हिंसक बंदरों के हमले से बुजुर्ग की हुई मौके पर ही मौत

यह विचलित कर देने वाली वारदात जाटोली मंडी की

प्रतिदिन बढ़ती जा रही है हिंसक होते बंदरों की संख्या

हिंसक बंदर और बढ़ती मौत संख्या बन सकता है चुनावी मुद्दा

फतह सिंह उजाला 

जाटोली । बंदर एक ऐसा प्राणी है जिसके प्रति लोगों की आस्था भी है और जब यह हिंसक हो जाए या हमला करें तो फिर हत्यारा बन जाता है । इन सब बातों से अलग  बंदरों के द्वारा किए गए हमले के कारण एक बुजुर्ग की मौके पर ही मौत हो गई। यह दर्दनाक हादसा अथवा वारदात जाटोली मंडी में घटित हुई। इस घटना में मृतक बुजुर्ग के पुत्रवधू के पांव में भी चोट लगने से वह घायल हो गई। क्षेत्र में हिंसक बंदरों की बढ़ती संख्या और नियमित अंतराल पर हमले के कारण होने वाली मौत और गहरे जख्म अब लोगों के बीच में गुस्सा बनते जा रहे हैं।

जानकारी के मुताबिक जाटोली के ही निवासी 60 वर्षीय कृष्ण कुमार अपनी मेहनत मजदूरी कर लौट कर घर पहुंचे । तो मकान की छत पर बंदरों की फौज वस्त्र इत्यादि फाड़ने का नुकसान कर रही थी।  बंदरों की इन्हीं फौज को खदेडने के लिए पुत्रवधू भी छत पर पहले से ही पहुंची हुई थी । बंदरों की अधिक संख्या को देखते हुए जैसे ही किशन कुमार मकान की छत पर पहुंचे तो अचानक से मंदिरों ने हिंसक होते हुए हमला बोल दिया। इस प्रकार  अप्रत्याशित रूप से बंदरों के सामूहिक हमले मैं संतुलन बिगड़ने से वह छत से नीचे पक्के फर्श पर आकर गिर पड़े। शोर शराबा सुनकर परिजन और आस-पड़ोस के लोग कुछ समझ पाते और नीचे गिरे बुजुर्ग कृष्ण कुमार को संभालते कब तक उनकी मौत भी हो चुकी थी।

जैसे फिर बंदरों की हिंसक वारदात और हमले के करण किशन कुमार की मौत की सूचना आसपास में फैली तो बड़ी संख्या में विशेष रूप से महिलाएं पीड़ित परिवार को सांत्वना देने के लिए पहुंची। इसी दौरान महिलाओं के द्वारा बताया गया इलाके में दिन पर दिन बंदरों की संख्या बढ़ती चली जा रही है। यहां तक तो ठीक है , लेकिन अधिक संख्या में होने के कारण भूखे प्यासे बंदर घरों में घुसकर खाने पीने की चीज उठा कर ले जाते हैं । प्रतिदिन इस्तेमाल में किए जाने वाले वस्त्र कपड़े इत्यादि भी फाड़ना उनकी दिनचर्या में शामिल हो गया है। खाने पीने की चीज हाथ में से छीन कर ले जाना बंदरो ने अपना अधिकार बना लिया । मौके पर पहुंची कई महिलाओं ने अपने जख्म दिखाते हुए कहा यह सब बंदरों के काटने या फिर उनके द्वारा किए गए हमले की ही निशानी है । बंदरों के काटने अथवा हमले के बाद जख्म को ठीक करवाने में भी पैसा खर्च अलग से हो रहा है । 

महिलाओं की माने तो अभी बंदरों के द्वारा किए गए हमले की वारदात के कारण एक दर्जन के करीब मौत हो चुकी है । जख्मी अथवा घायलों का तो कोई हिसाब किताब ही नहीं है । बंदरों को पकड़ कर बाहर छोड़ने के लिए अनेकों बार शासन प्रशासन अधिकारियों और सिस्टम के पास गुहार लगाई जा चुकी है । लेकिन समस्या का समाधान किया जाने की तरफ पूरा सिस्टम ही आंख बंद किए हुए बैठा है।

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