राव तुलाराम की वंशज की लाडली की शाख दांव पर, अटेली से दो बार जीती बीजेपी

इस बार लगेगी हैट्रिक या बसपा इनेलो गठबंधन तथा कांग्रेस बिगाड़ेगी खेल?

अटेली सीट पर कितनी मुश्किल है आरती की राह, राव इंद्रजीत दिला पाएंगे जीत?

अहीरों ने एक बार अपने ‘पूज्नीय बाबा’ क्षेत्रानाथ को ‘शराबी’ के मुकाबले में हरा दिया

अशोक कुमार कौशिक

हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर इस बार जबरदस्त तैयारी देखने को मिल रही है। सभी पार्टियों ने जोरदार प्रचार कर रखा है, कई सीटों पर कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है। हरियाणा के जिला महेंद्रगढ़ की अटेली विधानसभा सीट को भी काफी अहम माना जा रहा है। इस बार यहां अहीर राजा राव तुलाराम की वंशज तथा हरियाणा के दूसरे मुख्यमंत्री स्वर्गीय राव बीरेंद्र सिंह की पोती आरती राव के चुनाव मैदान में उतरने से यह सीट चर्चा में आ गई है। पिछले विधानसभा चुनाव में यानी की 2014 तथा 2019 में भारतीय जनता पार्टी ने अटेली सीट से जीत दर्ज की थी। क्या इस बार अटेली विधानसभा में भाजपा हैट्रिक लगा पाएगी या उसे बसपा इनेलो गठबंधन उम्मीदवार ठाकुर अतरलाल तथा कांग्रेस की अनीता यादव के हाथों मात खानी पड़ेगी।

पिछली बार के नतीजे

पिछले विधानसभा चुनाव में अटेली सीट से बीजेपी ने 2014 की विजेता संतोष यादव की जगह सीताराम यादव को उतारा था जिन्हें 55793 वोट मिले थे। दूसरे तरफ बीएसपी के प्रत्याशी अतर लाल 37837 मत लेकर दूसरे पायदान पर रहे थे। कांग्रेस प्रत्याशी स्वर्गीय राव वीरेंद्र सिंह के पौत्र राव अर्जुन सिंह सहित अन्य प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई। बड़ी बात यह है कि 56 साल में छह बार कांग्रेस यहां से जीती। विशाल हरियाणा पार्टी तीन बार जीती। एक बार अहीरवाल के प्रसिद्ध संत बाबा खेतानाथ को हराकर लक्ष्मी नारायण ने हरा झंडा लहराया। उसके बाद अटेली को बीजेपी का मजबूत गढ़ माना जाने लगा है, 2014 में भाजपा पार्टी की संतोष यादव ने काफी आसानी से इस सीट को अपने नाम कर लिया था।

वैसे पिछले दो चुनाव से लगातार भाजपा ने यह सीट जीती है, लेकिन अगर और पीछे चला जाए तो कांग्रेस, विशाल हरियाणा पार्टी से लेकर आईएनएलडी, निर्दलीय तक को इसी सीट पर जीतने का मौका मिला है। महिलाओं के रुप में संतोष यादव और अनीता यादव ने दो बार इस सीट को जीता। 2009 के चुनाव में कांग्रेस की अनीता यादव ने अटेली सीट पर जीत दर्ज की थी। इसी तरह 2005 में निर्दलीय नरेश यादव ने भी जीत का परचम लहरा दिया था। 1996 के बाद छह बार लगातार चुनाव लड़ने वाले नरेश यादव इस बार चुनाव मैदान से बाहर हैं। 1996 में राव बंसी सिंह के निधन के बाद कांग्रेस की टिकट पर उनके पुत्र राव नरेंद्र सिंह ने चुनाव जीता था। 2005 और 2009 के चुनाव में पराजय मिलने के बाद उन्होंने नारनौल विधानसभा का रुख कर लिया। उनके नारनौल जाने की दूसरी वजह यह भी रही की नई परिसीमन में उनका पैतृक गांव मंढ़ाना नारनौल विधानसभा में चला गया।

सीट का जातीय समीकरण

अटेली सीट की खास बात यह है कि यहां पर ग्रामीण आबादी काफी ज्यादा है। ऐसा कहा जाता है कि एक बड़े ग्रामीण क्षेत्र का प्रतिनिधित्व अटेली सीट करती है। इस सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां पर यादव वोट काफी निर्णायक माने जाते हैं । इसके अलावा दलित वोटों की अच्छी संख्या अटेली सीट पर देखने को मिल जाती है, इस वजह से ही बीएसपी भी एक फैक्टर रहती है। पिछले चुनाव में भी बीएसपी सेंकड नंबर पर रही थी।

इस बार कौन मैदान में?

