भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। गुरुग्राम सफाई के मामले में इस समय बुरी तरह से जूझ रहा है, जिसका प्रमाण है कि निगम की बागडोर निगम के अतिरिक्त उपायुक्त, मंडलायुक्त ही देख रहे हैं और इसी समस्या के लिए मुख्य सचिव टीवी एसएन प्रसाद भी अधिकारियों को झाड़ पिला चुके हैं और निकाय मंत्री सुभाष सुधा भी इस मुद्दे पर अधिकारियों की कार्यशैली से प्रसन्न नहीं हैं। इस समय यदि यह कहें कि हरियाणा सरकार गुरुग्राम को साफ करने में लगी है तो अनुचित न होगा परंतु कार्यशैली देख गुरुग्राम की सफाई सपना ही प्रतीत होती है।

गुरुग्राम सड़ रहा और यहां के जनप्रतिनिधियों के मुंह में दही जमा :

गुरुग्राम की यह दुर्दशा एक दिन में तो हुई नहीं है। इसके पीछे वर्षों की लापरवाहियां हैं परंतु केवल अधिकारियों को दोष देना ही पर्याप्त नहीं होगा। हमारे जनप्रतिनिधि भी हैं जिनका कार्य अपने क्षेत्र के भले के बारे में सोचना है, वह भी कभी इस विषय पर बोलते नजर आए नहीं। और तो और अब जब निकाय मंत्री, मुख्य सचिव भी आ चुके हैं तो भी किसी जनप्रतिनिधि का कोई ब्यान नहीं आया।

जबसे निगम बना राव इंद्रजीत सिंह का वर्चस्व है निगम पर बोलते क्यों नहीं? :
गुरुग्राम में नगर परिषद से जब निगम बना लगातार इस पर बड़ी आन बान शान से राव इंद्रजीत सिंह अपने मेयर बनाते रहे हैं। अत: यह कहें कि गुरुग्राम की इस दशा के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार निगम है तो राव इंद्रजीत का नाम भी स्वत: ही आ जाता है और अब भी राव इंद्रजीत की ओर से कोई ब्यान आया नहीं है। आपको स्मरण करा दें कि निगम पार्षदों के कार्यकाल समाप्त होने के पश्चात भी राव इंद्रजीत की पैरवी से निगम की बैठकों में पूर्व मेयर और पूर्व पार्षद शामिल होते रहते हैं। अत: यह कहना कि राव इंद्रजीत सिंह को इस बारे में जानकारी नहीं होगी, गले से नहीं उतरता।

वर्तमान में स्थिति यह है कि गुरुग्राम कूड़े से अधिक पीडि़त है और शीघ्र ही मानसून आने वाला है। और निकाय मंत्री की अधिकारियों से बात से ज्ञात हुआ अभी तक सीवर और नालों की सफाई का कार्य आरंभ नहीं हुआ है तो ऐसी स्थिति में अनुमान लगाया जा सकता है कि बरसात में वैसे तो हर साल ही गुरुग्राम की दुर्दशा होती है, इस वर्ष महादुर्दशा की संभावना है और ऐसे में बीमारियों का फैलना भी संभावित है। कुल मिलाकर कहें कि गुरुग्राम के नागरिक राम भरोसे हैं।

क्या गुरुग्राम को इस दशा में पहुंचाने वालों को सजा मिलेगी?:
प्रश्न फिर वही है कि यह स्थिति एक दिन में नहीं हुई। इकोग्रीन को जबसे ठेका दिया गया तबसे ही शिकायत आ रही थी। फिर अब 14 अप्रैल को रातों-रात इकोग्रीन का ठेका रद्द करना और उससे पूर्व वैकल्पिक सफाई की व्यवस्था न करना अपने आप में अधिकारियों की लापरवाही को दर्शाता है। अब गुरुग्राम नगर में चर्चा है कि यह स्थिति इसलिए बनी है, क्योंकि निगम में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। ठेकेदारों को अनुचित लाभ दिए गए और उनके कार्यों की समीक्षा नहीं की गई। अब प्रश्न उठता है कि इतना सबकुछ हुआ तो क्या यह हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली गारंटी सफाई को पलीता नहीं? और क्या जिसने यह पलीता लगाया उन्हें सजा मिलेगी? या फिर भ्रष्टाचार के इस खेल में लीपापोती कर मामला समाप्त कर दिया जाएगा?

क्या जनप्रतिनिधि इस स्थिति की उच्च स्तरीय जांच की मांग करेंगे?:
जनता के चुने हुए प्रतिनिधि राव इंद्रजीत सिंह और सुधीर सिंगला गुरुग्राम के भले को देखते हुए क्या सरकार से इस स्थिति के पैदा होने की उच्च स्तरीय जांच कराएंगे? या ऐसे ही मौन धारण करे रहेंगे। वैसे जनता में यह चर्चा है कि ये जनप्रतिनिधि उच्च स्तरीय जांच की मांग नहीं करेंगे क्योंकि यदि उच्च स्तरीय जांच की मांग हुई तो उसमें कुछ गंदगी के छींटे उन जनप्रतिनिधियों पर भी आने की संभावना है।

स्थितियां विकट हैं। मेरा नागरिकों से अनुरोध है कि सफाई उनकी भी जिम्मेदारी है, वर्तमान में हमें इन कष्टों से निजात पाना है। अत: जनता के पास प्रशासन की बात मानना ही नहीं, नैतिक जिम्मेदारी भी बनती है कि जिसकी जितनी सामथ्र्य है, वह इसमें सहयोग दे।

अगले लेख में कुछ और बताएंगे कि किस प्रकार ग्रीन बैल्टों पर भी अवैध कब्जे हो रखे हैं और कूड़े के ढ़ेर पड़े हैं तथा अपने क्षेत्र में रोज घूमते अधिकारियों को वह नजर क्यों नहीं आते?

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