पास तो दौड़ेगी एनडीए सरकार, वरना… नए रक्षा मंत्री पर सब की निगाह अशोक कुमार कौशिक लोकसभा चुनाव में भाजपा बहुमत से दूर रह गई। इस कारण इस बार केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बन रही है। इस एनडीए में दो ऐसे दल टीडीपी और जेडीयू हैं जिनकी विश्वसनीयता सवालों के घेरे में रही है। सरकार बनाने में उनकी भूमिका सबसे अहम है। राजनीति को समझने वाले लोग जानते हैं कि मोदी सरकार को समर्थन देने के बदले ये अपनी ‘कीमत’ वसूलेंगे। सरकार के शपथ ग्रहण से पहले मीडिया में इनकी ओर से कई अहम मंत्रालयों की मांग की खबरें आने लगी हैं। उधर उनके नेतृत्व में एनडीए सरकार 9 जून को शपथ लेगी। एनडीए 3.0 में इस बार रक्षा मंत्री का पद किसे मिलता है, इस पर डिफेंस सेक्टर से जुड़े लोगों की पैनी निगाहें हैं। खैर, हम आज इसकी चर्चा नहीं कर रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि नरेंद्र मोदी ने मौजूदा चुनौती को पार कर लिया है। केंद्र में तीसरी बार बनने जा रही है। लेकिन, इस सरकार की असली परीक्षा पांच-छह महीने के भीतर होगी। दरअसल, इस चुनाव में भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान राजनीतिक रूप से देश के दूसरे सबसे सूबे महाराष्ट्र और फिर हरियाणा में हुआ है। अगर इन दोनों राज्यों में भाजपा ने 2019 का प्रदर्शन दोहरा दिया होता तो आज वह अपने दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बना लेती। अब ये सभी बीती बातें हो चुकी हैं। सीधे मुद्दे पर आते हैं। दिवाली से पहले विधानसभा चुनाव इस साल दिवाली से पहले तीन राज्यों , हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इस साल 31अक्टूबर को दिवाली है। हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल अक्टूबर-नवंबर में खत्म हो रहा है। इन तीन में से दो राज्यों हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा ने लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन किया है। महाराष्ट्र की 48 सीटों में से उसे केवल नौ मिली हैं जबकि हरियाणा में उसकी सीटें आधी हो गई है। झारखंड में भी पार्टी की सीटें घटी हैं। अब मोदी के नेतृत्व में नई सरकार बनने के बाद भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती इन तीनों विधानसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करने की होगी। महाराष्ट्रऔर हरियाणा में उसकी सरकार है। बावजूद इसके लोकसभा चुनाव में बुरी हार मिली है। हरियाणा में भाजपा ने चुनाव से ऐन पहले अपना नेतृत्व बदला था। मनोहरलाल खट्टर को हटाकर नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया था। बावजूद इसके जनता की नाराजगी दूर नहीं हुई। भाजपा की होगी नैतिक जीत इन दोनों विधानसभाचुनावों में अगर भाजपा का प्रदर्शन बेहतर रहता है तो वह उसकी एक नैतिक जीत कहलाएगी। ऐसे में पीएम मोदी को नैतिक बल मिलेगा कि जनता में उनके भरोसे को जो थोड़ा बहुत डेंट लगा था उन्होंने उसे फिर से हासिल कर लिया। ऐसे में सहयोगी जेडीयू और टीडीपी के साथ विपक्ष भी बैकफुट आ जाएगा। इसमें भाजपा की जीत और कांग्रेस की हार होने पर लोकसभा चुनाव में विपक्ष को जो थोड़ी-बहुत मनोवैज्ञानिक बढ़त मिली है वो एक झटके में धाराशायी हो जाएगी। बदल जाएगी स्थिति दूसरी तरफ, अगर भाजपा इन दोनों विधानसभा चुनावों में हार जाती है तो नेतृत्व और उसके करिश्मे को लेकर गंभीर सवाल उठेंगे। फिर विपक्ष आक्रामक हो जाएगा। ऐसी स्थिति में महाराष्ट्र में शिवसेनाशिंदे गुट के सात और एनसीपी अजित गुट के एक सांसद के सामने भी अस्तित्व का संकट पैदा हो जाएगा। वे उद्धव ठाकरे और शरद पवार के साथ जाने से परहेज