वानप्रस्थ संस्था में पंजाब के लोक- गीतों की धूम …….

“ बत्ती बाल के बनेरे उत्ते रखनी आं-
ग़ली भूल ना जावे चन मेरा …..”
“ काला डोरिया कुंडे नाल अडया इ ओये
के छोटा देवरा भाभी नाल लड़या इ ओये”

हिसार – आज वानप्रस्थ सीनियर सिटीज़न क्लब परिसर पहली बार पंजाब के लोकगीतों से गूंज उठा । क्लब के महासचिव डा: जे. के . डाँग ने कहा कि पंजाब की संस्कृति बहुत विविध एवं समृद्ध है ।यहाँ के गीतों में मिठास, हास्य, व्यंग एवं विरह की झलक दिखाई देती है।

सदस्यों ने पुराने समय के पंजाब के लोकगीत/ कवितयाएँ / ग़ज़लें सुना कर समाँ बांध दिया ।

श्री बलवंत जांगड़ा जी ने मंच संचालन करते हुए अपनी विशेष पंजाबी शैली में कार्यक्रम के दौरान कई क़िस्से, मुलतानी भाषा के व्यंग भरे चुटकुले एवं टिप्पणियाँ सुनाई जो काबिले तारीफ़ थी ।ऐसी ही एक बानगी देखिए

” असां तेरे जिस्म दा की करना यार, असां ते तेरे रूह दे आशिक हैं”,
और,
” इबादत रब दी होवे ते चेहरा यार दा होवे,
जिकर रब दा ते गल दिलदार दी होवे”,
कार्यक्रम की शरुआत गुरु की अरदास:

” मेरे गरीब नवाज मेरी बांह फड़ लै, मैंनू पार करणदी हामी भर लै” से हुई जिसको स्वर दिया डॉ सुनीता सुनेजा ने।

गीतों की श्रृंखला में पहला पंजाबी गीत डॉ आर के सैनी ने अपनी चिर परिचित मधुर गायन शैली में

” बहजा मेरे कोल तैनूं तकदा रवहाँ, तकदा रवहाँ हो कुझ ना कहवाँ” गाया और हाल तालियों से गड़गड़ा उठा!

क्लब की जानी – मानी कवियत्री श्रीमती राज गर्ग ने अपने अनुभवों पर आधारित एक स्वरचित कविता सुना कर कार्यक्रम की रोचकता को और बढ़ा दिया , बोल थे

” मंजीया ते बैंदे सी,
कोल कोल रेंदे सी
वेड़े विच रुख सी,
सांझे दुख सुख सी ..”

इसके बाद श्रीमती श्यामा गोसाई ने कार्यक्रम की खूबसूरती में एक कड़ी जोड़ते हुए एक पंजाबी गीत
” बाबुल कयों नेवेयां थर्मी कयो नेवेयन इस बाबुल दी कन्या कवारी बाबुल थर्मीं तान नेवेयं” सुनाया। बेटी विवाह के बाद अपने सुसराल नहीं जाना चाहती और अपने बाबुल से फ़रियाद करती है परंतु उसके पिता समझाते हैं कि सुसराल ही उसका असली घर है , तुम ख़ुशी- ख़ुशी वहाँ जाओ।

डॉ योगेश सुनेजा व श्रीमती सुनीता सुनेजा ने कार्यक्रम में पंजाबी टप्पे “ कोठे ते आ माहिया, मिलणा ता मिल आके नहीं ता खस्मा नू खा माइया “ गाकर दर्शकों को खूब गुदगुदाया।

पुराने समय की गायिका शमशाद बेगम के गाए गीत को अपनी सुरीली आवाज में सुनाते हुए सब की वाहवाही लूटी डॉक्टर नीलम परूथी ने…

” बत्ती बाल के बनेरे उते रखनी आं, गली फुल ना जाए चन्ना मेरेया,.. बत्ती बाल के……. “

कार्यक्रम की विशेष आकर्षण रही डॉ पुष्पा खरब जिन्होंने बहुत ही सुरमयता से यह पंजाबी गीत गाया और खूब तालियाँ बटोरी … ” चिट्टा कुक्कड़ बनेरें ते, कासनी दुपट्टे वालिए मुंडा सदके तेरे ते!”

