अब देवी भजन के बाद बंशी के वारिस भगवा मनोहर की जय बोलेंगे 

किरण श्रुति के कमल थामने से धर्मवीर की स्थिति विचित्र 

राज्यसभा सीट किरण या बिश्नोई?

हुड्डा के लिए जीत है किरण का इस्तीफा, टकराव से कांग्रेस को कितना नुकसान

अशोक कुमार कौशिक 

कांग्रेस की नेता किरण चौधरी ने अब ‘हाथ’ को टा-टा कह ‘कमल’ थाम लिया है। आज वह भाजपा में विधिवत शामिल हो गई। किरण चौधरी से भाजपा की डील के पीछे दो वजहें रही। पहली भाजपा के साथ जाने से किरण चौधरी का भले ही कद न बढ़े पर भाजपा को विधानसभा चुनाव में भिवानी दादरी के साथ अहीरवाल में फायदा मिल सकता है क्योंकि बंशी लाल परिवार का प्रभाव तीनों जिलों में है। भिवानी-महेंद्रगढ़ संसदीय सीट भाजपा के खाते में हैं। जाट बिरादरी में अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए भाजपा ने किरण को शामिल किया है। दूसरी मुख्य वजह हरियाणा में दीपेंद्र हुड्डा के लोकसभा सांसद बनने के बाद खाली हुई राज्यसभा की सीट बताई जा रही है। भाजपा ने किरण चौधरी को राज्यसभा सीट और तोशाम से श्रुति चौधरी को विधानसभा सीट देने का आश्वासन दिया है।

भिवानी दादरी महेंद्रगढ़ क्षेत्र में दो धुर विरोधी धर्मवीर और किरण एक ही पार्टी में होने से स्थिति अब विचित्र हो गई। धर्मवीर राव इंद्रजीत सिंह के खेमें के हैं जबकि किरण को खट्टर की सरपरस्ती मिली है। दोनों जाट बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं। बता दे चौधरी धर्मवीर ने अपनी राजनीति की शुरुआत बंसीलाल परिवार के विरोध से शुरू की थी।

हरियाणा के तीनों लाल परिवार होंगे एक डाल

हरियाणा की राजनीति में तीन लालों अहम स्थान पर रहा है। देवीलाल, बंसीलाल, भजनलाल। इस उलटफेर में दिलचस्प बात यह भी रहेगी कि भाजपा में अब तीनों लालों के पारिवारिक सदस्य शामिल जाएंगे। तीनों भाजपा रूपी पेड़ की शाखा यानी एक ही पेड़ की डाली पर होंगे। 

चौधरी देवीलाल भजनलाल और बंसीलाल तीनों ही हरियाणा के कद्दावर नेता के रुप में मुख्यमंत्री और केंद्र में कैबिनेट मंत्री के रूप में अहम मंत्रालय संभाल चुके हैं, तीनों आपस में धुर विरोधी थे। भजनलाल ने हरियाणा जनहित कांग्रेस तथा बंशी लाल ने हरियाणा विकास पार्टी बनाई जिसका विधायक कांग्रेस में हो गया था। कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष ने बनाए जाने से खफा होकर कुलदीप बिश्नोई ने भाजपा की राह चुनी। उनके बेटे भव्य बिश्नोई भाजपा की टिकट पर आदमपुर से विधायक है।

चौधरी देवीलाल ने इंडियन नेशनल लोकदल बनाई। यह पार्टी पारिवारिक महत्वाकांक्षा के चलते दो-फाड़ हो गई। ओम प्रकाश चौटाला के लड़के अभय सिंह चौटाला ने जननायक जनता पार्टी बना ली, जबकि अजय सिंह चौटाला इनेलो की कमान थामें रहे।

