धर्मपाल वर्मा

चंडीगढ़। भारतीय जनता पार्टी ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए लोकसभा के चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बदलकर यह सिद्ध कर दिया है कि उसकी स्थिति कहीं न कहीं कमजोर नजर आ रही थी ।या यूं कहिए कि इनकंबेंसी फैक्टर काम करता नजर आ रहा था। निवर्तमान मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने अपना उत्तराधिकारी खुद चुन लिया उन्हें ऐसा करने के लिए पहले ही कह दिया गया था । परंतु यह फेर बदल लोकसभा के चुनाव के बाद करना था जो पहले करना पड़ा।

मंत्रिमंडल के विस्तार के बाद अधिकांश निर्दलीय विधायक और जेजेपी के पांच विधायक हताश और नाराज नजर आ रहे हैं। कथित तौर पर वे खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं इन सबको फिर से निर्दलीय रूप में चुनाव लड़ना पड़ सकता हैं। चुनाव में वह क्या करेंगे अभी देखा जाना बाकी है। यदि इन निर्दलीयों में कोई आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा की टिकट की इंतजार और अपेक्षा कर रहा है तो उसे इस पर पुनर्विचार कर लेना चाहिए। मंत्रिमंडल विस्तार के बाद कुछ चीजें सामने आई हैं एक तो पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने अपने चुनाव क्षेत्र को मजबूत करने की कोशिश की है वही गुरुग्राम के उम्मीदवार और केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह निश्चित तौर पर दुखी और परेशान हुए होंगे। क्योंकि चुनाव के समय उन्हें जो झटका दिया है उसे अहीरवाल ही नहीं पूरा प्रदेश समझ रहा है। अब एक सवाल यह है कि अभी तक नायब सैनी मुख्यमंत्री तो हैं पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं उनकी जगह अध्यक्ष कौन बनेगा भाजपा इस पर एक्सरसाइज कर रही है ।

हरियाणा की राजनीति को जानने वाले और जनता के रुझान को समझने वाले लोगों को यह लग रहा था कि पार्टी गैर जाट के प्रतिनिधि के रूप में किसी ब्राह्मण को समायोजित करने की कोशिश में है ।इसमें जिला सोनीपत में राई के विधायक मोहनलाल बडोली का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा था। एक दो और नामों पर भी चर्चा हुई थी।भाजपा के शुभचिंतकों और पार्टी जनों को इस तरह का समायोजन उचित जान पड़ता था लेकिन मंगलवार को एक बार फिर कई उठा पटक सामने आई । सूत्र बता रहे हैं कि उन में सबसे प्रमुख प्रयास यह है कि पार्टी में कुछ नेता हरियाणा प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद सुभाष बराला को फिर से अध्यक्ष बनाने की चेष्टा करने में जुट गए हैं।जाहिर है इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री और हरियाणा की राजनीति में निर्णायक और चाणक्य की भूमिका में नजर आ रहे मनोहर लाल निश्चित तौर पर पहल कर रहे होंगे। चुनाव में बहुत बुरी तरह से हारे सुभाष बराला का सरकार में महत्वपूर्ण समायोजन मनोहर लाल ने किया उन्हें राज्यसभा भेजने की पहल मनोहर लाल ने की और अब फिर से सुभाष बराला को प्रदेश अध्यक्ष बना कर मनोहर लाल ही हरियाणा में और भाजपा में अपनी ताकत और दखल दिखाना चाहते होंगे। ऐसा आम तौर पर माना जा रहा है।

इसका भाजपा को कितना लाभ और नुकसान हो सकता है इस पर पार्टी में बड़ी तेजी से रिएक्शन आ रहे हैं। पार्टी में अनेक लोग यह मान रहे हैं कि सुभाष बराला को अध्यक्ष बनाने का फैसला सही नहीं है भाजपा को इसका बहुत भारी नुकसान हो जाएगा लेकिन मनोहर लाल आज इस स्थिति में है कि उनकी खुली खुलती है और बंधी बंधती है। नाम न छापने की शर्त पर भाजपा के कई नेताओं ने अपनी नाराजगी दर्शाते हुए कहा कि इस समय भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को गफलत का परिचय नहीं देना चाहिए लाभ और हानि को मन मस्तिष्क में रखकर फैसला किया जाना चाहिए। इन लोगों का तर्क है कि 2019 में 10 की 10 लोकसभा की सीटें जीतने के बाद भाजपा के नेताओं ने गफलत का परिचय देते हुए विधानसभा चुनाव में गलत टिकटें बांटने की गलती की थी और जहां भाजपा 50 से अधिक सीट आसानी से जीतने की स्थिति में थी वह आंकड़ा 40 तक सीमित होकर रह गया था और भाजपा को गठबंधन की बैसाखियों के दम पर सरकार चलानी पड़ी।

भाजपा की जिन चार सीटों पर अभी उम्मीदवारों के नाम फाइनल नहीं हुए हैं उन पर भी कई तरह से परीक्षण किये जा रहे हैं। सोनीपत में जहां मोहन बडोली और योगेश्वर दत्त में से एक का फैसला करना था अब इनमें एक नाम और शामिल हो गया है वह है शशिकांत कौशिक। पार्टी के नेताओं ने शशिकांत कौशिक और योगेश्वर दत्त को दिल्ली बुलाया था। रोहतक में भी डॉक्टर अरविंद शर्मा का विकल्प अब भी तलाश किया जा रहा है पार्टी में कुछ लोग बाबा बालक नाथ को टिकट देने की वकालत यह कहते हुए कर रहे हैं कि केवल वही चुनाव जीत सकते हैं । हिसार में अभी तक कैप्टन अभिमन्यु ही उम्मीदवार हैं लेकिन कुरुक्षेत्र में उम्मीदवार फाइनल नहीं हो पाया है नाम वही दोनों चल रहे हैं शालू जिंदल और रेनू बाला गुप्ता।

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