ब्रह्मा के चार मुख और हर मुख से एक वेद की उत्पत्ति हुई, उसी प्रकार चार पीठ की स्थापना की

शास्त्रों को सुरक्षित रखने के लिए 4 मठ यानी पीठों की स्थापना

चारों शंकराचार्य में शास्त्रों के आधार पर जो परिभाषित कर दें वही सनातन या हिंदू धर्म है

अशोक कुमार कौशिक 

अयोध्या में 22 जनवरी को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बहिष्कार के बाद चर्चा में आए हैं शंकराचार्य। देश के चारों शंकराचार्य इस समारोह में हिस्सा नहीं ले रहे। सनातन धर्म में शंकराचार्य का पद सर्वोच्च माना जाता है। भारत में शंकराचार्य पद की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। आदि शंकराचार्य ने भारत में चार मठों की स्थापना की थी। इन चारों मठों में उत्तर के बद्रिकाश्रम का ज्योर्तिमठ, दक्षिण में रामेश्वरम का श्रृंगेरी मठ, पूर्व में जगन्नाथपुरी का गोवर्धन मठ और पश्चिम में द्वारका का शारदा मठ शामिल है। इन चार मठों के प्रमुख को शंकराचार्य कहा जाता है। संस्कृत में इन मठों को पीठ कहते हैं। इन मठों की स्थापना करके आदि शंकराचार्य ने अपने चार प्रमुख शिष्यों को जिम्मेदारी सौंपी। तभी से भारत में शंकराचार्य परंपरा की स्थापना हुई है। आइए जानते हैं कि शंकराचार्य कैसे बनते हैं, भारत में कितने शंकराचार्य हैं।

647 ई• में अंतिम हिंदू सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात भारत सैकड़ों टुकड़ों में विभाजित हो चुका था और सारे छोटे छोटे हिन्दू राजा अपने प्रभुत्व के लिए आपस में मारकाट कर रहे थे।

अगले 50-100 साल तक यह मारकाट मची रही , देश में केंद्रीय सरकार या एक केंद्रीय धर्म नाम की कोई चीज़ नहीं थी । मौजूदा भारत सैकड़ों राज्य और हर राज्य के अपने अपने अलग अलग कुल देवी देवताओं में बंटा हुआ था।

एक हिंदू राजा जब दूसरे हिंदू राजा के राज्य पर आक्रमण करके पराजित करता तो विजय के प्रतीक के रूप में उस पराजित राज्य के कुल देवता के मंदिर को तोड़ता और उनकी मुर्तियों को तोड़कर नष्ट कर देता । वहां नये मंदिर का निर्माण करके अपने कुलदेवता की मुर्तियों को स्थापित करता। यही उस राजा के विजय का प्रतीक था। यह वह दौर था जब भारत में मुसलमान नहीं आए थे और तब इस भारत में हर तरीके से विभाजन हो रहा था, ना एककीकृत राष्ट्र था ना पूरे भारत में एकीकृत धर्म।

भारत में यह ऐसा समय था जब बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार तेजी से बढ़ रहा था। लाखों सनातनी अपना मत बदलकर बुद्ध के मार्ग पर चलने लगे और बौद्ध बनने लगे थे । ऐसे में एककीकृत सनातन संस्कृति पर संकट की ख़बरें नजर आने लगी थीं।

अब जानते हैं कि आदि शंकराचार्य कौन थे?

इसी दौर में केरल के कलड़ी गांव में सन 788 ई• में एक गरीब शिवगुरु के घर उनकी पत्नी आर्यांम्बा ने एक पुत्र को जन्म दिया जिनका नाम इस दंपति ने “शंकर” रखा।

सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार बाल शंकर मात्र 8 साल में ही चारों वेदों के ज्ञाता और प्रचंड विद्वान बन गये। जैसे जैसे शंकर बड़े हुए वह लोगों के बीच हिंदू धर्म को लेकर फैली भ्रांतियां मिटाई। 

आज से करीब दो हजार वर्ष पूर्व वेदों के कर्मकांडियों ने लोगों के बीच सनातन धर्म को लेकर गलत बातें फैलाई थी। उन्होंने वेद के मंत्रों का गलत अर्थ बताया, जिस वजह से सनातन धर्म के लोग गलत प्रथा को अपनाने लगे। 

शंकर ने हिंदू सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार किया। लोगों को सनातन धर्म का ज्ञान दिया। शंकराचार्य ने मूर्तिपूजा को सिद्ध करने की कोशिश की। उन्होंने हिंदू धर्म की पुनर्स्थापना करने के लिए विरोधी पंथ की बातों को भी सुना।

