विधानसभा चुनाव में भूपेंद्र हुड्डा की जगह दीपेंद्र हुड्डा हो सकते हैं चेहरा

3 सिनेरियो ने दीपेंद्र हुड्डा के सियासी कद बढ़ाया 

‘मुझे नहीं पता वो लोग…’, हरियाणा में कांग्रेस की टेंशन बढ़ाने वाला है कुमारी शैलजा का ये बयान

दीपेंद्र के बाद अब कुमारी शैलजा कांग्रेस की ओर से पदयात्रा शुरू करने जा रही हैं

अशोक कुमार कौशिक 

हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से इस बार भूपेंदर हुड्डा की जगह उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा चेहरा हो सकते हैं? लंबे वक्त से उठ रहे इस सवाल का पटाक्षेप अब होता दिख रहा है। हाल ही में बने 3 सिनेरियो ने दीपेंद्र हुड्डा के सियासी कद को काफी ज्यादा बढ़ा दिया है। कहा जा रहा है कि इस बढ़ते कद का असर आने वाले विधानसभा चुनाव में देखने को मिल सकते हैं। उधर दीपेंद्र सिंह हुड्डा के बाद अब कुमारी शैलजा भी पदयात्रा शुरू करने जा रही हैं।

हरियाणा में इस साल अक्टूबर महीने में विधानसभा चुनाव होने के आसार हैं। उधर, लोकसभा की पांच सीट जीतकर कांग्रेस उत्साहित है और उसे विधानसभा चुनाव जीतने का भरोसा है क्योंकि उसके बड़े नेता कुमारी शैलजा और दीपेंद्र सिंह हुड्डा भी चुनाव जीतने में कामयाब रहे हैं। यहां पर बीजेपी का मुकाबला कांग्रेस से है। कांग्रेस यहां पर पिछले 10 सालों से सत्ता से बाहर है।

3 सिनेरियो, जिससे बढ़ता दिख रहा दीपेंद्र का कद…………. विरोधी गुट के बड़े नेता आउट या सरेंडर

हरियाणा की पॉलिटिक्स में पिछले 10 साल में भूपिंदर हुड्डा के विरोध में 5 बड़े नेता (रणदीप सुरजेवाला, अशोक तंवर, कुमारी शैलेजा, किरण चौधरी और कुलदीप विश्नोई) खड़े थे। बदली परिस्थिति में अशोक तंवर, कुलदीप विश्नोई और किरण चौधरी कांग्रेस छोड़ चुकी हैं, जबकि सुरजेवाला सरेंडर मोड में हैं।

शैलेजा और सुरजेवाला वर्तमान में हरियाणा की राजनीति से बाहर हैं। दोनों के पास अभी राष्ट्रीय महासचिव का पद है। दोनों नेताओं ने हाल ही में हरियाणा में कई जिलों का दौरा भी किया था, लेकिन इसके बावजूद इन्हें हरियाणा को लेकर पार्टी से तवज्जों नहीं मिली।

शैलेजा वर्तमान में सिरसा सीट से सांसद हैं। 2024 के चुनाव में कांग्रेस भूपेंदर हुड्डा विरोधी गुट के सिर्फ शैलेजा को ही टिकट मिला था, जबकि कई बड़े नेता चुनाव लड़ने के लिए कतार में खड़े थे।

हिसाब मांगे हरियाणा के नाम पर यात्रा कर रहे

हरियाणा में विधानसभा से पहले बीजेपी सरकार के खिलाफ मोर्चाबंदी के लिए प्रदेश कांग्रेस कमेटी की तरफ से एक पदयात्रा निकाली जा रही है। यह पदयात्रा हरियाणा के सभी 90 सीटों पर की जाएगी। पदयात्रा का नेतृत्व दीपेंद्र सिंह हुड्डा कर रहे हैं। दीपेंद्र न तो वर्तमान में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं और न ही नेता प्रतिपक्ष।

दीपेंद्र की हैसियत हरियाणा कांग्रेस में बतौर एक सांसद की है। दिलचस्प बात है कि पदयात्रा की पूरी रणनीति प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया की अध्यक्षता में तैयार की गई है।

हालांकि, कहा जा रहा है कि यह पदयात्रा सीनियर हुड्डा के कहने पर ही निकाला जा रहा है। भूपेंदर अपने बेटे को चुनाव से पहले पूरे हरियाणा में भेजकर लोकप्रियता का लिटमस टेस्ट कर रहे हैं।

दीपेंद्र की पदयात्रा अगर सफल रहती है तो चुनाव से पहले हरियाणा कांग्रेस में कोई भी बड़ा फेरबदल हो सकता है। दीपेंद्र की इस पदयात्रा से सुरजेवाला और शैलेजा गुट ने दूरी बना कर रखी है।

