शंकराचार्य ने कहा, ‘विधिवत प्रतिष्ठा ना हो तो मूर्ति में भूत-प्रेत, पिशाच प्रतिष्ठित हो जाते हैं’

व्यासपीठ के साथ जो टकराता है, चारों खाने चूर-चूर हो जाता है

‘राम मंदिर ट्रस्ट और संतों में विवाद नहीं, यह कोई युद्ध नहीं’,‌ विहिप ने प्राण प्रतिष्ठा पर कहा

12 साल की उम्र में प्रवचन देनें अयोध्या गईं थीं उमा भारती, अब बोलीं- रामभक्ति पर हमारा कॉपी राइट नहीं

कांग्रेस ने उठाया सवाल मीडिया शंकराचार्य के विरोध को क्यों दबा रही है?

संन्यासी का नहीं तो किस संप्रदाय का है राम मंदिर? ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय

ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा, चंपत राय इस्तीफा दें और मंदिर रामानंद संप्रदाय को सौंपें

अशोक कुमार कौशिक

विश्व हिंदू परिषद (विहिप) जिस तरह से अयोध्या में राम मंदिर की ‘प्राण प्रतिष्ठा’ कर रही है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘राजनीतिक लाभ’ के लिए ‘अर्ध-निर्मित’ मंदिर का उद्घाटन करने की योजना बना रही है, उसकी आलोचना करते हुए शीर्ष धार्मिक नेता सार्वजनिक रूप से सामने आ रहे हैं।

पुरी (ओडिशा) के पूर्वाम्नाय गोवर्धन पीठ के 145वें जगद्गुरु शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने मोदी द्वारा राम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा पूजा करने पर नाराजगी व्यक्त की और कहा कि वह उस स्थिति में अयोध्या नहीं जाएंगे। पूर्व केंद्रीय मंत्री और राम जन्मभूमि आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक भाजपा की फायर ब्रांड नेता उमा भारती ने बड़ा बयान दिया है। पिछले कुछ समय से वह राजनीतिक गतिविधियों से दूर हैं।

पुरी के गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने फिर से सनातन धर्म के नियमों के उल्लंघन की बात कही है। इसके साथ उन्होंने यह भी चेतावनी दी है कि उनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता इसलिए उनसे टकराने की गलती ना की जाए।

एक रिपोर्ट के अनुसार, शंकराचार्य ने कहा कि व्यासपीठ के साथ जो टकराता है, चारों खाने चूर-चूर हो जाता है। स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा, ‘मैंने पहले कहा कि हिमालय पर जो प्रहार करता है उसकी मुट्ठी टूट जाती है। हम लोगों से टकराना उचित नहीं है। अरबों एटम बम को दृष्टि मात्र से नष्ट करने की क्षमता हम लोगों में है। हम चुनाव की प्रक्रिया से इस पद पर नहीं प्रतिष्ठित हैं। जिनकी गद्दी है उनके द्वारा प्रेरित होकर हम प्रतिष्ठित हैं इसलिए कोई हमारा बाल भी बांका नहीं कर सकता।’

स्वामी निश्चलानंद ने कहा, ‘शासकों पर शासन करने का पद शंकराचार्यों का है’

शंकराचार्य ने आगे कहा, ‘अगर कोई इस गद्दी के साथ खिलवाड़ करने की कोशिश करेगा तो कितना भी बलवान हो सुरक्षित नहीं रह सकेगा। जनता को मैं भड़काता नहीं, लेकिन हमारी वाणी का अनुगमन जनता करती है। लोकमत हमारे साथ है, शास्त्र मत भी हमारे साथ है, साधु मत भी हमारे साथ है तो हमने संकेत किया कि सब तरह से हम बलवान हैं दुर्बल हमें कोई ना समझे।’ असली और नकली शंकराचार्य के सवाल पर उन्होंने कहा कि जब प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति और राज्यपाल नकली नहीं तो इनसे घटिया पद शंकराचार्य का है क्या। उन्होंने आगे कहा कि शासकों पर शासन करने का पद हम लोगों का है।

