‘रामपुरा हाउस’ का ‘दबदबा’ मोदी परिवार के बाद संकट में कोसली से मात्र ‘दो मतों’ से जीते दीपेंद्र हुड्डा जीत के बाद दक्षिणी हरियाणा से मुख्यमंत्री बनाने का दावा बेटी को विधानसभा चुनाव लड़ाने का भी ऐलान अशोक कुमार कौशिक अहीरवाल के सिरमौर ‘राव राजा’ इंद्रजीत सिंह हरियाणा में ऐसे पहले राजनेता बन गए हैं, जो छह बार संसद में पहुंचे हैं और अपनी लोकसभा सीट पर ‘सिक्सर’ लड़खड़ाते हुए लगाया। कभी अहीरवाल में ‘रामपुरा हाउस’ का ‘दबदबा’ था जो इस बार ‘मोदी परिवार’ में बदल गया। फलस्वरुप छठी बार जीत दर्ज करने वाले ‘राव राजा’ को ‘छोटे मार्जन’ से मिली जीत से उनकी ‘लोकप्रियता’ में गिरावट के साफ संकेत दिखे हैं। अपनी जीत के बाद राव राजा ने अपनी पुत्री के विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान के साथ दक्षिणी हरियाणा से मुख्यमंत्री बनाने का दावा किया। इस बार हालात यह थी कि उनके पैतृक हल्के रेवाड़ी, बावल व पटौदी में भी उन्हे कड़े मुकाबला का सामना करना पड़ा। इन तीनों विधानसभा क्षेत्र में ‘अहीर राजा’ को बड़ी लीड नहीं मिल पाई। जीत के बाद उन्होंने स्वयं स्वीकार किया कि अगर गुरुग्राम और बादशाहपुर सीट से बढ़त नहीं मिलती तो उनकी जीत नामुमकिन थी। यह दीगर बात है कि कभी दक्षिणी हरियाणा (गुरुग्राम, नूंह, रेवाड़ी, रोहतक, भिवानी व महेंद्रगढ़) की 14 सीटों पर रामपुरा हाउस की ‘तूती’ बोलती थी। समय के साथ दक्षिणी हरियाणा में रामपुरा हाउस का ‘रुतबा’ कम होता गया। खुद तो लड़खड़ाते जीते पर पैतृक सीट से बीजेपी हारी खुद के इलाके में घिरने के बाद आखिर राव राजा को लड़खड़ाते हुए जीत मिल गई। लेकिन उनकी एक ओर पैतृक सीट कोसली ने भी सभी को चौंका दिया। पिछली बार इस सीट पर भाजपा के अरविंद शर्मा को 75 हजार की लीड मिली थी। फलस्वरुप दीपेंद्र हुड्डा चुनाव हार गए थे। लेकिन इस बार भले ही ‘दो मतों’ से दीपेंद्र हुड्डा जीते लेकिन यह परिणाम चौंकाने वाला है। कोसली रामपुरा हाउस का गढ़ था। रोहतक से हारे अरविंद शर्मा की वह ‘मदद’ नहीं कर पाए जबकि उनको ‘लीड’ दिलाने की जिम्मेवारी उनके कंधों पर थी। वह खुद भी कोसली में चुनाव प्रचार के लिए आखिर में पहुंचे। यहां से भाजपा प्रत्याशी की हार ने उनकी ‘साख’ पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया। रेवाड़ी जिले की साख को महेंद्रगढ़ जिले ने बचाया रेवाड़ी जिले में उनकी ‘साख’ को भले ही धक्का पहुंचा हो पर महेंद्रगढ़ जिले ने उनकी ‘पीड़ा’ पर ‘मलहम’ लगा दी। भिवानी महेंद्रगढ़ लोकसभा से भाजपा प्रत्याशी की जीत ने उनकी ‘इज्जत’ को बचा दिया। यहां भी वह चुनाव प्रचार में ज्यादा समय नहीं दे पाए पर यहां के सभी विधायकों (अटेली, नांगल चौधरी, नारनौल) ने और पंडित रामबिलास शर्मा सहित संगठन ने अपनी पूरी ताकत लगा रखी थी। राव इंद्रजीत सिंह ने अपनी सियासी पारी साल 1977 में जाटूसाना विधानसभा (अब कोसली) से किया था। उनके पिता राव बिरेंद्र सिंह की परंपरागत