कांग्रेस ने शुरू की किलेबंदी, भाजपा से पहले नेताओं की ताकत परखने मैदान में उतरे बाबरिया, तय करेंगे चेहरे
हरियाणा कांग्रेस को फिर ले डूबेगी गुटबाजी? 2019 में इसी वजह से मिली थी हार

अशोक कुमार कौशिक 

हरियाणा में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को लेकर बीजेपी और कांग्रेस एक्टिव मोड में आ गई है. हरियाणा में बीजेपी को पटखनी देने की तैयारी कांग्रेस ने जोर-शोर से शुरू कर दी है. एक तरफ जहां बीजेपी का ध्यान पूरे जून महीने में रैलियां पर है. दूसरी तरफ कांग्रेस ने लोकसभा सीटों पर किलेबंदी शुरू कर दी है. कांग्रेस सभी लोकसभा सीटों पर नेताओं और कार्यकत्ताओं का फीडबैक लेने में लगी हुई है. हरियाणा में सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है क्या नए प्रभारी कांग्रेस की गुटबाजी को समाप्त करने में सफल होंगे?

हरियाणा में बीजेपी लोकसभा चुनाव की तैयारी को लेकर एक्टिव मोड में है. 2024 में हरियाणा में विधानसभा चुनाव भी होने हैं, लेकिन उससे पहले बीजेपी लोकसभा चुनावों पर ज्यादा फोकस कर रही है. इस वजह से अब बीजेपी के सांसदों की टिकटों को लेकर मंथन शुरू हो गया है. बीजेपी ने एक बार फिर दसों लोकसभा सीटों पर जीत का लक्ष्य रखा है. बीजेपी फिर से ‘जिताऊ’ उम्मीदवारों पर ही दांव खेलना चाहती है. इसलिए केंद्रीय नेतृत्व सभी सीटों पर सर्वे करवाने में जुटा है. 

2 सासंदों का कट सकता है टिकट

सभी लोकसभा सीटों पर पार्टी के नेताओं और कार्यकर्त्ताओं से बातचीत के आधार पर रिपोर्ट कार्ड तैयार किया जा रहा है. पार्टी के तरफ से सांसदों की स्कैनिंग शुरू कर दी गई है. जिन सांसदों का फीडबैक खराब आ रहा है उनके टिकट कटना तय है. हरियाणा सरकार के कुछ मंत्रियों को भी समीकरण के प्रभाव को देखते हुए चुनाव मैदान में उतारा जा सकता है. 

इन सासंदों का कट सकता है टिकट

हरियाणा में दो सांसदों का टिकट कटने की संभावना जताई जा रही है. उसमें से पहला नाम है रोहतक से सांसद डॉ. अरविंद शर्मा और हिसार के सासंद बृजेंद्र सिंह. अरविंद शर्मा का मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के साथ 36 का आंकड़ा है. वहीं केंद्र में अरविंद शर्मा को मंत्री पद मिलने की उम्मीद थी, लेकिन सरकार उन्हें कहीं एडजस्ट नहीं कर पाई. सासंद बृजेंद्र सिंह की बात करें तो वो अक्सर सरकार की नीतियों के खिलाफ खुलकर बोलते नजर आते हैं. जिसकी वजह से चर्चाएं चल रही है कि बीजेपी हिसार से किसी नए चेहरे को तलाश रही है.

पिछले चुनावों में दसों सीटों पर जीती थी बीजेपी

पिछले लोकसभा चुनावों में बीजेपी सभी दसों लोकसभा सीटों पर जीती थी. सिरसा रैली में अमित शाह ने फिर मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को सभी सीटों पर जीतने दर्ज करने का टास्क दिया है. यहीं वजह है कि बीजेपी रतनलाल कटारिया के निधन के बाद खाली हुई अंबाला सीट पर भी उपचुनाव करवाने के मूड में नहीं है. इसलिए अंबाला सीट की बजाय बीजेपी अब सभी लोकसभा सीटों पर पूरे दमखम के साथ तैयारी में जुटी है.

