आठों के ठाठों के चिंता नही ………….. अपने दीपेंद्र के लिए सब कुछ दांव पर

ऋषिप्रकाश कौशिक/ भारत सारथी

लोकसभा चुनाव में टिकट वितरण से स्टार प्रचार के नामों की सुचि पर मोहर लगानेे का काम भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सहमति से किया जा रहा है। लोकसभा चुनाव पूर्ण रूप से भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है ऐसे में यह लोकसभा चुनाव भूपेंद्र सिंह की कांग्रेस की विधान सभा की बागड़ोर दिलाने के लिए एक परीक्षा के रूप में कहा जा सकता है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा किसी भी दल के साथ गठबंधन के खिलाफ थे और उनका मानना था कि कांग्रेस प्रदेश की दस की दस लोकसभा सीटों पर चुनाव जितने में सक्षम है ऐसे में हाईकमान ने केवल आप पार्टी के साथ गठबंधन के नाम पर एक सीट दे दी और बाकी सारा हरियाणा भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नाम पर कर दिया। अब बड़ी जिम्मेदारी को हुड्डा ने विधान सभा चुनाव में अपना नेतृत्व का मजबूत दावा करने के लिए स्वीकार तो कर लिया लेकिन अब इस जिम्मेदारी से वो बचने के लिए कहीं कतराते नजर आ रहे है। हरियाणा की नौ सीटों पर उनकों एक समान प्रचार करना चाहिए लेकिन वो अपना पूरा फोकस केवल रोहतक सीट पर ही कर रहे है।

हरियाणा में अपने आप को कांग्रेस का सबसे बड़ा नेता साबित करने में भूपेंद्र सिंह हुड्डा भले ही सफल रहे हो लेकिन भाजपा ने उनको धीरे धीरे सिमेटने का काम कर दिया है। अब उनकी नजरे अपने गढ़ रोहतक पर ही जमी है। खास बात यह है कि वो रोहतक सीट को बचाने के लिए वो अपने आठ प्रत्याशियों के लोकसभा चुनाव में भेजने की वो बात भूलते जा रहे जिनकी जिताने की पूरी जिम्मेदारी वो कांग्रेस हाईकमान के सामने लेकर आये है। चुनाव प्रचार में भूपेंद्र सिंह हुड्डा हर हलके में जाकर यह कहते है कि इस हलके से दीपेंद्र को एक लाख वोटों से जिताना फिर आपकी सरकार मैं बणा दूंगा। ऐसे में लोगों का कहना है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा की केंद्र की राजनीति में कोई रूचि नही है या वो भी स्वयं मान चुके है कि मोदी का विरोध करने से दीपेंद्र को नुक्सान हो सकता है और लोगों को यह बताने में कामयाब हो जाये कि दीपेंद्र हुड्डा यदि हार गया तो उनकी कांग्रेस में आगे की दावेंदारी खत्म हो सकती है।

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