हिसार, 9 मई

“पर्यावरण प्रदूषण के कारण जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की हानि और वायु प्रदूषण तीनों दुनिया के लिए बड़े संकट हैं । इनके बारे में आर्थिक, व्यापारिक, क्षेत्रीय और राजनीतिक स्वार्थवश फैलाई गई गलत जानकारी पर्यावरणविदों और पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्यरत संस्थाओं के लिए बड़ी चुनौती है। इस चुनौती से लड़ने में स्टीक व सच्ची जानकारी को लोगों के सामने लाने वाले पत्रकार बहुत बड़े सहायक हो सकते हैं। किसी भी तरह की गलत जानकारी को स्टीक पत्रकारिता करने वाले पत्रकार ही चुनौती दे सकते हैं”।

ये शब्द आज यहां राष्ट्रीय संघ द्वारा अंतर्राष्ट्रीय प्रैस स्वतंत्रता दिवस पर दिए गए थीम के संदर्भ में ‘पर्यावरण संरक्षण के लिए स्पष्ट, सशक्त और निष्पक्ष पत्रकारिता ” विषय पर वानप्रस्थ संस्था द्वारा आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम के पूर्व चीफ कोम्यूनिकेशनज आफिसर धर्मपाल ढुल ने कहे।

संगोष्ठी का संचालन चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त प्रोफेसर सतीश कालरा ने किया और समामन वक्तव्य दूरदर्शन के पूर्व समाचार निदेशक अजीत सिंह ने दिया। संगोष्ठी में डॉ जोगिंदर डांग, डॉ पुष्पा खरब, डॉ सुनिता श्योराण, डॉ स्वराज, सुनिता महतानी, डॉ खरब, डॉ खुराना सहित कई सेवानिवृत्त प्रोफेसर, अधिकारी और पर्यावरण संरक्षण में जुटे लोगों ने भाग लिया।

ढुल ने कहा कि भ्रामक और गलत जानकारी पर्यावरण सम्बन्धी मुद्दों से निपटने के अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों को कमजोर कर रही हैं। इस चुनौती से निपटते हुए सतत विकास का लक्ष्य हासिल करने के लिए, पत्रकारों को पर्यावरणीय मुद्दों और उनके परिणामों के साथ-साथ संभावित समाधानों पर सटीक, समय पर और व्यापक रूप से रिपोर्ट करना जरूरी है।

ढुल ने कहा कि पर्यावरण संकट और उसके परिणामों के सभी पहलुओं के बारे में आम जन को अधिक से अधिक जागरूक करने में पत्रकारों का बड़ा योगदान हो सकता है। किंतु जलवायु प्रवास, अवैध खनन, प्रदूषण, अवैध शिकार, पशु तस्करी, जंगलों के काटे जाने या जलवायु परिवर्तन पर जानकारी हासिल करने और प्रसारित करने में पत्रकारों को भारी चुनौतियों और खतरों का सामना करना पड़ता है। इसके लिए पत्रकार को तटस्थ और दृढ़ निश्चियी होने जरुरत रहती है।

ढुल ने कहा कि कार्पोरेट जगत के अनेक बड़े संस्थान अपने वाणिज्यिक स्वार्थों की सिद्धि करने के लिए गलत, अनैतिक और भ्रमित करने वाले विज्ञापन व पेड लेख समाचार पत्रों, इलैक्ट्रोनिक मीडिया और सोशल मीडिया पर डालते हैं जिससे पर्यावरण सम्बन्धी मसलों के समाधान निकालने में बाधा आती हैं। ऐसे अनेक अध्ययन विश्व स्तर पर किए गए हैं जिनमें बड़े स्तर पर पर्यावरण के सम्बन्ध में भ्रमित करने वाली जानकारी अनेक मिडिया प्लेटफार्म पर पाई गई जिसके एवज में मिडिया प्लेटफार्म मोटी कमाई करते हैं। इसके अलावा विश्व स्तर पर विभिन्न देशों के बिजनेस स्वार्थ, विकास में समानता, विकास के लिए संसाधनों की उपलब्धता में भिन्नता, विकसित और विकासशील देशों में मतभेद, राजनीतिक मतभेद आदि अनेक बाधाएं हैं जो पर्यावरण संरक्षण में आड़े आती हैं। ऐसी कठिन परिस्थितियों में पत्रकारिता जगत पर बड़ी जिम्मेदारी डालते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व प्रैस स्वतंत्रता दिवस पर यह थीम दिया है।

इस अवसर पर अजीत सिंह ने कहा कि पर्यावरण एक विज्ञान का विषय है। एक समर्पित पत्रकार भी तब तक इस विषय पर रिपोर्टिंग के साथ पूरा न्याय नहीं कर सकता जब तक कि उसने इस विषय में गहरा अध्ययन न किया हो। किंतु पर्यावरण के विषय के ज्ञाता पत्रकारों की केवल हमारे देश में ही नहीं बल्कि विश्व स्तर पर भारी कमी है। ऐसे में पर्यावरण से संबंधित सरकारी संस्थान अधिक से अधिक सामग्री उपलब्ध कराने से ही मिडिया में गलत जानकारी को चुनौती दी जा सकती है।

डॉ सतीश कालरा ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण में व्यक्तिगत स्तर पर किए प्रयासों के सकारात्मक परिणाम आ सकते हैं, किंतु इसके लिए साधारण जन को जागरूक करने की जरूरत है। उन्होंने सरकारी संस्थानों की इस दिशा में निष्क्रियता पर चिंता जताई। डॉ सुनिता श्योराण ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण सम्बन्धी विषयों को समाचारपत्रों में अपेक्षित स्थान नहीं मिलता है।

क्लब के महासचिव डा: जे . के . डांग ने कहा कि ग़ैर सरकारी संगठनो को भी इस में पहल करनी चाहिए ताकि जन – मानस पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा की जा सके। उन्होंने ने कहा कि वानप्रस्थ भविष्य में ऐसी संगोष्ठियों का आयोजन करेगा जिसमे पात्रकारों को आमन्त्रित किया जाएगा ताकि पर्यावरण पर सही रिपोर्टिंग हो सके ।

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