कमलेश भारतीय

मैं अपने परिवार सहित एक चाय की दुकान पर बैठा चाय की चुस्कियां ले रहा था और‌ सर्दी के चलते गर्मागर्म पकौड़े भी मंगवा रखे थे!

इतने में एक मजदूर किस्म का दिखने वाला आदमी आया ! मुझे लगा कि वह मेरे से कुछ मांगेगा या मांगना चाहता है लेकिन मेरे पास से निकल कर पीछे रखा पानी पीने चला आया। पानी पीकर वह फिर मेरे पास से गुजरा और‌ चुपचाप सड़क किनारे खड़ा हो गया – बिल्कुल उदास!

अचानक मैंने जैसे कोई संदेश उसकी आंखों में पढ़ लिया! मैंने बेटी से कहा कि इससे पूछकर आओ कि चाय पीओगे?
बेटी ने पूछा- पहले आप बताओ कि अगर वह हामी भर दे तो क्या आप चाय पिलाओगे?

हां, क्यों नहीं?
बेटी भागकर गयी पूछने !

वह आदमी बिना ना नुकर‌ किये खामोशी से चला आया और बोला- बाबू जी, आया तो मैं इस सर्दी में आप से एक कप चाय पीने ही लेकिन यह कह नहीं पाया । आप कैसे जान गये?

-कभी डाकखाने गये हो? जी बाबू जी!

-वो टिक टिक करती तार देखी है? हां।

तो वहाँ बिना किसी तार के संदेश जाता है कि नहीं? पता नहीं, बाबू जी!

जाओ! चाय आ गयी!
और वह बिना कुछ समझे आंखें झपकाए चाय पीने लगा!

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