दक्षिणी हरियाणा की राजनीतिक हलचल तेज, भाजपा से टिकट के लिए राव इंद्रजीत सिंह के विरोधी सक्रिय 

नरवीर, कापड़ीवास और संतोष ने बढ़ाई सक्रियता 

तीन बार के सांसद चौधरी धर्मवीर ने भविष्य में चुनाव लड़ने से किया इनकार

अभिनंदन समारोह से ‘राव राजा’ की ‘दूरी’ क्या ‘राजनीतिक दर्द’ की ‘नाराजगी’ रही?

अशोक कुमार कौशिक 

हरियाणा में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं चुनाव से पूर्व दक्षिणी हरियाणा की राजनीतिक ‘हलचल’ बढ़ने लगी है। पिछले दो विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के लिए बेहद ‘अहम’ रहे दक्षिणी हरियाणा में इस बार टिकट को लेकर पुराने भाजपाई ‘पूरी तरह सक्रिय’ नजर आ रहे हैं। यह वही पुराने भाजपाई हैं जिनकी टिकट पिछली विधानसभा चुनाव में कट गई थी। इसके साथ तीन बार भाजपा के सांसद रहे चौधरी धर्मवीर सिंह ने किरण चौधरी की भाजपा में एंट्री के बाद भविष्य में किसी प्रकार के चुनाव में न लड़ने का ऐलान किया है।  दक्षिणी हरियाणा का ‘राजनीतिक पारा’ आजकल ‘उफ़ान’ पर है जो आगामी विधानसभा चुनाव को प्रभावित कर सकता है।

दक्षिणी हरियाणा में भाजपा के दो खेमे हैं। इनमें से एक केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह का है तो दूसरा खेमा विरोधी है। जिसमें पूर्व मंत्री राव नरवीर सिंह, पूर्व विधायक रणधीर सिंह कापड़ीवास, पूर्व डिप्टी स्पीकर संतोष यादव, पर्यटन निगम के अध्यक्ष डॉक्टर अरविंद यादव, सिंचाई मंत्री डॉ अभय सिंह यादव व पूर्व सांसद सुधा यादव शामिल हैं।

लोकसभा चुनाव के दौरान गुड़गांव सीट पर ‘प्रचार से दूरी’ बनाए रखने वाले पूर्व मंत्री राव नरवीर सिंह विधानसभा चुनाव से पहले गुड़गांव की बादशाहपुर सीट पर पूरी तरह से सक्रिय नजर आ रहे हैं । 2014 में इस सीट से चुनाव जीत कर कैबिनेट मंत्री बने थे। लेकिन 2019 में राव इंद्रजीत सिंह के विरोध के चलते उनका टिकट काट दिया गया। नरबीर ने बगावती तेवर अपनाने के बजाय चुप रहना ही बेहतर समझा। लेकिन अब बदले हालात में 5 साल बाद नरबीर सिंह फिर से बादशाहपुर सीट से टिकट के लिए मजबूत दावेदारी पेश कर रहे हैं। यहां से विधायक रहे राकेश दौलताबाद का निधन हो चुका है।

2024 में गुड़गांव सीट जीतने के बाद राव इंद्रजीत सिंह ने दक्षिणी हरियाणा से मुख्यमंत्री बनाए जाने की घोषणा की थी। इसके साथ उन्होंने अपनी पुत्री आरती राव को भी विधानसभा चुनाव में उतारने की घोषणा की थी। कहा जा रहा है कि बादशाहपुर विधानसभा सीट से आरती राव मैदान में आने को तैयार है। 

इसी तरह 2024 में रेवाड़ी सीट से जीत दर्ज करने वाले रणधीर सिंह कापड़ीवास की दोबारा भाजपा ‘एंट्री’ हो गई हैं। राव इंद्रजीत सिंह की वजह से कापड़ीवास की 2019 के चुनाव में टिकट कट गई थी। लेकिन कापड़ीवास ने खुली बगावत की ओर निर्दलीय तौर पर चुनाव लड़ा। जिसकी वजह से राव इंद्रजीत सिंह समर्थित सुनील मूसेपुर को हार का सामना करना पड़ा। चुनाव के बाद कापड़ीवास पार्टी से ‘निलंबित’ किए गए। अब वह रेवाड़ी सीट पर दावेदारी ठोक रहे हैं। अगर किसी कारण रणधीर सिंह कापड़ीवास चुनाव नहीं लड़ पाए तो उनके भतीजे मुकेश कापड़ीवास चुनाव लड़ सकते हैं । मुकेश कापड़ीवास को पार्टी में पूरी ‘तवज्जों’ मिल रही है वह फिलहाल पार्टी के मीडिया पैनलिस्ट हैं, साथ ही मुकेश पिछले कई दिनों से गांव-गांव जाकर प्रचार में जुटे हैं। 

