जनता और नेता ……..

-कमलेश भारतीय

एक जंगल था ।
जी नहीं , एक जंगल है ।

शायद मैं कहना यह चाह रहा हूं कि एक देश है । जंगल न भी सही है तो जंगल की तरह पूर्णरूपेण अस्तव्यस्त । जंगल ही मान लें तो जंगल भी ऐसा कि सभी तरफ दिन में भी अंधेरा छाया रहता है । रात के अंधेरे की कल्पना मात्र से आत्मा कांपने लगती है ।

उस जंगल में बहुत से जाननर रहते थे ।

अब जंगल में जानवर ही तो रहेंगे । पर नहीं , शायद मैं ठीक बात अभी कह नहीं पाया हूं ।

दरअसल कहना यह चाहता हूं कि उस अंधेरे जंगल के समान देश में जानवरों की तरह जीवन बिताते हुए लोग रहते थे । सारी जनता जो कई करोड़ थी , रह रही थी । ऊंह, रह रही है ।

हां , अब हम सभ्यता के दौर की ओर बढ़ते हैं । अब ‘जंगल’ और ‘जानवर’ की बजाय ‘देश’ और ‘जनता’ का प्रयोग करते हैं ।
सभी जानवर दुखी थे ।

उन्हें राशन की लाइनों में खड़ा होना पड़ता था । उन्हें ब्लैक में भी घी , आटा , सीमेंट आदि नहीं मिल पाता था । इसके बावजूद वे खुश थे । वे खुशी खुशी लम्बी कतारों में अपनी बारी का इंतजार कर सकते थे । धक्का मुक्की कर मिलावटी वस्तुएं प्राप्त कर सरकार का आभार व्यक्त करते थे कि सरकार उनके स्वास्थ्य का कितना ख्याल रखती है, भला शुद्ध चीजें पेट पचा सकता है ?

उन्हें दुख था तो इस बात का कि वे नये नये स्वतंत्र हुए थे । अब उन पर किसी का राज न था । वे लाठी चार्ज, अश्रु गैस और गोली कांडों के आदी हो चुके थे । यह भी नहीं कि उनको पर्याप्त जागृति नहीं थी । दूसरे बड़े और पुराने जंगलों से बहुत सी बौद्धिक जागृति उधार ले रखी थी । उसे वे अपने अपने दल के गले में लटका कर खूब ढिंढोरा पीटते थे ।

शासन जनता का ही था । जनता ही राजा को चुनती थी । जनता इसलिए दुखी है कि जिस किसी को वह राजा अथवा नेता चुनती है , वही उसका साथ नहीं देता । जनता आजकल नये नेता की तलाश में है ।

जंगल में एक गुरु रहते थे । शिष्यों को शिक्षा देना उनका काम था ।

गुरु अब रहे नहीं ।

शिष्य हैं और गुरु के नाम पर ठाठ से शासन किये जा रहे हैं ।

जनता को उन पर विश्वास था । अतः नये नेता को चुनने का हर बार जनता उन्हें ही सौंप देती ।

शिष्य विद्वान थे ।

एक शिष्य इतना विद्वान था कि वह बिखरी हुई जनता को पांच साल बाद एक स्थान पर इकट्ठा कर सकता था । दूसरा इतना समझदार था कि वह हर पांचवे साल जनता में धन और अन्न जी खोलकर बांट सकता था । तीसरा जनता के हुजूम को नये नये नारों और धुआंधार भाषणों से लुभाने में माहिर था । चौथा इन सबकी योग्यता का लाभ उठाना अच्छी तरह से जानता था ।

उसके पास चाहे और कोई योग्यता न थी लेकिन वह वक्त को पहचानकर कुर्सी से चिपक गया था । अब वह किसी भी हालत में ‘गद्दी’ छोड़ना नहीं चाहता था ।
अब देश कहां जाये ,,,,,?

You May Have Missed

error: Content is protected !!