भरतेश गोयल

18 जुलाई को बंगलौर में होने वाली विपक्षी दलों की महाबैठक ने सत्तासीन भाजपा की नींद उड़ा दी है l हड़बड़ाहट में उसी दिन एन डी ए ने भी दिल्ली में अपनी बैठक की घोषणा की है तथा कई छोटे छोटे अप्रासंगिक दलों को भी अपने पाले में लाकर विपक्ष की लकीर के सामने अपनी लम्बी लकीर खींचने की कोशिश की है l जिस प्रकार से विभिन्न प्रदेशों में कड़ी लड़ाई लड़ने वाले वामदल, कांग्रेस व तृणमूल अपनी विचारधारा तथा मतभेद को दरकिनार कर एक मंच पर संगठित होने का प्रयास कर रहे हैं, उसे हाल के पिछले कुछ वर्षों में अभूतपूर्व ही माना जाएगा l

महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश व बिहार में हाल की घटनाओं के संदर्भ में वर्तमान स्थिति का आंकलन किया जाए तो उसने पूरे राजनीतिक गणित को ही उलझा कर रख दिया है l मध्यप्रदेश में पटवारी भर्ती में तथाकथित अनियमितताओं को लेकर प्रदेश का सम्पूर्ण युवा वर्ग जिस प्रकार सड़कों पर उतर चुका है, उसको लेकर सत्तारूड भाजपा की परेशानियां बढ़ना स्वाभाविक है l इस प्रकरण को व्यापम 3 घोटाले की भी संज्ञा दी जा रही है, जिसके भविष्य में काफ़ी व्यापक एवं दूरगामी परिणाम देखने को मिल सकते हैं l

बिहार में कल भाजपा द्वारा अध्यापक भर्ती को लेकर राज्य भर में व्यापक प्रदर्शन किया गया, उसके नेताओं पर लाठीचार्ज भी हुआ, प्रदेश के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी के खिलाफ सी बी आई द्वारा दायर चार्जशीट ने भी प्रदेश का सियासी पारा गर्मा दिया जिसकी वजह से प्रदेश में सत्तासीन महागठबंधन दुविधा की स्थिति में है l

अब बात करें महाराष्ट्र की तो भाजपा के चाणक्य माने जाने वाले नेता दो प्रमुख क्षेत्रीय दलों शिवसेना व एन सी पी को दोफाड़ करने में कामयाब जरूर हो गए लेकिन विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर द्वारा दल बदल क़ानून के तहत शिंदे व अन्य बागी शिवसेना के विधायकों की अयोग्यता को लेकर फैसला आना बाकी है जिस पर सुप्रीम कोर्ट की भी पैनी नजर है l इसके अतिरिक्त उद्धव ठाकरे व शरद पवार जो दोनों ही मराठा क्षत्रप हैं, उन्होंने बड़ी चतुराई से अपनी अपनी पार्टीयों में हुए विघटन को मराठी अस्मिता से जोड़ दिया है, जिसके कारण दोनों के पक्ष में मराठी जनमानस के दिल में उमड़ी सहानुभूति की लहर के मद्देनजर आगामी चुनाव में अत्यंत भोंचक्के करने वाले परिणाम देखने को मिल सकते हैं, ऐसा कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी l

