हिन्दी देश की राष्ट्र भाषा, हम सबका स्वाभिमान है

वानप्रस्थ संस्था ने मनाई राष्ट्रीय हिन्दी दिवस की 76वीं वर्षगाँठ

हिसार – आज सीनियर सिटिज़न क्लब में उत्साह एवं हर्षोल्लास से राष्ट्रीय हिन्दी दिवस मनाया गया । क्लब के महासचिव डा: जे. के . डाँग ने सदस्यों का स्वागत करते हुए कहा कि आज के ही दिन 14- सितंबर 1949 को संविधान – सभा ने हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था। हिन्दी के उपयोग को प्रचलित करने के लिए 1953 – के उपरांत हर साल 14 – सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है।उन्होंने कहा कि भाषा के रूप में हिंदी ना सिर्फ़ भारत की पहचान है बल्कि ये हमारे जीवन मूल्यों संस्कृति एवं संस्कारों का परिचायक है । यह सरल,सहज एवं सुगम भाषा होने के कारण हिंदी संभवतः सबसे अधिक वैज्ञानिक भाषा है । उन्होंने त्रिभुवन शर्मा की कुछ पंक्तियाँ

“ जन जन की भाषा हिन्दी, देश का गौरव गान है ।
हिन्द देश , हिंदुस्तान हमारा , हिन्दी हमारी पहचान है….”
सुना कर डा: दवीना अमर ठकराल को आमंत्रित किया।

मंच संचालन करते हुए हिन्दी विदुषी डा: दवीना अमर ठकराल ने 14 सितंबर 1949 से 14 सितंबर 2017 तक के हिन्दी का राजभाषा के रूप में सुंदर सफ़र का संक्षिप्त वर्णन करते हुए कहा कि हम सब प्रतिदिन अनेकों कविताएँ हिंदी की महिमा का गुणगान करते हुए पढ़ते हैं, सुनते हैं विभिन्न आयोजनों में, और आज भी सुनेंगे, यह भी कहा जाता है कि केवल एक ही दिन हिंदी दिवस क्यों …. क्या औचित्य है एक दिवस मनाने का।

उन्होंने कहा कि यह एक चेतावनी है, यह एक सोचने विचारने का दिन है कि क्यों सहज, सरल, सर्वग्राही, संवाहक, संप्रेषक एवं
पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक प्रगति के बीच अदृश्य सेतु बनी हिन्दी भाषा को हम दिल से नहीं अपना पा रहे हैं। हिंदी भाषा केवल एक भाषा नहीं एक भावना है, हमारी धरोहर है, संस्कृति है, हमारी परंपरा है, हमें इसका संरक्षण करना ही होगा । हम सब को इन बिन्दुओं पर विचार करना ही होगा…… वरना कोई औचित्य नहीं है हिंदी की कविताएँ पढ़ने का सुनाने का और हिंदी दिवस मनाने का। उन्होंने स्वरचित कविता

“ साहित्य की साधना है हिंदी, कवियों का ग़ुरूर है हिंदी,
नहीं बैर हमें किसी भी भाषा से , पर सबको अपना बना लेती है हिन्दी……”
से कार्यक्रम का शुभारंभ किया

क्लब की जानी मानी कवियत्री श्रीमती राज गर्ग स्वरचित कविता :- “हिंदी हमारी आत्मा है, भावना का साज है” अपने चिर – परिचित अन्दाज़ में पेश की। वही डा: पुष्पा खरब ने कवि शिवमंगल सिंह सुमन की मशहूर कविता “ हम पंछी उन्मुक्त गगन के …..” प्रस्तुत की

आज की मुख्य अतिथि डॉ अनीता राजपाल ने “आज के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी की दशा व दिशा” विषय पर अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि हमारे अस्तित्व की पहचान बनती,हमारे विचारों को दिशा देती व हमारे भावों को अभिव्यक्ति प्रदान करती हम सबकी प्रिए मातृभाषा राजभाषा हिन्दी एक ऐसा सशक्त माध्यम है जिस से हम स्वयं को भली भाँति रूप से प्रस्तुत कर सकते हैं।

