कांग्रेस को ‘वंशवादी’ बताने वाली भाजपा भी ‘परिवारवाद’ में फंसी, अब हो रही कांग्रेसमयी

हरियाणा में लालों के परिवार अब बढ़ा रहे हैं भाजपा में वंशवाद राजनीति  

राजनीति ‘विरासत’ को अगली पीढ़ी में ‘ट्रांसफर’ कर रहे भाजपा नेता

चौधरी वीरेंद्र सिंह के बाद अब राव इंद्रजीत के ‘बदलते स्वर’ घर वापिसी के संकेत है? 

अशोक कुमार कौशिक 

हरियाणा में भाजपा के पुराने लोग कहते हैं कि उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि कांग्रेस के रामपुरा हाउस व तीनों लाल के परिवार के लोग भाजपा पर कब्जा कर लेंगे। इतिहास में पहली बार हरियाणा के तीन ‘लालों’ व ‘राव राजा’ परिवार अब भाजपा में है। इससे तो ऐसा लगता है कि पूर्व मुख्यमंत्रियों – देवी लाल, भजन लाल, बंसी लाल व राव बीरेंद्र सिंह के राजनीतिक परिवारों की एंट्री के बाद भाजपा का वंशवादी राजनीति का रोना अब खत्म हो जाना चाहिए। इन लालों के परिवार सहित अब भाजपा नेता पार्टी में रहकर अपनी अगली पीढ़ी को राजनीति में स्थापित करने की ओर है। इस प्रयास में रणजीत चौटाला, कुलदीप बिश्नोई, किरण चौधरी, राव इंद्रजीत सिंह, चौधरी धर्मवीर, कृष्ण पाल गुर्जर, रमेश चंद्र कौशिक व पंडित रामबिलास शर्मा सहित अन्य नेता अपनी अपनी जुगत भिड़ा रहे हैं।

भारतीय जनता पार्टी परिवारवाद के विरोध में दशकों से झंडा बुलंद करती रही है। पीएम नरेंद्र मोदी समेत बीजेपी नेता ‘परिवारवादी’ पार्टियों के नेताओं पर ‘कड़ा प्रहार’ करते रहे हैं। हाल के दिनों में भारतीय जनता पार्टी ने देश के कई हिस्सों में राजनीतिक परिवारों के नेताओं को विधानसभा व लोकसभा का टिकट थमा दिया। एक्सपर्ट मानते हैं कि इस ‘दलबदल’ का दूसरा पहलू भी है। बीजेपी अब कांग्रेस के उन परिवार के सदस्यों को गले लगा रही है, जो गांधी परिवार के वर्चस्व के कारण उपेक्षित रहे। बीजेपी का संदेश साफ है कि कांग्रेस ने अपने योग्य नेताओं को दरकिनार कर दिया, अब बीजेपी उनका सम्मान कर रही है।

हरियाणा के सीएम नायब सैनी ने भी कहा कि ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि कांग्रेस में परिवारवाद चरम पर है। कांग्रेस में जो प्रतिष्ठित लोग हैं,जिन्हें सम्मान नहीं मिल रहा उन्हें अब कांग्रेस में घुटन हो रही है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा बेटे के लिए लगे हुए हैं। कांग्रेस में प्रतिष्ठित लोगों को किनारे लगा दिया गया है। उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस से कई बड़े नेता जाने वाले हैं। कांग्रेस में एक ही परिवार की चलती है। यहां सबसे बड़ी बात है कि मोदी शाह सहित प्रदेश नेतृत्व हरियाणा में वंशवाद को लेकर ‘चुप्पी’ साधे हैं।

भाजपा ने परिवारवाद पर कोई जवाब नहीं दिया लेकिन उसके प्रवक्ता राजीव जेटली ने यह जरूर कहा कि तीनों लालों के परिवार के सदस्यों का भाजपा में शामिल होना हरियाणा में ‘चौथे लाल’ मनोहर लाल खट्टर और वर्तमान मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के तहत पार्टी की नीतियों और विकास कार्यों का समर्थन है। इस बेतुकी और ‘बचकानी दलील’ का बंशी, देवी, भजन व राव बीरेंद्र के ‘वंशवाद’ से कोई मतलब नहीं है।

