भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक गुरुग्राम। शिक्षा जगत में एक अप्रैल से बहुत बड़ा तूफान मचने की आशंका है। हाई कोर्ट के निर्देशों के अनुसार सभी गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों में दाखिले बंद कर दिए जाएंगे। तात्पर्य कि वे स्कूल बंद हो जाएंगे। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार सरकार की ओर से गुरुग्राम शिक्षा विभाग को 158 स्कूलों की सूची भेजी भी जा चुकी है परंतु प्रशासन उसकी सूचना आमजन को नहीं पहुंचा रहा, क्यों नहीं पहुंचा रहा? यह विचारनीय प्रश्न है। मोटे-मोटे अगर बात करें तो गुरुग्राम में लगभग एक हजार स्कूल गैर मान्यता प्राप्त होने की संभावना है, जिसमें प्ले स्कूल से सीनियर सैकेंडरी स्कूल तक आ जाते हैं। कुछ सूत्रों से तो यह भी ज्ञात हुआ है कि जिन गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों ने सरकार द्वारा मांगी राशि दो लाख रूपए जमा करा दी थी, उन्हें भी बंद करने के आदेश हैं। अब आप अनुमान लगाईए कि इन स्कूलों में लाख से कम बच्चे तो नहीं होंगे और जब वे अपने बच्चों को नए सत्र में दाखिला दिलाने जाएंगे और उन्हें ज्ञात होगा कि अब ये स्कूल बंद हो रहा है तो उनकी क्या स्थिति होगी? जबकि शायद सरकारी स्कूलों में भी इतने बच्चों का दाखिला करने की क्षमता नहीं है। ये बच्चे कहां जाएंगे? गैर मान्यता प्राप्त जो स्कूल चल रहे हैं, सरकार और कानून की दृष्टि से ये बेशक गलत है और गलत काम नियमानुसार नहीं होने चाहिएं लेकिन यदि व्यवहारिक दृष्टि से देखा जाए तो ये स्कूल शिक्षा के प्रति बड़ा योगदान रहे हैं, क्योंकि सरकारी स्कूलों की स्थिति तो ऐसी समाज की सोच बनी हुई है कि वहां पढ़ाई की ओर ध्यान नहीं दिया जाता। अध्यापकों की भी कमी है और अध्यापकों को अनेक प्रकार के सरकारी कार्यों में भी लगा दिया जाता है, जिससे पढ़ाई बाधित होती रहती है। यह छवि गरीब लोगों में भी बनी हुई है। ऐसी स्थिति में वे लोग गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों में अपने बच्चों को दाखिल कराते हैं। अब बड़ा प्रश्न यह उठता है कि ये जो बच्चे दाखिल नहीं हो पाएंगे, वे कहां जाएंगे? क्योंकि इन गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों में प्रतिस्पर्धा होने के कारण स्कूल फीस मान्यता प्राप्त स्कूलों के मुकाबले बहुत कम होती है। ऐसी स्थितियों को देखकर ही अभिभावक उन बच्चों को गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों में दाखिल कराते हैं। अब यदि वे स्कूल बंद हो जाएंगे तो वे अभिभावक जिनकी आमदनी इतनी नहीं होगी कि वे मान्यता प्राप्त स्कूलों का खर्चा वहन कर सकें। वे उन बच्चों को कहां ले जाएंगे? यदि माना जाए कि मजबूरी में वे सरकारी विद्यालयों में दाखिल कराएंगे तो सरकारी स्कूलों में भी तो इतनी जगह नहीं है। इन स्थितियों में वे बच्चे बिना पढ़ाई के रह जाएंगे? बड़ा प्रश्न यह है कि हमारी सरकार, क्षेत्र के जनप्रतिनिधि क्यों इस बारे में नहीं सोच रहे? और क्यों जनता को अवगत नहीं करा रहे? Post navigation भर्तियों पर स्टे मामले पर “आप” वरिष्ठ उपाध्यक्ष अनुराग ढांडा ने बीजेपी सरकार को घेरा क्या है, सुभाष बराला को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बनाने की रणनीति !