परन्तु आज के परिप्रेक्ष्य में यदि देखा जाए तो हिन्दी एक दिवस की मोहताज कैसे हो गयी यह एक सोचनीय विषय है। क्यों हम सब की आन- बान- शान हिन्दी राष्ट्र भाषा की पदवी से वंचित रहकर केवल राजभाषा का खिताब ही पास सकी? ऐसा लगता है कि हम जाति, धर्म, वर्ण के छोटे छोटे घेरों में सिमट कर रह गए और भूल गए अपनी एकमात्र पहचान कि हम सब हिन्द देश के वासी – हिन्दी हैं। हिन्दी का वर्चस्व बरकरार रखने के लिए अति आवश्यक है सभी भारतीयों का मातृभाषा के प्रति सच्चा प्रेम,आन्तरिक जुड़ाव तथा दृढ़ संकल्प हर स्तर पर होना चाहिए ।उन्होंने हिन्दी का गुणगान करते हुए अपनी स्वरचित कविता

“मैं इतनी सहज, बड़ी सुगम
मुझे अपनाकर देखो
तुम्हें सजा दूँगी, संवार दूँगी…..”
पेश करते हुए क्लब के सभी सदस्यों का आभार व्यक्त किया

क्लब की उभरती गायक सुनीता सुनेजा ने श्री सोम ठाकुर की रचना “ अभिनंदन अपनी भाषा का …..” पेश की
डा: रमेश हुड्डा ने विष्णु सक्सेना द्वारा लिखित कविता “कुछ शहद घोल दो प्यार से बोल दो” अपनी मधुर आवाज़ में गाकर सब का मन जीत लिया वहीं डा: सुनीता जैन ने भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी की जोश पैदा करने वाली कविता
“ क़दम मिला कर चलना होगा 

इस अवसर पर दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम के पूर्व मुख्य संचार अधिकारी धर्मपाल ढुल ने कहा कि हिंदी विश्व में तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली वैज्ञानिक भाषा है। सक्षमता के मापक पर हिंदी के सामने विश्व की कोई भी भाषा ठहर नहीं पाती है। इस भाषा का फैलाव हिंदी भाषाई लोगों के प्रत्येक क्षेत्र में विकास पर निर्भर करता है। प्रत्येक क्षेत्र में जितना विकसित हम होंगे हिंदी का फैलाव स्वत: उतना होता जाएगा। उन्होंने कविता के साथ अपना संबोधन को विराम दिया

“हिंदी निराला, प्रेमचंद की लेखनी का गान है,
हिंदी में बच्चन, पंत, दिनकर का मधुर संगीत है,
हिंदी में तुलसी, सूर, मीरा जायसी की तान
हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है ….”

आज की विशिष्ट अतिथि भूतपूर्व प्राचार्य श्रीमती उषा ठकराल ने स्वरचित कविता “
हिन्दी माँ भारती के माथे की बिंदी….” अपनी मधुर आवाज़ में प्रस्तुत की । श्री योगेश सुनेजा ने सतीश श्रीवास्तव रचित कविता: “ हिन्दी गुणगान “ सुनाई । वही श्रीमती उषा आर्य ने भी स्वरचित कविता “ हिंदी भाषा और इसका श्रृंगार इसकी मात्राएं .,… बहुत ही सरल ढंग से पेश की

कार्यक्रम को समापन की ओर ले जाते हुए डा : डॉ दवीना ने स्वरचित कविता के माध्यम से परिष्कृत व त्रुटि रहित हिन्दी को लिखने व बोलने के लिए आवाहन किया, “ हिन्दी भाषा है विचारों की सच्ची संवाहक भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों की है सच्ची सरलता, सहजता व सुगमता होनी चाहिए हिन्दी भाषा की पहचान लिपिबद्ध करते समय होनी चाहिए त्रुटि रहित, परिष्कृत और आसान हिन्दी लिखें, पढ़ें और बोलें शुद्ध हिंदी से नाता जोड़ें….अपने अन्दाज़ में प्रस्तुत की

अन्त में डा: आर . के जैन डा: दवीना ठकराल , डा : अनीता राजपाल , डा: उषा ठकराल सहित सभी वक्ताओ एवं सदस्यों का आभार प्रकट करते हुए कहा कि हिंदी का प्रसार अब अपने आप तेज़ी से बढ़ रहा है और हिन्दी भाषा का भविष्य उज्जवल
है।

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