भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। भाजपा के सर्वाधिक जनाधार वाले नेता के रूप में केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह को जाना जाता है। दक्षिणी हरियाणा के तो ये राजा कहलाते हैं। पिछले कुछ समय से इनके समर्थकों में चर्चा चल रही है कि वर्तमान में पटौदी रैली, पंचकमल में संगठन मंत्री फणीन्द्र नाथ शर्मा का स्वागत और रविवार को गुरुग्राम में हुए पन्ना प्रमुख सम्मेलन में ये अपने विरोधियों के साथ मंच सांझा करते नजर आए। उनमें कुछ कहना है कि ये विरोधी राव इंद्रजीत सिंह के वर्चस्व को देख उनके साथ हो लिए। कुछ का कहना हैकि राव इंद्रजीत सिंह को राजनीति करनी है और भाजपा में रहना है तो भाजपाईयों से विरोध नहीं दिखाया जा सकता और कुछ का यह भी कहना है कि भाजपा संगठन के ऊपर से आदेशों का पालन करना राव साहब की मजबूरी है।

राव इंद्रजीत सिंह का राव नरबीर और सुधा यादव से कभी सामंजस्य देखा नहीं गया है। प्रदेश उपाध्यक्ष जीएल शर्मा कभी इनके अति विश्वस्त व्यक्तियों में हुआ करते थे लेकिन उनका छोडऩा भी खूब चर्चित है। राव साहब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बड़ाईयां करते तो थकते नहीं लेकिन मुख्यमंत्री मनोहर लाल के कार्यकलापों पर टिप्पणी करने से चूकते नहीं। ऐसे में यह समझा जाना कि यह सब मिलकर कार्य करेंगे, संभव तो नहीं लगता।

राव इंद्रजीत के पुराने जानने वालों का मत है कि राव साहब के दिलो-दिमाग में क्या चल रहा है उसे पढऩा नामुमकिन है। संभव है कि इनके साथ मंच सांझा करना राव साहब की किसी रणनीति का हिस्सा है और जब राव साहब भी वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भक्त हैं तो उन्हें उनके अन्य भक्तों के साथ रहने का दिखावा तो करना भी उनकी रणनीति का हिस्सा हो सकता है।

पन्ना प्रमुख सम्मेलन में राव इंद्रजीत सिंह ने कहा कि अभी मेरी उम्र है एक चुनाव लडऩे की। पार्टी टिकट दे न दे, यह पार्टी पर निर्भर करता है लेकिन मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थक हूं और रहूंगा। ये उद्गार अपने आप में राव इंद्रजीत सिंह की मजबूरी को उजागर कर रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से चर्चा में है कि उनके अति विश्वस्त हरियाणा के राज्यमंत्री ओमप्रकाश यादव भी मुख्यमंत्री के पाले में जा रहे हैं।

गुरुग्राम वाले सभी जानते हैं कि भाजपा संगठन के प्रदेश उपाध्यक्ष जीएल शर्मा और विधायक व प्रदेश उपाध्यक्ष सत्यप्रकाश जरावता भी कभी इनके परम भक्तों में हुआ करते थे। इसी प्रकार गुरुग्राम में निगम की बागडोर संभालने वाले राव भोपाल सिंह भी वर्तमान में इनके साथ नजर नहीं आ रहे। कहीं ऐसी परिस्थितियों को देखकर राव साहब अपनी पुत्री को राजनीति में स्थापित करने के लिए अब इन सबके साथ आने को मजबूर हुए हों।

सच्चाई क्या है यह हम नहीं कह सकते परंतु परिस्थितियां यह सोचने को अवश्य मजबूर कर रही हैं कि राव बीरेंद्र सिंह जो आयरन लेडी इंदिरा गांधी से नहीं घबराए, उनके सुपुत्र राव इंद्रजीत सिंह कैसे मजबूर हो सकते हैं।

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