‘राव राजा’ विधानसभा चुनाव लड़ेंगे, आरती लोकसभा सीट पर आजमाएगी हाथ

भाजपा में अब यादव नेता असरदार, क्या राव की अब जरूरत नहीं?

अशोक कुमार कौशिक 

नारनौल। भाजपा में अब यादव सरदारों की भरमार हैं, इस कारण अब ‘राव राजा’ मुश्किल में है। एक ही समाज से निकले इन दो शब्दों में देश-विदेश क्षेत्र की राजनीति बदल दी है। आज के आलेख में हम दो विषयों को पर चर्चा करेंगे। पहली विषय है, भाजपा में असर कारक यादव और दूसरा विषय भाजपा व ‘रामपुरा हाऊस’ की चुनाव को लेकर रणनीति।

अतीत के झरोखे में एक समय देश, प्रदेश के साथ ‘अहीरवाल’ में रामपुरा हाउस की ‘तूती’ बोलती थी। और राव शब्द कान में पड़ते ही राजसी अनुभूति होती थी। कहते हैं कि कभी जो व्यक्ति ‘राव राजा’ से हाथ मिला लेता था, वह शख्स अपने इलाके में खुद को ‘चौधरी’ मानता था। कहा तो यहां तक भी जाता है जिसने राव राजा से हाथ मिला लिया वह कई दिनों तक अपने हाथ को पानी भी नहीं लगाता था। यह स्थिति  बड़े ‘राव राजा’ स्वर्गीय राव बीरेंद्र सिंह के समय थी। यह परंपरा कुछ समय उनके ज्येष्ठ पुत्र राव इंद्रजीत सिंह तक चली।

उत्तरी भारत विशेष रूप से हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार में सबसे ज्यादा संख्या है। राव का संबंध राजसी उपाधि से रहा है। वैसे राव देश में ही एक जाति है। भारत के काफी ऐसे राज्य है जहां राव उपनाम से जाना जाता है। महाराष्ट्र पंजाब और हरियाणा में राव उपनाम से अधिकतर लिया जाता है।

कभी राव इंद्रजीत सिंह द्वारा समर्थित 2014 की रेवाड़ी की सैनिक रैली ने भाजपा को देश गति दी थी। 2014 का ‘प्रभाव’ अब उतना असरकारक दिखाई नहीं दे रहा। समय बलवान होता है। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने वाले राव इंद्रजीत सिंह अब भाजपा के लिए असर कारक नहीं रहे? भाजपा में केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव, भाजपा संसदीय बोर्ड की सदस्य डॉक्टर सुधा यादव के बाद, मध्य प्रदेश के सीएम डॉक्टर मोहन यादव, रेवाड़ी, गुरुग्राम व महेंद्रगढ़ में जिला स्तर पर यादव नेता पदाधिकारी व सरकार – संगठन में अलग-अलग ओहदेदारों की संख्या में लगातार वृद्धि के बाद कुछ ऐसा ही दिखाई दे रहा है। 

भाजपा में संगठन के तौर पर भूपेंद्र यादव उनसे वरिष्ठ हैं पर राजनीतिक अनुभव व उम्र में पीछे हैं। भूपेंद्र यादव को नरेंद्र मोदी व अमित शाह के नीति-निर्माताओं में जाना जाता है। उन्हें भाजपा के थिंक टाइम कहा जाता है। उनकी सिफारिश पर सीएम बनते हैं। एमपी में मोहन यादव का सीएम बना इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है। वह भाजपा में संकट मोचन की भूमिका में भी नजर आते हैं। जब भी पार्टी मुश्किल में होती है तो वह मुश्किल को हल करते हैं। एमपी में चुनाव प्रभारी के तौर पर कमाल दिखाया, तो राजस्थान को भी बराबर संभाला। वैसे ही वह लम्बएं समय से राजस्थान को संभालते रहे हैं।

