कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे … डा. महेन्द्र शर्मा।

पॉलिटिकल टूरिज्म की एक हास्यास्पद मिसाल …. भाजपा टिकट वितरण में।

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।

पानीपत : प्रसिद्ध साहित्यकार ज्योतिषाचार्य डा. महेन्द्र शर्मा ने विशेष बातचीत में बताया कि हरियाणा में विधानसभा चुनाव से दो वर्ष पूर्व भाजपा ने हर विधानसभा क्षेत्र में प्रभावशाली लोगों को पार्टी से जुड़े रहने और टिकट देने के झांसे में खूब फंसाए रखा ताकि यह कार्य करने वाले लोग कहीं और न भाग जाएं, खूब इंटरव्यू लिए और इस बहाने जनता को अपनी पार्टी को भी जोड़े रखें क्यों की यह लोग शहरों में संपर्क कर रहे थे कि इनको पार्टी का आदेश है टिकट मिलने का संभावना है। इस प्रक्रिया का अंत तो इस तरह का हुआ कि जैसे किसी लडकी का रिश्ता करते समय उसे जो लड़का दिखाया गया वह कोई और था , सगाई में टीका किसी दूसरे को लगा, मेंहदी तीसरे को, मुकुट बांध कर घोड़ी पर चौथा व्यक्ति बैठा, फेरे किसी ने लिए और सुबह तारों की छांव में दुल्हन को कोई और ले गया। गत दो सालों में भाजपा की यह स्थिति बनी रही , इन लोगों से खूब जनसंपर्क करवाए गए, सब राजनैतिक परपंच हुए लेकिन सुबह डोली अर्थात चुनाव में पार्टी की टिकट कोई और ले गया जो की पटकथा में ही नहीं था … बस यह कागज़ी नेता डोली जाते हुए धूल देखते रह गए।

हरियाणा तो पहले से ही आयाराम गयाराम के लिए प्रसिद्ध है , अब तो यही लगता है भाजपा स्वयं “दीनदयाल से दयाप्रसाद” एक याचक बन चुकी है जिस के पास सशक्त नेताओं का अभाव है और भाजपा स्वयं दलबदलुओं की दया पर निर्भर है।

कुछ लोगों का जन्म ही दरी बिछाने के लिए हुआ है।परिवारवाद और बाहरी (imported ) नेताओं को जो पॉलिटिकल टूरिस्ट हैं , वे टिकट ले उड़े … और कार्यकर्ता देखते रहे … 24 घंटे पहले जिन लोगों ने पार्टी ज्वाइन की उन्हें टिकट दे दिया … क्या पार्टी के कार्यकर्ता या वास्तविक नेता सशक्त या सक्षम नहीं हैं। एक नेता तो धमकी दे रहे थे यदि टिकट न मिला तो कांग्रेस से टिकट ले आऊंगा। गनीमत तो यह है कि इस महानुभाव का प्रभाव इतना ज्यादा है की जनता दल हरियाणा विकास पार्टी हरियाणा जनहित पार्टी से कांग्रेस की यात्रा करता हुआ भाजपा में धमकी दे कर नहीं टिकट लाया अपितु इस महानुभाव को तो राजनीति के चाणक्य ने घर बुला कर टिकट समर्पित की। कांग्रेस में ऐसा ही होगा, पानीपत ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र से कल तक भाजपा की राजनीति करने वाले नेता जैन साहिब को कांग्रेस ने टिकट वितरण करने वाली स्क्रीनिंग कमेटी का सदस्य बना दिया और अचानक कांग्रेस ने यह सीट आम आदमी पार्टी को दे दी… इन का चुनाव लडने का स्वप्न ही चूर चूर हो गया। यद्यपि प्रदेश में प्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस की लहर चल रही है लेकिन इंडिया गठबंधन को बचाए रखने के लिए इच्छा अनिच्छा से पांच सीटें आम आदमी पार्टी को दे दी गई। हरियाणा क्या अब तो पूरे देश में राजनैतिक अपरिपक्वता और नेता की उनकी अपनी ही पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के प्रति इतनी अविश्वसनीयता हो चली हैं कि अच्छे अच्छे प्रभावशाली नेता भी हतप्रभ हैं कि कुछ भी हो सकता है। देश की राजनीति के लिए शायद राजनैतिक भूचाल की संभवनाओं की खबर आने लगी है। क्यों कि भाजपा स्वयं ही नानी के समर्थन के प्रति आश्वस्त नहीं है कि कब वैशाखी खींच ली जाए तो इन्होंने इतनी जल्दी ऑपरेशन लोटस करना शुरू कर दिया और अस्थिरता के स्वयं जिम्मेदार बन गए हैं। वो जमाना और था जब देश में राजनीति में पक्ष या विपक्ष की कोई राजनैतिक लहर चला करती थी, अब तो देश का वोटर राजनीतिज्ञो से परेशान है कि वह क्या करे क्या न करे।

नेता तो मेढकों के समान इधर उधर बड़ी बेशर्मी से उदक फुदक रहें हैं, जिन्हें आस्था बदलने में कोई शर्म लिहाज नहीं, लगता है की पूर्व जन्मों में अवश्य ही चावल दान किए होंगे कि राजयोग का आनंद फल भोगना इनके ही भाग्य में लिखा है। अब कल कांग्रेस की लिस्ट में भी यही होगा जिस को इधर टिकट नहीं मिली यदि वह नेता प्रभावशाली हुआ तो उसे टिकट थमा दी जाएगी … होना तो वही है जो राम ने रचना बना रखी है, नेताओं ने 2029 तक तो इसी तरह के करतब करने ही हैं, राजनैतिक सत्य नियम, निष्ठा, सिद्धांत और धर्म का विनाश तो होना ही है, पैसा ही खेला करेगा क्योंकि पैसे वाला व्यक्ति ही प्रभावशाली है, देश के शिक्षा मंत्री अनपढ़ होंगे लेकिन उनके मार्गदर्शक तो सुशिक्षित और तनखइये होंगे। जिनके पास अक्ल होगी वह नौकर होगा जिस के पैसा होगा वह हमारा नेता होगा।

इस बात की गारंटी है कि देश के आमलोगों विशेष कर युवा शक्ति को 2029 तक इतनी अक्ल अवश्य आ जायेगी कि किसी व्यक्ति या शक्ति का अंधभक्त बनना कितना नुकसान देह है। यही अंध भक्त आप को प्रचार करते हुए मिलेंगे जब वह ठगे जा चुके होंगे , इनकी राजनैतिक अंधता के सत्ताधारी राज्य करने का इतिहास बना कर राजनैतिक गर्त में समा चुका होगा। लोगों का किसी भी राजनैतिक दल के प्रति कट्टरता और प्रतिबद्धता का सिद्धान्त अब मृत्यु को प्राप्त होने की प्रक्रिया जो 2014 में शुरू हुई थी अब प्रौढ़ावस्था में प्रवेश कर चुकी है, यह अब धीरे धीरे समाप्त हो जायेगी क्योंकि इसके परिणाम तो इस चुनाव इस टिकट वितरण ने प्रमाणित कर दिए हैं।

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