कारसेवकों को गुंबद से उतारने के लिए माइक से आवाज लगा रहे थे आडवाणी, जानिए बाबरी गिराए जाने की पूरी कहानी अशोक कुमार कौशिक भाजपा अध्यक्ष के रूप में लालकृष्ण आडवाणी का लगातार दूसरा कार्यकाल समाप्त होने के साथ फरवरी 1991 में मुरली मनोहर जोशी को पार्टी प्रमुख के रूप में उनके स्थान पर चुना गया। इसके तुरंत बाद हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा की संख्या 85 से बढ़कर 120 हो गई और उसका वोट शेयर 11% से बढ़कर 20% हो गया। पार्टी ने शायद और बेहतर प्रदर्शन किया होता। लेकिन राजीव गांधी की हत्या से कांग्रेस के प्रति सहानुभूति लहर चल पड़ी। 1991 का लोकसभा चुनाव तीन चरण में हो रहा था। पहले चरण के ठीक बाद कांग्रेस नेता की हत्या कर दी गई। राजीव गांधी की हत्या के बाद पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने और अल्पमत सरकार चलायी। भाजपा प्रमुख के रूप में जोशी ने जून 1991 में कल्याण सिंह को यूपी का सीएम बनाया। कल्याण सिंह तब जोशी के करीबी माने जाते थे। पद संभालने के तुरंत बाद नए सीएम और जोशी ने ‘मंदिर यहीं बनाएंगे’ के नारों के बीच अयोध्या का दौरा किया और तत्कालीन विवादित स्थल पर मंदिर निर्माण की शपथ ली। लेखक विनय सीतापति अपनी पुस्तक जुगलबंदी में लिखते हैं। राज्य सरकार ने बाबरी मस्जिद के आसपास की 2.77 एकड़ जमीन का भी अधिग्रहण किया और इसे वीएचपी को सौंप दिया। शेषाद्री चारी ने कहा कि जोशी की आंदोलन में गहरी भागीदारी थी, ‘भानु प्रताप शुक्ला, दत्तोपंत ठेंगड़ी, अशोक सिंघल और गिरिलाल जैन का एक सब-ग्रुप था जो आंदोलन की गहराई से योजना बनाता था। मैं वहां एक तरह से रिकॉर्ड कीपर हुआ करता था। हम लोग ठेंगड़ी के घर पर अक्सर मिलते थे। मैं ऑर्गेनाइजर का संपादक था। मैं नोट्स लेता था और पेपर तैयार करता था। जोशी ने इस सब-ग्रुप के साथ बहुत करीब से काम किया।’ अयोध्या में भगवान राम की जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का सपना सैकड़ों सालों से करोड़ों राम भक्तों ने देखा। इस सपने को साकार करने के लिए कई लोगों ने जीवन की आहुति दे दी तो कई लोगों ने अपना सर्वस्व न्योछावर करने के संकल्प के साथ अथक प्रयास किए। 1980 के दशक में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने नए सिरे से अयोध्या आंदोलन का बिगुल फूंका तो उसमें जीवन के हर क्षेत्र से जुड़े रामभक्त शामिल हो गए। वक्त के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और उसकी राजनीतिक शाखा भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के कई कद्दावर नेता आंदोलन का चेहरा बन गए। लाल कृष्ण आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या की रथ यात्रा ने तो राम मंदिर आंदोलन में गजब की ऊर्जा भर दी। आडवाणी के बाद दूसरे बड़े भाजपाई नेता मुरली मनोहर जोशी ने भी अयोध्या आंदोलन को परिणति तक पहुंचाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। ‘राम मंदिर आंदोलन के स्तंभ’ सीरीज में आज बात उन्हीं डॉ. मुरली मनोहर जोशी की। अयोध्या आंदोलन पर मुरली मनोहर जोशी की अमिट छाप मुरली मनोहर जोशी अचानक लाल कृष्ण आडवाणी के साथ सुर्खियों में तब आ गए जब राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर उन्हें आमंत्रण पत्र तो मिला, लेकिन साथ ही यह भी अनुरोध किया गया कि वो अयोध्या नहीं आएं। पत्र में दोनों की ज्यादा उम्र के कारण स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया गया। इस पर देशभर से कड़ी प्रतिक्रिया हुई तो राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास ने अपनी गलती सुधारी। आडवाणी और जोशी को उनके घर जाकर आमंत्रण पत्र दिया गया। हमने सीरीज के पहले लेख में लाल कृष्ण आडवाणी के योगदान की चर्चा की थी। आज बात करते हैं मुरली मनोहर जोशी की। आडवाणी की तरह जोशी भी राम मंदिर आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिसा लेते रहे। बीजेपी की वेबसाइट पर मुरली मनोहर जोशी के परिचय का एक अंश कहता है, ‘डॉ. जोशी ने अयोध्या के आन्दोलन में काफी अहम भूमिका निभाई थी। राम जन्मस्थान पर मंदिर निर्माण के लिए उन्हें 8 दिसंबर 1992 को गिरफ्तार कर लिया गया और माता टीला पर लालकृष्ण आडवाणी और अशोक सिंघल के साथ अयोध्या मामले में गिरफ्तार किया गया। उनके जीवन में सबसे ज्यादा महत्व इलाहाबाद का है। उन्होंने चार दशक से भी ज्यादा समय वहां दिया है। वह इलाहाबाद लोकसभा सीट से लगातार तीन बार जीते।’ लाल चौक पर तिरंगा और अयोध्या में राम मंदिर जोशी राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की विचारधारा के पोषक रहे। इस कारण उन्होंने कश्मीरी आतंकियों की चुनौती स्वीकार करते हुए लाल चौक पर तिरंगा भी फहराया था। बीजेपी की वेबसाइट कहती है, ‘भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. जोशी ने 1992 में गणतंत्र दिवस के दिन ऐतिहासिक एकता यात्रा कन्याकुमारी से श्रीनगर तक लक्षित की थी जिसका उद्देश्य लाल चौक पर झंडा फहराना था। इस घटना ने अयोध्या की घटना के साथ मिलकर देश के भविष्य पर एक गहरी छाप छोड़ी। ‘ राम मंदिर आंदोलन हो या लाल चौक पर तिरंगा फहराने की दिलेरी, मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सभी कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे। मुरली मनोहर जोशी भी इन्हीं कार्यक्रमों के जरिए नरेंद्र मोदी की क्षमता को पहचाना और आडवाणी की तरह वो भी मोदी पर दांव खेलने लगे। राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के पक्के साधक कारसेवकों ने अयोध्या में जब बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया तब बीजेपी के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ही थे। उन्होंने बीजेपी के लिए राम मंदिर आंदोलन के निहितार्थों को अच्छी तरह समझते हुए पूरी प्लानिंग की और उन्हें जमीन पर उतारा। आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर के संपादक शेषाद्रि चारी ने अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि जोशी का आंदोलन में गहरा संबंध था। उन्होंने अखबार को बताया, ‘एक उपसमूह था जिसमें भानु प्रताप शुक्ला, दत्तोपंत ठेंगड़ी, अशोक सिंघल और गिरिलाल जैन शामिल थे जो आंदोलन की गहन योजना बनाते थे। मैं वहां एक तरह का रिकॉर्ड कीपर हुआ करता था। हम ठेंगड़ी के घर पर बहुत बार मिलते थे। मैं ऑर्गनाइजर का संपादक था। मैं नोट्स लेता था और पेपर तैयार करता था। उपसमूह सूचनाओं जमा करके लोगों से मिलता था। जोशी इस उपसमूह के साथ बहुत करीब से काम करते थे।’ चारी ने आगे कहा, ‘विहिप ने 30 अक्टूबर 1992 को घोषणा की कि वह मस्जिद के बगल की जमीन पर मंदिर निर्माण शुरू करेगा जो विवादित स्थल के आसपास निर्माण की अनुमति न देने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ गया था। नरसिंह राव ने आडवाणी के साथ नियमित बैठकें शुरू कीं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कुछ भी अप्रिय न हो। आडवाणी और कल्याण सिंह दोनों ने वादा किया कि मस्जिद को कुछ नहीं होगा। बार-बार आश्वासन के बाद अदालत ने 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में कारसेवकों को पूजा करने की अनुमति दी।’ वो आगे कहते हैं, ‘5 दिसंबर को भाजपा नेताओं ने लखनऊ में एक जनसभा को संबोधित किया। बैठक में जोशी ने लोगों से अगले दिन अयोध्या जाने को कहा। आडवाणी और जोशी दोनों अयोध्या के लिए रवाना हुए और रात मंदिर शहर के एक धर्मशाला जानी महल में बिताई। अगली सुबह वे बाबरी मस्जिद के स्थल पर गए। सुबह 10.30 बजे मौके पर पहुंचे।’ भाजपा की राजनीति पर नजर रखने वाले विनय सीतापति ने भी लिखा, ‘भाजपा नेता विजयाराजे सिंधिया और उमा भारती, विहिप नेता अशोक सिंघल, बजरंग दल के विनय कटियार, कुछ साधु और अन्य लोग मौजूद थे। लाखों की भीड़ इकट्ठा थी, जिसे नियंत्रित करना मुश्किल लग रहा था।’ दोपहर का समय था जब कुछ लोग अचानक मस्जिद के गुंबदों पर चढ़ने लगे। आडवाणी ने उन्हें रोकने के लिए माइक्रोफोन का इस्तेमाल किया और विजयाराजे सिंधिया ने भी ऐसा ही किया। हालांकि गुंबदों पर भीड़ उमड़ती रही। दोपहर करीब 1:55 बजे से एक-एक कर गुंबदों को गिराया गया। शेषाद्रि चारी ने बाद में एक साक्षात्कार में आडवाणी द्वारा कही गई बातों को याद करते हुए कहा, ‘मैं चाहता था कि जर्जर संरचना हट जाए लेकिन इस तरीके से नहीं।’ भाजपा में आडवाणी युग अल्पकालिक साबित हुआ। पार्टी को गठबंधन की राजनीति के लिए एक बार फिर अपने उदार चेहरे वाजपेयी पर भरोसा करना पड़ा। आडवाणी ने पार्टी को बढ़त दिलाई। लेकिन भाजपा का भविष्य गठबंधन को एकजुट करने की वाजपेयी की कुशलता पर निर्भर करने वाला था। इसी की बदौलत उन्होंने 1998 से 2004 तक देश नेतृत्व किया। मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती की इस तस्वीर की सच्चाई राज्यसभा सांसद स्वपन दासगुप्ता, जो उस दिन अयोध्या में मौजूद थे, उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘उस दिन की एक तस्वीर से एक गलत धारणा पैदा हुई है जिसमें जोशी के कंधे पर उमा भारती लटकी हुई हैं और दोनों हँस रहे हैं। बताया गया कि दोनों विध्वंस की खुशी मना रहे हैं। हालांकि वह तस्वीर सुबह ली गई थी, जब सब कुछ शांत था। न कि तब जब विध्वंस चल रहा था।’ एक बार जब मस्जिद के विध्वंस की सूचना मिली, तो पूरे भारत में दंगे भड़क उठे। कल्याण सिंह ने यूपी के सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। कुछ ही घंटों में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया और राज्य विधानसभा भंग कर दी गई। विध्वंस के बाद आडवाणी ने भी लोकसभा में विपक्ष के नेता के पद से इस्तीफा दे दिया। आरएसएस और वीएचपी पर प्रतिबंध लगा दिया गया और बाद में भाजपा शासित तीन अन्य राज्यों – मध्य प्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश की सरकार को बर्खास्त कर दिया गया। बाबरी विध्वंस के दिन की वो चर्चित तस्वीर उस दिन यानी 6 दिसंबर, 1992 को कार सेवकों ने बाबरी मस्जिद की गुंबदों को गिरा दिया। उस वक्त की एक तस्वीर बहुत चर्चित है। इस तस्वीर में उमा भारती उत्साह में मुरली मनोहर जोशी की पीठ पर चढ़ी दिख रही हैं। राज्यसभा सांसद स्वप्न दासगुप्ता भी उस वक्त मौके पर मौजूद थे। 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती अखबार ने उनके हवाले से लिखा, ‘उस दिन की एक तस्वीर से एक गलत धारणा बनाई गई है जिसमें जोशी दिख रहे हैं। इसमें उमा भारती पीछे से उनके कंधे पर लटकी हुई हैं और विध्वंस का आनंद ले रही हैं। वह तस्वीर सुबह ली गई थी जब सब कुछ शांत था ना कि जब विध्वंस हुआ था।’ बाबरी विध्वंस के आरोपियों की सूची में मुरली मनोहर जोशी को भी शामिल किया गया। विभिन्न लोकसभा क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व भी किया और वाजपेयी सरकार में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री बने रहे। इंडियन एक्सप्रेस ने बाबरी विध्वंस मामले के आरोप पत्र के हवाले से लिखा, ‘जांच के अनुसार मुरली मनोहर जोशी ने 1 दिसंबर, 1992 को मथुरा में अयोध्या जाते समय कहा था कि कोई ताकत राम मंदिर निर्माण को रोक नहीं सकती और वह मंच से कारसेवकों को प्रोत्साहित कर रहे थे। 6 दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचे के विध्वंस के लिए और भड़काऊ नारे लगा रहे थे।’ हालांकि, 2020 में स्पेशल सीबीआई कोर्ट का फैसला आया तो यह बात निराधार साबित हुई। कोर्ट ने कहा कि आडवाणी हों या जोशी, सभी बड़े नेता उग्र भीड़ से अपील कर रहे थे कि वह कुछ भी गैर-कानूनी काम नहीं करे ताकि निर्धारित कार्यक्रम को शांतिपूर्ण संपन्न हो सके। Post navigation हरियाणा में साढ़े 7 घंटे एनआईए की रेड, महेंद्रगढ़ जिले में आठ जगह छापेमारी आधुनिक समस्याओं से जूझता भारत कैसा विश्वगुरु ?