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उन्हीं की तरह पर्यटन निगम के अध्यक्ष डॉक्टर अरविंद यादव ने भी रेवाड़ी से चुनाव लड़ने की भाग दौड़ शुरू कर दी है। अरविंद को भी राव इंद्रजीत सिंह विरोधी खेमे में गिना जाता है ठीक इसी तरह की स्थिति महेंद्रगढ़ जिले की अटेली विधानसभा सीट पर है। यहां पिछले चुनाव में राव इंद्रजीत सिंह के विरोध के कारण पूर्व डिप्टी स्पीकर संतोष यादव 2019 में टिकट काट दी गई और भाजपा कैडर के सीताराम यादव को टिकट मिला। इस बार सीताराम यादव की हालत भी ‘पतली’ होने के कारण संतोष यादव फिर से मजबूती के साथ अपनी दावेदारी पेश कर रही है। यह दीगर बात है कि इस बार जनता का ‘माहौल’ उनके ‘अनुकूल नहीं’ दिखाई दे रहा। अटेली विधानसभा सीट से भी आरती राव के चुनाव लड़ने के चर्चे जोरों पर हैं। 

नारनौल सीट पर राव इंद्रजीत सिंह के ‘चेहते’ ओमप्रकाश यादव दूसरी बार विधानसभा में पहुंचे। प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन के बाद जब नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाया गया तो उनको प्रदेश के राज्य मंत्री पद से हटा दिया गया। जिला महेंद्रगढ़ की तीसरी सीट नांगल चौधरी से राव इंद्रजीत सिंह के ‘प्रबल विरोधी’ डॉक्टर अभय सिंह यादव दूसरी बार ‘राव विरोध’ के बाद भी जीतकर विधानसभा पहुंचे। प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन के बाद उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किया गया और सिंचाई राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया।

बता दे की अहीरवाल इलाके के पांच जिलों महेंद्रगढ़, रेवाड़ी, गुरुग्राम, रोहतक व भिवानी से संबंधित एक दर्जन से अधिक विधानसभा सीटों पर केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के परिवार ‘रामपुरा हाउस’ का वर्चस्व रहा है। कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आने के बाद 2014 – 2019 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने राव इंद्रजीत सिंह को टिकट वितरण में पूरी ‘तवज्जों’ दी जिसकी वजह से राव अपने कुछ समर्थकों को जिताने तो कुछ को ‘निबटाने’ में पूरी तरह कामयाब रहे। उनकी बदौलत दक्षिणी हरियाणा में भाजपा उम्मीदवारों के जीत के बलबूते पर 2014 में भाजपा के पक्ष में जबरदस्त ‘लहर’ बनी। इसके साथ पहली बार भाजपा ने अपने ‘बलबूते’ सरकार बनाई। 

पिछले चुनाव में तो राव इंद्रजीत सिंह को एक तरह से ‘फ्री हैंड’ दिया गया। गुरुग्राम और रेवाड़ी जिले की तीन-तीन और महेंद्रगढ़ जिले की दो सीटों पर टिकट का वितरण राव इंद्रजीत सिंह की पसंद से हुआ था। अगर इस बार भी ऐसा ही हुआ तो फिर राव के विरोधी नेताओं को टिकट से वंचित रहना पड़ सकता है। हालांकि इस बार ‘बदली परिस्थितियों’ के कारण कुछ बदलाव देखने को मिल सकता है।

दरअसल जून माह में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने गुरुग्राम सीट पर राव इंद्रजीत सिंह को लगातार तीसरी बार उम्मीदवार घोषित किया। लेकिन गुटबाजी के कारण राव इंद्रजीत सिंह के विरोधी तमाम नेता प्रचार से दूर रहे। इनमें राव नरबीर सिंह, सुधा यादव, रणधीर कपड़ीवास व डॉक्टर अरविंद यादव सहित अन्य नेता उस समय तो मंच पर जरूर दिखाई दिए जब किसी बड़ी-बड़े नेता की रैलियां जनसभा थी, लेकिन धरातल पर कोई नेता दिखाई नहीं दिया। 

राव इंद्रजीत सिंह भाजपा में अलग-अलग पड़ते दिखाई दिए जिसका असर चुनाव परिणाम आने के बाद भी दिखाई दिया। पिछले दो चुनाव में ढाई से तीन लाख वोटो से जीत दर्ज करने वाले ‘राव राजा’ की जीत का अंतर इस बार महज 70000 पर ही आकर टिक गया। जीत दर्ज करने के बाद राव इंद्रजीत सिंह ने इस तरह तंज भी कसा और कह दिया कि यह जीत पार्टी से ज्यादा मेरे समर्थकों की मेहनत से हुई है।

क्या ‘राव राजा’ का कमर दर्द ‘उपेक्षा’ की पीड़ा रहा?