लोकसभा क्षेत्रों का करेंगे दौरा बाबरिया 

हरियाणा कांग्रेस प्रभारी दीपक बाबरिया जुलाई महीने में हरियाणा के लोकसभा क्षेत्रों में दौरा करने वाले है. सबसे पहले दिल्ली से सटे फरीदाबाद, गुरुग्राम, सोनीपत, रोहतक, भिवानी लोकसभा सीटों का कांग्रेस प्रभारी दीपक बाबरिया दौरा करने वाले है. इस दौरान वो उस लोकसभा क्षेत्र के नेताओं, कार्यकत्ताओं चुनावों को लेकर राय लेने वाले है. जिसके बाद चंडीगढ़ या दिल्ली में प्रभारी दीपक बाबरिया राज्य स्तरीय अभियान चलाने का फैसला ले सकते है. 

सभी 10 सीटों पर कांग्रेस का फोकस

कांग्रेस का सभी 10 लोकसभा सीटों पर फोकस पर है. हर लोकसभा क्षेत्र की अलग रणनीति तैयार की जाएगी. किस लोकसभा सीट पर किस नेता का दबदबा है यह जानकारी जुटाई जाएगी. पार्टी की तरफ से पहले ही सभी लोकसभा और विधानसभा सीटों पर सर्वे कराने का फैसला ले लिया गया है लेकिन प्रभारी दीपक बाबरिया सभी लोकसभा सीटों को लेकर सलाह मशविरा करने वाले है. जिसके बाद पार्टी आगे की रणनीति बनाएगी. 

जल्द बनाया जा सकता है संगठन

हरियाणा कांग्रेस का संगठन भी जल्द ही बनाया जा सकता है. ग्राउंड लेवल पर हर नेता का जनाधार जानने के बाद ही संगठन की सूची में उस नेता नाम फाइल किया जाएगा. क्योंकि पार्टी प्रभारी दीपक बाबरिया पूरी मजबूती से पार्टी के सामने संगठन की सूची रखने वाले है. ताकि पार्टी को भी पता चल सके किस नेता ने कितना काम किया है किसी के कहने से उसे संगठन में जगह नहीं दी गई है.

चंडीगढ़ के बाद अब होगा दूसरा मंथन

24 और 25 जून को हरियाणा कांग्रेस प्रभारी दीपक बाबरिया कांग्रेस के नेताओं की बैठक लेकर मंथन कर चुके है. अब दूसरा मंथन लोकसभा क्षेत्रों में नेताओं से मुलाकात के बाद होगा. कांग्रेस हरियाणा में स्कूलों को मर्ज करने या बंद करने का मुद्दा उठाने की तैयारी में है. 

हरियाणा कांग्रेस में चार गुट

हरियाणा कांग्रेस में चार गुट हैं, जिनकी चर्चा हर चुनाव से पहले होती है। एक गुट है पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का, एक गुट है पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा का, एक गुट है पूर्व सीएलपी लीडर किरण चौधरी का और एक गुट है कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सुरजेवाला का. समय-समय पर इन गुटों में कलह देखने को मिली है.

किरण चौधरी और उदयभान में विवाद, हुड्डा ने अब दिया जवाब

कांग्रेस ने पिछले साल उदयभान को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी थी। इसके बाद आदमपुर सीट पर उपचुनाव हुआ और पार्टी को हार मिली. नतीजे से नाखुश किरण चौधरी ने प्रदेश अध्यक्ष उदयभान पर गंभीर आरोप लगाए. किरण चौधरी ने कहा कि वह (उदयभान) उनको मौका नहीं देते हैं और न ही सम्मान के साथ बात करते हैं

 इससे पहले, उदयभान ने कहा था कि वह किसी हैसियत में नहीं कि चुनाव को लेकर चर्चा की जाए. इस पर किरण चौधरी ने कहा कि वह पांच बार विधायक रह चुकी हैं और वह मुझे नजरअंदाज करते हैं.