नहीं करेंगे। इस तरह इंडिया गठबंधन को सीधे आठ सांसदों का साथ मिल जाएगा। दूसरी तरफ राजनीतिक स्थिति को भांपते हुए टीडीपी और जेडीयू के भी पाला बदलने से इनकार नहीं किया सकता है। रही बात झारखंड की तो यहां जेएमएम के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन की सरकार है। यहां पर भाजपा को लोकसभा चुनाव में ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है। ऐसे में सीधे पर तौर इस राज्य के विधानसभा नतीजे का असर केंद्र पर नहीं पड़ेगा। फिर दिल्ली की बारी दिल्ली में फरवरी 2025 में विधानसभा चुनाव होंगे. मौजूदा लोकसभा चुनाव में यहां की सभी सात सीटों पर भाजपा को लगातार तीसरी बार जीत मिली है। लेकिन बीते दो विधानसभा चुनावों से ऐसा हो रहा है कि लोकसभा जीतने वाली भाजपा का विधानसभा चुनाव में सूपड़ा साफ हो जाता है। ऐसे में दिल्ली के विधानसभा चुनाव के नतीजे भी आने वाले 6-8 महीने में देश की राजनीति को प्रभावित करेंगे। नए रक्षा मंत्री 11 जून मंगलवार तक पदभार संभाल लेंगे। लेकिन उनके सामने कई ऐसी चुनौतियां हैं, जिन पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है। इनमें इंटीग्रेटेड थिएटर कमांड, एलएसी पर चीन के साथ तनाव और अग्निवीर जैसे तमाम मुद्दे शामिल होंगे, जिन पर उन्हें बड़े फैसले लेने होंगे। रक्षा मंत्रालय पर सहयोगी दलों की निगाहें रक्षा मंत्री के पद पर एनडीए गठबंधन में शामिल बड़े दलों की निगाहें हैं। जेडीयू ने रक्षा मंत्रालय देने की मांग की है। तो भाजपा डिफेंस मिनिस्ट्री को अपने पास रखने के मूड में हैं। जेडीयू का तर्क है कि अटल बिहारी वाजपेयी की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार (1998-2004) में रक्षा मंत्री का पद सहयोगी दल समता पार्टी के पास था, उस समय जॉर्ज फर्नांडिस रक्षा मंत्री बने थे। वहीं अब जब भाजपा एनडीए के सहारे सरकार बना रही है, तो इस बार भी ये पद सहयोगी दल को मिलना चाहिए। लेकिन नए मंत्री के लिए चुनौतियां कम नहीं रहने वाली हैं। नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति देश में नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति होनी है। सरकार ने 26 मई को मौजूदा चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ जनरल मनोज पांडे को एक माह का सेवा विस्तार दे दिया था। उनका कार्यकाल 31 मई को खत्म होने वाला था। लेकिन अब वे 30 जून को रिटायर होंगे। हालांकि नए आर्मी चीफ की नियुक्ति में रक्षा मंत्री का सीधे-सीधे कोई रोल नहीं होता। लेकिन नए चीफ की नियुक्ति प्रक्रिया के तहत आर्मी हेडक्वॉर्टर वरिष्ठ अफसरों के नाम उनके बैकग्राउंड की जानकारी के साथ रक्षा मंत्री को भेजता है। जिसके बाद रक्षा मंत्री उन नामों को अपाइंटमेंट कमेटी ऑफ कैबिनेट (एसीसी) से सिफारिश करते हैं। एसीसी में प्रधानमंत्री और गृह मंत्री शामिल होते हैं। नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति पर आखिरी फैसला प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली कैबिनेट की नियुक्ति कमेटी ही लेती है। पहले ये फैसला कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी सिक्योरिटी करती थी, जिसमें रक्षा मंत्री भी शामिल होते थे। टेढ़ी खीर साबित होगा सैन्य सुधारों को लागू करना मिलिट्री रिफॉर्म्स सरकार के एजेंडे में शामिल हैं। अपने संकल्प पत्र में भी भाजपा ने इसे प्रमुखता से शामिल किया था। वहीं, सरकार ने थिएटराइजेशन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसमें नए आर्मी चीफ का रोल बेहद होगा। इन सैन्य सुधारों के तहत सेना के तीनों अंगों- थलसेना, वायुसेना और नौसेना को मिलाकर एकीकृत