महिला आरक्षण बिल को कांग्रेस का पाप बोलने वाले यूपी सीएम योगी और इसके विरोध में खुल कर उतरने वाले भाजपा आईटी सैल के प्रमुख अमित मालवीय आज कैसे और किस मुंह से इस बिल को मोदी का मास्टरस्ट्रोक बता रहे हैं?
देश की आधी आबादी को संसद और विधानसभाओं में 33 नहीं बल्कि 50 फीसदी आरक्षण मिलना चाहिए और इस बिल में सभी वर्ग की महिलाओं को जगह मिलनी चाहिए।
ओबीसी, एससी और एसटी महिलाएं सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए समूहों से आती हैं। उन्हें शिक्षा और रोजगार के अवसरों तक पहुंचने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। बिना इन वर्गों की महिलाओं को अलग से कोटा दिए इस बिल का पारित करना गलत होगा।

पटौदी 19/9/2023 :- ‘1989 में श्री राजीव गांधी जी महिला आरक्षण बिल लेकर आए, 1993 में तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव ने कानून बनाया और 2010 में सरदार मनमोहन सिंह सरकार ने राज्यसभा में इसे पास करवाया लेकिन तब लोकसभा में आडवाणी जैसे बीजेपी नेताओं के द्वारा पैदा की गई अड़चनों के चलते ये पास नहीं हो पाया और अब सोनिया गांधी जी की दृढ़ इच्छा शक्ति ने आधी आबादी को पूरा हक दिलाया है।’ उक्त बातें हरियाणा कांग्रेस सोशल मीडिया की स्टेट कॉर्डिनेटर सुनीता वर्मा ने प्रेस के नाम जारी विज्ञप्ति में कही। उन्होंने कहा कि इस महिला आरक्षण बिल के बारे में राहुल गांधी जी ने वर्ष 2018 में कहा था, जिसे इंडिया गठबंधन के चक्रव्यूह में फंसे मोदी जी ने 2023 में सुना, अब बताओ बेहतर कौन? कांग्रेस द्वारा महिला हित में लाए इस बिल को पारित करा कर वाहवाही लूट रही बीजेपी बताए की अगर उन्होंने महिलाओं को सम्मान दिलाना ही था तो उसे इनकी फिक्र साढ़े नौ साल शासन के बाद ही क्यूं हुई?

महिला कांग्रेस नेत्री ने कहा की आज देश में महिला सांसदों की संख्या 15 फीसदी से भी कम है और राज्य विधानसभा में उनका प्रतिनिधित्व 10 फीसदी से भी कम है। बीजेपी ने 2014 के चुनावी घोषणा पत्र में कहा था कि उनकी सरकार बनने पर वो महिला आरक्षण बिल संसद में पास करेंगे लेकिन साढ़े नौ साल के बाद जब प्रधानमंत्री को लगा कि वो चुनाव हारने जा रहे हैं तो अब वो महिला आरक्षण बिल लेकर आ रहे हैं। एक वायदे को निभाने में मोदी जी को 9.5 साल लग गए, क्यों? उन्होंने 33 फीसदी आरक्षण का विरोध करते हुए कहा कि हम देश की आधी आबादी हैं, इसलिए अवसर भी हमें आधा चाहिए अतः महिला आरक्षण 33 फीसदी नही बल्कि 50 फीसदी होना चाहिए। इसके साथ ही एक कानून महिलाओं को त्वरित न्याय दिलाने का भी लाना चाहिए, क्योंकि बिलकिस बानों, मणिपुर की बहनें, रेप पिड़िताएं और महिला पहलवान अभी भी न्याय का इंतजार कर रही है। वैसे भी अगर इन जुमालेबाजों को महिलाओं की इतनी ही चिंता है तो इस आरक्षण के साथ ही उन्हें सुरक्षा दो, शिक्षा दो, नौकरी दो।

महिला कांग्रेस नेत्री ने कहा कि महिला आरक्षण की इस एक शुरुआत से भारत के राजनीति में हर स्तर पर, महिला भाग लेंगी और देश को बनाने में हिस्सा लेंगी क्योंकि जो घर चला सकती हैं वो देश भी चला सकती हैं। उन्होंने कहा कि जब महिला आरक्षण सुनिश्चित किया जाए तो उसमें सामान्य आरक्षण को छेड़े बैगर इसी महिला आरक्षण कोटे में से एससी/एसटी और ओबीसी महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण कोटा होना चाहिए और सभी राजनीतिक दल इस बिल के
प्रोटोकॉल का मज़बूती से पालन करें और वो ये सुनिश्चित करें कि ‘सांसद पति’ तथा ‘विधायक पति’ नाम से नए पद सृजित न होने पाएं।

सुनीता वर्मा ने कहा कि यह महिला आरक्षण अभी अधूरा है क्योंकि जब तक ओबीसी, एससी, एसटी की महिलाओं को इस आरक्षण के दायरे में नहीं लाया जाएगा तब तक महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता, क्योंकि आज के परिपेक्ष्य में देखा जा सकता है कि लोकसभा व राज्यसभा में कितना प्रतिशत इन वर्गों की महिलाओं की हिस्सेदारी है। उन्होंने कहा की इस 33 फीसदी आरक्षण का वर्गीकरण होना चाहिए जिसमें से 52फीसदी ओबीसी महिलाओं के लिए और 22.5फीसदी एससी/एसटी की महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।

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