वानप्रस्थ सीनियर सिटिज़न क्लब में हर्षोउल्लास से अंतरराष्ट्रीय मातृ-दिवस मनाया गया।

हिसार – क्लब के महासचिव डा: जे.के. डांग ने सदस्यों का स्वागत करते हुए कहा कि मदर्स डे कि शुरुआत एक अमेरिकन एक्टिविस्ट एना जार्विस ने की थी। एना ने अपनी मां की पुण्यतिथि को मातृत्व दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत की थी। साल 1914 में राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाने को लेकर हुए समझौते पर हस्ताक्षर किए थे । तभी से मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाने लगा। राज्य स्तरीय ख्याति प्राप्त डॉ दवीना अमर ठकराल ने मंच – संचालन करते हुए कहा कि माँ के व्यक्तित्व व उपकारों को किसी भी भाषा में परिभाषित करना असंभव ही नहीं नामुमकिन है। इंसान के रूप में माँ भगवान की वह मूरत है जो गर्भ में हमें धारण कर अपने खून से सींचकर प्राण जन्म देती है।अनेक कष्टों को झेलकर हमारा पालन पोषण कर, हमें संस्कारों से सिंचित कर दुआओं से हमारे मार्ग प्रशस्त कर अच्छे बुरे का ज्ञान करवाकर समाज में स्वतंत्र इकाई के रूप में जीने लायक बनाकर गौरवान्वित महसूस करती है।

माँ प्रकृति के हर गुण को समाहित किये हुए सागर से गहरी,आकाश सी अनंत, सूर्य सी प्रखर, चाँद सी शीतल, धरा सी धैर्यशील, पर्वतों सी अटल, फूलों सी महक लिए हमारी हर साँस में बसी हुई जिसके लिए एक दिन दिवस ही नहीं हर पल,हर क्षण, हर दिवस समर्पित है और माँ का एक रुप नहीं दादी माँ, नानी माँ, भाभी माँ, बड़ी बहन भी माँ का रूप ही है इनका प्यार, दुलार, ममता, स्नेह, वात्सल्य, ममत्व आज भी हमारे रग-रग में समाया हुआ है,यादों में बसा हुआ हमें रोमांचित कर देता है।

संस्था के सभागार में उपस्थित सभी सदस्यों ने इस अवसर पर माँ को गीतों, कविताओं , लोक-गीतों एवं रागनियों के माध्यम से याद किया।

कार्यक्रम का आरंभ डा: सुनीता सुनेजा ने आत्मविश्वास के साथ सुनील जोगी द्वारा लिखित कविता

“ जब आँख खुली तो अम्मा की गोदी का एक सहारा था ,
उसका नन्हा सा आँचल मुझको भूमंडल से भी प्यारा था ,
उसके आँचल की एक एक बूँद से
मुझको जीवन मिलता था…..
पेश की

वही श्री योगेश सुनेजा ने अपनी मधुर आवाज़ में चिरपरिचित गीत “

बड़ा नटखट है रे कृष्ण-कन्हैया, का करे यशोदा मैय्या, हाँ … बड़ा नटखट है रे
ढूँढे री अंखियाँ उसे चारों ओर
जाने कहाँ छुप गया नंदकिशोर
उड़ गया ऐसे जैसे पुरवय्या , का करे यशोदा मैय्या, हाँ … बड़ा नटखट है रे
….गीत गा कर सब को रोमांचित कर दिया ।

हरियाणा के जाने – माने गायक डा: आर . के . सैनी ने अपनी सुरीली आवाज़ में

“ उसको नहीं देखा हमने कभी
पर इसकी ज़रुरत क्या होगी
ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी, क्या होगी
उसको नहीं देखा…
..गाकर सबको सम्मोहित कर दिया।

वही श्रीमती सुनीता महतानी ने माँ के प्रति अपने भाव प्रकट करते हुए कहा कि “ आदि काल से ही माता को विश्व के हर कोने में पूजा जाता है, भारत में कभी यक्षी, कभी भूमि, धरती, प्रकृति, तो कभी सरस्वती , विद्या, लक्ष्मी , पार्वती ,राधा, मां के अनेकों रूपों की अर्चना होती है। वनस्पति और जानवरों में भी मातृत्व की भावना हमें गदगद करती है।

मातृ-दिवस के अवसर पर हमें यह भी देखना है कि क्या हम सचमुच माताओं का सही ध्यान रख पा रहें हैं ? गर्भावस्था में निर्धन युवतियों को कुपौषण का शिकार होना पड़ता है। भारत में आज भी निम्न वर्ग के लोगों में बालिकाओं को स्कूल ना भेज कर मजदूरी करने के लिए विवश होना पड़ता है।

