कार सेवकों के लिए हर घर से ली जाती थी आठ-आठ रोटी, दो सगे भाइयों का योगदान रहा अनुकरणीय

कार सेवकों को क्यों दिया गया है ये नाम, जानिए इसके पीछे की पूरी कहानी

अशोक कुमार कौशिक 

राम मंदिर आंदोलन को सफल बनाने में जहां एक ओर अशोक सिंहल जैसे व्यक्तित्व का नेतृत्व था, वहीं दूसरी ओर नेपथ्य में रहकर अतुलनीय योगदान करने वाले भी थे। ऐसे लोग भले ही नेपथ्य में थे, पर उनका अवदान अप्रतिम है। ऐसे नायकों में दो सगे भाइयों स्वर्गीय राघवेंद्र मिश्र और राजेंद्र प्रसाद मिश्र का नाम उल्लेखनीय है। क्या आपको है कि पता राम मंदिर से कार सेवकों का नाम क्यों जुड़ा है और उन्हें इस नाम से क्यों सम्बोधित किया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पूरी कहानी।

दशकों पुराने राम जन्म भूमि आंदोलन का सबसे चर्चित नारा रहा है, ‘राम लला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे’…लेकिन ये नारा किसी साधु-संत या फिर किसी नेता का दिया हुआ नहीं है। बल्कि ये नारा है 22 साल के एक लड़के का जो अयोध्या से करीब एक हजार किलोमीटर दूर एक कार्यक्रम में मौजूद था और भीड़ के बीच अचानक से उसने वो लाइन बोल दी, जो राम जन्म भूमि आंदोलन का प्रतीक बन गई। 

जानें पूरी कहानी-

1 फरवरी, 1986 वो तारीख थी जब फैजाबाद के जिला जज केएम पांडेय के आदेश पर बाबरी मस्जिद-जन्म स्थान पर जड़ा करीब 37 साल पुराना ताला खुल गया। अपनी राजनीतिक ज़मीन को मज़बूत करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने ये फैसला किया था, लेकिन ताला खुलने से मुस्लिम समुदाय नाराज हो गया। नाराजगी जाहिर करने और बाबरी मस्जिद पर अपना हक कायम करने के लिए 1986 में बाबरी मस्जिद ऐक्शन कमिटी बना दी गई।

सत्यनारायण मौर्य ने दिया नारा

वहीं कोर्ट के आदेश पर ताला खुलने के बाद राम लला की पूजा भी शुरू हो गई। इस दौरान विश्व हिंदू परिषद की ओर से राम जन्म भूमि के लिए आंदोलन चलता रहा। इसी साल यानी कि साल 1986 में उज्जैन में बजरंग दल का शिविर लगा था। उस शिविर में एम कॉम की पढ़ाई कर रहा एक शख्स सत्यनारायण मौर्य मौजूद था।

शिविर के दौरान शाम को जब सांस्कृतिक कार्यक्रम हो रहे थे, सत्यनारायण मौर्य ने एक नारा उछाला, ‘राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’। फिर क्या था…देखते ही देखते पूरी भीड़ इस नारे का उद्घोष करने लगी। धीरे-धीरे ये नारा राम जन्म भूमि आंदोलन का प्रतीक बन गया, लेकिन इस नारे पर राजनीति भी खूब हुई है।

विपक्ष ने उठाए सवाल

बीजेपी की विपक्षी पार्टियों ने इस नारे को लेकर पैरोडी भी बनाई। इस नारे में एक लाइन और जोड़ दी गई। और विपक्ष का नारा हो गया, ‘राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे, तारीख नहीं बताएंगे’…और ये बात सच भी थी. क्योंकि 1986 में बने इस नारे के बाद साल 1989 में पालमपुर में हुए अधिवेशन में बीजेपी ने राम मंदिर को अपने चुनावी घोषणापत्र में शामिल कर लिया। तब से यानी कि 1989 से 2019 के बीच लोकसभा के कुल 9 चुनाव हुए।