असल कहानी ये है कि बंशी, भजन, देवी व राव परिवार के सहारे भाजपा हरियाणा में तीसरी बार विधानसभा चुनाव जीतने का ‘ख्बाव’ देख रही है। पिछली बार यानी 2019 में ओमप्रकाश चौटाला के पोते दुष्यंत चौटाला के दम पर ही भाजपा की सरकार बनी थी। 

अब भाजपा हरियाणा में अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनावों में जीत का रास्ता रामपुरा हाउस व देवी लाल, बंसीलाल, भजनलाल परिवारों के जरिए देख रही है। 

आधुनिक हरियाणा के निर्माता माने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की बहू और तोशाम विधायक किरण चौधरी के भाजपा में प्रवेश के साथ ही रामपुरा हाउस व तीनों लालों के परिवारों का भाजपा में शामिल होने का सिलसिला पूरा होता नजर आ रहा है।

पूर्व मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र के अलावा 

भजनलाल, देवीलाल और बंसीलाल का परिवार भी इस समय भाजपा के अधीन है। 2014 में राव इंद्रजीत सिंह, चौधरी वीरेंद्र सिंह व चौधरी धर्मवीर सिंह ने कांग्रेस छोड़ी। पूर्व सांसद और भजन लाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई 2022 में भाजपा में शामिल होने वाले अगले व्यक्ति थे। भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई, रेणुका बिश्नोई और भव्य बिश्नोई बीजेपी में हैं ही। भव्य बिश्नोई हिसार के आदमपुर से भाजपा विधायक हैं। वह भी राज्यसभा टिकट के दावेदार हैं। इससे पहले वह अपने पुत्र भव्य बिश्नोई को हरियाणा मंत्रिमंडल में शामिल करने का पूरा जोर लगा चुके हैं।

इसी तरह, हरियाणा के ऊर्जा मंत्री और देवीलाल के बेटे रणजीत सिंह ने हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर हिसार संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। वह हालिया लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी में शामिल हुए थे। कांग्रेस की टिकट में मिलने पर वह रानियां से निर्दलीय विधायक जीते थे और उन्होंने भाजपा को अपना समर्थन दे रखा था। इस बीच, देवीलाल के पोते आदित्य देवीलाल, जो भाजपा की हिसार जिला इकाई के अध्यक्ष हैं, पिछले कुछ वर्षों से पार्टी में हैं।

यह भी बताते चलें कि भाजपा बंसीलाल सरकार और ओम प्रकाश चौटाला सरकार की जूनियर पार्टनर भी रही है। भजनलाल शासन के दौरान भाजपा विपक्ष में रही है। हां यह भी बताना जरूरी है कि भाजपा छोटे दलों को खत्म करने की पक्षधर रही है।

दक्षिणी हरियाणा का रामपुरा हाउस 

राव बीरेंद्र सिंह, पंडित भगवत दयाल शर्मा के स्थान पर हरियाणा के दूसरे मुख्यमंत्री बने थे। हालांकि वह 24 मार्च, 1967 से 2 नवंबर, 1967 तक ही इस पद पर रह पाए।  स्वतंत्रता सेनानी राव तुला राम के वंशज, राव बीरेंद्र सिंह ने अंग्रेजों की सेवा की थी 1939 से 1947 तक भारतीय सेना में कैप्टन पद पर काम किया था। 1950 से 1951 तक वह एक कमीशन अधिकारी के रूप में प्रादेशिक सेना में थे।

हरियाणा गठन के बाद वर्ष 1967 में हुए पहले आम चुनावों में राव बिरेंद्र अपनी ही विशाल हरियाणा पार्टी से पटौदी से चुनाव जीतकर विधायक बने। उन्हें प्रदेश का प्रथम निर्वाचित विधानसभा अध्यक्ष बनने का गौरव मिला। 24 मार्च 1967 को राव संयुक्त विधायक दल के बल पर प्रदेश के दूसरे मुख्यमंत्री बने। वर्ष 1971 में राव ने विशाल हरियाणा पार्टी से महेंद्रगढ़ लोकसभा का चुनाव जीता। वर्ष 1977 में अटेली से विधायक बने।

आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी के आग्रह पर राव ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय किया। वर्ष 1980 में केंद्र में कांग्रेस सरकार बनने पर इंदिरा गांधी ने राव को कृषि, सिंचाई, ग्रामीण विकास, खाद्य एवं आपूर्ति जैसे महत्वपूर्ण विभागों का जिम्मा सौंपा। 1996 के बाद से उन्होंने सक्रिय राजनीति छोड़ दी थी।

दक्षिणी हरियाणा की राजनीति में रामपुरा हाउस का काफी ‘दबदबा’ रहा है। स्व.राव राजा बीरेंद्र सिंह ने अपने जीवन काल में ही उन्होंने अपने परिवार को राजनीति में स्थापित कर दिया था। बड़े बेटे राव इंद्रजीत सिंह को तो उन्होंने स्थापित कर दिया था पर मंझले बेटे राव अजीत सिंह को जनता ने कभी स्वीकार नहीं किया। जिसका उन्हें जिंदगी भर तक मलाल रहा। उनके छोटे बेटे राव यादवेन्द्र सिंह को राव इंद्रजीत सिंह ने कांग्रेस में विधायक बनवाया पर बाद में वह उनके साथ छोड़कर चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा की ‘गोद’ में जा बैठे।

सबसे पहले 2014 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा से परेशान होकर राव इंद्रजीत सिंह ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन पकड़ा था। इसके भिवानी महेंद्रगढ़ से तीसरी बार सांसद बने धर्मवीर ने भी 2014 में कांग्रेस को टाटा कह कर भाजपा का झंडा थामा। राव इंद्रजीत सिंह के भाजपा में जाने के बाद ऐसी लहर बनी कि न केवल देश में बल्कि प्रदेश में भी भाजपा की सरकारे बनी।

सक्रिय राजनीति के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुके केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के लिए आने वाले विधानसभा चुनावों में बेटी को हर हाल में विधानसभा तक पहुंचाना बड़ी चुनौती से कम नहीं है। लगभग हर हलके में उनके राजनीतिक विरोधियों की मौजूदगी के चलते अभी तक आरती के विधानसभा क्षेत्र को लेकर अंतिम निर्णय नहीं लिया जा सका है। इसके लिए राव हर हलके में खास समर्थकों की राय जान रहे हैं, ताकि आरती को विधानसभा में एंट्री कराने का रास्ता आसान हो जाए। हालांकि उन्होंने हर हालात में आरती राव को विधानसभा चुनाव लड़ाने का ऐलान कर दिया है। 

‘राव राजा’ के ‘बागी सुर’, क्या ‘घर वापसी’ के संकेत है? 

कांग्रेस छोड़ने से पहले राव इंद्रजीत सिंह के जो बागी स्वर थे वहीं अब फिर से सुनाई देने लगे हैं। भाजपा में अपनी स्थिति असहज मान रहे हैं। राव राजा की बयानबाजी से अब यह कयास लगाए जाने लगे हैं कि यह उनके घर वापसी के संकेत है। लोकसभा चुनाव में भाजपा के लोगों का साथ में मिलना, पिछले विधानसभा चुनाव में बेटी आरती राव को टिकट नहीं दिया तथा मोदी मंत्रिमंडल राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार के रखा जाना बगावती सुर अलापने के लिए काफी है। किसी कारण उन्होंने चुनाव जीतने के बाद दक्षिण हरियाणा से मुख्यमंत्री देने और अपनी बेटी आरती हर हाल में चुनाव लड़ने की घोषणा करके सबकों चौंकाया है। कुछ भाजपा के नेता ऐसे दबाव की राजनीति भी मान रहे हैं।

पिता की राजनीतिक विरासत संभालने के लिए आरती एक्टिव

आरती राव पिता की राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए एक दशक से अहीरवाल की राजनीति में पूरी तरह एक्टिव होकर कार्य कर रही हैं। गत विधानसभा चुनावों में भाजपा की परिवारवाद विरोधी नीति के चलते आरती को टिकट नहीं मिली थी। यह तो लोकसभा चुनावों के बाद ही तय हो चुका है कि इस बार आरती राव हर हाल में विधानसभा चुनाव लड़ने जा रही हैं, परंतु दल और हल्के को लेकर सस्पेंस बरकरार है। आरती ने अहीरवाल के सभी हलकों में राव समर्थकों की मदद से लोकसभा चुनावों से पहले ही ताकत दिखाने में सफलता हासिल की थी। वह जिस हलके में जाती हैं, उसे ही अपना बताती रही हैं। चुनाव लड़ने को लेकर किसी एक हलके पर उन्होंने पत्ते नहीं खोले हैं। उनके सामने कोसली, रेवाड़ी, अटेली, नारनौल और बादशाहपुर दमदार विकल्प हैं।