अनिता यादव
ठाकुर अतरलाल

इस बार के चुनाव में बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की बेटी आरती सिंह राव को चुनावी मैदान में उतार दिया है। उनका मुकाबला बसपा इनेलो गठबंधन उम्मीदवार ठाकुर अतरलाल तथा कांग्रेस की अनिता यादव से होने वाला है। जजपा से आयुषी यादव जो कांग्रेस के दिग्गज कप्तान अजय सिंह के भतीजे अभिमन्यु राव की पत्नी है, आम आदमी पार्टी ने भी इस सीट से सुनील यादव तथा एसयूसीआई से कामरेड ओमप्रकाश को उतारा है। कामरेड ओम प्रकाश और ठाकुर अतरलाल को छोड़कर सभी प्रत्याशी अहीर जाति से है। इसलिए अहीर मतों का बंटवारा हो सकता है।

आयुषी यादव
कामरेड ओमप्रकाश

अतीत की बात करें तो यहां पर राव निहाल सिंह व राव बीरेंद्र सिंह की तूती बोलती थी।‌ दोनों में आपसी राजनीतिक विरोध था। राव निहाल सिंह यहां से तीन बार, राव बीरेंद्र सिंह तीन बार, राव बंशी सिंह तीन बार तथा उनके पुत्र राव नरेंद्र सिंह दो बार निर्वाचित हुए। राव निहाल सिंह दो बार कांग्रेस से तथा एक बार निर्दलीय जीते। वही राव बीरेंद्र सिंह दो बार विशाल हरियाणा पार्टी से विजयी रहे व एक बार कांग्रेस से जीते। राव बंसी सिंह एक दफा विशाल हरियाणा पार्टी तथा दो बार कांग्रेस से जीते। 1967 से अब तक 13 चुनाव एक उपचुनाव हुए जिसमें अहीर नेताओं के सिर विजयश्री का ताज रहा। कुल 14 चुनाव में दो बार निर्दलीय एक बार लोकदल तथा 42 साल बाद भाजपा की संतोष यादव ने कमल का फूल खिलाया।

लोकसभा चुनाव 2024 में अटेली विधानसभा से भाजपा के चौधरी धर्मवीर को 76198 तथा कांग्रेस प्रत्याशी राव दान सिंह को 56695 मत मिले। अटेली ने 19503 की बड़ी लीड दी, जिसे राव दानसिंह नहीं तोड़ पाए।

विधानसभा अटेली 68 दो बड़े कस्बों कनीना व अटेली से मिलकर बनी है। इसमें सेहलंग, नौताना, खेड़ी तलवाना, धनौंदा, भोजावास, दौंगड़ा अहीर, बाछौद, बिहाली, कांटी व खेड़ी जैसे बड़े गांव है। जिसमें 215 बूथ पर कुल 202007 वोट है। इसमें अहीर 81107, चमार 22433, राजपूत 16686, ब्राह्मण 15424, जाट 6875, महाजन 4833, दर्जी 1467, मुस्लिम 1286, खाती 9173, मनिहार 602, वाल्मीकि 2299, गोस्वामी 1143, गुर्जर 4157, सैनी 810, स्वामी 568, जोगी 935, बंजारा 69, सुनार 1030, लोहार 214, कुम्हार 5748, नाई 2905, गुवारिया 292, डाकोत 135, धोबी 48, डूम 132, खटीक 1355, बावरिया 1135, नायक 759, धानक 9477, चारण 72, लखेरा 60, कीर 28, मीणा 12, सपेरा 24, लीलगर 52, नट 91, नायक हेडी 50, लबाना सिख 20 व भाट 35 मतदाता है।

इस सीट पर सबसे बड़ी रोचकता वाली बात यह रही कि यहां हमेशा संघर्षपूर्ण मुकाबले रहे है। नो चुनावों में हार जीत का अंतर तीन हजार से भी कम रहा। चार चुनाव में हार जीत का अंतर एक हजार से भी कम रहा या यूं कहे कि कुछ सैकड़ो में ही हार जीत हुई।

