-कमलेश भारतीय

आखिरकार प्रियंका गांधी को, जैसे कि संभावना थी, वायनाड से राहुल गांधी द्वारा इस्तीफा देने के बाद कांग्रेस ने सक्रिय राजनीति में उतार ही दिया । हालांकि उन्हें अमेठी या रायबरेली से भी आम लोकसभा चुनाव में बड़े आराम से उतारा जा सकता था लेकिन तब प्रियंका गांधी से सिर्फ प्रचारक का काम लिया गया । बीच में वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ उतारे जाने की बातें भी आईं लेकिन कांग्रेस ने कोई रिस्क लेना उचित नहीं समझा, गांधी परिवार का सदस्या अपना पहला ही चुनाव हार जाते, ऐसा तो नहीं होने देना था, जैसे कपूर खानदान का हीरो लांच होते ही सुपरहिट न हो, ऐसे ही गांधी परिवार का सदस्य हिट होना चाहिए। इसलिए अब सेफ सीट वायनाड से प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति में लाया गया है । मज़ा तब आता जब प्रियंका खुद अमेठी में स्मृति ईरानी के सामने चुनाव लड़तीं‌! स्मृति ईरानी का इतना विरोध था कि जगदीश शर्मा ही उन्हें पराजित करने में सफल रहे, यदि प्रियंका गांधी सामने होतीं तो क्या होता !

खैर, अब प्रियंका तो चुनाव मैदान में आ गयीं लेकिन उत्तरप्रदेश के उपचुनावों से कांग्रेस भाग खड़ी हुई । क्यों? सपा दस में से दो सीटें ही दे रही थी गठबंधन में, जो कांग्रेस को मंजूर नहीं थीं और कांग्रेस ने दस की दस सीट गठबंधन में सपा को ही छोड़ दीं ! यह कैसा फैसला है कांग्रेस का ? कुछ हज़म नहीं हुआ ! उत्तरप्रदेश में चुनाव मैदान ही छोड़ देना बहुत हैरान कर देने वाला है ! क्या भाजपा का कांग्रेस मुक्त भारत का सपना पूरा करने में कांग्रेस भी योगदान दे रही है ? यह बहुत दुखद है । चाहे हार जाते लेकिन कांग्रेस को यह चुनाव इस तरह खुला छोड़कर वाकओवर नहीं देना चाहिए था ! यह बहुत ही गलत फैसला माना जा रहा है । कांग्रेस को अपने तेवर, अपनी कार्यशैली और नीति आक्रामक बनानी होगी। हरियाणा में कभी तक नेता प्रतिपक्ष ही न चुनना क्या संकेत करता है? कहा जा रहा हैं कि दूसरे प्रदेशों में चुनाव में कांग्रेस व्यस्त हो गयी, इसलिए नेता प्रतिपक्ष का चुनाव खटाई में चला गया यानी ठंडे बस्ते में डाल दिया ! शायर आदिल रशीद कहते हैं :

तरीके और भी हैं, इस तरह परखा नहीं जाता
चरागों को हवा के सामने रखा नहीं जाता !
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी। 9416047075

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