पीएम मोदी और सीएम योगी को लेकर क्या बोले शंकराचार्य

शंकराचार्य ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर कहा, ‘जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब से मेरे परिचित हैं। पीएम पद की शपथ लेने से पहले भी वह मेरे पास आए थे मुझसे कहा था कि ऐसा आशीर्वाद दो कि कम से कम भूल कर सकूं और अब वह इतनी बड़ी भूल करने जा रहे हैं।’

विश्व हिंदू परिषद ने गुरुवार (11 जनवरी) को कहा कि 22 जनवरी को अयोध्या मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर राम मंदिर ट्रस्ट और हिंदू संतों (खासकर चार शंकराचार्यों) के बीच कोई मतभेद नहीं है।

” संतों में कोई मतभेद नहीं”

आलोक कुमार ने चार शंकराचार्यों और अयोध्या में मंदिर के निर्माण की देखरेख करने वाले ट्रस्ट, श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के बीच मतभेद के दावों को भी खारिज कर दिया।

श्रृंगेरी और द्वारका मठों के शंकराचार्यों द्वारा जारी बयानों का हवाला देते हुए, जिन्होंने मंदिर के अभिषेक का स्वागत किया है, कुमार ने कहा कि वे बाद की तारीख में आएंगे। अन्य दो शंकराचार्यों ने 22 जनवरी के कार्यक्रम का निमंत्रण अस्वीकार कर दिया है।

“यह कोई युद्ध नहीं है”

आलोक कुमार ने कहा कि, “यह कोई युद्ध नहीं है, इसमें कोई हार-जीत (हार या जीत) नहीं है, यह 24 पीढ़ियों से अधिक का संघर्ष है। हमारी पीढ़ी भाग्यशाली है कि मंदिर बनकर तैयार है। इस भावना को व्यक्त करने के लिए कोई शब्द नहीं हैं, लेकिन यह भारत के स्वाभिमान का पुनर्स्थापन है जो हमें औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर लाएगा।

कांग्रेस ने 12 जनवरी को उठाया सवाल मीडिया शंकराचार्य के विरोध को क्यों दबा रहा है?

शंकराचार्य क्यों नहीं जा रहे इस पर कोई चर्चा नहीं है। कांग्रेस के वो तीनों बड़े नेता क्यों नहीं जा रहे जिन्हें 22 जनवरी का निमंत्रण मिला था, इस पर चर्चा है। आज अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस सवाल को पूछा है। मीडिया कांग्रेस को हिंदू विरोधी दिखा रही है। देश का मीडिया आत्म विश्लेषण नहीं कर रहा वह गोदी मीडिया बनकर रह गया है मीडिया इस बात को कहीं नहीं दिख रहा आखिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में चारों शंकराचार्य क्यों नहीं जा रही उनके न जाने का क्या कारण है? इस पर चर्चा क्यों नहीं है?

उधर चंपत राय ने कहा कि राम मंदिर रामानंद परंपरा का है और यह रामानंद संप्रदाय का है। उन्होंने कहा कि यह संन्यासियों का नहीं है ना ही शैव शाक्त का है बल्कि यह रामानंद संप्रदाय का है। शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने राय की टिप्पणियों की आलोचना की और उन्हें सत्ता की स्थिति में रहते हुए अपना कद कम न करने की सलाह दी।

चंपत राय ने कहा था कि राम मंदिर रामानंद संप्रदाय का है, शैव, शाक्त और संन्यासियों का नहीं है। इस पर शंकराचार्य का कहना है कि राम मंदिर रामानंद संप्रदाय का है तो चंपत राय वहां क्या कर रहे हैं? राम मंदिर रामानंद संप्रदाय को सौंप देना चाहिए। चंपत राय और अन्य पदाधिकारियों को इस्तीफा सौंप देना चाहिए। इसमें संत समाज को कोई आपत्ति नहीं होगी।

