एक शाम सीता सागर के नाम……सुरुचि परिवार ने किया काव्य संध्या का आयोजन

“मुझे क्यों इस कदर प्यारी जमीं महसूस होती है, रेगिस्तान में भी अब नमी महसूस होती है I”

जहाँ सूफी गीत का जादू श्रोताओं के सर चढ़कर बोला, वहीं मुक्तक व गीतों के माध्यम से हुयी रस वर्षा का श्रोताओं ने खूब आनंद लिया I

“पास कुछ भी नहीं तृष्णगी के सिवा, चाह फिर भी नहीं बंदगी के सिवा, इतना काफी नहीं है क्या मेरे लिए, मैंने सब जी लिया जिंदगी के सिवा I”

“दोस्तों दुश्मनों से रही बेखबर, जाने कब ये सफर बन गया हमसफ़र, तिनके-तिनके से मैं नीड़ रचती रही, घर से निकली मगर, मन से निकला न घर I”

गुरूग्राम, 16 अक्तुबर – उक्त पंक्तियाँ है ख्याति प्राप्त प्रतिष्ठित कवयित्री सीता सागर की जिन्होंने सूफी गीत, मुक्तक व श्रृंगार गीतों से श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया I अवसर था सुरुचि साहित्य कला परिवार गुरुग्राम के तत्वावधान में सी. सी. ए. स्कूल सेक्टर-4 के सभागार में 15 अक्टूबर 2023, रविवार को शाम 5 बजे से काव्य संध्या के आयोजन का, जिसके अंतर्गत एक शाम सीता सागर के नाम सजाई गयी I मुख्य अतिथि के रूप में प्रख्यात समाजसेवी नवीन गोयल एवं कार्यक्रम अध्यक्ष के रूप में कर्नल कुँवर प्रताप सिंह ने कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई I प्राचार्य निर्मल यादव, हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशिका डॉ मुक्ता विशिष्ट अतिथि के रूप में शोभायमान थी I महासचिव मदन साहनी, आर. एस. पसरीचा, शशांक शर्मा, राजपाल यादव, वीणा अग्रवाल द्वारा दीप प्रज्जवलित कर विधिवत कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया I अंजलि श्रीवास्तव ने सुमधुर कंठ से सरस्वती वंदना प्रस्तुत की I दूसरे सत्र का संचालन मदन साहनी ने किया जबकि काव्य गोष्ठी का संचालन हरींद्र यादव ने किया I मदन साहनी ने कहा 17 वर्ष पूर्व सीता सागर जी को सुरुचि सम्मान 2006 से अलंकृत किया गया था आज भी गीतों में वही ताजगी दिखाई दी I

काव्य गोष्ठी में मुख्य रूप से वीणा अग्रवाल, त्रिलोक कौशिक, विमलेन्दु सागर, डॉ मुक्ता, मोनिका शर्मा, इंदु राज निगम, राजेंद्र निगम, मदन साहनी, डॉ. शैलजा दुबे, मेघना शर्मा, डॉ मुक्ता, राजपाल यादव, नीना गुप्ता, विशेष आजाद, मनोज शर्मा, प्रमेश शर्मा, सुरेन्द्र मनचंदा, मेघना शर्मा, अनिल श्रीवास्तव, हरींद्र यादव सहित लगभग 22 कवियों ने काव्य पाठ किया I

विमलेन्दु सागर ने गीत पढ़ा – “भाव हो पावन और निश्छल , सार्थक शब्द बने सम्बल, बहे काव्य की रसधारा, कवितामय हो आज और कल I” डॉ. शैलजा दुबे ने गीत के माध्यम से स्त्री का दर्द बयां करते हुए कहा कि घर परिवार के लिए समर्पित स्त्री के जीवन में ऐसा भी पल आता है जब वो कहती है -“सब छूट गए बारी- बारी, तुम जीत गए लो मैं हारी I” राजेन्द्र निगम राज की पंक्तियाँ कुछ यूँ थी -“आज रौशनी के हमने सौ टुकड़े कर डाले , अपना अपना हिस्सा लेकर घूम रहे हैं हम I” इन्दु राज निगम ने सीख देते हुए पंक्तियाँ पढ़ी -“जो सपना देखा है पूरा करना है , खुद से अब ये वादा करके सोना है I” प्रमेश शर्मा ने शाश्वत सत्य को बयां करते हुए कहा – “तुमको एक दिन जाना है, ये दुनिया एक मुसाफिर खाना है I” मनोज माणिक ने समाज के सच को उजागर करते हुए पंक्तियाँ पढ़ीं – “जायदाद का बँटवारा हुआ भाइयों में, सब कुछ बँट गया इत्मीनान से, दुविधा तब हुयी जब माँ बाप थे बाँटने I” मेघना शर्मा की पंक्तिया थी – “होंठों में दबी बात सुन लेते तो अच्छा होता, आँखों में छिपे थे राज समझ लेते तो अच्छा होता I” डॉ मुक्ता की पंक्तियाँ थीं – “खुद में खुद को तलाशने में उम्र गुजर जाती है, खुद से मुलाकात करने में उम्र गुजर जाती है I” त्रिलोक कौशिक की ग़ज़ल ने खूब वाहवाही लूटी I राजपाल यादव ने सामयिक युद्ध के हालात को जगीरा के माध्यम से बयां किया I विशेष आजाद के मुक्तक व मोनिका शर्मा के गीत को भी सराहना मिली I शशांक शर्मा एवं अर्जुन वशिष्ठ ने भी चुनी हुयी पसंदीदा पंक्तियाँ पढ़ीं I इस अवसर पर नीलम साहनी, रामकला बबेरवाल, अरुणा अदलखा, सुषमा बजाज , राजेंद्र सहगल, हरीश कुमार, काशीनाथ रॉय सहित कई साहित्य प्रेमी उपस्थित थे I मदन साहनी ने आमंत्रित अतिथिगण , श्रोताओं व स्कूल प्रबंधन के प्रति धन्यवाद आभार व्यक्त किया I

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