हरियाणा सरकार खुद पीपीपी के नाम पर राईट टू एजूकेशन एक्ट की अवेहलना कर रही है तो कानून, संविधान की परिपालना कौन करेगा?  विद्रोही
परिवार पहचान पत्र वास्तव में परिवार परेशान पत्र बनकर कर गया है। परिवार पहचान पत्र त्रुटिया दूर करने के हरियाणा भाजपा सरकार के सभी दावे हवा-हवाई जुमले है। विद्रोही

13 जुलाई 2023 – स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष एवं हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता वेदप्रकाश विद्रोही ने आरोप लगाया कि परिवार पहचान पत्र वास्तव में परिवार परेशान पत्र बनकर कर गया है। परिवार पहचान पत्र त्रुटिया दूर करने के हरियाणा भाजपा सरकार के सभी दावे हवा-हवाई जुमले है। विद्रोही ने आरोप लगाया कि अब तो हालत यह हो गई है कि लोग इतने तंग आ चुके है कि सरकार द्वारा पीपीपी त्रुटिया दूर करने के लिए लगाये जाने वाले कैम्पों में लोग जाने से कतरा रहे है क्योंकि वे जानते है कि जाने से कुछ नही होने वाला। केवल चक्कर काटकर अपना समय बर्बाद करना है। हरियाणा मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने एक भाजपा नेता को रोजगार देने प्रदेश स्तर पर पीपीपी का कोर्डिनेटर भी नियुक्त किया है, पर क्या अफसरशाही इस कोर्डिनेटर महोदय को भाव देकर परिवार पहचान पत्र त्रुटिया को दूर करेगी, जमीनी धरातल पर यह दिखता नही। 

विद्रोही ने कहा कि पीपीपी की त्रुटियों के चलते स्कूलों, कालेजों, विश्वविद्यालयों, तकनीकी संस्थानों में छात्रों को प्रवेश लेने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि शिक्षण संस्थानों की सीटे खाली है, पर पीपीपी की अनिवार्यता के चलते प्रवेश लेने वाले छात्र नदारद है। शिक्षण संस्थानों में पीपीपी की अनिवार्यता कांग्रेस-यूपीए सरकार में पारित शिक्षा के अधिकार के विरूद्ध है। राईट टू एजूकेशन के रहते कोई भी शिक्षण संस्थान पीपीपी अनिवार्यता के नाम पर किसी छात्र को स्कूल, कालेज सहित विभिन्न शिक्षण संस्थानों में प्रवेश देने से कैसे रोक सकते है? मनचाही शिक्षा प्राप्त करना हर छात्र का संवैद्यानिक अधिकार है और यदि किसी छात्र के पास शिक्षण संस्थानों द्वारा निर्धारित मापदंड अनुसार योग्यता है तो पीपीपी अनिवार्यता के नाम पर उसको प्रवेश से वंचित करना गैरसंवैद्यानिक व राईट टू एजूकेशन एक्ट की अवेहलना ही नही अपितु दंडनीय अपराध भी है। जब हरियाणा सरकार खुद पीपीपी के नाम पर राईट टू एजूकेशन एक्ट की अवेहलना कर रही है तो कानून, संविधान की परिपालना कौन करेगा? 

विद्रोही ने कहा कि पीपीपी की अनिवार्यता का सबसे अधिक नुकसान हरियाणा में रोजी-रोटी की तलाश में आये प्रवासी मजदूरों, कामगारों के बच्चों पर पड़ रहा है। इनके बच्चों को पीपीपी अनिवार्यता के कारण सरकारी स्कूलों में प्रवेश से वंचित करना राईट टू एजूकेशन कानून का उल्लघंन व शिक्षो लेने के उनके अधिकार को छीनना है जो गैरसंवैद्यानिक है। विद्रोही ने मांग की कि सरकारी स्कूलों में प्रवासी मजदूरों, कामगारों के बच्चों के लिए प्रवेश लेने खातिर पीपीपी की अनिवार्यता को तत्काल समाप्त किया जाये व पीपीपी त्रुटियों के कारण हरियाणा के किसी भी छात्र को प्रवेश देने से न रोका जाये और सभी छात्रों को उनकी योग्यता व परीक्षा के अंकों के आधार पर स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालयों, तकनीकी संस्थानों व सरकारी शिक्षण संस्थानों में पहले ही तरह प्रवेश लेने की प्रक्रिया जारी रखी जाये। 

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