्कृति की उपस्थिति बढ़ रही है।

हालांकि भारत-अमेरिका संबंधों में प्रगति हुई है, लेकिन कुछ चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं।  दोनों देशों के बीच व्यापार संबंधों में कुछ असंतुलन है, जिसके कारण कुछ तनाव भी  देखने को मिलता रहता है।

भारत-अमेरिका संबंधों में प्रवासी भारतीयों की भूमिका भी खासी अहम रही है। अमेरिका में बसे भारतीयों ने अपनी मेहनत, प्रतिभा और सांस्कृतिक समृद्धि से दोनों देशों के बीच एक मजबूत सेतु का निर्माण किया है। प्रवासी भारतीयों का अमेरिकी अर्थव्यवस्था में योगदान अविश्वसनीय है। वे विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिनमें प्रौद्योगिकी, चिकित्सा,  वित्त और उद्यमिता शामिल हैं। “सिलिकॉन वैली” में भारतीय मूल के उद्यमी और कार्यकर्ता प्रौद्योगिकी क्रांति में अग्रणी भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा, भारतीय-अमेरिकी व्यापारियों ने दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

प्रवासी भारतीयों का अमेरिका में राजनीति पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव है। वे विभिन्न राजनीतिक दलों में सक्रिय हैं और उच्च पदों पर पहुंचते हैं। कांग्रेस और राज्य विधानसभाओं में महत्वपूर्ण संख्या में भारतीय-अमेरिकी सांसद हैं। वे दोनों देशों की सरकारों के बीच संवाद और सहयोग को बढ़ावा देने में मदद करते हैं। प्रवासी भारतीयों ने अमेरिका में भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वे भारतीय फिल्मों, संगीत, कला और साहित्य को लोकप्रिय बनाने में सफल रहे हैं। इसके अलावा, भारतीय समुदाय अमेरिका के सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने में योगदान दे रहा है, बहुसांस्कृतिक समाज को मजबूत कर रहा है।

बेशक, प्रवासी भारतीयों ने भारत और अमेरिका के बीच एक अद्वितीय पुल का निर्माण किया है। वे दोनों देशों की भाषाओं, संस्कृतियों और परंपराओं को समझते हैं, जिससे दोनों देशों के बीच आपसी समझ और सहयोग बढ़ता है। वे दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए एक महत्वपूर्ण माध्यम बन गए हैं।

 हालांकि यह भी सच है कि प्रवासी भारतीयों को भी कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इनमें सांस्कृतिक अलगाव,  भेदभाव और नस्लीय पूर्वाग्रह शामिल हैं। हालांकि, प्रवासी भारतीयों की मेहनत, प्रतिभा और सांस्कृतिक समृद्धि ने उन्हें अमेरिका में सफलता हासिल करने और दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने में सफल बनाया है। भविष्य में, प्रवासी भारतीयों की भूमिका और भी महत्वपूर्ण होती जाएगी, क्योंकि वे दोनों देशों के बीच व्यापार, शिक्षा, संस्कृति और राजनीति के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे।

प्रवासी भारतीयों का भारत-अमेरिका संबंधों पर एक बहुआयामी और सकारात्मक प्रभाव है। वे दोनों देशों के बीच आर्थिक,  राजनीतिक,  सांस्कृतिक और सामाजिक संबंधों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे दोनों देशों के बीच एक अद्वितीय पुल का निर्माण करते हैं, जिससे द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने में मदद मिलती है। प्रवासी भारतीयों की भूमिका भारत-अमेरिका संबंधों के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। 

इस बीच, अमेरिका में बसे भारतीयों की बात करते हुए हमें भारत में बस गए अमेरिकी नृत्गंना शेरोन लोवेन की  भी चर्चा कर लेना चाहिए। शेरोन लोवेन मूल रूप से अमेरिकी हैं और वो बीते पचास सालों से भी कुछ अधिक समय से भारत की हो गई हैं।  शेरोन लोवेन भारत की चोटी की ओड़िसी नृत्य की नृत्गंना हैं। उन्होंने अपना सारा जीवन ओड़िसी नृत्य सीखने और सिखाने में  समर्पित कर दिया है। उन्होंने भारत और भारत से बाहर सैकड़ों कार्यक्रमों में अपने चमत्कारी नृत्य से दर्शकों का भरपूर प्यार पाया है। वो जन्म से यहूदी हैं। पर वो बुद्ध और सनातन परंपरा को गहराई से जानती हैं और उसका गहन अध्ययन भी करती हैं।  शेरोन लोवेन से अब अमेरिका बहुत दूर  छूट चुका है। वह  भारतीय हो गई हैं। शेरोन लोवेन 1975 में मिशिगन विश्वविद्यालय से मानविकी, ललित कला, एशियाई अध्ययन और नृत्य में बीए और एमए करने के बाद दिल्ली में मणिपुरी नृत्य को सीखने के लिए भारत आईं थीं। उन्हें यहां  गुरु केलुचरण महापात्रा के रूप में पहला गुरु मिला। तो कह सकते हैं कि भारत- अमेरिका संबंधों को सशक्त करने में शेरोन लोवेन जैसी विभूतियों का योगदान भी कोई कम नहीं रहा है।

  (लेखक वरिष्ठ संपादकस्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

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