प्राचीन भारतीय सनातन परंपरा के विकास और धर्म के प्रचार-प्रसार में आदि शंकराचार्य का महान योगदान है। उन्होंने सनातन परंपरा को पूरे देश में फैलाने के लिए भारत के चारों कोनों में मठों की स्थापना की थी। आदि शंकराचार्य अद्वैत वेदांत के प्रणेता, संस्कृत के विद्वान, उपनिषद व्याख्याता और सनातन धर्म सुधारक थे। धार्मिक मान्यता में उन्हें भगवान शंकर का अवतार भी माना गया। यह कहा जाता है कि सनातन धर्म के भगवान शिव ने शंकर के रूप में अवतार लिया। उन्हें आचार्य कहा जाने लगा कालांतर में वह “शंकर +आचार्य= शंकराचार्य कहलाए और इस तरह उन्हें “आदि शंकराचार्य” की उपाधि दी गई।

उन्होंने लगभग पूरे भारत की यात्रा की। इस महान शख्सियत के जीवन का अधिकांश भाग देश के उत्तरी हिस्से में बीता। इन मठों की स्थापना ईसा से पूर्व आठवीं शताब्दी में स्थापित बताए जाते हैं।

आदि गुरु शंकराचार्य को एकजुट हिंदू धर्म की पुनर्स्थापना करने का श्रेय दिया जाता है। शंकराचार्य ने अपने प्रवचनों से घूम घूम कर लोगों को हिंदू धर्म के मायने समझाए और समस्त भारत में हिंदू धर्म को एकरूप दिया।

शंकराचार्य की भूमिका

सनातन धर्म में शंकराचार्य सबसे बड़े धर्म गुरु माने जाते हैं। जो बौद्ध धर्म में दलाई लामा और ईसाई धर्म के पोप के बराबर माने जाते हैं। पूरे भारत में इन चार मठों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत के संत समाजों में सबसे ऊपर शंकराचार्य आते हैं। 

भारत में हिंदू अथवा सनातन धर्म का मौजूदा स्वरूप आदि शंकराचार्य और उनके बनाए चारों पीठों के कारण ही हैं ।‌ नहीं तो हर एक हिंदू दूसरे के कुल देवता को तोड़ फोड़ रहा होता।

शंकराचार्य “धर्मसम्राट पद” है , शिव अवतार भगवान आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित सत्य सनातन धर्म के आधिकारिक मुखिया के लिये प्रयोग की जाने वाली उपाधि है। 

कैसे हुई शंकराचार्य पद की शुरुआत?

मान्यताओं के अनुसार, इस पद की शुरुआत आदि शंकराचार्य द्वारा की गई थी। आदि शंकराचार्य हिंदू दार्शनिक और सनातनी धर्मगुरू थे। जिन्हें हिंदुत्व के सबसे महान प्रतिनिधियों में एक माना जाता है। सनातन धर्म को मजबूत करने के लिए आदि शंकराचार्य ने भारत में 4 मठों की स्थापना भी की। लेकिन, सबसे पहले जानते हैं कि मठ क्या है।

आखिर मठ क्या होते हैं?

आदि शंकराचार्य ने समस्त भारत में स्नातन‌ धर्म को एकजुट एकरूप में स्थापित करने के लिए 4 मठ यानी पीठों की स्थापना की।

इसका आधार यह था कि जिस तरह ब्रह्मा के चार मुख होते हैं और उनके हर मुख से एक वेद की उत्पत्ति हुई है उसी प्रकार चार पीठ की स्थापना करके उन्होंने चारों वेदों का प्रसार किया।

अर्थात ब्रम्हा के पूर्व मुख से ऋग्वेद , दक्षिण से यजुर्वेद, पश्चिम से सामवेद और उत्तर वाले से अथर्ववेद की उत्पत्ति हुई उसी आधार पर आदि शंकराचार्य ने 4 वेदों और उनसे निकले अन्य शास्त्रों को सुरक्षित रखने के लिए 4 मठ यानी पीठों की स्थापना की।

ब्रम्हा के मुख की चारों दिशाओं के अनुरूप यह चारों पीठ एक-एक वेद से जुड़े हैं। ऋग्वेद से गोवर्धन पुरी मठ यानी जगन्नाथ पुरी, यजुर्वेद से श्रंगेरी जो कि रामेश्वरम् में है , सामवेद से शारदा मठ, जो कि द्वारिका में है और अथर्ववेद से ज्योतिर्मठ जुड़ा है, ये बद्रीनाथ में है। माना जाता है कि ये आखिरी मठ है। इसकी स्थापना के बाद ही आदि गुरु शंकराचार्य ने केदारनाथ में समाधि ले ली।

सनातन धर्म के मुताबिक, मठ वो स्थान है जहां गुरु अपने शिष्यों को शिक्षा और ज्ञान की बातें बताते हैं। इन गुरुओं द्वारा दी गई शिक्षा आध्यात्मिक होती है। एक मठ में इन कार्यों के अलावा सामाजिक सेवा, साहित्य आदि से संबंधित काम होते हैं। उसके बाद इन मठों पर उनके उत्तराधिकारी उनके प्रतिनिधि के तौर पर चुने जाने लगे जिसकी प्रक्रिया आदि शंकराचार्य ने द्वारा रचित ‘मठ मनाय’ ग्रंथ’ में है।  