श्री बलवंत जांगड़ा ने एक पंजाबी मार्मिक लोकगीत “ माँ गई ता रिश्ते मुक गए” गाकर सबको भावुक कर दिया। डॉ दवीना ने कहा कि अगर हम सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएँ तो माँ के बाद अपने भाई- बहिनों की साथ मधुर संबंध रख सकते हैं।
डा: दीप पुनिया , जिन्होंने हरियाणवी लोकगीतों पर गहन शोध किया है , ने अपनी मधुर आवाज में हरियाणवी लोक-गीत गाकर मातृ- दिवस को और भी खुशनुमा बना दिया । विवाह में विदाई के अवसर पर गाए जाने वाले लोक-गीतों से समाँ बांध दिया । उनके गीतों की बानगी देखिए

“ रे बीरा एक बे साल्ला में जाइये, रे मायड़ की धीर बन्धाइये, रे उन्है रो-रो सुजा ली आँख…..इस गीत के जरिए माँ की उदासी, दुख, वेदना, पीड़ा की झलक मिलती है ।

एक और गीत “ जिस पीहर में बेटी न्यूं रहवै जी, जणू रहवै घिलड़ी मे घीये…..” इस गीत के जरिए मायके व पीहर में बेटी की अहमियत का वर्णन किया गया है । इस प्रकार कई लोकगीतों द्वारा माँ – बेटी की प्यार एवं सान्निध्य का बड़े सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया। सदस्यों ने उनसे सनुरोध किया वह हरियाणवी लोकगीतों पर किसी विशेष अवसर पर एक कार्यक्रम प्रस्तुत करें।

वहीं डा: नीलम परुथी
ने एक कविता के द्वारा अपने समय और आज के समय में माँ की सोच का वर्णन कुछ इस प्रकार किया …..

धीरे धीरे से मेरी बेटियां मेरी माँ बनती जा रही है , बहुत अंतर है उसके और मेरे विचारों में…..

क्लब की जानी- मानी कवियत्री श्री राज गर्ग ने अपने चिरपरिचित अन्दाज़ में स्वरचित कविता
शरीर में रौंगटे खड़े कर देने वाली कविता,,,

“माँ की इच्छा “
महीने बीत जाते हैं
साल गुजर जाता है
वृद्धाश्रम की सीढ़ियों पर
मैं तेरी राह देखती हूँ।
आँचल भीग जाता है
मन खाली खाली रहता है
तू कभी नहीं आता, तेरा मनीआर्डर आता है।
मेरे ह्रदय में अपनी फोटो, आकर तू देख जा
बेटा मुझे अपने साथ, अपने घर लेकर जा”

डा: कमलेश कुकडेजा ने “ तू कितनी अच्छी है, तू कितनी भोली है, प्यारी प्यारी है,
ओ माँ, ओ माँ, ओ माँ, ओ माँ गाकर खूब वाह वाह लूटी।

डा : आर . पी . एस . खरब ने पंडित लखमी चंद द्वारा लिखित सत्यवादी हरिश चंद पर आधारित माँ – बेटे के सम्बंधों को रागनी द्वारा पेश किया , जिसके बोल हैं –

“ चीस लाग री चस चस होरीं कोई ग़ात बोचियो मेरा जीतेजी पै आज्यागी मेरी माँ ने कर दियो बेरा……

कार्यक्रम के अंतिम पायदान पर डा : आर. के . सैनी ने प्रसिद्ध गायक एवं संगीतकार एस. डी. बर्मन द्वारा गाया तलाश फ़िल्म(1969) का गीत….

“ ओ.. माँ
माँ.. माँ
मेरी दुनिया है माँ तेरे आँचल में,
मेरी दुनिया है माँ तेरे आँचल में
शीतल छाया तू, दुख के जंगल में
मेरी दुनिया है माँ तेरे आँचल में…..”
गाकर धमाल मचा दिया और सदस्य इतनी सुंदर प्रस्तुति से गद- गद हो गए।

डा: दवीना ठकराल ने अपनी स्वरचित कविता

“ तुम हो क्या कहना है मुश्किल
माँ तुम क्या हो कहना है मुश्किल?
माँ तुम क्या नहीं हो , जानना है मुश्किल
हर साँस, एहसास और धड़कन में बसी
कहाँ नहीं हो तुम,यह समझना है मुश्किल…

डा: डाँग ने सुचारू रूप से मंच संचालन के लिए डा: दवीना जी एवं सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद किया।
इस समारोह 40- से अधिक सदस्यों ने भाग लिया । सामूहिक जलपान के साथ समारोह का भव्य समापन हुआ।

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