भूपेंदर हुड्डा की उम्र भी एक बड़ी वजह

हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंदर हु्ड्डा वर्तमान में 76 साल के हैं। हरियाणा में उनके मुकाबले नायब सिंह सैनी हैं, जिनकी उम्र 54 साल है। वहीं दीपेंद्र हुड्डा की उम्र 46 साल है। ऐसे में कहा जा रहा है कि दीपेंद्र को आगे करने के पीछे उम्र फैक्टर भी है।

शैलजा भी शुरू कर रही है यात्रा 

कांग्रेस सांसद कुमारी शैलजा भी इसी महीने के अंत में पदयात्रा की शुरुआत करेंगी। उनकी यह पदयात्रा हरियाणा विधानसभा चुनाव से ठीक पहले होने जा रही है। इसके माध्यम से वह अपनी पार्टी का आधार शहरी क्षेत्रों में मजबूत करने की कोशिश करेंगी। 

कांग्रेस की महासचिव कुमारी शैलजा ने दीपेंद्र हुड्डा की पदयात्रा को लेकर कहा, ”मुझे नहीं पता कि यह प्रदेश कांग्रेस कमेटी कर रही है या कौन क्या कर रहा है। कुमारी शैलजा का कहना है कि ‘मुझे नहीं पता कि वह क्या कर रहे हैं।” मैं वहां नहीं थी। मुझे नहीं पता कि वे क्या कर रहे हैं।” हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने पिछले सप्ताह ही पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बेटे दीपेंद्र हुड्डा की पदयात्रा की घोषणा की थी। हुड्डा ने नायब सिंह सैनी के क्षेत्र करनाल में 15 जुलाई को पदयात्रा शुरू की थी।

पार्टी में संरचनात्मक बदलाव पर यह बोलीं कुमारी शैलजा

हरियाणा में कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करते हुए पांच सीटें जीत ली हैं और उसने सत्तारूढ़ बीजेपी को बराबरी की टक्कर भी दी है। वहीं, कुमारी शैलजा से यह पूछा गया कि क्या उन्हें लगता है कि पार्टी की हरियाणा इकाई में संरचनात्मक बदलाव की जरूरत है? इस पर शैलजा ने कहा, ”अगर चीजें वैसे ही चलती रहीं जैसे वे चल रही हैं। यह अब पूरी तरह से एकतरफा है, जो विधानसभा चुनाव में अपेक्षित परिणाम नहीं लाएगा। इससे गलत संदेश जाता है। इस समय एकाधिकार जैसी स्थिति लग रही है।”

चुनाव आयोग के मुताबिक हरियाणा में युवा वोटरों की आबादी करीब 42 लाख है। इनमें 18 से 19 वर्ष आयु वर्ग के मतदाताओं की संख्या 3,65,504 और 20 से 29 वर्ष आयु वर्ग के मतदाताओं की संख्या 39,31,717 है. राज्य में कुल मतदाताओं की संख्या 1 करोड़ 99 लाख के आसपास है।

अब हरियाणा का राजनीतिक समीकरण समझिए

90 सीटों वाली हरियाणा में इस साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं। 2019 में बीजेपी को 40 सीटों पर जीत मिली थी। इसके अलावा 31 सीटों पर कांग्रेस, 10 सीटों पर जजपा, 1-1 सीटों पर इनेलो और हजपा ने जीत दर्ज की थी।

7 निर्दलीय विधायक भी चुनकर विधानसभा पहुंचे थे, लेकिन हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में समीकरण बदला-बदला नजर आया। लोकसभा के आंकड़ों की मानें तो कांग्रेस को 42 और बीजेपी को 44 सीटों पर बढ़त मिली है। 4 सीटों पर आम आदमी पार्टी को बढ़त मिली, जो कांग्रेस के साथ गठबंधन में थी।

जातिगत समीकरण की बात की जाए तो यहां पर सबसे ज्यादा आबादी जाटों की है। राज्य में करीब 22 फीसद जाट हैं। इसके बाद दलित (11.3 प्रतिशत), ब्राह्मण (8 प्रतिशत), यादव (7.5 प्रतिशत) और गुर्जर (5 प्रतिशत) जातियों का नंबर है।

सीटों की बात की जाए तो 90 में से 32 सीटों पर जीत-हार का फैसला जाट करते हैं। 17 पर तो जाटों की दबदबा ही है। वहीं 10-12 सीटों का समीकरण गुर्जर और अहीर तय करते हैं ऐसे 9 सीटों का खेल दलित बनाते और बिगाड़ते हैं । मुस्लिम भी 4 सीटों पर प्रभावी हैं।

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