सीट रही जाटूसाना में बड़े राव ने अपने ज्येष्ट पुत्र राव इंद्रजीत सिंह को अपना ‘राजनीतिक वारिस’ बनाकर चुनाव मैदान में उतारा। यहां की जनता ने बड़े राव के फैसले पर अपनी मुहर लगाते हुए पहले ही चुनाव में राव इंद्रजीत की सियासत में दमदार एंट्री कराई। साल 1977 में चंडीगढ़ पहुंचने के बाद राव इंद्रजीत सिंह ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और यहां से लगातार चार बार 1977 से 1982, 1982 से 1987 और 1987 से 1991 और फिर 2000 से 2004 तक हरियाणा विधानसभा के सदस्य के तौर पर रहे। 1986 से 1987 तक उन्हें हरियाणा सरकार में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), योजना खाद्य और नागरिक आपूर्ति की जिम्मेदारी मिली। 1991 से 1996 तक प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे। 1998 से शुरू हुआ संसद का सफर महेंद्रगढ़ लोकसभा पर एकछत्र राज कर रहे उनके पिता राव बिरेंद्र सिंह ने 1998 में उन्हें अपनी जगह लोकसभा का प्रत्याशी बनाया। राव पहले ही चुनाव में जीत हासिल कर संसद की चौखट पर पहुंच गए। हालांकि अगले ही चुनाव यानी साल 1999 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। उस समय वह कांग्रेस में थे। उनका भाजपा की सुधा यादव से मुकाबला था । साल 2004 के चुनाव में दोबारा विजयी रहे। 1998 से 99 तक राव संसद विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर्यावरण और वन संबंधी स्थायी समिति के सदस्य भी रहे। 2004 में वह फिर महेंद्रगढ़ से चौदहवीं लोक सभा के लिए निर्वाचित हुए। मई 2004 में उन्हें केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री बनाया गया। 2006 तक वह इस जिम्मेदारी को निभाते रहे। फरवरी 2006 से 2009 तक राव केंद्रीय रक्षा उत्पादन राज्य मंत्री रहे। परिसीमन के बाद संभाली गुरुग्राम की ‘सियासत’ साल 2008 में हुए परिसीमन में गुरुग्राम को फिर से लोकसभा क्षेत्र के रूप में अस्तित्व में लाया गया। 1971 के चुनाव के बाद इसे महेंद्रगढ़ में मर्ज कर दिया गया था और इसके बड़े हिस्से फरीदाबाद को अलग लोकसभा क्षेत्र बना दिया गया था। परिसीमन के बाद 2009 में भी राव ने जीत हासिल की। यह संसद सदस्य के रूप में उनका तीसरा कार्यकाल था। साल 2014 में उन्होंने बीजेपी से गुरुग्राम से लोकसभा का चुनाव लड़ा और लगातार इस क्षेत्र से दूसरी तथा सांसद के रूप में तीसरी जीत हासिल की। 27 मई 2014 से 9 नवम्बर 2014 तक वह केन्द्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) योजना सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन एवं योजना बनाए गए। मई 2019 में बीजेपी से गुरुग्राम से चुनाव जीत जीते। बतौर सांसद उनका पांचवां कार्यकाल रहा। जून 2019 से लेकर संसद भंग होने तक वह केन्द्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), योजना, सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन बने रहे। साल 2024 में उन्होंने नया