घर से निकले युवा को बीच रास्ते या एग्जाम सेंटर पर पता चलता है पेपर लीक सरकार पिछले 10 वर्ष में निकाली सरकारी भर्तियों पर श्वेत पत्र लेकर आए नियमित रूप से पेपर लीक होना संयोग या सरकारी खजाने को बचाने का प्रयोग आवेदन में विलंब, योग्यता की शर्तें, विरोध इसके साथ कोर्ट की शरण सरकारें इतनी ही ईमानदार तो, पेपर लीक की सीबीआई जांच क्यों नहीं फतह सिंह उजाला गुरुग्राम 28 फरवरी । अगर हम पिछले 10 वर्षों में देश के विभिन्न राज्यों में हो रही सरकारी भर्तियों पर ध्यान दें, तो एक बहुत ही खास पैटर्न नजर आता है। सबसे पहले भर्तियों के लिए एप्लीकेशन – फॉर्म निकालने में यथा संभव विलंब किया जाएगा । इसके बाद जब युवा किताब – कॉपियों को ताक पर रखकर सड़क पर आ जाएंगे तो भर्ती के लिए आवेदन मंगवाया जाएगा । आवेदन प्रक्रिया में कुछ ऐसे योग्यता के पैमाने रखे जाएंगे, जिसका युवा फिर से विरोध करें और अपने अधिकारों के लिए कुछ लोग कोर्ट मूव कर जाएंगे । इसके साथ ही आवेदन की प्रक्रिया स्थगित हो जाएगी। सरकार से जब पूछा जाएगा कि आप भर्ती क्यों नहीं कर रहे ? तो सरकार मामले को कोर्ट में विचाराधीन बताते पल्ला झाड़ दिखाएगी। सरकारों की नीयत यदि इस मामले में बिल्कुल सही हो, तो सीबीआई जांच की सिफारिश क्यों नहीं की जाती है ? युवाओं को रोजगार उपलब्ध होना यदि मोदी की गारंटी है तो फिर पेपर लीक होना या करवाया जाना किसकी गारंटी है ? यह तीखी प्रतिक्रिया पूर्व कांग्रेस एमएलए स्वर्गीय भूपेंद्र चौधरी की पुत्री कांग्रेस नेत्री एवं सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट श्रीमती पर्ल चौधरी के द्वारा ताबड़तोड़ पेपर लीक होने के मामले पर चिंता जाहिर करते हुए व्यक्त की गई। उन्होंने कहा किसी तरह जब आवेदन की प्रक्रिया खत्म होगी तो एग्जामिनेशन डेट एक दो बार आगे पीछे बदल दी जाएगी। अभ्यर्थियों को यथासंभव परीक्षा केंद्र अपने घर से बहुत दूर दिया जाएगा। विद्यार्थी अपना पैसा और समय खर्च करके परीक्षा देने के लिए एग्जाम सेंटर तक पहुंचने के वास्ते बाहर निकलता है । तो उसे पता चलता है की उसके रोजगार पाने के सपनों को पेपर लीक करने वालों ने पहले हीं ढहा दिया है। इस पूरी प्रक्रिया में करीब करीब 6 से 8 महीने निकल जाते हैं। रोजगार पाने की इच्छुक अभ्यर्थियों को हाथ लगता है निल बट्टा सन्नाटा। इस तरह नए सरकारी कर्मचारियों के वेतनमान के लिए आवंटित राशि को सरकारी खजाने से लीक होने से बचाया जाता है। पर्ल चौधरी ने कहा सरकार अक्सर पेपर लीक में सम्मिलित दोषियों को पकड़ने का दावा करती है ? लेकिन रोजगार की चाहत रखने वाले युवा के लिए यह पता करना बहुत ही मुश्किल है कि उन केसेज में अन्तोगत्वा किसी को सजा मिली भी या नहीं ? इसलिए सरकार को पिछले 10 वर्षों में जितनी भी भर्तियां निकाली गईं , उसके बारे में एक श्वेत पत्र लाना चाहिए । जिससे यह पता चले की घोषित भर्तियां फाइनली हुई या नहीं हुई ? इस पूरी भर्ती प्रक्रिया के होने के रास्ते में जिन लोगों ने भी व्यवधान किया , उन्हें क्या न्यायोचित सजा मिली ? देश से गरीबी हटाने का सिर्फ एक ही शर्तिया रास्ता है और वह है हमारे युवा वर्ग को उनके योग्यता के हिसाब से रोजगार मिलना। कांग्रेस नेत्री श्रीमती चौधरी ने कहा केंद्र की सरकार जब 2014 में आई थी, तो उन्होंने प्रतिवर्ष 2 करोड़ युवाओं को रोजगार दिलाने का वादा किया था। सब जानते हैं कि परिवार में अगर एक युवा को नौकरी मिलती है तो भाई बहन माता-पिता बच्चे इत्यादि को मिलाकर औसतन चार लोगों को गरीबी से बाहर निकाला जा सकता है। 2 करोड़ प्रतिवर्ष के हिसाब से अगर पिछले 10 वर्षों में रोजगार उपलब्ध करवाए जाते तो आज भारत माता के 20 करोड़ युवा आत्मनिर्भर हो जाते । चार व्यक्ति प्रति युवा के परिवार के हिसाब से 80 करोड़ देशवासियों को सरकारी 5 किलो अनाज पर जीवन यापन के लिए निर्भर नहीं होना पड़ता । धर्म के नाम पर राजनीतिकरने वाले नेताओं को भी अयोध्या दर्शन के नाम पर पैसे नहीं खर्च करने पड़ते। हमारे देश का युवा इच्छानुसार अपने पहले वेतन से अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के दर्शन के लिए जा पाता। Post navigation जीयू के विधि विभाग के छात्रों को इंटर्नशिप के मिलेंगे बेहतर अवसर, देश की प्रतिष्ठित लॉ फर्मों के साथ साइन एमओयू सेक्टर-4 में आयोजित स्वच्छता से समृद्धि कार्यक्रम में जन शिकायतों से रूबरू हुए अतिरिक्त निगमायुक्त