रही बात पंजाब व दिल्ली की जहाँ आप पार्टी का प्रचण्ड बहुमत के साथ सत्तासीन है, पटना में विपक्षी दलों की बैठक में सम्मिलित होने के बावजूद कांग्रेस तथा आप दोनों के ही नेताओं में आपसी समन्वय का पूर्ण अभाव है तथा आए दिन दोनों पार्टिओं के प्रवक्ता विभिन्न न्यूज़ चैनलों पर एक दूसरे पर दोष लगाते दिखाई देते हैं l चुनाव पंडितों की माने तो दोनों ही पार्टिओं की ये रणनीति का हिस्सा हो सकता है क्योंकि औपचारिक रूप से दोनों पार्टियों में कोई सहमति नहीं बन पाना दोनों के लिए ही लाभदायक होगा l यदि ये दोनों पंजाब में मिल कर चुनाव लड़ते हैं तो विपक्ष का पूरा स्थान भाजपा समर्थित अकाली दल को मिलेगा जिसका खामियाजा दोनों दलों को उठाना पड़ सकता है l कमोबेश यही स्थिति दिल्ली में भी है l कांग्रेस एवं आप दोनों का ही इन दोनों प्रदेशों में अपना अपना वोट बैंक है, गठबंधन की स्थिति में दूसरे के पक्ष में अपना वोट बैंक ट्रांसफर करवाना नामुमकिन ही प्रतीत होता है l आप नेता सुशीला कटारिया तथा जमीन से जुड़े अन्य कई आप व कोंग्रेसी नेताओं का भी यही आंकलन है l

यू पी में निसंदेह सपा एक प्रभावशाली विपक्ष है l भारत जोड़ो यात्रा की सफलता के बावजूद सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस को अखिलेश के नेतृत्व में ही अपनी संभावनाएं तलाशनी होगी हालांकि दोबारा से कई प्रदेशों में अपना खोया आधार वापिस प्राप्त कर कांग्रेस पहले से मजबूत हुई है, इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता l छत्तीसगढ़ व राजस्थान में भी फौरी तौर पर अपने आंतरिक कलह को कांग्रेस नेतृत्व दूर करने में कामयाब हुआ है जिससे इन दोनों प्रदेशों में वह और मजबूत होकर निकली है l
हरियाणा की बात करें तो फिलहाल यहाँ की स्थिति अस्पष्ट दिखाई देती है l कांग्रेस व भाजपा दोनों प्रमुख दलों में आंतरिक कलह चरम सीमा पर है l जहाँ एक और सुरजेवाला शैलजा व किरण चौधरी की तिकड़ी हुड्डा के प्रभुत्व को चुनौती देने में लगी हुई है , वहीं भाजपा के पुराने समर्पित नेता एवं कार्यकर्ता में अपनी अनदेखी को लेकर गहन असंतोष है जो कभी भी लावा के रूप में विस्फोटित हो सकता है l सरकार में सहयोगी जजपा के साथ बिगड़ते रिश्ते जग जाहिर हैं l दक्षिणी हरियाणा के कद्दावर नेता राव इंद्रजीत का भाजपा से मोहभंग किसी से छुपा हुआ नहीं है, वो केवल उचित अवसर की प्रतीक्षा कर रहे हैं l राजनैतिक विश्लेषकों की मानें तो अधिक संभावनाएं इस बात की नजर आती हैं कि ठीक चुनाव से पहले जजपा गठबंधन से अलग होकर अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ती नजर आएगी तथा राव इंद्रजीत भी भाजपा से किनारा कर या तो किसी अन्य दल का साथ थामेंगे अन्यथा अपने इंसाफ मंच को सक्रिय कर चुनावी दंगल में अपनी ताल ठोंकते नजर आएँगे l

पक्ष व विपक्ष दोनों ही द्वारा 18 जुलाई को दिल्ली व बंगलौर में बुलाई गई बैठक निश्चित रूप से काफ़ी दिलचस्प व रोचक होगी l यदि कांग्रेस अन्य प्रमुख विपक्षी दलों को संगठित कर मल्लिकार्जुन खरगे को संयुक्त विपक्ष का प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित करवाने में कामयाब हो जाती है तो यह कदम सम्पूर्ण विपक्ष के लिए ब्रह्मास्त्र का कार्य कर सकता है जिसके देश की राजनीती में दूरगामी व अभूतपूर्व परिणाम देखने को मिल सकते हैं l उल्लेखनीय है कि आजाद भारत के सम्पूर्ण इतिहास में अभी तक किसी भी प्रमुख दल ने किसी दलित नेता को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनाया l यह अपने आप में एक मिसाल होगी तो इंतजार कीजिये 18 जुलाई का ज़ब कुछ हद तक स्थितियां स्पष्ट हो जाएंगी…..

error: Content is protected !!