विधानसभा के तत्कालीन स्पीकर सतबीर कादियान द्वारा 6 विधायकों की सदस्यता समाप्त करने से हुई थी पराजय कयास लगाये जा रहे हैं कि संभवतः किरण या श्रुति को भाजपा हरियाणा से हाल ही में 2 वर्षों के लिए रिक्त हुई एक राज्यसभा सीट के लिए आगामी कुछ दिनों में होने वाले उपचुनाव में पार्टी उम्मीदवार बना सकती है चंडीगढ़ — हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी बंसी लाल की पुत्रवधू किरण चौधरी, जो वर्तमान 14 वीं हरियाणा विधानसभा में भिवानी जिले की तोशाम वि.स. सीट से कांग्रेस विधायक भी हैं, ने आज उनकी सुपुत्री और भिवानी-महेंद्रगढ़ लो.स. सीट से पूर्व सांसद रहीं श्रुति चौधरी, जो गत दो वर्षो से हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कार्यकारी अध्यक्ष भी थीं, के साथ भाजपा में शामिल हो गई हैं. बीती शाम ही इन दोनों ने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया था. बहरहाल, ऐसे कयास लगाये जा रहे हैं कि संभवतः किरण या श्रुति को भाजपा हरियाणा से हाल ही में 2 वर्षों के लिए रिक्त हुई एक राज्यसभा सीट के लिए आगामी कुछ दिनों में होने वाले उपचुनाव में पार्टी उम्मीदवार बना सकती है हालांकि इस बारे में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है. जो भी हो, दो सप्ताह पूर्व हरियाणा से लोकसभा की 5 सीटें जीतने के बाद उत्साह में आई प्रदेश कांग्रेस के लिए किरण और श्रुति का पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थामना निश्चित तौर पर क्षति है. इसी बीच पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट एवं राजनीतिक विश्लेषक हेमंत कुमार ( 9416887788) ने एक रोचक परन्तु महत्वपूर्ण जानकारी साझा करते हुए बताया कि आज से ठीक 20 वर्ष पूर्व जून, 2004 में जब हरियाणा में ओम प्रकाश चौटाला के नेतृत्व में इनेलो सरकार सत्तासीन थी, तब प्रदेश में 2 राज्यसभा सीटों के लिए हुए द्विवार्षिक चुनाव में किरण चौधरी, जिन्हें उस चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने अपना प्रत्याशी बनाया था, वह उसमें निर्वाचित होने से चूक गई थीं चूँकि मतदान से तीन दिन पूर्व हरियाणा विधानसभा के तत्कालीन स्पीकर सतबीर सिंह कादियान, जो इनेलो से ही विधायक थे, द्वारा किरण चौधरी का समर्थन कर थे 6 विधायकों जगजीत सांगवान, करण सिंह दलाल, भीम सेन मेहता, जय प्रकाश गुप्ता, राजिंदर बिसला और देव राज दीवान को दल-बदल विरोधी कानून के अंतर्गत हरियाणा विधानसभा की सदस्य से अयोग्य घोषित कर दिया था. बहरहाल, किरण द्वारा स्पीकर के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिए जाने के बावजूद उक्त अयोग्य घोषित 6 विधायकों को राज्यसभा चुनाव के मतदान में वोटिंग का अधिकार नहीं मिला जिसका परिणाम यह हुआ कि इनेलो के समर्थन से निर्दलीय तौर चुनाव लड़ रहे सरदार त्रिलोचन सिंह चुनाव जीत गए जबकि किरण चुनाव हार गईं. वहीं राज्यसभा की दूसरी सीट से ओ.पी. चौटाला के बड़े पुत्र और पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के पिता डॉ. अजय चौटाला निर्वाचित हुए. हेमंत ने यह भी बताया कि किरण चौधरी ने एनसीटी (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) दिल्ली विधानसभा का पहला चुनाव 1993 में कांग्रेस की टिकट पर दिल्ली कैंट वि.स. सीट से लड़ा जिसमें वह भाजपा के करण सिंह तंवर से हार गईं. उसके 5 वर्ष बाद 1998 में किरण ने उसी सीट से भाजपा के तंवर को पराजित कर पहली बार विधायक बनी और वि.स. में डिप्टी स्पीकर भी बनी. हालांकि 2003 चुनाव में किरण फिर भाजपा के तंवर से हार गयी जिसके बाद उन्होंने दिल्ली से पूर्णतया हरियाणा में प्रवेश कर पति सुरेन्द्र सिंह के मार्च, 2005 में हुए निधन के बाद तोशाम वि.स. सीट से लगातार चार वि.स. चुनाव जीते एवं भूपेंद्र हुड्डा की दोनों कांग्रेस सरकारों दौरान पहले राज्यमंत्री और फिर कैबिनेट मंत्री रहीं. बहरहाल, यह पूछे जाने पर कि जैसे कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाने पर किरण ने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से तो त्यागपत्र दे दिया परन्तु तोशाम सीट के विधायक पद से नहीं दिया जहाँ से वह कांग्रेस पार्टी के टिकट पर निर्वाचित हुई थीं, इस पर हेमंत ने बताया कि हालांकि उन्हें ऐसा करना चाहिए था परन्तु संभवत: उन्होंने जान-बूझ कर एक सोची समझी रणनीति के कारण ऐसा नहीं किया है. अगर अगले कुछ दिनों में हरियाणा से रिक्त एक राज्यसभा सीट के उपचुनाव में मतदान की आवश्यकता होती है, तो उस परिस्थिति में किरण सदन में कांग्रेस विधायक रहते हुए भी भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में मतदान कर सकती है चूंकि राज्यसभा चुनाव में राजनीतिक पार्टियों द्वारा अपने विधायकों को वोटिंग के संबंध में निर्देश देने के लिए व्हिप नहीं जारी किया जा सकता है. वैसे भी किरण चौधरी के पाला बदलकर भाजपा खेमे में आने से सदन में नायब सैनी सरकार को मौजूदा 87 सदस्यी हरियाणा विधानसभा सदन में समर्थन कर रहे विधायकों की संख्या एक बढ़कर 44 ( स्पीकर को मिलाकर) हो गई है जबकि विपक्ष की 43 रहे गई है . बेशक आज कांग्रेस का कोई विधायक या कोई व्यक्ति भी किरण चौधरी द्वारा कांग्रेस विधायक रहते हुए पार्टी छोड़ भाजपा में जाने के विरूद्ध दल बदल विरोधी कानून के अंतर्गत उन्हें विधानसभा सदस्यता से अयोग्य कराने के लिए विधानसभा स्पीकर ज्ञान चंद गुप्ता के समक्ष याचिका दायर कर सकता है, परंतु वह स्पीकर के विवेकाधिकार पर निर्भर करता है कि वह इस मामले में कितने समय में निर्णय सुनाते हैं. वैसे भी आगामी 3-4 महीनों में हरियाणा विधानसभा के ताजा आम चुनाव निर्धारित हैं. Post navigation हरियाणा में मनोहर लाल ने तीनों लाल परिवारों को किया एक डाल हरियाणा में बह रही है बदलाव की बयार, जनता चाहती है कांग्रेस की सरकार: कुमारी सैलजा