-कमलेश भारतीय

कभी जब बेटी रश्मि छोटी थी तो उसे पढ़ाते समय एक कहानी पढ़ी थी, जिसमें राजा भेष बदल कर खेत में काम कर रहे किसान से पूछता है कि जो रुपया तुम कमाते हो, उसका क्या करते हो ? किसान ने कहा कि तुम कौन से राजा हो जो यह बात पूछ रहे हो ! राजा चला गया और दूसरे दिन किसान को बुला लिया दरबार में और कहा कि अब तो राजा पूछ रहा है, बताओ, क्या करते हो कमाये हुए रुपये का ?
किसान ने जवाब दिया -एक चवन्नी उधार उतारने में, एक चवन्नी उधार देने में, एक चवन्नी परिवार चलाने में खर्च कर देता हूं और आखिरी चवन्नी फेंक देता हूं !

राजा ने हैरान होकर कहा कि यह कैसी पहेली है भाई ?
किसान ने कहा कि कोई पहेली नहीं । जो मैं उधार चुकाता हूं, वह मेरे मां बाप की सेवा में लगाता हूं, जो उधार देता हूं, वह अपने बच्चों पर खर्च करता हूं और एक चवन्नी से घर चलाता हू़ं । एक चवन्नी फेंक देता हूं ।

राजा ने कहा -यह पहेली भी सुलझा दो। चवन्नी फेंकते क्यों हो?
किसान ने कहा -राजन् ! मैं एक चवन्नी समाज को दान देता हूं, जो कभी वापस नही आयेगा लेकिन इससे सामाजिक कामों में मेरी छोटी सी मदद हो जाती है ।

आज जब हिसार के जाट शिक्षण संस्थान के इतिहास को देखता हूं तो वही फेंकीं हुई चवन्नियां याद आ रही हैं। बेशक सबसे ज्यादा चवन्नियां सेठ छाजूराम की हैं लेकिन सर छोटूराम की दूरदर्शी सोच भी इससे जुड़ी हुई है। सन् 1925 में किसी शिक्षण संस्थान के बारे में सोचना बहुत क्रांतिकारी कदम और दूरदृष्टि रही होगी । आज इस संस्था को बने, फलते फूलते सौ वर्ष कब बीत गये और यह छोटे से स्कूल से वटवृक्ष की तरह कितनी बड़ी संस्था बन गयी, यह किसी सुखद आश्चर्य से कम नहीं ! इन सौ वर्षों में से कम से कम पच्चीस वर्ष तो मेरी भी आंखों ने भी देखे हैं इस संस्था के ! कभी व्याख्यान देने गया तो कभी युवा समारोह का निर्णायक बनकर तो कभी काव्य पाठ प्रतियोगिता का निर्णायक बनकर ! है मेरा रिश्ता भी इस संस्था से नजदीक सा !
यदि सेठ छाजूराम व अन्य सामाजिक व प्रतिष्ठित लोगों ने अपनी चवन्नियां इस संस्था के निर्माण में नहीं फेंकीं होतीं तो यह संस्था कब और कैसे फल फूल पाती? इसलिए जो अर्पण कर सकते हैं, उन्हें अच्छे कामों के लिए ज्यादा सोचे समझै बगैर मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाते रहना चाहिए । वैसे हिसार के लोग तो विपदा की घड़ी में भी हाथ बढ़ाते देखे हैं, फिर चाहे वह भुज की त्रासदी क्यों‌‌ न हो, या फिर ताज़ा उदाहरण सेक्टर सोलह सत्रह की झुग्गियों का अग्निकांड ही क्यों न हो ! सच, बहुत बड़े दिलवाले हैं हिसार के लोग !

जाट शिक्षण संस्थान और फले फूले और हिसार को ज्ञान की रोशनी बांटता रहे, यही दुआ है मेरी! उदयभानु हंस इसीलिए कह गये :

मत जिओ सिर्फ अपनी खुशी के लिए
कोई सपना बुनो ज़िंदगी के लिए!
जब तक हम दूसरों के लिए सपने देखते रहेंगे तब तक जाट शिक्षण संस्थान जैसी संस्थायें जन्म लेती रहेंगीं और फलती फूलती रहेंगीं!
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।9416047075

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