हरियाणा में दबदबा रखने वाला ‘बुढ़पुर हाउस’

इस क्षेत्र का एक ओर महत्वपूर्ण परिवार राव मोहर सिंह द्वारा स्थापित बूढ़पुर हाउस है। मोहर सिंह को गुरुग्राम में विभाजन से पहले पहला सहकारी बैंक खोलने का श्रेय दिया जाता है। उनके पुत्र राव महावीर सिंह और राव विजयवीर सिंह विधायक बने। राव महावीर सिंह के बेटे राव नरबीर सिंह तीन बार के विधायक हैं। उन्होंने 2014 में बीजेपी उम्मीदवार के रूप में बादशाहपुर से अपनी आखिरी जीत दर्ज की थी। इस लोकसभा चुनाव को लेकर हरियाणा को चार कलस्टर में विभाजित किया था। कलस्टर रोहतक, हिसार व सिरसा का पूर्व मंत्री राव नरबीर सिंह को पार्टी ने प्रभारी बनाया है।  

2019 के विधानसभा चुनावों में टिकट कटने से राजनीतिक वनवास झेल रहे पूर्व मंत्री राव नरबीर सिंह को राष्ट्रीय परिषद में लेकर भाजपा नेतृत्व ने एक बार फिर सभी को चौंका दिया। दक्षिणी हरियाणा में राव नरबीर सिंह को केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह का सबसे बड़ा विरोधी माना जाता है। राव नरबीर सिंह पहली बार 1987 में जाटूसाना से विधायक बने तथा मात्र 25 साल की उम्र में मंत्री बनकर प्रदेश के सबसे छोटी उम्र के मंत्री होने का गौरव प्राप्त किया। टिकट कटने के लिए राव नरबीर समर्थक केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह को जिम्मेदार मानते हैं।

सर छोटू राम के नाती की कांग्रेस में वापसी

चौधरी छोटू राम के नाती हरियाणा की राजनीति के बड़ी शख्सियत चौधरी वीरेंद्र सिंह ने 28 अगस्त 2014 को राज्यसभा से इस्तीफा दिया। इसके बाद वह 29 अगस्त 2014 को भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा ने 2016 में बीरेंद्र सिंह को राज्यसभा सदस्य बनाया। वह 2014 से 2016 तक ग्रामीण विकास, पंचायती राज, स्वच्छता और पेयजल मंत्री रहे और बाद में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में 2016 से 2019 तक केंद्रीय इस्पात मंत्री रहे हैं।

उनके आइएएस से त्यागपत्र देने वाले पुत्र बिजेंद्र सिंह को हिसार लोकसभा की टिकट दी तथा उनकी पत्नी प्रेमलता 2014 में विधायक बनी। 2019 का विधानसभा चुनाव वह हार गई। जब उनके पुत्र विजेंद्र सिंह को हिसार से दोबारा लोकसभा का टिकट मिलता नहीं दिखाई दिया तो चौधरी वीरेंद्र सिंह अपने पुत्र व पत्नी सहित वापिस कांग्रेस में चले गए हैं।

भाजपा के नेताओं में परिवारवाद 

भाजपा ने अंबाला से सांसद रहे स्व रतनलाल कटारिया की पत्नी बंतो कटारिया को 2024 में लोकसभा चुनाव के लिए टिकट दी, पर वह हार गई। 