इस ग्रन्थ में 4 मठों की व्यवस्था में शंकराचार्य की उपाधि लेने के नियम, सिद्धांत और नियम के बारे में विस्तार से उल्लेख किया है। आदि शंकराचार्य द्वारा लिखित इस ग्रंथ को ‘महानु शासन’ भी कहा जाता है। 

इसी के नियम अनुसार नए शंकराचार्य का चयन किया जाता है। शंकराचार्य की चयन प्रक्रिया से पहले आइए हम आपको बता दें मठ क्या है और इनका सनातन संस्कृति में क्या महत्व है। 

समस्त हिंदू या सनातन धर्म वेद आधारित इन चारों मठों के दायरे में आता है विधान यह है कि हिंदुओं को इन्हीं मठों की परंपरा से आए किसी संत को अपना गुरु बनाना चाहिए , यही हिंदू धर्म के शास्त्रों के अनुसार किसी विधि विधान को परिभाषित करते हुए धार्मिक दिशानिर्देश जारी करते हैं।

अर्थात इन चारों शंकराचार्य में शास्त्रों के आधार पर जो परिभाषित कर दें वही सनातन या हिंदू धर्म है। चलिए जानते हैं कि कैसे चुने जाते हैं शंकराचार्य।

कैसे चुने जाते हैं शंकराचार्य?

शंकराचार्य बनने के लिए संन्यासी होना जरूरी है। संन्यासी बनने के लिए गृहस्थ जीवन का त्याग, मुंडन, अपना पिंडदान और रुद्राक्ष धारण करना बेहद जरूरी माना जाता है। शंकराचार्य बनने के लिए ब्राह्मण होना अनिवार्य है। इसके अलावा तन मन से पवित्र, जिसने अपनी इंद्रियों को जीत लिया हो, चारों वेद और छह वेदांगों का ज्ञाता होना चाहिए। इसके बाद शंकराचार्यों के प्रमुखों, आचार्य महामंडलेश्वरों, प्रतिष्ठित संतों की सभा की सहमति और काशी विद्वत परिषद की मुहर के बाद शंकराचार्य की पदवी मिलती है।

भारत में कितने शंकराचार्य हैं?

1. ओडिशा के पुरी में गोवर्धन मठ, जिसके शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती हैं।

2. गुजरात में द्वारकाधाम में शारदा मठ जिसके शंकराचार्य सदानंद सरस्वती हैं।

3. उत्तराखंड के बद्रिकाश्रम में ज्योतिर्मठ, जिसके शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद हैं।

4. दक्षिण भारत के रामेश्वरम् में श्रृंगेरी मठ, जिसके शंकराचार्य जगद्गुरु भारती तीर्थ हैं।

कहां हैं शंकराचार्यों के चार मठ

ये चार मठ आदि शंकराचार्य के समय पर स्थापित किए गए थे। ये चार मठ देश के चार कोनों में हैं।

– गोवर्धन मठ

ओडिशा के पुरी राज्य में गोवर्धन मठ स्थापित है। गोवर्धन मठ के संन्यासियों के नाम के बाद ‘आरण्य’ सम्प्रदाय नाम लगाया जाता है। इस मठ के शंकराचार्य हैं निश्चलानंद सरस्वती जी।

– शारदा मठ

गुजरात के द्वारकाधाम में शारदा मठ स्थित है। शारदा मठ के संन्यासियों के नाम के बाद तीर्थ या आश्रम लगाया जाता है। इस मठ के शंकराचार्य हैं सदानंद सरस्वती जी।

– ज्योतिर्मठ

उत्तराखंड के बद्रिकाश्रम में ज्योर्तिमठ स्थित है। ज्योर्तिमठ के संन्यासियों के नाम के बाद सागर का प्रयोग किया जाता है। इस मठ के शंकराचार्य हैं स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद।

– श्रृंगेरी मठ

दक्षिण भारत के रामेश्वरम् में श्रृंगेरी मठ स्थित है। इस मठ के संन्यासियों के नाम के बाद सरस्वती या भारती का प्रयोग किया जाता है। इस मठ के शंकराचार्य है जगद्गुरु भारती तीर्थ।

बड़े दुर्भाग्य की बात है कि शास्त्र सम्मत बात करने वाले शंकराचार्यों को आज गलत ठहराने की कोशिश की जा रही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा ने उनकी गरिमा को कम करने के लिए अनेक मठाधीश, पीठेश्वेर और तथाकथित शंकराचार्य बना दिए। राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह मामले में उनके चाटुकार आज चारों शंकराचार्यों पर तरह तरह की टिप्पणी कर रहे हैं। आज तो वह सरकार के गलत कामों को शास्त्रों के अनुसार गलत बताएं तो वह खांग्रेसी और हिन्दू धर्म विरोधी हो जाते हैं। यह परिपाटी गलत है और सनातन धर्म के अनुयायियों को एकजूट होकर इसका विरोध करना चाहिए।

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