अशोक कुमार कौशिक

लोकसभा चुनाव 2024 में भारतीय जनता पार्टी को मजबूत टक्कर देने के लिए इंडिया गठबंधन लगातार कुनबा जोड़ रही है। मुंबई मीटिंग के बाद 5 दलों को साथ लाने का दावा किया जा रहा है । इन 5 दलों के जरिए यूपी, महाराष्ट्र, पंजाब, असम और हरियाणा का समीकरण दुरुस्त करने की तैयारी है। मायावती की पार्टी बीएसपी, बादल की पार्टी अकाली दल, चौटाला की पार्टी इनेलो, अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ और राजू शेट्टी की पार्टी शेतकारी संगठन के इंडिया गठबंधन में आने की अटकलें हैं। नीतीश कुमार और कांग्रेस हाईकमान इन दलों को जोड़ने की कवायद में जुटा हुआ है।

सूत्रों के मुताबिक इन 5 में से 3 दलों से शुरुआती स्तर पर बातचीत भी हो चुकी है. इंडिया गठबंधन की बैठक में इनके प्रस्ताव रखे जाएंगे। इन 5 दलों का लोकसभा के 50 सीटों पर सीधा असर है। 50 में से अधिकांश सीटें अभी बीजेपी के पास है।

आखिर क्यों इन 5 दलों के इंडिया गठबंधन से जुड़ने की अटकलें लग रही है?

मायावती के आने की अटकलें क्यों?

बहुजन समाज पार्टी 2019 में सपा और आरएलडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ चुकी है. 2019 में बीएसपी को 10 सीटों पर जीत मिलीा थी। इंडिया गठबंधन में बीएसपी को लाने की सबसे बड़ी हिमायत कांग्रेस कर रही है। 2022 के चुनाव में भी कांग्रेस ने मायावती से संपर्क साधा था, लेकिन तब बात नहीं बन पाई थी।

मायावती 2024 में किसी के साथ गठबंधन नहीं करने की बात कह चुकी है, लेकिन कांग्रेस सूत्रों का दावा है कि मायावती से बातचीत चल रही है। हालांकि, बातचीत शुरुआती स्टेज में ही है. मायावती केंद्र की मनमोहन सरकार को बाहर से समर्थन दे चुकी है।

मायावती की पार्टी बीएसपी अभी यूपी, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और पंजाब में प्रभावी हैं। कांग्रेस मायावती को साधकर इन राज्यों में भी अपनी जीत की राह आसान करना चाहती है। 2009 में बीजेपी सबसे अधिक लोकसभा की 21 सीटें जीती थी।

2019 के लोकसभा चुनाव में पूरे देश में बहुजन समाज पार्टी को 3.62 प्रतिशत मिले थे, जबकि 2014 में यह आंकड़ा 4.14% का था। सिर्फ उत्तर प्रदेश में बीएसपी को 2019 में 19.43 प्रतिशत वोट प्राप्त हुआ था। अखिलेश यादव की पार्टी से यह 2 प्रतिशत अधिक था।

मायावती की पार्टी के भीतर भी कई नेता गठबंधन की पैरवी कर चुके हैं। इन नेताओं का कहना है कि बीएसपी के लिए गठबंधन फायदेमंद रह चुका है। बीएसपी के नेता इसके पीछे 2019 और 2009 का डेटा दे रहे हैं।

हालांकि, इंडिया गठबंधन में आना मायावती के लिए आसान भी नहीं है। इस बार यूपी में सीट बंटवारा बड़ी समस्या रहने वाली है। पिछली बार सपा ने आसानी से मायावती की पार्टी को 38 सीटें दे दी थी । लेकिन इस बार शायद ही अखिलेश इस पर राजी हो। 2019 चुनाव के बाद मायावती ने जिस तरह से स्टैंड लिया, उससे अखिलेश काफी नाराज हैं।

सुखबीर बादल के आने की अटकलें क्यों?