ज्योतिष्पीठ से फेसबुक और ट्विटर पर जारी बयान में शंकराचार्य ने कहा कि चारों शंकराचार्य प्राण प्रतिष्ठा में नहीं जा रहे हैं। कोई राग द्वेष नहीं है। शंकराचार्यों को कोई राग द्वेष नहीं है लेकिन उनका मानना है कि शास्त्र सम्मत विधि का पालन किये बिना मूर्ति स्थापित किया जाना सनातनी जनता के लिये अनिष्टकारक होने के कारण उचित नहीं है। आधे अधूरे मंदिर में भगवान को स्थापित किया जाना न्यायोचित और धर्म सम्मत नहीं है। वे प्रधानमंत्री मोदी के विरोधी नहीं है , बल्कि उनके हितेषी हैं और इसलिए उन्हें सलाह दे रहे हैं कि वे शास्त सम्मत कार्य करें। विरोधी तो वे हैं जो उनसे अशास्त्रीय कार्य करवाकर उनके अहित का मार्ग खोल रहे हैं।

उन्होंने कहा कि शंकराचार्यों का अपना कोई भी मंदिर नहीं होता है। वे केवल धर्म व्यवस्था देते हैं। चंपत राय को जानना चाहिये कि शंकराचार्य और रामानन्द सम्प्रदाय के धर्मशास्त्र अलग अलग नहीं होते।

रामानंद संप्रदाय अधूरे मंदिर में प्रतिष्ठा को शास्त्र सम्मत मानता है?

शंकराचार्य ने चंपत राय के बयान पर कहा कि पहले रामानंद संप्रदाय की उपेक्षा की और अब प्रेम उमड़ रहा है। रामानंद संप्रदाय के प्रति उनकी आस्था को इस बात से समझा जा सकता है कि रामानन्द संप्रदाय निर्मोही अखाड़े के एक सदस्य को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर रखा गया और दूसरे सदस्य को नाम मात्र का अध्यक्ष बनाकर बैठक के पहले दिन ही अभिलेखों में उनके हस्ताक्षर करने के अधिकार को भी छीन लिया गया था, यह सर्वविदित तथ्य है।

शंकराचार्य ने कहा यदि राम मंदिर रामानंद संप्रदाय से जुड़े लोगों का है तो इस मंदिर को प्रतिष्ठा से पूर्व रामानंद संप्रदाय से जुड़े लोगों को दे दिया जाना चाहिए। इस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी। शंकराचार्य ने कहा कि निर्मोही अखाड़े को पूजा का अधिकार दिए जाने के साथ ही रामानंद संप्रदाय को मंदिर व्यवस्था की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए।

श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव और विहिप के वरिष्ठ नेता चंपत राय के बयान कि ‘राम मंदिर रामानंदी संप्रदाय के लोगों का है, शैव या शाक्त का नहीं’ पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि तो राय को इस्तीफा दे देना चाहिए और मंदिर को रामानंदी संप्रदाय को सौंप देना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘अगर राम मंदिर रामानंदी संप्रदाय से जुड़े लोगों का है, तो यह मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा से पहले रामानंदी संप्रदाय से जुड़े लोगों को दिया जाना चाहिए। इस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी।’

संत ने कहा कि वह प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन बस उन्हें चेतावनी देना चाहते हैं कि वे किसी भी ऐसी चीज में भाग न लें जो ‘धर्म-विरोधी’ हो।

उधर स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने मीडिया से कहा, ‘जब मोदी जी लोकार्पण करेंगे, मूर्ति का स्पर्श करेंगे और फिर मैं वहां क्या ताली बजाऊंगा।’

उन्होंने कहा कि लोगों को यह सोचने की जरूरत है कि अगर प्रधानमंत्री ही सब कुछ कर रहे हैं तो अयोध्या में ‘धर्माचार्य’ के लिए करने को क्या रह गया है।

उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री सब कुछ कर रहे हैं, चाहे वह योग सिखाना हो और अब ‘प्राण प्रतिष्ठा’ करना हो, जो साधु-संतों द्वारा किया जाता है।’

इसी तर्ज पर बात करते हुए उत्तराखंड में ज्योतिष पीठ के 1008 शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने मंगलवार को दावा किया कि आंशिक रूप से निर्मित मंदिर का उद्घाटन केवल राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है।

अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा, ‘अयोध्या में राम मंदिर के प्रतिष्ठा समारोह में परंपराओं का पालन नहीं किया जा रहा है। भारत में राजा (राजनीतिक नेता) और धार्मिक नेता हमेशा अलग-अलग रहे हैं, लेकिन अब राजनीतिक नेता को धार्मिक नेता बनाया जा रहा है। यह परंपराओं के खिलाफ है और राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है।’

उन्होंने कहा कि किसी भी मंदिर में निर्माण कार्य पूरा होने से पहले प्रवेश या अभिषेक नहीं हो सकता। ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा, ‘हम मोदी विरोधी नहीं हैं, लेकिन हम धर्मशास्त्र विरोधी भी नहीं होना चाहते।’ उन्होंने कहा, ‘शंकराचार्य का दायित्व है कि वो शास्त्रसम्मत विधि का पालन करें और करवाएं। अब वहां पर शास्त्र विधि की उपेक्षा हो रही है। ‘

स्कंद पुराण में लिखा है, देवी-देवताओं की जो मूर्तियां होती हैं, जिसको श्रीमद्भागवत में अरसा विग्रह कहा गया है। उसमें देवता के तेज प्रतिष्ठित तब होते हैं जब विधि-विधान से प्रतिष्ठा हो।

शंकराचार्य ने कहा, ‘विधिवत प्रतिष्ठा ना हो तो मूर्ति में भूत-प्रेत, पिशाच प्रतिष्ठित हो जाते हैं’
साथ ही साथ विधिवत प्रतिष्ठा हो जाए और आरती या पूजा में विधि का पालन ना किया जाए तो देवी-देवता का तेज तिरोहित हो जाता है तो डाकनी, शाकनी, भूत-प्रेत, पिशाच उस प्रतिमा में प्रतिष्ठित होकर पूरे क्षेत्र को तहस-नहस कर देते हैं। प्राण प्रतिष्ठा, मूर्ति प्रतिष्ठा खिलवाड़ नहीं है। इसमें दर्शन, व्यवहार और विज्ञान तीनों का एकत्व है। व्यापक अग्नि को घर्षण के द्वारा एक जगह व्यक्त कर लिया जाता है। वह दाह प्रकाशक अग्नि तत्व होता है. इसी प्रकार व्यापक परमात्मा को मानसिक, तांत्रिक और यांत्रिक विधा से प्रतिमा में अरसा विग्रह में अभिव्यक्त करने की विधा दर्शन, व्यवहार और विज्ञान की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। उसका अनुपालन उसी तरह किया जाएगा तो तेज का प्रकट हो जाएगा, नहीं तो विस्फोटक हो जाएगा।’ उन्होंने कहा कि दो साल बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही प्राण प्रतिष्ठा करते तो मैं प्रश्न उठाता क्योंकि शास्त्रीय विधा से मूर्ति का स्पर्श और प्राण प्रतिष्ठा होनी चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘फिलहाल अयोध्या में गर्भगृह का फर्श बन चुका है और उस पर खंभे खड़े हो चुके हैं। मंदिर का निर्माण पूर्ण रूप से नहीं हुआ है। ऐसी स्थिति में प्राण-प्रतिष्ठा हिंदू धर्म में परंपराओं के अनुरूप नहीं है।’

शंकराचार्यों के इंकार के क्या मायने हैं ?

पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद , श्रंगेरी पीठ के श्री भारती तीर्थ , द्वारका पीठ के स्वामी सदानंद सरस्वती और बद्रीधाम पीठ के स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद – चारों सम्मानित शंकराचार्यों ने अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से खुद को ये कहते हुए अलग कर लिया है कि ये प्राण प्रतिष्ठा शास्त्र-सम्मत नहीं है , धर्म विरुद्ध है और ये केवल भाजपा का कार्यक्रम है इसलिए हम इसमें ताली बजाने के लिए शरीक नहीं होंगे।

धर्म के सर्वोच्च पदों पर आसीन इन सम्मानित शंकराचार्यों का ये निर्णय वैसे तो स्वागतयोग्य है , लेकिन क्या वास्तव में उनके शरीक न होने के पीछे केवल यही वजह है कि ये प्राण प्रतिष्ठा शास्त्र सम्मत नहीं है , या इसके पीछे वजह ये है कि मोदी ने उनके अधिकार-क्षेत्र में हस्तक्षेप किया है ? क्या वजह ये नहीं है कि जो काम धर्माचार्यों का है , मोदी वो काम उनसे न करवाकर खुद कर रहे हैं और मोदी ने उनके विशेषाधिकार को उनसे छीन लिया है ?