दक्षिणी हरियाणा के एक बड़े भाजपा क्षत्रप पंडित रामबिलास शर्मा अब राजनीतिक हाशिए पर हैं। वह भरकस प्रयास में है कि अपने पुत्र गौतम शर्मा को किसी तरह राजनीति में स्थापित कर दे। नारनौल से 1987 में देवीलाल भाजपा गठबंधन सरकार में विधायक रहे। 1996 में हविपा भाजपा गठबंधन से वह चुनाव हार गए। चौधरी बंसीलाल गठबंधन सरकार में वह योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष भी रहे।  2014 में जब भाजपा ने उनकी जगह ओम प्रकाश यादव को टिकट दी तो उन्होंने भाजपा से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ा, वह हार गए। इसके बाद नारनौल लोक निर्माण विश्राम गृह में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के समक्ष तत्कालीन विधायक ओम प्रकाश यादव के समर्थ कौन है पंडित कैलाश शर्मा को मंच से नीचे धकेल दिया। अपमान का उनको इतना दुख पहुंचा कि 18 सितंबर 2015 में स्वर्ग सिधार गए। अब उनके पुत्र राकेश शर्मा  भाजपा राजनीति में सक्रिय होकर अपने को स्थापित करने में जुटे हैं। 

भाजपा सांसद कृष्णपाल गुर्जर, पूर्व सांसद रमेश चंद्र कौशिक अपने बेटों को राजनीति में स्थापित करने के लिए जुगत भिड़ा रहे हैं । रमेश चंद्र कौशिक ने तो अपने बेटे को न्यायिक सेवा से इस्तीफा दिला दिया था ताकि उनका राजनीति में पर्दापण किया जा सके। इधर भिवानी महेंद्रगढ़ से तीसरी बार सांसद बने चौधरी धर्मवीर सिंह का भी प्रयास है कि वह अपने पुत्र मोहित को राजनीति विरासत सौंपे। किरण चौधरी की भाजपा में एंट्री के बाद यह रास्ता अब सुगम होता दिखाई दे रहा है। इस बार के चुनाव में किरण चौधरी ने चौधरी धर्मवीर सिंह की जिताने में ‘आंतरिक’ मदद की थी। सूत्र बताते हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव में तोशाम सीट से श्रुति की चौधरी धर्मवीर मदद करेंगे, वहीं किरण चौधरी धर्मवीर के पुत्र मोहित को बाढ़ड़ा से टिकट मिलने पर मदद करेगी। चौधरी धर्मवीर सिंह ने अपने पुत्र का रास्ता सुगम बनाने के लिए भविष्य में किसी प्रकार के चुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया है। उनका ऐलान का किरण चौधरी की भाजपा में एंट्री से कोई लेना-देना नहीं अभी तू दोनों ने अपने बच्चों को स्थापित करने के लिए अप्रत्यक्ष समझौता किया है। सूत्र यह भी बता रहे हैं कि इस परिस्थिति में उनके भाई लाल भाजपा छोड़ कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं ताकि कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ा जा सके। 

हालांकि, 2014 हरियाणा के इतिहास का महत्वपूर्ण मोड़ था जब भाजपा ने अपने दम पर सरकार बनाई। जेजेपी, जिसका नेतृत्व देवी लाल के पोते अजय चौटाला कर रहे हैं, 2019 से 2024 तक भाजपा की गठबंधन सहयोगी थी। अजय चौटाला के बेटे दुष्यंत चौटाला 2019 से 2024 तक हरियाणा के उपमुख्यमंत्री थे। लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 के आते ही सीटों को लेकर दोनों पार्टियों में मतभेद हो गए और दुष्यंत गठबंधन से बाहर आ गए।

सुनने में तो यह भी आ रहा है कि दुष्यंत चौटाला अपने पिता अजय चौटाला के साथ अपनी पार्टी जजपा का ‘विलय’ भाजपा में करने के लिए मनोहर लाल खट्टर से ‘पक्की बातचीत’ कर चुके हैं। इसके लिए उन्होंने राज्यसभा टिकट तथा कुछ विधानसभा की टिकटें मांगी है। हांलांकि की सार्वजनिक तौर पर उन्होंने इसका खंडन किया है। अगर विलय की बात सिरे चढ़ जाती है तो देवीलाल परिवार का आधा हिस्सा भाजपा में हो जाएगा।

अब लगता है कि सभी लालों की राजनीति का अंत होने के बाद उनके परिवारों के सामने अस्तित्व का संकट है। अब, इन परिवारों के सदस्य हरियाणा की राजनीति में खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए स्पष्ट रूप से भाजपा में शामिल होकर पैर जमाने की कोशिश कर रहे हैं। इसीलिए हरियाणा में भाजपा अब कांग्रेसमय नजर आ रही है।

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