सबसे विचित्र बात यह है कि विधानसभा चुनावों में इस बार राव राजा इंद्रजीत सिंह कहीं दिखाई नहीं दिए। गुरुग्राम, रेवाड़ी व महेंद्रगढ़ से सटे अलवर, सीकर, झुंझुनूं व जयपुर ग्रामीण लोकसभा क्षेत्र की विधानसभा सीटों पर भाजपा ने उनकी ‘ज़रूरत’ तक महसूस नहीं की। इससे ही अब जाहिर होता है कि उनका अब भाजपा में कितना प्रभाव है।

2024 में होने जा रहे हरियाणा विधानसभा व लोकसभा चुनाव में राव राजा खुद के साथ अपनी बेटी आरती राव को चुनाव मैदान में उतारने का इरादा रखते हैं। उन्हें चिंता इस बात की है कि भाजपा पिता पुत्री को टिकट देने के पक्ष में नहीं है। राजस्थान एमपी व छत्तीसगढ़ में सरकार आने के बाद तो संभावना न के बराबर रह गई है। माना की चुनाव में 6 माह से अधिक समय है। इसलिए बदलते राजनीतिक घटनाक्रम में परिस्थितियों बदलती रहती है। कुछ राजनेताओं का कहना है कि विधानसभा चुनाव में मिली प्रचंड जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब लोकसभा चुनाव जल्दी करवाना चाहते हैं। राजनीतिक क्षेत्र में भाजपा नेताओं ने अब लगातार कहना शुरू कर दिया है कि हरियाणा में चुनाव लोकसभा के साथ कराने में कोई हर्ज नहीं है।

इसके विपरीत भूपेंद्र यादव राव इंद्रजीत सिंह के संसदीय क्षेत्र गुरुग्राम में अपने पैतृक गांव जमालपुर में बने घर में भाजपा शासित राज्य में सीएम बने वह हटाने ‘खाका’ तैयार करते हैं। इसी तरह संसदीय बोर्ड सदस्य डॉक्टर सुधा यादव भी गुरुग्राम में बने अपने आवास से भाजपा आई कमान के अहम फसलों में अपनी सिफारिश को सांझा करती है । वह 1999 में महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से भाजपा सांसद रह चुकी है और उन्होंने उसे समय राव इंद्रजीत सिंह को ही चुनाव में पराजित किया था। नरेंद्र मोदी की इस वक्त की ‘कारगिल शहादत’ को चुनाव में भुनाया जाए। उनके कहने से ही सुधा यादव को राजनीति में आने के लिए मनाया गया था। महेंद्रगढ़ लोकसभा का आधा हिस्सा परिसीमन के बाद अस्तित्व में आए गुरुग्राम और आधा हिस्सा भिवानी लोकसभा क्षेत्र में चला गया।

अब दूसरे मुद्दे पर बात करें कहा जा रहा कि दक्षिणी हरियाणा के क्षत्रप केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह इस बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे । वह लोकसभा के साथ होने वाले हरियाणा विधानसभा चुनाव में मैदान में उतरेंगे। यह फैसला बीजेपी की तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अपनाएं फार्मूले के आधार पर होगा। जहां सांसदों को चुनाव लड़वाया गया है । माना जा रहा कि उनका परिवार लोकसभा चुनाव भी लड़ेगा। उनकी बेटी आरती राव लोकसभा उम्मीदवार हो सकती है। राव इंद्रजीत सिंह अभी गुरुग्राम के सांसद हैं, लेकिन उनकी बेटी महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट पर एक्टिव है, दूसरा विकल्प गुरुग्राम का रहेगा।

राजनीति में रामपुरा हाउस के राव राजा इंद्रजीत सिंह के करीबी सूत्रों ने बताया कि खुद केंद्रीय मंत्री भी यही चाहते हैं। तर्क दिया जा रहा है कि दक्षिणी हरियाणा व हरियाणा को साधने के लिए भाजपा इस तरह का प्रयोग कर सकती है। हालांकि अंतिम फैसला बीजेपी हाई कमान का होगा।