सुखबीर बादल की पार्टी पंजाब की राजनीति में सक्रिय है। पहले यह एनडीए गठबंधन का हिस्सा था। लेकिन 2020 में बादल ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया। अकाली दल के नीतीश कुमार से संपर्क में होने की बात कही जा रही है।

पंजाब की सत्ता में दबदबा रखने वाली अकाली दल की स्थिति अभी काफी कमजोर हो गई है। 2019 के चुनाव में पार्टी को 2 सीटों पर जीत मिली थी । लेकिन विधानसभा चुनाव में पार्टी बुरी तरह हार गई । सिर्फ 3 सीटों पर अकाली उम्मीदवार जीत हासिल कर पाए।

अकाली दल के गठबंधन में आने के पीछे आम आदमी पार्टी को झटका देने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। अकाली दल को 2019 के लोकसभा चुनाव में 27 प्रतिशत और 2022 के विधानसभा चुनाव में 18 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस के साथ अगर इस वोट को मिला जाए, तो आप को मिले वोट प्रतिशत से काफी ज्यादा है। अकाली दल और कांग्रेस दोनों पंजाब में आप और दिल्ली में बीजेपी का विरोध कर रही है।

पाचन परिवार और चौटाला परिवार की पुरानी दोस्ती कि अकाली दल बादल को कांग्रेस की ओर ला सकती है। वैसे पंजाब हरियाणा में दोनों ही दाल पहले की अपेक्षा बहुत कमजोर है शायद यह मजबूरी भी दोनों दलों को कांग्रेस की तरफ आकर्षित कर रही है।

ओम प्रकाश चौटाला के आने की चर्चा क्यों?

ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल हरियाणा की राजनीति में सक्रिय है। विपक्षी मोर्चे का पहला बिगुल इनेलो के मंच से ही फूंका गया था। लेकिन कांग्रेस की वजह से ओम प्रकाश चौटाला इंडिया गठबंधन में शामिल नहीं हो पा रहे थे।

हरियाणा सियासत की हालिया उठापटक ने कांग्रेस को अपनी रणनीति बदलने के लिए मजबूर कर दिया है । इनेलो की स्थापना चौधरी ओम प्रकाश चौटाला ने 1996 में किया था। हरियाणा के जाट वोटरों पर इस पार्टी की मजबूत पकड़ रही है।

2014 के लोकसभा चुनाव में इनेलो को 2 सीटों पर जीत मिली थी. 2019 तक हरियाणा विधानसभा में इनेलो दूसरे नंबर की पार्टी थी, लेकिन परिवार और पार्टी में टूट की वजह से अभी काफी कमजोर स्थिति में है। परिवार की इसी टूटकी वजह से ओमप्रकाश चौटाला कांग्रेस के कट्टर विरोधी होते हुए भी कांग्रेस की ओर झूट रहे हैं।

शेतकारी वाले राजू शेट्टी के आने की अटकलें क्यों?

महाराष्ट्र में किसानों की राजनीति करने वाले राजू शेट्टी कभी एनडीए गठबंधन का हिस्सा थे, लेकिन इन दिनों शरद पवार और उद्धव के संपर्क में हैं। हाल ही में राजू शेट्टी ने बीजेपी पर पार्टी तोड़ने का आरोप लगाया था।

सूत्रों के मुताबिक मुंबई की मीटिंग में राजू शेट्टी को शामिल कराकर विपक्ष मनोवैज्ञानिक बढ़त लेने की कोशिश में है। राजू शेट्टी लोकसभा के सांसद रह चुके हैं उन्होंने 2004 में अपनी पार्टी स्वाभिमानी शेतकारी का गठन किया था। इसी साल महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में वे जीतकर सदन पहुंचने में कामयाब रहे। इसके बाद वे लोकसभा का चुनाव लड़े और जीते। महाराष्ट्र की सियासत में स्वाभिमानी पक्ष का हातकंगाले, कोल्हापुर, सतारा, सांगली, माढ़ा आदि में मजबूत पकड़ है। पार्टी शुरू से गन्ना और कपास किसानों के मुद्दों को उठाती रही है।

बदरुद्दीन अजमल के आने की अटकलें क्यों ?

लोकसभा सांसद बदरुद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ असम में राजनीति करती है। नीतीश कुमार शुरुआत में ही एआईयूडीएफ को इंडिया गठबंधन में शामिल करना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस ने वीटो लगा दिया था। अजमल गठबंधन में शामिल होने के लिए नीतीश कुमार से मिले भी थे।

असम में परिसीमन के बाद कई सीटों का गणित इधर से उधर हो गया है, जिससे कांग्रेस आलाकमान की टेंशन बढ़ गई है । कांग्रेस अब अजमल को इंडिया गठबंधन में लेने पर विचार कर रही है। अजमल की पार्टी ने हाल ही में इंडिया गठबंधन को नैतिक समर्थन देने का ऐलान भी किया था। असम की 14 में से 3 सीटों पर अजमल की पार्टी का दबदबा है। एआईयूडीएफ के विधायक रफीकुल इस्लाम ने कहा है कि पार्टी धुबरी, करीमगंज और नागांव सीट पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है।

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