कमलेश भारतीय

जी हाँ, यही कहा है एक समाचारपत्र के निदेशक ने कि मीडिया और सोशल मीडिया में बड़ा फर्क है। यह बात कही अमेरिका में ‘ इंडिया राइजिंग’ के सत्र में एक समाचारपत्र के निदेशक ने । निदेशक ने कहा कि सोशल मीडिया में कोई भी कंटेंट क्रियेटर हो जाता है जबकि प्रिंट जैसे असल मीडिया में यह इतना आसान नहीं । इसके पीछे सांस्थानिक विरासत, कुशल पत्रकार और विश्वनीयता होना जरूरी है । यह फेक न्यूज़ का दौर है और सच्चाई की कसौटी पर परख कर ही हर खबर परोसी जाने की जरूरत है । उन्होंने यह भी कहा कि रीयल जर्नलिज्म से पाठक का अखबार में आज भी भरोसा बढ़ा है और बना हुआ है । यह बात प्रसिद्ध लेखक राकेश वत्स ने भी कही थी कि शब्द की शक्ति में मेरा विश्वास डगमगाया नहीं ! शब्द को यूं ही ब्रह्म नहीं कहा गया । कुछ बात है कि शब्द की शक्ति बनी हुई है और आज भी लोग कहते हैं कि कल का अखबार पढ़ेंगे तब जाके सारी हकीकत सामने आयेगी । ‌इतना विश्वास‌, इतना भरोसा ! यह भरोसा, विश्वास और विश्वसनीयता बनाये रखना ही पत्रकारिता का आधार स्तम्भ है और होना भी चाहिए ।

इसी रोचक सत्र में एक सवाल आया कि क्या घटनाओं की रिपोर्टिंग की बजाय समस्याओं का हल नहीं ढूंढना चाहिए ! यह भी बहुत वाजिब सवाल रहा और जवाब मिला कि ऐसा किया जा रहा है, ऐसे कदम उठाये जा रहे हैं । जैसे पंजाब में नशे के बढते मामलों पर लगातार रिपोर्टिंग की गयी, इसके साथ ही उन प्रभावित परिवारों के बच्चों और महिलाओं को शिक्षित करने का अभियान चलाया गया । यह हल है‌ इस समस्या को पूर्ण रूप से खत्म करने का ! इसमें इंटरनेट बंदी के दौरान आ रहीं समस्याओं और पत्रकारिता पर बढते दबावों पर भी सवाल सामने आये । निष्पक्ष रिपोर्टिंग कैसे हो ऐसे दबावों के बीच ? यह बात मानी कि इंटरनेट बंदी और आरटीआई में जरूरी नहीं कि सारी जानकारियां मिल ही जायें । हमें अपने तौर पर इनवेस्टिगेटिंग जारी रखनी चाहिएं और जर्नलिस्ट को सच की खोज लगातार जारी रखनी चाहिए । जब तक सच सामने न आ जाये तब तक शिद्दत के साथ अपनी खोज जारी रखनी चाहिए ।

क्या आज ऐसी कोई स्टोरी पढ़ने को मिलती है? कभी तिहाड़ जेल की सच्चाई जानने के लिए अश्विनी सरीन नामक पत्रकार ने थोड़ी शराब पीकर झूठ मूठ हंगामा किया और तिहाड़ जेल में बंद कर दिया गया । स़पादक इनकी जमानत करवा कर लाये और तब लिखा तिहाड़ जेल का सच । ‌ऐसे ही खरीद कर लाई औरत दुनिया के सामने लाई गयी थी, जिस पर बाद में’ कमला’ फिल्म भी बनी । क्या इतनी दूर तक मीडिया आज कहीं जाता दिख रहा है ? नही न‌‌ !

शायर के शब्दों में
जी बहुत चाहता है सच बोलूं
क्या करूं, हौ़ंसला नहीं होता !

आज मीडिया को अपनी विश्वसनीयता बनाये रखने के स़ंकट से झूझना पड़ रहा है । ‌सच बोलने पर आग मच जाने का ही नहीं नौकरी पर आंच आने का डर भी सताता है तो इसीलिए तो फिल्म, मनोरंजन और खेल ही साफ्ट समाचार हैं और फिल्मी दुनिया की गप्पों से अखबार भरे रहते हैं। आज मी मुख्य चिंता यह है कि मुकेश अंबानी के छोटे बेटे की प्री बेडिंग कहाँ होगी और कौन कौन से वीआईपी आने वाले हैं, यह है हमारी सबसे बड़ी चिंता ! इसी तरह अभिषेक बच्चन की वादी की चिंता सताई थी मीडिया को ! इसमें किसी मेहनत की जरूरत नहीं। खुद मज़े लो और दुनिया को भी सारी चिंताओं से मुक्त रखो। मुबारक आपको !
9416047075

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