140 में से 100 करोड़ लोग चलते-फिरते मंदिर –  महामंडलेश्वर धर्मदेव 

सभी प्राणियों का हृदय अयोध्या बने और हृदय में राम हो 

बच्चा बच्चा राम बने राम के आदर्श को करें आत्मसात 

रामलीला घर-घर में हो और 10 दिन नहीं यह अनवरत होती रहे

फतह सिंह उजाला 

पटौदी – प्रणकुटी 28 जनवरी । भगवान श्री राम की लीला ही वास्तव में रामलीला है । 140 करोड़ में से 100 करोड़ लोग चलते-फिरते मंदिर हैं। सभी लोगों का दिल अयोध्या बने और हृदय में भगवान श्री राम का निवास हो । भगवान श्री राम की रामलीला घर-घर में हो, 10 दिन नहीं यह लीला अनवरत होती रहे। पटौदी क्षेत्र में दिन की रामलीला जो की 100 वर्ष से भी अधिक पुरानी है, उसका अपना एक इतिहास है। लेकिन रात्रि की रामलीला आश्रम हरी मंदिर के आदि संस्थापक और दादा गुरु ब्रह्मलीन स्वामी अमरदेव के द्वारा 1952 में आरंभ करवाई गई । यह ज्ञान उपदेश आश्रम हरी मंदिर संस्कृत महाविद्यालय के अधिष्ठाता और वेद पुराणों के प्रकांड विद्वान महामंडलेश्वर धर्मदेव ने अपनी 17वीं कल्पवास साधना के 14 वे दिन उपस्थित श्रद्धालुओं को देते हुए कही है।

महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज ने उपस्थित समर्पित श्रद्धालुओं और भक्तों को आशीर्वचन देते हुए कहा भगवान श्री राम के वनवास काल से भी शिक्षा मिलती है। 14 वर्ष के वनवास काल में भगवान श्री राम के लिए वनवास का  अंतिम 14 वा वर्ष ही परेशानी और चुनौतियों भरा रहा। वनवास के अंतिम वर्ष में बदनामी और बुराई के प्रत्येक दशानन रावण के द्वारा सीता माता का छल से हरण कर लिया गया। सीता की खोज और वापस लाने के लिए वनवास के अंतिम वर्ष में भगवान श्री राम को वन और सागर किनारे या सागर में में जो कुछ भी उपलब्ध हुआ, उसी का सदुपयोग किया गया। भगवान श्री राम के द्वारा किए गए इस कार्य से हम सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए । स्वामी धर्मदेव महाराज ने कहा जिस प्रकार से बियाबान जंगल अथवा वन में जो कुछ भी उपलब्ध हुआ अपने संघर्ष को जारी रखने के लिए भगवान श्री राम ने उसका सदुपयोग किया। इसी शिक्षा के ऊपर ध्यान केंद्रित करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी भी कहते हैं की आपदा को अवसर में बदला जा सकता है । इसके लिए केवल दूर दृष्टि और इच्छा शक्ति होना जरूरी है । 

उन्होंने कहा शिक्षा और महत्व श्री राम भगवान की रामलीला की ही है । इसी प्रकरण में दशानन रावण लीला का कोई महत्व नहीं है । सही मायने में रावण बुराई और बदनामी के प्रतीक के अलावा पराजय का भी प्रतीक है। रावण के द्वारा किए गए कर्मों से ही उसका नाम बदनाम हुआ। इस ब्रह्मांड में शायद ही किसी अभिभावक के द्वारा अपने बच्चों का नाम रावण रखा गया हो । इतना ही नहीं बुराई और बदनामी के प्रतीक रावण के अलावा कंस, केकई, सूर्पनखा और मंथरा का भी नाम लिया जाता है। जिस व्यक्ति का जैसा आचरण होगा उसे इस प्रकार से ही पुकारा जाएगा। जिस प्रकार से दैत्य कुल में  विभीषण और प्रहलाद का जन्म हुआ, लेकिन यह अपने द्वारा किए गए कर्मों के कारण बदनाम नहीं हुए । वास्तव में राम की लीला ही रामलीला है। राम के साथ में दशरथ, भरत, शत्रुघ्न, लक्ष्मण, कौशल्या, उर्मिला और सीता सहित अन्य भी मौजूद रहे। कैकई ने महाराजा दशरथ से राम के वनवास सहित दो वर मांगे। भगवान राम को अपने लिए वनवास मांगने का जब मालूम हुआ तो भी राम ने कैकई को पूरा मान सम्मान दिया।

महामंडलेश्वर धाम देव महाराज ने कहा समय का चक्र चलता ही रहता है और समय परिवर्तनशील है। जीवन में हमेशा सावधान रहें, आज जिसके पास भी धन दौलत और हर प्रकार की भौतिक सुविधा है, उसे स्थाई नहीं कहा जा सकता है। समय का चक्र कब पलट जाए किसी को कुछ नहीं पता होता है । उन्होंने कहा बच्चा बच्चा राम बने, लेकिन भगवान राम के आदर्श को जीवन में आत्मसात करें। जहां कहीं भी राम नाम की चर्चा होगी, वही स्थान अयोध्या भी होगा और जहां राम की चर्चा नहीं वह जगह अथवा स्थान जंगल से काम नहीं । रामचरितमानस सिखाती है कि बच्चे अपने माता-पिता का सम्मान करें । माता-पिता अथवा अभिभावकों की धन दौलत संपदा इत्यादि में उत्तराधिकारी या फिर दावेदार होने के हकदार अक्सर कानूनी अधिकार की बात भी करते हैं। लेकिन जीवन में नैतिकता का होना भी बहुत जरूरी है।

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