थिएटर कमांड बनाए जाएंगे। एकीकृत थिएटर कमांड बनाने के साथ ही सरकार वाइस चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ और डिप्टी चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की भी नियुक्ति करेगी। अगले साल जून 2025 तक एकीकृत थिएटर कमांड बनाने का काम खत्म हो जाएगा। सरकार ने एकीकृत थिएटर कमांड बनाने के लिए जनवरी 2020 में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का पद भी बनाया था। मौजूदा सीडीएस जनरल अनिल चौहान के कंधे पर यह जिम्मेदारी है कि काम समय पर पूरा हो जाए। इसके तहत जयपुर में पश्चिमी थिएटर कमांड का मुख्यालय बनाया जा सकता है, जहां सेना की दक्षिण पश्चिमी कमान स्थित है। जबकि लखनऊ में उत्तरी थिएटर कमांड बनाई जा सकती है। समुद्री खतरों से निपटने के लिए मैरीटाइम थिएटर कमांड का बेस कोयंबटूर में बनाए जाने की संभावना है, साथ ही इसमें भारतीय वायुसेना की प्रयागराज-हैडक्वॉर्टर वाली सेंट्रल कमांड और तिरुवनंतपुरम में मौजूद दक्षिणी वायु कमान शामिल होगी। सरकार की योजना गोवा के नजदीक कर्नाटक के कारवार में समुद्री थिएटर कमांड बनाने की है। मौजूदा समय में थल सेना और भारतीय वायु सेना के पास सात-सात कमांड हैं, जबकि नौसेना के पास तीन हैं। इसके अलावा, मुख्यालय एकीकृत रक्षा स्टाफ (एचक्यू आईडीएस) के अलावा दो ट्राई-सर्विस कमांड हैं- इनमें अंडमान और निकोबार कमांड और स्ट्रैटेजिक फोर्सेज कमांड (एसएफसी) शामिल हैं। सेना में ब्रिगेडियर और वायु सेना और नौसेना में कमोडोर रैंक के सैन्य अफसरों को नई इंटीग्रेटेड पोस्टिंग पर रिपोर्ट करने के लिए कहा गया है। ये नई पोस्टिंग मुख्य रूप से जयपुर (पाकिस्तान केंद्रित कमांड), लखनऊ (चीन केंद्रित कमांड) और विशाखापत्तनम (नौसेना केंद्रित कमांड) के लिए हैं। वहीं सेना में कर्नल और उससे नीचे रैंक के अधिकारी, वायु सेना में ग्रुप कैप्टन और उससे नीचे रैंक के अधिकारी, नौसेना में कैप्टन और उससे नीचे रैंक के अधिकारी लगभग एक साल पहले से ही इन कमांडों में जाना शुरू कर चुके हैं। हथियारों के आयात में लानी होगी कमी वहीं नए रक्षा मंत्री के लिए एक और बड़ी चुनौती होगी कि कैसे हथियारों के मामले में भारत की निर्भरता दूसरे देशों पर से कम की जाए। सरकार की योजना आयात घटा कर निर्यात बढ़ाने की है। हाल ही में स्वीडन स्थित स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसआईपीआरआई) ने इस साल 10 मार्च को अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारत ने दुनिया के शीर्ष हथियार आयातक देशों में शामिल है। SIPRI दुनियाभर में हथियारों की बिक्री पर नज़र रखता है और एक सालाना रिपोर्ट तैयार करता है। इसमें कहा गया है कि भारत ने 2019-2023 के बीच सभी दुनियाभर से 9.8 फीसदी हथियार आयात किए हैं। वहीं, सरकार की कोशिश आयात घटा तक निर्यात बढ़ाने की होगी। पिछले वित्तीय वर्ष में भारत का सैन्य निर्यात 21,083 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। तेजस लड़ाकू विमान, INS अरिहंत परमाणु पनडुब्बी और ब्रह्मोस मिसाइल जैसे एडवांस हथियार और प्लेटफॉर्म बनाने के बावजूद भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश बना हुआ है। 6 लाख नफरी चीनी सीमा पर तैनात नए रक्षा मंत्री के सामने चीन से निपटने की बड़ी चुनौती भी होगी। 