मैं इन चारों शंकराचार्यों के प्रति पूरा सम्मान रखते हुए उनसे पूछना चाहता हूँ कि क्या धर्म के नाम पर मोदी सरकार द्वारा किये जा रहे दूसरे काम शास्त्र सम्मत हैं ? क्या उन्होंने कभी मोदी सरकार के ऐसे दूसरे कामों का विरोध किया है जो शास्त्र सम्मत नहीं हैं ?

क्या धर्म के नाम पर पूरे देश को हिन्दू मुस्लिम में बाँट देना शास्त्र सम्मत है ? क्या धर्म के नाम पर पूरे देश को नफ़रत की आग में झोंक देना शास्त्र सम्मत है ?

पिछले दस सालों में मोदी सरकार ने धर्म के नाम पर इस देश में जो जो किया है वो किसी से छिपा नहीं है , क्या वो सब शास्त्र सम्मत था ? मस्जिदों , चर्चों , गुरुद्वारों को आग के हवाले कर देना क्या शास्त्र सम्मत है ?

धर्म की ध्वजा संभाले धर्म के सर्वोच्च पद पर बैठे शंकराचार्यों को मोदी सरकार के हर उस काम का विरोध करना चाहिए जो शास्त्र सम्मत नहीं हैं।

राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़ने के सवाल पर उमा भारती ने कहा, ‘जब मैं 12 साल की थी तो धार्मिक प्रवचन देने के लिए अयोध्या गई थी। मैं बचपन में रामायण और महाभारत पर प्रवचन दिया करती थी। जब मैं बच्ची थी तो महंत रामचंद्र दास मुझे प्रवचन के लिए वहां ले गए। मैंने वहां ताला लगा देखा और प्रार्थना भी होते देखी। मैंने उनसे पूछा कि वहां ताला क्यों लगा है? उन्होंने मुझे बताया कि मंदिर बहुत पहले टूट गया था। अब अदालत के आदेश के बाद वहां ताला लगा हुआ है लेकिन बाहर प्रार्थना करने की भी अनुमति है। मुझे बहुत बुरा लगा। वह स्मृति मेरे साथ रही।’

1984 में विहिप से जुड़ा एक आंदोलन ‘ज़ोर से बोलो, राम जन्मभूमि का ताला खोलो’ वहां शुरू हुआ। उस समय तक उमा भारती राजनीति में आ चुकी थीं। यहां से उन्हें आंदोलन में भाग लेने के लिए कहा गया और उन्होंने भाग लिया।

प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए निमंत्रण पर उमा भारती ने क्या कहा?

प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए विपक्षी नेताओं, उद्योगपतियों, मशहूर हस्तियों को निमंत्रण पर उमा भारती ने कहा, ‘निमंत्रण (राम मंदिर) ट्रस्ट का निर्णय है, कोई राजनीतिक आह्वान नहीं। राम भक्ति पर हमारा कोई कॉपीराइट नहीं है। भगवान राम और हनुमान जी बीजेपी नेता नहीं हैं। वे हमारे राष्ट्रीय सम्मान हैं। उनके मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में कोई भी भाग ले सकता है और किसी को भी आमंत्रित किया जा सकता है। मैं सभी राजनेताओं से भी कहूंगी, इसे राजनीतिक दृष्टि से न देखें। आपके घरों में भी राम की तस्वीरें हैं। आपके नाम में राम हो सकता है। इसमें भाग लें, डरो मत कि तुम्हें वोट मिलेंगे। मैं बीजेपी वालों से भी कहूंगी- इस अहंकार से छुटकारा पाएं कि केवल आप ही राम की भक्ति कर सकते हैं। मैं विपक्ष से कहूंगी- अपने आप को इस डर से मुक्त कर लें कि आपको वहां नहीं जाना है। अहंकार या भय से मुक्त होकर हम सभी को खुशी-खुशी भाग लेना चाहिए।’

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