450 रुपये प्रति क्विंटल तय किया जाए गन्ने का दाम: कुमारी सैलजा

चीनी मिल में पिराई सत्र  शुरू होने से  पहले घोषित हो गन्ने का भाव
किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा भी जुमला ही रहा

चंडीगढ़, 31 अक्तूबर। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव, पूर्व केंद्रीय मंत्री, कांग्रेस कार्यसमिति की सदस्य और हरियाणा कांग्रेस की पूर्व प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा ने कहा कि भाजपा द्वारा सत्ता में आने के लिए किसानों से उनकी आमदनी दोगुनी करने का वादा महज जुमला ही साबित हुआ। ऐसे में गन्ने की फसल में लगातार बढ़ रही लागत को देखते हुए भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार द्वारा गन्ने का दाम 450 रुपये प्रति क्विंटल तय किया जाना चाहिए। गन्ने का भाव चीनी मिलों में पिराई सत्र शुरू होने से पहले ही घोषित किया जाना चाहिए।

मीडिया को जारी बयान में कुमारी सैलजा ने कहा कि पिछले साल पिराई सत्र के ढाई महीने बीत चुके थे। किसान अपना अधिकतर गन्ना चीनी मिलों में इस आस में डाल चुके थे कि उन्हें गन्ने के सही दाम मिलेंगे पर ऐसा नहीं हुआ। किसानों के संघर्ष के बाद गठबंधन सरकार ने गन्ने के दामों में मामूली बढ़ोतरी करते हुए इसे 372 रुपये प्रति क्विंटल तय कर दिया था। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि गन्ने की फसल तैयार करने के लिए लागत में हर साल तेजी से बढ़ोतरी होती है। खाद व कीटनाशक के दाम बेहताशा तेजी आई है। ऐसे में गन्ने की खेती किसानों के लिए घाटा का सौदा न बन जाए, इसलिए दामों में एकमुश्त बड़ी बढ़ोतरी की जरूरत है। साथ ही नारायणगढ़ चीनी मिल की ओर बकाया किसानों की पिछले साल की पेमेंट भी तुरंत दिलाई जानी चाहिए।

कुमारी सैलजा ने कहा कि गन्ने के दाम तय करते समय खोई का भाव और मुद्रास्फीति की दर को ध्यान में रखना चाहिए। जब खोई ही 400 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक दाम पर बिकती है तो फिर गन्ने का दाम तो इससे अधिक रखा ही जाना चाहिए, जो हर हाल में कम से कम 450 रुपये प्रति क्विंटल करना चाहिए। इससे कम दाम रहने पर पहले ही कर्ज में डूबे किसानों पर आर्थिक चोट पड़ सकती है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार ने गन्ने की फसल पर प्रति क्विंटल 07 प्रतिशत वजन कटौती का आदेश तुरंत लागू किया हुआ है, ताकि चीनी मिलों को फायदा पहुंचाया जा सके। इसके विपरीत पड़ोसी राज्य पंजाब में यह कटौती महज 03 प्रतिशत ही है। इससे पता चलता है कि प्रदेश सरकार पूरी तरह से किसान विरोधी है। गठबंधन सरकार को किसानों की थोड़ी भी चिंता है तो फिर इस कटौती को भी कम करके 3 प्रतिशत पर लाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि भाजपा-जजपा गठबंधन की सरकार में सबसे ज्यादा किसान के साथ ही धोखा हुआ है। सरकार कहती कुछ और करती कुछ है, प्रदेश में सबसे लंबा किसान आंदोलन चला बावजूद इसके सरकार ने इससे कोई सबक नहीं लिया। अन्नदाता किसान आज भी अपने हकों के लिए भटक रहा है और सरकार ढिंढोरा पीट रही है कि उससे बड़ा कोई किसान हितेषी नहीं है। सरकार का जो भी मंत्री किसानों के पास जाता है तो कहते है कि वे भी किसान परिवार से है पर उन्हें किसानों की समस्याएं और दर्द का अहसास नहीं होता। चुनाव आने पर सरकार को सब कुछ याद आने लगता है।

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