भाजपा में यादव नेताओं की भरमार होने के बावजूद गुरुग्राम से भाजपा के मौजूदा सांसद राव इंद्रजीत सिंह केंद्र में मंत्री रहने के साथ-साथ दक्षिणी हरियाणा के बड़े जनाधार वाले नेता है। उनकी पकड़ गुरुग्राम से लेकर रोहतक, भिवानी, फरीदाबाद, रेवाड़ी, महेंद्रगढ़ व जिले तक है। करीब 18- 20 सीटों पर रामपुरा हाउस का सीधा प्रभाव है। ऐसे में राव इंद्रजीत सिंह के जरिए भाजपा की कोशिश रहेगी कि इन सीटों पर वोटर को साधने पर फोकस रहेगा।

राव राजा की बेटी आरती का फोकस महेंद्रगढ़ जिले में पर है। वह महेंद्रगढ़ भिवानी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ सकती है। दूसरा बिल्कुल विकल्प गुरुग्राम लोकसभा सीट भी है।

रामपुरा हाउस के राव राजा केंद्रीय केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह तीन बार रेवाड़ी की जाटुसाना (उस समय जिला महेंद्रगढ़ के कनीना के कुछ गांव भी इसमें शामिल थे ) सीट से विधायक रहने के साथ पांच बार के सांसद है । दो बार महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से सांसद बने ।‌ इसके बाद 2009 में गुरुग्राम सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और लगातार तीन बार यहां से सांसद हैं। फिलहाल व केंद्र सरकार में राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार का पदभार संभाले हुए हैं। बढ़ती उम्र के चलते उन्होंने अपनी बेटी आरती राव को सक्रिय किया हुआ है। वह अपने राजनीतिक विरासत उसी के हाथों सौंपना चाहते हैं।

2019 के विधानसभा चुनाव में ही राव इंद्रजीत सिंह की कोशिश आरती राव को विधानसभा चुनाव लड़ाने की थी । लेकिन भाजपा ने उनकी बेटी को रेवाड़ी सीट से टिकट नहीं दी। अब लंबे समय से खुद आरती राव ही ऐलान करती आ रही है कि वह चुनाव जरूर लड़ेगी। लेकिन किस सीट से लड़ेंगी यह अभी स्पष्ट नहीं है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि वह भाजपा से चुनाव लड़ेंगी या पिता के बनाए हुए इंसाफ मंच से।

यहां उल्लेखनीय है कि राव इंद्रजीत सिंह के पिता राव राजा बीरेंद्र सिंह भी हरियाणा के दिग्गज नेता रहे हैं। वह हरियाणा के कुछ समय तक सीएम भी रहे। इसके अलावा इंदिरा गांधी की सरकार में कई बड़े मंत्रालय के मंत्री भी रहे। तत्पश्चात उन्होंने अपना उत्तराधिकारी अपने ज्येष्ठ पुत्र इंद्रजीत सिंह को बना दिया था। उनको इस बात का माल आवश्यकता की उनके मझंले पुत्र अजीत सिंह को जनता ने ताज नहीं पहनाया। राव इंद्रजीत सिंह ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत विधानसभा चुनाव के जरिए की थी। मगर बाद में वे लोकसभा चुनाव लड़ने के बाद केंद्र की राजनीति में आ गए । हालांकि लंबे समय से उनकी खुद के मन में सीएम बनने की ख्वाहिश रही। कांग्रेस में भी इस ख्वाहिश के चलते उनका कांग्रेसी नेताओं से मतभेद रहा। कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा से मतभेद होने के बाद उन्होंने कांग्रेस को बाय-बाय कह दिया। 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद भी उनके सीएम बनने की चर्चाएं चली लेकिन इन चर्चाओं में कोई दम नहीं निकला।

कहते हैं राजनीतिक संभावनाओं का खेल है। कयास चाहे कुछ भी लगाए जाते हो, पर जीत के लिए हर गुणा भाग को लगाया जाता है। राव इंद्रजीत सिंह के विरोधी उन्हें विधानसभा चुनाव में कोई जिम्मेदारी न देने के पीछे तरह-तरह के तर्क दे रहे हो पर यह सच है कि यदि उनको दरकिनार किया गया तो हरियाणा में भाजपा को बड़ा भारी खामियाजा भुगतना पड़ेगा। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व अमित शाह 2024 के तक को पाने के लिए एक भी सीट नहीं खोना चाहते। लोकसभा के साथ हरियाणा में भी परचम फहराना चाहते हैं। 

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