भजन लाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई ने 2022 में बीजेपी में एंट्री की तो देवीलाल के पुत्र रंजीत सिंह चौटाला ने हाल ही लोकसभा चुनाव से पूर्व भाजपा का दामन थामा था। इस पूर्व रणजीत सिंह चौटाला कांग्रेस में थे। लेकिन रनिया से कांग्रेस टिकट कटने के बाद  2019 में निर्दलीय विधायक बने। विधायक बनने के बाद उन्होंने भाजपा को समर्थन दे रखा था।

किरण के भाजपा में जाने की पटकथा प्रीति चौधरी की लोकसभा सीट काटने के बाद ही लिखी गई थी। किरण की मनोहर लाल खट्टर से मुलाकात हुई। खट्टर और किरण चौधरी के बीच हरियाणा सीएमओ कार्यालय के एक अधिकारी ने मध्यस्थता की भूमिका अदा की। लोकसभा चुनाव के दौरान यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रैली में मंच से पूर्व मुख्यमंत्री चौ. बंसीलाल का नाम लिया था और 1996 के संस्मरण को सांझा कर बंसीलाल के समर्थकों को साधा था। इस रैली से ही यह कयास लगाए जाने लगेगी देर सवेर किरण भाजपा की शरण लेगी। यह बात बहुत कम लोगों की जानकारी में है कि मनोहर लाल खट्टर वहीं इंसान हैं जिन्होंने बंसीलाल भाजपा गठबंधन सरकार को गिराकर ओमप्रकाश चौटाला के साथ गठबंधन सरकार बनवाई थी। 

टिकट कटने के बाद किरण कांग्रेस बीच अलगाव का बीज अंकुरित हो गया था।

चरखी दादरी रैली में राहुल गांधी के सामने वह खुलकर सामने था, क्योंकि ऐन चुनाव के वक्त किरण और राव दान सिंह के बीच तल्खी सार्वजनिक हो गई थी और चुनाव के बाद राव दान सिंह ने साथ नहीं देने का आरोप भी लगाया था।

40 साल बाद आखिर क्‍यों हुआ कांग्रेस से मोहभंग?

किरण चौधरी की भूपेंद्र सिंह हुड्डा से तल्खी  पहली बार नहीं है। 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा की मौजूदगी में महेंद्रगढ़ रैली में राव दान सिंह से उनकी झड़प हुई थी। किरण चौधरी को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और दो बार के मुख्यमंत्री रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा का चिर प्रतिद्वंद्वी माना जाता है। दोनों में टकराव काफी पुराना है। दोनों में खुले तौर पर जुबानी जंग भी चलती रहती थी। हरियाणा में अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में कांग्रेस से इन मां-बेटी का जाना एक बड़ा झटका है। वहीं हुड्डा के सामने चुनौती है कि वह इस झटके से पार्टी को विधानसभा चुनाव में नुकसान न होने दें। 

हुड्डा से टक्कर ले रहा था एसआरके गुट

हरियाणा में लंबे समय से गुटबाजी रही है। पहले हरियाणा कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा, रणदीप सिंह सुरजेवाला, कुमारी शैलजा और किरण चौधरी के अलग-अलग गुट बने हुए थे यानि प्रदेश कांग्रेस चार गुटों में बंटी हुई थी। फिर लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के दो गुट बन गए। एक हुड्डा गुट तो दूसरा एसआरके यानी शैलजा, रणदीप सिंह सुरजेवाला और किरण चौधरी। ये तीनों ही एक-दूसरे के कार्यक्रमों में नहीं जाते थे। यहां तक कि एक-दूसरे को किसी आयोजन में बुलाते भी नहीं थे। 

कांग्रेस नेता कुमारी सैलजा, किरण चौधरी और रणदीप सुरजेवाला ने की प्रेस वार्ता में भूपेंद्र हुड्डा गुट नजर नहीं आता था तो हुड्डा भी अपने कार्यक्रम अलग कर रहे थे। हुड्डा विपक्ष आपके द्वार कार्यक्रम के जरिए हर जिले में अलग प्रोग्राम करते रहे। भूपेंद्र सिंह हुड्डा से यह तिकड़ी टक्कर ले रही थी। किरण चौधरी ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि हम किसी से टक्कर नहीं ले रहे बल्कि जनता की आवाज उठा रहे हैं। कुमारी शैलजा अपना वजूद रखती है और रणदीप सुरजेवाला अपना वजूद रखते हैं, वहीं मेरा अपना वजूद है। हम तीनों ने तय किया कि जो ऐसे विषय है जिनपर आवाज नहीं उठाई गई है, हमें उन पर एक होकर बोलना पड़ेगा। 