15 जून 2020 में पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भारत-चीन के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद से एलएसी पर हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं। चीन के साथ 21 दौर की सैन्य वार्ता के बावजूद, स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है, और अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति बहाल नहीं हुई है। भारत की सीमा को सबसे ज्यादा खतरा चीन और पाकिस्तान से है। सेना के सूत्रों का कहना है कि भारतीय सेना में 14 लाख से ज्यादा जवान हैं। इनमें से अकेले तकरीबन 6 लाख नफरी चीनी सीमा पर तैनात हैं। और तकरीबन इतने ही जवान पाकिस्तान सीमा पर हैं। सेना के सूत्रों ने बताया कि इस समय एलएसी पर चीन का मुकाबला सात कोर कर रही हैं, जिनमें 14, 18, 33, 4, 3, 1 और 17 कोर हैं। वहीं लगभग 90 हजार सैनिक कश्मीर घाटी में राष्ट्रीय राइफल्स के साथ आतंकियों का मुकाबला कर रहे हैं। रक्षा मंत्री के लिए एलएसी पर शांति और स्थिरता बनाए रखना बड़ी चुनौती होगी। आत्मनिर्भर भारत पहल को बढ़ावा पिछले एक दशक में, मोदी सरकार ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत को काफी बढ़ावा दिया है, जिससे भारत में रक्षा साजो सामान की मैन्यूफैक्चरिंग बढ़ी है। इससे रक्षा क्षेत्र को काफी फायदा पहुंचा है। सेना के पास स्वदेशी हथियार आ रहे हैं। साथ ही, एलसीए तेजस विमान और स्कॉर्पिन क्लास की पनडुब्बी जैसी स्वदेशी परियोजनाएं को बढ़ावा देना होगा। भारतीय हथियारों की विदेश में मांग बढ़ रही है। ब्रह्मोस मिसाइल के बाद फिलीपींस और नाइजीरिया ने तेजस और प्रचंड हेलीकॉप्टर के अलावा लाइट यूटिलिटी हेलीकॉप्टर (एलयूएच) और एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (एएलएच) ‘ध्रुव’ में रुचि दिखाई है। वहीं भारत की कोशिश है कि मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत स्वदेशी हथियारों के लिए नया बाजार तैयार किया जाए। इसके लिए कई देशों में डिफेंस अताशे की नियुक्ति करने की बात कही है। ये नियुक्तियां अफ्रीकी देशों, पोलैंड और फिलीपींस समेत कई देशों में की जानी हैं। नए रक्षा मंत्री के लिए आत्मनिर्भर आत्मनिर्भर भारत इनिशिएटिव को बढ़ावा देने की बड़ी जिम्मेदारी होगी। ताकि भारत का रक्षा निर्यात तेजी से बढ़े। हाल ही में राजनाथ सिंह ने कहा था कि पिछले कुछ सालों में भारत का रक्षा निर्यात तेजी से बढ़ा है, जो 2014 में 1,000 करोड़ रुपये से बढ़कर वर्तमान में 16,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। जिसके 2028-29 तक 50,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने की जरूरत है। सेना की अग्निपथ भर्ती योजना बनेगी टेंशन सरकार बनने से पहले ही अग्निपथ योजना को लेकर विवाद शुरू हो गया है। एनडीए के प्रमुख घटक दल जेडीयू और लोजपा रामविलास ने अग्निपथ योजना की समीक्षा की मांग की है। बिहार में अगले साल चुनाव होने हैं। वहां यह बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है। लोकसभा चुनाव में भी विपक्षी दलों ने अग्निवीरों को लेकर बड़ा मुद्दा बनाया था। कई राज्यों में युवाओं ने इस योजना के विरोध में भाजपा के खिलाफ वोट भी किया था। हालांकि रक्षा मंत्रालय ने इस योजना को लेकर फीडबैक कार्यक्रम शुरू किया है। रक्षा मंत्रालय के पास अग्निपथ योजना को लेकर कुछ सुझाव आए हैं। नई सरकार बनने के उन पर अमल करना होगा। कुल मिला कर नए रक्षा मंत्री का कार्यकाल बेहद चुनौतियों भरा रहने वाला है। जिसमें सुधार, स्वदेशी हथियारों का निर्माण और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के बीच संतुलन बनाना शामिल होगा। नए रक्षा मंत्री इन मुद्दों पर जो फैसला लेंगे वह आने वाले सालों में भारत के डिफेंस सेक्टर को नई ऊंचाई देंगे। Post navigation हरियाणा में दो गांव ऐसे हैं, जहां से सांसद और विधायक भी, वह भी कांग्रेसी कांग्रेस पार्टी ने सोनिया गांधी को अपना संसदीय दल का नेता चुना