इसी मामले को लेकर अब भूपेंद्र हुड्डा ने इतने दिनों बाद अपनी भड़ास निकाली. हुड्डा ने किरण चौधरी के सामन कहा, “जो लोग चौधरी उदयभान को प्रदेश अध्यक्ष मानने से इन्कार करते हैं, वह किस मुंह से अनुशासन की बात कर रहे हैं. उदयभान को कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. ऐसे में उनके खिलाफ होने वाली टिप्पणियों को भी अनुशासनहीनता माना जाना चाहिए.” हुड्डा ने ये भी कहा कि बार-बार पार्टी को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियां और बयानबाजी करने वालों को अपने भीतर झांकना चाहिए.

यही गुटबाजी कांग्रेस को ले डूबी

कांग्रेस को इसी गुटबाजी की वजह से 2019 के चुनावों में हार मिली थी. ये बात हम नहीं कह रहे बल्कि खुद भूपेंद्र हुड्डा ने स्वीकार की है. दीपक बाबरिया के साथ हुई बैठक में हुड्डा ने बताया कि 2019 में ही कांग्रेस की सरकार बनना तय था लेकिन हमारे स्तर पर ही गलती हुई, जिसका आकलन जरूरी है. हुड्डा ने बातों ही बातों में टिकट बंटवारे की तरफ प्रभारी का ध्यान खींचा. 90 में से 40 टिकट हुड्डा विरोधी खेमों को मिली थी. हुड्डा का कहना था कि हमें यह देखना होगा कि इनमें से कितने जीते. अगर टिकट वितरण सही होता तो कांग्रेस की सरकार राज्य में बनी होती. हुड्डा ने रणदीप सुरजेवाला का नाम लिए बिना कहा कि कुछ नेताओं को कांग्रेस का कुनबा बढ़ने से दिक्कत है.

गुटबाजी के चलते नहीं बना संगठन

नौ साल से ज्यादा का समय हो चुका है और कांग्रेस पार्टी सिर्फ अध्यक्ष के भरोसे चल रही है. 2009 से 2014 तक भूपेंद्र हुड्डा हरियाणा के सीएम रहे, लेकिन इस दौरान भी वह हरियाणा में कांग्रेस का संगठन नहीं खड़ा कर पाए. तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर और कुमारी सैलजा के बीच मनमुटाव के चलते संगठन नहीं खड़ा हो पाया. इसके बाद प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी और कांग्रेस पार्टी में अलग-अलग ग्रुप होने के चलते संगठन नहीं बन सका. कांग्रेस के चार गुट सिर्फ एक-दूसरे की टांग खींचने में ही व्यस्त रहे.

हुड्डा के वादों पर भी सियासत

भूपेंद्र सिंह हुड्डा इन दिनों जगह-जगह रैलियां कर रहे हैं और जनता से वादे भी कर रहे हैं. भूपेंद्र हुड्डा के बेटे व राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने भी दीपक बाबरिया के सामने संकल्प पत्र पेश किया. जिसमें कई घोषणाएं की गईं. इन घोषणाओं पर कुमारी सैलजा ने एतराज जताया. सैलजा ने कहा कि यह संकल्प पत्र कांग्रेस का नहीं है, कांग्रेस का घोषणा पत्र कांग्रेस मेनिफेस्टो कमेटी बनाती है. सुरजेवाला ने भी इसपर आपत्ति जताई.

इसके बाद, हुड्डा ने कहा कि तमाम घोषणाएं बाकायदा संगठन में सहमति, उनके बजट व क्रियान्वयन का आकलन करने के बाद की जा रही हैं. उन्होंने कहा कि अगर राजस्थान की कांग्रेस सरकार 500 रुपये में गैस सिलेंडर दे सकती है, तो हरियाणा सरकार क्यों नहीं देगी . अगर कांग्रेस की बाकी सरकारें कर्मचारियों को ओल्ड पेंशन स्कीम का लाभ दे सकती हैं तो हरियाणा के कर्मचारियों को पेंशन देने की घोषणा का विरोध कहां तक उचित है.

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