हर चुनाव में बीजेपी के पास राम मंदिर का मुद्दा बना ही रहा। शुरुआत में 1996 में 13 दिन, फिर 1998 में 13 महीने और फिर 1999 में पूरे पांच साल के लिए बीजेपी की सरकार रही। अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री रहे, लेकिन राम मंदिर नहीं बना। 2014 में और फिर 2019 में लगातार दो बार नरेंद्र मोदी भी प्रधानमंत्री बने। उनके भी चुनावी घोषणा पत्र में राम मंदिर का मुद्दा शामिल रहा, लेकिन मंदिर नहीं बना।

विपक्ष बार-बार बीजेपी को ताने देता रहा कि राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे, तारीख नहीं बताएंगे…लेकिन तारीख भी आ गई, क्योंकि फैसला सुप्रीम कोर्ट का था। 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद 5 अगस्त 2020 को मंदिर के शिलान्यास की तारीख आई और अब 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा की भी तारीख तय है।

सत्यनारायण मौर्या का दिया नारा, राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे…सच साबित हो गया है और विपक्ष के तारीख नहीं बताएंगे वाले सवाल का जवाब भी अब पूरी दुनिया को पता है। 

नायकों में दो सगे भाइयों स्वर्गीय राघवेंद्र मिश्र और राजेंद्र प्रसाद मिश्र

मंदिर आंदोलन के दौरान कारसेवकों की सेवा के लिए इन दोनों भाइयों ने शहरियों को जोड़ने के लिए हर घर से आठ रोटी लेने का लक्ष्य निर्धारित किया। इसका प्रभाव यह रहा कि 1992 के आंदोलन के दौरान हजारों शहरियों ने दोनों भाइयों के नेतृत्व में बढ़चढ़ कर कारसेवकों के लिए रोटियां दीं। प्रयागराज के साउथ मलाका निवासी स्वर्गीय राघवेंद्र मिश्र जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में शामिल थे।

वह भाजपा के जिलाध्यक्ष भी रहे। उनके भतीजे एवं एंग्लो बंगाली के शिक्षक रविंद्र मिश्र बताते हैं, उस दौरान बाबू जी ( राघवेंद्र मिश्र) दिन-रात कारसेवकों की सेवा में जुटे रहते थे। तब दक्षिण भारत, महाराष्ट्र, गुजरात से आने वाले तमाम कारसेवक प्रयागराज होकर ही अयोध्या के लिए रवाना हो रहे थे। दक्षिण भारत से आने वाले स्वयंसेवकों के समक्ष भाषाई संकट था। प्रयागराज में प्रशासन सभी को अयोध्या जाने से रोक रहा था। इस वजह से यहां हजारों कारसेवकों का जमावड़ा था।

ऐसे में सभी के समक्ष भोजन पहुंचाने की जिम्मेदारी वरिष्ठ नेताओं ने राघवेंद्र मिश्र और वर्तमान में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ दक्षिणी क्षेत्र के संचालक राजेंद्र प्रसाद मिश्र को सौंप दी। इस दौरान शहरियों से कार सेवकों के लिए हर घर से आठ रोटी दिए जाने की अपील की गई। राजेंद्र प्रसाद मिश्र कहते हैं, अपील का ऐसा प्रभाव रहा कि पूरे सेवाभाव के साथ लोग रोटी देने के लिए उमड़ पड़े।

तब तमाम परेशानियां भी आईं, लेकिन उत्साह और उमंग के आगे कुछ पता ही नहीं चला। उस आंदोलन में न जाने कितने कारसेवकों ने अपनी जान गंवा दी। अब अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा की पहल पर कलेजे को ठंडक मिली। कहा, आज मेरे बड़े भाई स्वर्गीय राघवेंद्र मिश्र भले ही जीवित नहीं हैं, लेकिन राम मंदिर निर्माण के धन संग्रह अभियान में उनका भी