क्लब के मुकेश कहे जाने वाले डॉ एस. एस.धवन ने अपनी गहरी, माधुर्य भरी आवाज में आशा सिंह मस्ताना का गीत,
” पेके जान वालिए हो …. न जाने किन्ना, ओहो जी किन्ना चिर लावेगी “,.. गाकर गीतों की लड़ी में विशेष मिठास घोल दी।

गीत संगीत में प्रवीण राज रानी मल्हान जो आजकल विदेश में हैं, वीडियो द्वारा पंजाबी लोक गीत
“ मधाणियां, हायो मेरे डाडया रब्बा किन्ना जमियां किन्ना ने लै जाणियां “ सुनाया ,जिसेश् श्रोताओं ने बहुत सराहा।
यह पंजाबी गीत बेटी की विदाई के समय दिल को झकझोर देने वाला, वास्तविकता को दर्शाता है।

कार्यक्रम के मध्य में श्री बलवंत जांगड़ा ने अपनी लयबद्ध व सधी हुई आवाज में एक ठेठ पंजाबी लोकगीत सुना कर सभी को मंत्र मुग्ध कर दिया, उन्होंने कहा कि यह गीत पुराने जमाने के आपसी प्यार, मेलजोल व आदर मान को दिखाता है

” ओह दिन नी औणे मुड़ के बहंदा सी टब्बर जुड़ के…. “
“कुंडे दी चटनी सी ते खुण्डे दा डर होंदा सी…”

डॉ जे के डांग ने जाहिद फाकरी एक मुल्तानी कविता- शौहर की फरियाद ते बेगम की इलतजा :
” कदी ता पेके जा नी बेगम , आवे सुख दा साह नी बेगम.. “ गाकर सबको विस्मित कर दिया।

इस बीच श्रीमती इंदु गहलावत ने बहुत ही मधुर आवाज में यह लोकगीत,

“सड़के सड़के जांदी ए मुटिआरे नी, कंडा चुभिया तेरे पैर बांकिए नारे नी “…गाकर लोकगीतों की लड़ी में मधुरता जोड़ी।

वहीं श्रीमती सुनीता महतानी ने
“ माही वे, मोहब्बताँ सचीयाने
मंगदा नसीबा कुछ और है
किस्मत दे मारे, असी की करिए
किस्मत ते किसदा ज़ोर है
माही वे…
सुना कर मन विभोर कर दिया।

डा: कमल धवन एवं साथियों ने मिलकर चिर परिचित प्रसिद्ध गीत
“ काला डोरिया कुंडे नाल अडेया ओये
के छोटा देवरा भाभी ना लड़या ओ,
छोटे देवरा तेरी दूर भलाई वे, न लड़ सोहनेया तेरी इक परझाई वे “
गा कर खूब तालियाँ बटोरी।

कार्यक्रम के समापन पर डॉ डांग ने श्री बलवंत जांगड़ा के मंच संचालन की प्रशंसा करते हुए कहा कि वह कई भाषाओं में पूरे विश्वास से गा सकते हैं । डा अमृत लाल खुराना ने कहा कि आज का कार्यक्रम दिल को छू जाने वाला था। उन्होंने कहा कि आशा सिंह मस्ताना और रेशमा का पंजाबी लोकगीतों में बहुत योगदान रहा है। ऐसे प्रोग्राम यदा- कदा होते रहने चाहिए ।
उन्होंने कहा कि दो- तीन साल के अंतराल में जिस प्रकार डॉ पुष्पा खरब ने अपनी योग्यता का प्रमाण दिया है , वह सराहनीय हैं । उन्होंने बताया कि आज का कार्यक्रम की विशेषता रही कि यह पंजाबी भाषा में ही पेश किया गया ।

कार्यक्रम में 40-से अधिक सदस्यों ने भाग लिया। उन्होंने कहा कि शीघ्र ही राजस्थानी – लकोगीतों पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा।

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