-कमलेश भारतीय देखिये, तौबा, तौबा, विश्व के सबसे धनी लोगों में शामिल हमारे हिसार की श्रीमती सावित्री जिंदल के पास अपने नाम कोई गाड़ी नहीं ,पर गाड़ियां उनके आगे पीछे रहती हैं, गाड़ियों का काफिला रहता है ! यही है राजनीति के सुंदर व मनोरम दृश्य ! हिसार से दो बार चुनाव जीतीं, सन् 2014 में हारीं और फिर दस साल बाद राजनीति में वापसी की लेकिन इस बार न भाजपा, न कांग्रेस से बल्कि निर्दलीय क्योंकि आम जनता की तरह इन्हें भी राजनीतिक दलों ने छला है । वे भाजपा से टिकट का इंतज़ार करती रह गयीं लेकिन टिकट गया डाॅ कमल गुप्ता की झोली में और फिर समर्थकों के दवाब में आ डटीं निर्दलीय मैदान में ! पूर्व मेयर गौतम सरदाना व डाॅ कमल गुप्ता से श्रीमती सावित्री जिंदल का एक बार फिर चुनाव में आमना सामना होने जा रहा है ! बहुत रोचक और रोमांचक रहने वाला होगा यह मुकाबला ! श्रीमती सावित्री जिंदल ने भावुक बात भी कह दी कि यह उनका आखिरी चुनाव होगा ! चौ रणजीत चौटाला और बड़े भाई व पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला का मिलन सन् 1991 के बाद ऐसा मिलन जैसे राम और भरत का मिलाप हो रहा हो ! आखिर बड़े भाई के चरण छूकर गिले शिकवे दूर हुए ! इस दृश्य को देखने को हरियाणा के लोग तरस गये थे आज तक ! वैसे नामांकन में आमना सामना होने पर गोपाल कांडा के पांव छू रहे हैं गोकुल सेतिया ! ये दृश्य याद रहेंगे ! ये सुंदर दृश्य सदैव याद रहेंगे । आने वाली पीढ़ियां याद रखेंगीं इन्हें । हिसाव के सेक्टर पंद्रह को नेताओं का गढ़ कह सकते हैं । यहां से अनिल मान कांग्रेस टिकट पर, प्रो सम्पत सिंह व उनके बेटे गौरव सम्पत निर्दलीय, बीरेंद्र चौधरी जजपा की टिकट पर नलवा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे हैं । इसी तरह चौ भजनलाल के पोते भव्य बिश्नोई सेक्टर पंद्रह से ही मंडी आदमपुर के चुनाव में दूसरी बार उतरे हैं । सेक्टर पंद्रह से प्रतिदिन प्रत्याशियों के काफिले सुबह सवेरे निकला करेंगे ! सबसे ज्यादा बगावत के लिए भी हरियाणा विधानसभा का यह चुनाव याद रखा जायेगा । चाहे भाजपा, चाहे कांग्रेस दोनों ने आखिरी दिन तक बगावत के डर से टिकट घोषित नहीं किये पर बगावत होकर रही ! बगावत से निर्दलीयों की फौज चुनाव में आ डटी, जिससे सभी जगह समीकरण गड़बड़ा रहे हैं ! ये बागी, निर्दलीय प्रत्याशी किस किस का खेल बिगाड़ेंगे, कोई नहीं जानता पर विचारधारा और समर्पण न होने पर यही परिणाम भुगतने पड़ेंगे ! यदि दूसरे दलों से आने पर तुरन्त टिकट मिलता है तो वफादारी किसलिये और क्यों ? सब जगह ऐसे ही देखने को मिला, जब इधर दल में शामिल हुए, उधर टिकट हाथ में ! यह कैसा समर्पण, कैसी विचारधारा? चित्रा सरवारा भी छली गयीं । पचास साल का नाता टूटते टूटते बचा प्रो रामबिलास शर्मा का भाजपा से ! टिकट नसीब नहीं हुआ भाजपा का जीवन की आखिरी बेला में ! यह बहुत खतरनाक फैसला जिसे हजम करना मुश्किल रहा प्रो रामबिलास शर्मा को ! तौबा ये इशारे, तौबा ये दलबदल!!मैं ये सोच कर उसके दर से उठा थाकि वो रोक लेगी, मना लेगी मुझको!!-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।9416047075 Post navigation कांग्रेस : खेल मुख्यमंत्री बनने का हिन्दी देश की राष्ट्र भाषा, हम सबका स्वाभिमान है