इस सीट पर अब तक तेरह विधानसभा चुनाव व एक उपचुनाव हुआ जिसमें 6 बार कांग्रेस जीती है। खास बात यह है कि इस सीट पर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह भी यहां से तीन बार चुने जा चुके हैं। यह अलग बात है कि यहां से उनके पुत्र राव अजीत सिंह दो बार तथा उनके दिवंगत पुत्र राव अर्जुन सिंह 2019 में यहां से शिकस्त खा चुके हैं।

अटेली में 2009 में हुआ था त्रिकोणीय मुकाबला

अटेली में 11 बार सीधे मुकाबले में जीत हार का फैसला हुआ। इसमें साल 1967, 1968, 1972, 1977,1982, 1987, 1991, 1996, 2000, 2005 व 2014 में दो प्रत्याशियों के बीच जीत-हार का मुकाबला हुआ था। वहीं साल 2009 में तीन प्रत्याशियों के बीच कांटे की टक्कर हुई। इसमें कांग्रेस प्रत्याशी अनीता यादव 22.44, बीजेपी की संतोष यादव को 21.53 व इनेलो के राव अजीत सिंह को 20.85 फीसदी वोट मिले थे।

हरियाणा के आस्तित्व में आने के बाद 1966 के चुनाव में राव निहाल सिंह कांग्रेस से, 1967 में फिर राव निहाल सिंह कांग्रेस ने निर्दलीय आर जीवन को 967 मतों से हराया। 1968 में विशाल हरियाणा पार्टी के राव बीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस के निहाल सिंह को 7736 मतों से हराया। 1972 में विशाल हरियाणा पार्टी के राव बंसी सिंह ने कांग्रेस के नरदेव सिंह को 4636 मतो से शिकस्त दी। जनता लहर में 1970 में लोकसभा चुनाव में मनोहर लाल सैनी के हाथों शिकस्त हुए विशाल हरियाणा पार्टी के राव बीरेंद्र सिंह ने जनता दल के ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान को 12499 मतों से हराया। उन्हें जिताकर फिर से अहीरों ने उन्हें अपना सिरमौर बनाया। 1982 में राव निहाल सिंह निर्दलीय ने बंसी सिंह को कड़ी टक्कर में 193 मतों से पराजित किया। 1987 की देवी लाल के न्याय युद्ध के बाद लक्ष्मी नारायण यादव इनेलो से लड़े और उन्होंने अहीर समाज में पूज्नीय बाबा खेतानाथ को 2575 मतों से हरा दिया। 1991 में राव बंसी सिंह कांग्रेस ने जनता दल के राव अजीत सिंह को मात्र 66 मतों से शिकस्त दी। 1996 में बंसी सिंह के देहांत के बाद राव नरेंद्र सिंह कांग्रेस से जीते उन्होंने हविपा के ओमप्रकाश इंजीनियर को 2884 मतों से हराया। 2000 में कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में फिर राव नरेंद्र सिंह जीते उन्होंने इनेलो की संतोष यादव को कड़े संघर्ष के बाद 334 मतों से शिकस्त दी। 2005 में निर्दलीय नरेश यादव ने कांग्रेस के राव नरेंद्र सिंह को 2956 मतों से पराजित किया। नए परिसीमन के बाद 2009 में कांग्रेस से कोसली से आई अनीता यादव ने कड़े संघर्ष के बाद भाजपा की संतोष यादव को 993 मतों से पराजित किया। लागातर तीन चुनाव हार चुकी संतोष यादव ने 2014 में बीजेपी मोदी लहर में इनेलो के सतबीर नौताना को 48601 मतों से हराया। 2019 में भाजपा ने लगातार दूसरी बार परचम फहराते हुए नए प्रत्याशी सीताराम यादव ने बसपा के ठाकुर अतरलाल को 18406 मतों से हराया।