उनके भाजपा में जाने से हरियाणा में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समानांतर काम कर रहे एसआरके (सैलजा-रणदीप-किरण) गुट की गतिविधियां कमजोर पड़ेंगी। अब एसआरके गुट के नाम के पीछे से (के-किरण) तो हट जाएगा, लेकिन बीरेंद्र सिंह के एसआरके गुट में शामिल होने से इसका नया नाम एसआरबीए (बी-यानी बीरेंद्र, ए- अजय यादव) पड़ सकता है।

भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा क्षेत्र में पूर्व मुख्यमंत्री चौ. बंसीलाल परिवार का अच्छा खासा प्रभाव था। बंसीलाल की पोती श्रुति चौधरी भी यहां से सांसद रह चुकी हैं। पिछले कुछ समय से किरण को लेकर सियायी गलियारों में अफवाहें और कयास तेज हो गए थे लेकिन मंगलवार को उनके कांग्रेस से इस्तीफे के बाद तस्वीर अब स्पष्ट हो गई है। किरण अपनी बेटी श्रुति का राजनीतिक भविष्य भी साथ लेकर चल रही हैं। ऐसे में किरण चौधरी का फैसला उनकी बेटी श्रुति के राजनीतिक भविष्य को भी तय करेगा। 

अब कांग्रेस में भतीजे का रास्ता साफ

कांग्रेस में किरण के रहते तोशाम से चुनाव लड़ने के अभिलाषी अनिरुद्ध चौधरी की ख्वाइश भी अब पूरी हो सकती है। अपनी चाची किरण चौधरी के कांग्रेस में रहते यह संभव नहीं हो सकता था। वहीं बाढ़डा सीट पर पूर्व विधायक व बंसीलाल के बड़े बेटे रणबीर महेंद्रा भी कांग्रेस से मैदान में आ सकते हैं। बंसीलाल परिवार में महेंद्रा और किरण के बीच पारिवारिक विवाद भी जगजाहिर है। ऐसे में बंसीलाल परिवार का एक धड़ा कांग्रेस तो एक धड़ा भाजपा में रह सकता है।

टिकट बंटवारे में भूपेंद्र हुड्डा की ही चली

भूपेंद्र सिंह हुड्डा गांधी परिवार के खासमखास रहे हैं। लोकसभा चुनाव में टिकटों के बंटवारे में भी हुड्डा की ही चली। उन्होंने अपने पसंद के उम्मीदवारों को टिकटें दिलवाई। यही किरण और उनकी बेटी के कांग्रेस छोड़ने की वजह भी बनी। किरण चौधरी ने आरोप लगाया था कि भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने उनकी बेटी और पूर्व सांसद श्रुति चौधरी का टिकट काटकर अपने चहेते महेंद्रगढ़ के विधायक राव दान सिंह को दिलवा दिया था। अपने इस्तीफे में किरण चौधरी ने लिखा है कि हरियाणा में कांग्रेस पार्टी दुर्भाग्य से एक व्यक्ति-केंद्रित हो गई है जिसने अपने स्वार्थी के हितों के लिए पार्टी के हित से समझौता किया है इसलिए अब मेरे लिए आगे बढ़ने का समय है ताकि मैं अपने लोगों के हितों को बनाए रख सकूं और वे मूल्य जिनके लिए मैं खड़ी हूं। किरण चौधरी ने भूपेंद्र सिंह हु्ड्डा पर निशाना साधते हुए कहा कि किसी की भी अपमान झेलने की एक सीमा होती है।

