बीके मदन मोहन ……………. ओम शांति रिट्रीट सेंटर, गुरुग्राम आप सभी को रक्षा बंधन की बहुत-बहुत बधाईयां। दोस्तों रक्षा बंधन क्यों मनाया जाता है? क्या इसके वास्तविक रहस्य को आप जानते हैं? आज रक्षा बंधन सिर्फ भाई-बहन के पावन पर्व के रूप में ही क्यों मनाया जाता है? ज्यादातर लोग यही कहेंगे जी हां, हमें पता है – कि जब युद्ध में देवराज इंद्र हार रहे थे तो उनकी विजय के लिए बहन इंद्राणी ने अपने तपोबल से एक रक्षासूत्र तैयार किया और इंद्र की कलाई पर बांध दिया। कई जगह लिखा है कि वो रक्षासूत्र इंद्राणी को विष्णु ने दिया था। आप सोचिए कि हार रहा व्यक्ति मात्र एक धागा बांधने से विजयी कैसे हो सकता है। पौराणिक कहानियां सुनने में तो बहुत रौचक लगती हैं। लेकिन क्या हमें इनके आध्यात्मिक पक्ष के बारे में पता है। जब तक हम इनके वास्तविक रहस्य को नहीं जानते, तब राखी हमारे लिए सिर्फ एक दिन का त्योहार मात्र है। तो आइए हम चर्चा करते हैं, इस कहानी के आध्यात्मिक पहलू पर। आपने शास्त्रों में देवासुर संग्राम की काफी चर्चा सुनी होगी। अर्थात देवताओं और असुरों का उल्लेख सभी जगह है। इंद्र को देवताओं का राजा माना गया है। पहले तो देवताओं और असुरों में अंतर समझना बहुत जरूरी है। देवताओं को सम्पूर्ण निर्विकारी माना जाता है और असुरों में संपूर्ण विकार विद्यमान होते हैं। दोस्तों आप लोग स्वर्ग और नर्क की अवधारणा से तो परिचित होंगे ही। देवताओं का निवास स्वर्ग में और असुरों का निवास नर्क में बताया गया है। ये भी समझने की बात है कि जब स्वर्ग होता है तो उस समय नर्क हो नहीं सकता। और जब नर्क होगा तो स्वर्ग हो नहीं सकता। इसका सीधा सा अर्थ है कि जब देवताएं होते हैं, तब असुर नहीं हो सकते। और जब असुर होते हैं, उस समय देवता हो नहीं सकते। अब जरा सोचो कि जब देवताओं और असुरों का मिलन ही नहीं होता तो फिर युद्ध का तो प्रश्न ही नहीं उठता। क्योंकि स्वर्ग और नर्क दोनों इसी दुनिया में होते हैं। स्वर्ग कोई आसमान में नहीं है। आज विज्ञान ने भी अनेक ग्रहों की जानकारी हासिल कर ली लेकिन कहीं भी जीवन नहीं है। पृथ्वी के सिवाय किसी भी अन्य ग्रह पर जीवन के प्रमाण नहीं मिले। तो अब जरा सोचिए ये किस प्रकार के युद्ध का वर्णन है। दोस्तों युद्ध दो प्रकार के होते हैं – एक है भौतिक और दूसरा है मानसिक। मानसिक युद्ध! आप सोचेंगे कि मानसिक युद्ध कैसे हो सकता है। लेकिन आज हर व्यक्ति मानसिक युद्ध ही तो लड़ रहा है। आज के इस कलियुग में मानव मन के अंदर जो पंच विकार काम, क्रोध, लोभ, मोह और अभिमान हैं, यही तो मानव के असली शत्रु हैं। बाहरी किसी भी विवाद अथवा संघर्ष का कारण यही विकार तो हैं। अब आप सोचेंगे रक्षा बंधन से इनका क्या संबंध है? दोस्तों वास्तव में इन्हीं विकारों से तो हमें अपनी रक्षा करनी है। श्रीमद्भागवत गीता में आपने पढ़ा ही होगा कि भगवान कहते हैं – हे अर्जुन! ये काम, क्रोध और लोभ ही आत्म के महाशत्रु हैं, यही तो नर्क का द्वार हैं। अब थोड़ा समझिए कि आज कोई ऐसा मनुष्य होगा, जिसमें पांच विकार नहीं हों। चलो पांच नहीं सही लेकिन दो-तीन विकार तो अवश्य ही होंगे। इससे स्पष्ट है कि विकारों से ग्रस्त मानव स्वर्ग में तो हो ही नहीं सकता। अगर उसे स्वर्ग में जाना है तो इन पांच विकारों पर विजय प्राप्त करनी पड़ेगी। वास्तव में इंद्र एक आत्मा का प्रतीक है। जिसने इन पांच विकारों पर जीत प्राप्त की है। रक्षा बंधन पवित्रता का सूचक है। अर्थात जीवन में बुराइयों से मुक्त होने का दृढ़ संकल्प लेना। ये संकल्प ही धागा है। विष्णु का इंद्राणी को रक्षासूत्र देना पवित्र एवं शुद्ध जीवन अपनाने का प्रतीक है। क्योंकि विष्णु अर्थात पवित्रता। दोस्तों! ये दुनिया सबसे पहले स्वर्ग थी। जहां देवी-देवताओं का निवास था। मानव सम्पूर्ण विकारों से मुक्त था। किसी भी प्रकार का दुख नहीं था। लड़ाई-झगड़ा होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया मानव मन विकृत होने लगा। उसमें विकार भरते चले गए। और कलियुग के अंत में आते-आते विकारों की अति होने के कारण मानव बिल्कुल ही दुखी और अशांत हो गया। ऐसे समय पर परमपिता परमात्मा शिव प्रजापिता ब्रह्मा बाबा के मानवीय तन में अवतरित होते हैं। और मानव को उसके वास्तविक स्वरूप से परिचित करा, राजयोग के अभ्यास से पावन बनाते हैं। रक्षा बंधन वास्तव में परमात्मा द्वारा दिए ज्ञान का ही प्रतीकात्मक स्वरूप है। धागा शुद्ध संकल्प का द्योतक है। आज रक्षा बंधन भाई-बहन का ही त्योहार मात्र इसलिए है क्योंकि भाई-बहन का रिश्ता बहुत पवित्र माना जाता है। रक्षा बंधन का सूत्र बांधने का असली फायदा तभी है जबकि हम मन से बुराइयों को छोड़ने का संकल्प करें। Post navigation CNG ऑटो रिक्शा से मामूली टक्कर लगने पर चालक के साथ मारपीट करके उसकी हत्या के मामले में नाबालिक सहित 02 काबू……… सुलझाई ब्लाइंड मर्डर की गुत्थी। राव इंद्रजीत सिंह की कार्यशैली : सच्चाई, दिखावा या मजबूरी ?