छह बार सांसद बन चुके हैं राव इंद्रजीत सिंह

राव इंद्रजीत सिंह छह बार लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं। वह चार बार गुरुग्राम और दो बार भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे हैं। 2014 से पहले वह कांग्रेस में थे और यूपीए की सरकार में विदेश और रक्षा राज्य मंत्री रहे थे। राव इंद्रजीत सिंह हरियाणा में चार बार विधायक और कैबिनेट मंत्री भी रहे हैं। हालांकि राव इंद्रजीत सिंह अहीरवाल में अपने समर्थकों की जीत के लिए भी जोर लगा रहे हैं लेकिन अटेली की सीट को जीतना उनके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है।

आरती को टिकट देने का हुआ था विरोध

याद दिलाना होगा कि जब आरती राव को बीजेपी ने टिकट दिया था तो कई कार्यकर्ताओं ने इसका पुरजोर विरोध किया था। लेकिन यह राव इंद्रजीत सिंह का सियासी कद ही था जिस वजह से बीजेपी ने यहां से मौजूदा विधायक सीताराम यादव का भी टिकट काट दिया था। सीताराम को भी संतोष यादव की टिकट काटकर लड़ाया गया था।

अटेली से हरियाणा की पूर्व डिप्टी स्पीकर और बीजेपी की प्रदेश उपाध्यक्ष संतोष यादव भी टिकट चाहती थीं लेकिन हाईकमान ने राव इंद्रजीत सिंह की पसंद को नजरअंदाज करने का जोखिम नहीं उठाया। आरती राव को टिकट देने पर एडवोकेट नरेश यादव, सुनील राव, कुलदीप यादव सहित कई नेताओं ने खुलकर नाराजगी जताई थी।

अहीर नेता ही जीतते हैं चुनाव

अहीरवाल की इस सीट पर लगातार यादव नेता ही चुनाव जीतते रहे हैं। पिछले तीन चुनावों के ही नतीजे देखें तो 2009 में कांग्रेस के टिकट पर अनीता यादव, 2014 में बीजेपी के टिकट पर संतोष यादव जबकि 2019 में सीताराम यादव भी बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीते थे।

अटेली विधानसभा सीट पर 2 लाख 7 हजार मतदाता हैं। इसमें से 50% अहीर मतदाता हैं लेकिन आरती राव के सामने मुश्किल यह है कि बीजेपी के अलावा कांग्रेस और जेजेपी-आसपा गठबंधन ने भी अहीर नेताओं को मैदान में उतारा है।

कांग्रेस की ओर से अनीता यादव और जेजेपी-आसपा गठबंधन की ओर से आयुषी यादव भी अहीर समुदाय से हैं, इसलिए अहीर मतदाताओं के वोटों का बंटवारा जरूर हो सकता है। इस सीट पर एक और मजबूत उम्मीदवार ठाकुर अतरलाल हैं। वह बसपा-इनेलो के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।

बसपा बिगाड़ सकती है खेल

अहीर मतदाताओं के अलावा इस सीट पर 20% दलित और 8% राजपूत मतदाता भी हैं। लेकिन अटेली सीट पर अहीर मतदाता ही हार-जीत का फैसला करने की ताकत रखते हैं।

कांग्रेस की उम्मीदवार अनीता यादव यहां से 2009 में चुनाव जीत चुकी हैं और वह लगातार इस क्षेत्र में सक्रिय रही हैं, वह बीच में जननायक जनता पार्टी में जा चुकी है। जबकि बसपा-इनेलो के उम्मीदवार अतरलाल ने 2019 के विधानसभा चुनाव में यहां से 37 हजार वोट हासिल किए थे और वह दूसरे नंबर पर रहे थे। वह पिछले 20 साल से राजनीति में है और 15 साल से तो जनता के साथ गहरा जुड़ाव किया है, यदि वह इस बार हार जाते हैं तो यह उनका अंतिम चुनाव होगा। इसलिए बसपा यहां खेल बिगाड़ने की पूरी हैसियत रखती है। अतर लाल 20 साल से राजनीति में है। पिछले 3 विधानसभा चुनाव वे लड़ चुके हैं। लेकिन जीते नहीं। अटेली में लोगों के साथ उनका जुड़ाव भी ठीक है। वे इस चुनाव को अंतिम बता रहे हैं। जिसकी वजह से लोगों की सहानुभूति मिल सकती है। वैसे अटेली को लेकर यह भी प्रसिद्ध है कि वह लगातार चुनाव हारने वाले को ‘बेचारा’ से मुक्ति दिलाती है शायद इस बार ठाकुर अतरलाल की लॉटरी लग जाए।

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