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन से बढ़ा हुड्डा का कद

भूपेंद्र सिंह हुड्डा राजनीति के मंझे हुए ​खिलाड़ी हैं। कई बार उन्होंने अपने राजीतिक दाव-पेचों का लोहा मनवाया है। हाल ही में ​तीन निर्दलीय विधायकों को अपने पाले में कर के उन्होंने भाजपा की नायब सरकार को अल्पमत में ला दिया था। कांग्रेस हाईकमान उन पर बहुत भरोसा रखता है। हरियाणा में लोकसभा चुनाव की अगुवाई हुड्डा ने ही की। उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन किया। पिछले लोकसभा चुनाव में 10 में से एक भी सीट नहीं जीतने वाली कांग्रेस इस बाद पांच सीटें जीतने में कामयाब रही। इसका श्रेय भूपेंद्र हुड्डा को गया। रोहतक से उन्होंने अपने बेटे दीपेंद्र हुड्डा को टिकट ​दिलवाई जो​ रिकॉर्ड वोटों से जीते। इससे हाईकमान की नजरों में भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कद और बढ़ गया। ऐसे में हुड्डा से पार पाना किरण चौधरी के लिए आसान नहीं था इसलिए उन्होंने पार्टी से किनारा करना ही बेहतर समझा। 

किरण का अतीत 

किरण चौधरी का जन्म 5 जून 1955 को दिल्ली कैंट में हुआ था। वह हरियाणा के झज्जर के गोछी गांव के युद्ध के दिग्गज ब्रिगेडियर आत्मा सिंह अहलावत और सरला देवी की बेटी हैं। वह एक वकील और राजनीतिज्ञ हैं, जो एक बहुत ही मजबूत राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखती हैं। वह स्वर्गीय सुरेंदर सिंह लेघा की पत्नी हैं जो हरियाणा में सांसद, विधायक और कैबिनेट मंत्री थे। सुरेंदर हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार के कैबिनेट में रेल मंत्री रहे स्वर्गीय बंसी लाल लेघा के बेटे हैं। किरण की बेटी श्रुति चौधरी भी भिवानी निर्वाचन क्षेत्र से सांसद थीं। किरण के दो भाई-बहन हैं अशोक चौधरी और अनुराधा चौधरी (सांसद)

राजनीतिक उपलब्धियां

1993- “दिल्ली कैंट” विधानसभा से विधायक – दिल्ली – हारे

1998 – “दिल्ली कैंट” विधानसभा – दिल्ली से विधायक। – जीत 

1998 से 2003 तक – दिल्ली विधानसभा के उपाध्यक्ष।

2003 – “दिल्ली कैंट” विधानसभा से विधायक – दिल्ली – हारे

2004 – हरियाणा से राज्यसभा के लिए कांग्रेस उम्मीदवार – हारे

2005 उपचुनाव – विधायक “तोशाम” विधानसभा – हरियाणा – जीते

हरियाणा सरकार – वन, पर्यावरण, पर्यटन और खेल राज्य मंत्री।

2009 – विधायक “तोशाम” विधानसभा – हरियाणा – जीते

हरियाणा सरकार – आबकारी एवं कराधान तथा जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी मंत्री

2014 – विधायक “तोशाम” विधानसभा – हरियाणा – जीते

2019 – विधायक “तोशाम” विधानसभा – हरियाणा – जीते

पार्टी की स्थिति

1986 – महासचिव – अखिल भारतीय महिला कांग्रेस

अखिल भारतीय महिला कांग्रेस प्रवक्ता डीपीसीसी (दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी)

कांग्रेस विधायक दल के नेता (सीएलपी)

1989 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी, दिल्ली के सदस्य बने।

ग्रामीण एवं शहरी गरीबों के लिए सामाजिक कल्याण (एसडब्ल्यूआरयूपी) के अध्यक्ष

दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव

प्रतिनिधि पीसीसी, दिल्ली छावनी, महासचिव

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