अहीरवाल के ‘राव राजा’ का कमर दर्द के बहाने रोहतक में भाजपा कार्यालय में अभिनंदन कार्यक्रम में ‘गैरहाजिरी’ कुछ अलग ‘संदेश’ दे गयी। मोदी तीसरे कार्यकाल में ‘अहीरवाल क्षत्रप’ को महज राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार तक समेट देने से उपजी ‘ना-खुशी’ कमर दर्द का ‘बड़ा कारण’ रहा बताया जा रहा है। उनके कुछ समर्थक कहते हैं कि वह प्रदेश से कहीं बाहर थे। बता दे कि इससे पहले दिल्ली में हुई बैठक में भी राव इंद्रजीत सिंह नहीं पहुंचे थे। 

कमर दर्द की पीड़ा इसलिए भी बड़ी हो गई क्योंकि ‘रामपुरा हाउस सिरमौर’ राव इंद्रजीत मनमोहन सरकार की दो पारियों में भी राज्य मंत्री रह चुके हैं। यानी वह 20 वर्षों से केंद्र सरकार में मंत्री हैं, पर इस बार भी राज्य मंत्री तक का दायित्व और राजनीतिक में उनसे जूनियर मनोहर लाल खट्टर को पहले मुख्यमंत्री फिर अब केंद्र में पावरफुल कैबिनेट मंत्री बनाना भी ‘बड़े दर्द’ का अहसास दिला रहा है। यह अलग बात है कि खट्टर संघ के पदाधिकारी एवं मोदी के घनिष्ठ रहे। 

2014 तक कांग्रेस में ‘महत्व’ न मिलने तथा राजनीतिक ‘उपेक्षा’ से दुखी होकर कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन इस इस आशा से थामा था कि यहां उनका पूरा उनके राजनीतिक कौशल अनुसार ‘ओहदा’ मिलेगा। 2014 व 2019 में दक्षिणी हरियाणा से भाजपा को अभूतपूर्व सफलता मिली। चुनाव से पूर्व मुख्यमंत्री पद देने की हवा की बदौलत 2014 में भाजपा ने प्रदेश में अपने बलबूते पर सरकार बनाई। उनके अलावा पंडित रामबिलास शर्मा, कैप्टन अभिमन्यु, ओमप्रकाश धनखड़ जैसे भावी मुख्यमंत्रियों को ‘दरकिनार’ कर मोदी ने अपने ‘अभिन्न’ मनोहर की ताजपोशी कर दी। कांग्रेस के समय से मुख्यमंत्री कुर्सी की ‘कसक’ को भाजपा ने भी बढ़ा दिया।

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नाखुशी का दूसरा कारण केंद्रीय नेतृत्व द्वारा प्रदेश में सीएम की कुर्सी पर खट्टर की जगह नायाब सैनी की ताजपोशी की। इस नए मंत्रिमंडल में उनके ‘चेहते’ तत्कालीन राज्य मंत्री ओमप्रकाश यादव को हटाकर उनके ‘प्रबल विरोधी’ अभय सिंह यादव को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। 

यहां यह भी बता दे कि भाजपा इस बार भिवानी महेंद्रगढ़ से धर्मवीर की जगह किसी अन्य नेता को टिकट देना चाहती थी लेकिन राव इंद्रजीत सिंह ने धर्मवीर की ‘जीत की गारंटी’ पार्टी नेतृत्व को दी थी। अटेली, नारनौल, नांगल चौधरी व महेंद्रगढ़ विधानसभाओं में चौधरी धर्मवीर को मिली ‘लीड’ ने राव राजा की राजनीतिक ‘धाक’ पर मोहर लगा दी। वैसे भिवानी व दादरी जिले में भाजपा के राजनेताओं का ‘कौशल’ लोकसभा चुनाव में ‘धरा’ रह गया। अब वही चौधरी धर्मवीर सिंह अपनी विरोधी किरण चौधरी की भाजपा में एंट्री के बाद ऐलान कर रहे हैं कि भविष्य में वह किसी प्रकार का चुनाव नहीं लड़ेंगे। उनके ‘ऐलान’ के बाद दक्षिणी हरियाणा में भाजपा में ‘रस्साकसी’ होने का स्पष्ट संकेत है ।

राव की नाराजगी का यह ‘आक्रोश’ तब ज्यादा बढ़ गया जब 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के अधिकांश वरिष्ठ नेताओं व कार्यकर्ताओं ने उनके चुनाव प्रचार से दूरी बनाकर रखी। इतना ही नहीं, कुछ वरिष्ठ नेताओं पर तो राव इंद्रजीत सिंह की मुखालफत करने के भी आरोप हैं। इस दूरी की बदौलत वह भारी लीड लेने में पीछे रह गए। ‘रही सही कसर’ मोदी के तीसरे कार्यकाल की शपथ के बाद बनाए गए मंत्रिमंडल में फिर से उन्हें राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार के ‘महत्वहीन मंत्रालय’ तक ही सीमित कर देना ‘खिलाफती तेवरों’ के लिए ‘पर्याप्त’ रहा। 

अब राव राजा तथा उनके अभिन्न चौधरी धर्मवीर सिंह की ‘नाखुशी’ और विरोधियों की ‘सक्रियता’ से दक्षिणी हरियाणा में ‘उबाल’ आता दिखाई दे रहा है। यह उबाल भविष्य के विधानसभा चुनाव में बड़ा ‘असरकारक’ बन सकता है।

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