अनुकरयीय योगदान रहा। पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ.मुरली मनोहर जोशी भी इस अभियान के कायल हुए। आंदोलन के दौरान उनका सानिध्य भी प्राप्त होता रहा।

राम मंदिर से कार सेवकों का नाम क्यों जुड़ा है और उन्हें इस नाम से क्यों सम्बोधित किया जाता है, आइये जानते हैं इसके पीछे की पूरी कहानी

22 जनवरी को रामभक्तों और अयोध्यावासियों के लिए एक बड़ा दिन है। यही वो दिन है जिसका इंतज़ार सालों से राम भक्तों को था। वहीं जब भी राम मंदिर से जुड़ी किसी भी बात का ज़िक्र होता है तो कार सेवकों का नाम ज़रूर लिया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है ये शब्द किस लिए लिया जाता है और इसका मतलब क्या है? साथ ही इसे पहली बार कब लिया गया था। आइये हम आपको इसके बारे में विस्तार से बताते हैं।

क्यों कहा जाता है इन्हे ‘कार सेवक’

उत्तर प्रदेश के अयोधया नगर पूरी तरह से राममय हो चुकी है क्योंकि सालों बाद अब पुनः श्री राम यहाँ अपने भव्य मंदिर में वास करेंगे। 22 जनवरी को अयोध्या में भव्य राम मंदिर में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। जिसकी तैयारियां काफी दिनों से चल रही है। लेकिन राम मंदिर पर जब जब चर्चा हुई एक शब्द ने भी खूब चर्चा बटोरी और वो शब्द है ‘कार सेवक’। अयोध्या में जब विवादित ढांचा गिराने लगभग 2 लाख से ज्यादा लोग मौजूद थे इन्ही लोगों को कार सेवक नाम दिया गया। इस शब्द को पहली बार 23 जून सन 1990 में एक संत सम्मेलन में लिया गया था। लेकिन अब सवाल ये उठता है आखिर उन्हें कार सेवक क्यों कहा जाता है। साथ ही इस शब्द का क्या मतलब है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पूरी कहानी। 

आपको बता दें कि जो लोग बिना किसी स्वार्थ के और परोपकार पूर्वक कोई धार्मिक कार्य करते हैं उन्हें कार सेवक कहा जाता है। क्योंकि ज़्यादातर लोग परोपकार की दृष्टि से और निःस्वार्थ भाव से धार्मिक कार्य करते हैं यही वजह है कि इन्हे कार सेवक नाम से सम्बोधित किया जाता है। इसे और बेहतर तरह से समझने के लिए, कार का अर्थ होता है कर यानी हाथ और सेवक का मतलब है सेवा करना। वहीं इंग्लिश या अंग्रेजी भाषा में इसे वोलिंटियर कहा जाता है।

गौरतलब है कि 6 दिसंबर 1992 को ही अयोध्या में विवादित ढांचा गिराया गया था। जिसे शायद ही कोई भूल सकता होगा। ये तारीख भारतीय इतिहास में दर्ज है। इसके बाद से ही कार सेवक शब्द चर्चा में आ गया। जब जब अयोध्या के विवादित ढांचे का ज़िक्र होता है तो कार सेवकों का जिक्र भी किया जाता है। लेकिन इस शब्द को केवल विवादित ढांचे से जोड़ना सही नहीं है। वहीं आपको बता दें कि कार सेवक शब्द को सिख धर्म के ग्रंथों कई जगहों पर इस्तेमाल किया गया है। ऐसा भी कहा जाता है कि जलियावाला बाग की घटना के समय उधमसिंह ने कार सेवा की थी। इसके अलावा स्वर्ण मंदिर का निर्माण भी कार सेवा से ही हुआ है। कहते हैं सिख धर्म में गुरु के कार्य को कार सेवा कहा जाता है। इसके बाद से ही इस शब्द का प्रयोग किया जाने लगा था।

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