रिकॉर्ड कायम करते भाजपा की टिकट पर जीत का सिक्सर लगाया है। गुरुग्राम में सबसे ज्यादा गुटबाजी रही अहीरवाल की राजनीति को अपने हिसाब से चलाने वाले राव राजा के विरोधियों की फेहरिस्त काफी लंबी है। इस गुटबाजी के चलते राव इंद्रजीत सिंह अलग थलग भी पड़ते दिखाई दिए। उनके चुनाव प्रचार के लिए ना कोई बड़ा नेता आया न स्थानीय नेताओं ने प्रचार किया। पूर्व सांसद सुधा यादव, निवर्तमान सांसद भूपेंद्र यादव, पूर्व कैबिनेट मंत्री नरबीर सिंह, पूर्व विधायक रणधीर कापड़ीवास, सत्य प्रकाश जरावता, जिला प्रमुख सतीश यादव व अरविंद यादव जैसे वरिष्ठ नेताओं ने उनसे दूरी बनाए रखी । यह हालत तब बनी जब रामपुरा हाउस का वर्चस्व मोदी परिवार में तब्दील हो गया। ‘भाजपा कार्यकर्ता शहरों से नहीं निकले, मेरे वर्कर नहीं होते तो हार जाता’ गुड़गांव लोकसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी राव इंद्रजीत सिंह की जीत को लेकर सुबह से मायूस चल रहे कार्यकर्ताओं को उस समय खुशी मिली, जब शाम होते-होते चुनाव परिणाम उनके पक्ष में आए। उन्होंने 73232 मतों के अंतर से कांग्रेस प्रत्याशी राज बब्बर काे हराया। जीत दर्ज करने के बाद राव इंद्रजीत ने रामपुरा हाउस में कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि सुबह 11 बजे तक मेवात के चुनाव परिणाम आने पर उनका खून सूख रहा था। लेकिन एक बजे के बाद उन्हें और कार्यकर्ताओं को सांस आई। उन्होंने कहा कि पिछली बार भी वे मेवात से हारे थे और पत्रकार व टीवी चैनलों ने उन्हें हारा हुआ बताया था। इस बार भी ऐसा हुआ। लेकिन अन्य हलकों ने उनका साथ दिया। उन्हें अपने कार्यकर्ताओं पर भरोसा था। उन्होंने कहा कि भाजपा के कार्यकर्ता शहर तक सीमित रहे। जबकि उनके खुद के कार्यकर्ताओं ने गांवों में काम किया। यदि उनके पास इतने वर्कर नहीं होते तो वे चुनाव हार जाते। उन्हें यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि वे अपने साथियों के बलबूते पर यह चुनाव जीते है। उन्होंने कहा कि उनके पास इतने वर्कर नहीं होते तो उन्हें टिकट भी नहीं मिलता। राव इंद्रजीत सिंह ने कहा कि पत्रकार और लोग उनसे 400 पार के नारे के बारे बारे में पूछते थे। वे इस सवाल का क्या जवाब देते, क्योंकि उनका दिल ही 400 पार होने का नहीं मान रहा था, लेकिन अब केंद्र में मिलीजुली सरकार बनेगी। अब सवाल यह है कि सीएम कौन होगा? इंद्रजीत ने कहा कि आगे विधानसभा चुनाव है। हमें उसकी तैयारी करनी होगी। जो रूठ गया उसे मनाना है। उन्होंने यह भी कहा कि अब सवाल यह खड़ा होता है कि मुख्यमंत्री कौन होगा। इसे लेकर पार्टी में बात होगी। उन्होंने समय से पहले चुनाव होने की संभावना भी जताई। उनके साथ मौजूद बेटी आरती राव को लेकर उन्होंने कहा कि वे उसे राजनीति में लेकर आएंगे। Post navigation जिला महेंद्रगढ़ की चारों सीटों ने धर्मवीर को जिताई बाजी पंजाब में कमल न खिल पाने और हरियाणा में कमल के मुरझा जाने के सात कारण