विपक्षी एकता हुई तो कांग्रेस 10 राज्यों में बन जाएगी दोयम दर्जे की पार्टी कांग्रेस के हिस्से आएंगे ज्यादातर छोटे राज्य कांग्रेस को अपने हितों से समझौता नहीं करना चाहिए अशोक कुमार कौशिक देश की आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस 9 साल से अधिक समय से सत्ता में नहीं है. सत्ता में वापसी करने के लिए कांग्रेस विपक्षी एकता का हिस्सा बनने के लिए हर तरह के सियासी समझौते करने के लिए तैयार है. खासकर सीटों को बटवारे को लेकर बेहद नरम रवैया अपनाए हुए है. इसको लेकर एबीपी लाइव ने जब राज्यवार लोकसभा सीटों को लेकर छानबीन की तो चौंकाने वाले नतीजे सामने आ रहे हैं. विपक्षी एकता के लिए कांग्रेस के हाथ से देश के 10 बड़े राज्य निकल सकते हैं, जहां कांग्रेस की स्थिति भविष्य में दोयम दर्जे वाली बन जाएगी. हालांकि अभी भी इन राज्यों में कांग्रेस की सरकार नहीं है. इनमें से दिल्ली, पंजाब और केरल ऐसे तीन राज्य हैं जहां आम आदमी पार्टी व वाम दलों से लेकर कांग्रेस से सीटों को बंटवारा करना आसान नहीं होगा. इन राज्यों में संभवत कांग्रेस अकेले ही चुनाव में जाए. विपक्षी एकता हुई तो कांग्रेस 10 राज्यों में बन जाएगी दोयम दर्जे की पार्टी उत्तर प्रदेश की 80 सीटों पर सपा व आरएलडी, बिहार की 40 सीटों पर जेडीयू व आरजेडी, महाराष्ट्र की 48 सीट पर शिवसेना (ठाकरे) व एनसीपी, पश्चिम बंगाल की 42 सीटों पर तृणमूल कांग्रेस, तमिलनाडु की 39 सीटों पर डीएमके, केरल की 20 सीटों पर सीपीआई (एम), जम्मू कश्मीर की 6 सीटों पर पीडीपी व नेशनल कॉन्फ्रेंस, झारखंड की 14 सीटों पर झारखंड मुक्ति मोर्चा, पंजाब की 13 और दिल्ली की 7 सीटों पर आम आदमी पार्टी की ओर से ज्यादातर सीटों पर दावेदार की जाएगी. जिससे कांग्रेस की स्थिति दोयम दर्जे वाली हो जाएगी. इन राज्यों में लोकसभा की 309 सीट हैं. पंजाब-दिल्ली पर संशय विपक्षी एकता को लेकर अभी भी संशय की स्थिति बनी हुई है. शुक्रवार को केजरीवाल नाराज होकर पटना से चले गए. ऐसी स्थिति में बहुत कम संभावना है कि पंजाब और दिल्ली में आम आदमी पार्टी किसी भी सूरत में कांग्रेस से किसी तरह का समझौता कर पाए. कांग्रेस के स्थानीय नेता भी आम आदमी पार्टी से समझौता करना नहीं चाहते. पंजाब में लोकसभा की 13 और दिल्ली में 7 सीटे हैं. आप को इन दोनों राज्यों से बेहद ज्यादा उम्मीद है. इतना ही नहीं, बल्कि पंजाब और दिल्ली के बीच में हरियाणा है. यहां भी आम आदमी पार्टी जोर-शोर से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. कांग्रेस के हिस्से आएंगे ज्यादातर छोटे राज्य अरुणाचल प्रदेश की 2, असम की 14, आंध्र प्रदेश की 25, तेलंगाना 17, चंडीगढ़ की 1, छत्तीसगढ़ की 11, दादर एंड नगर हवेली की 1, दमन एंड दीयू की 1, गोवा की 2, गुजरात की 26, हरियाणा की 10, हिमाचल की 4, कर्नाटक की 28, लक्षद्वीप की 1, मध्य प्रदेश की 29, मणिपुर की 2,मेघालय की 2, मिजोरम की 1, नागालैंड की 1, उड़ीसा की 21, पांडिचेरी की 1, राजस्थान की 25, सिक्किम की 1, त्रिपुरा की 2, उत्तराखंड की 5 सीटों पर कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ पाएगी. इन राज्यों में लोकसभा की 233 सीटें है. विपक्षी एकता के बीच यह भी उठ रहे सवाल – राहुल गांधी को कोर्ट से राहत न मिली तो कांग्रेस का प्रधानमंत्री उम्मीदवार कौन?– उत्तर प्रदेश गांधी नेहरू परिवार का गढ़ रहा. क्या सपा के साथ समझौता करने के लिए तैयार है?– विपक्षी एकता करने के लिए कांग्रेस राज्यसभा में अध्यादेश के खिलाफ केजरीवाल का साथ देगी?– शिमला में विपक्षी एकता की बैठक आयोजित कर क्या संदेश देने की कोशिश हो रही है?– क्या हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला को कांग्रेस अपना लकी चार्म मानती है? विपक्षी एकता के पहले ही टूट फूट वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह के अनुसार, कांग्रेस का सियासी समझौता सबसे अधिक यूपी और पश्चिम बंगाल में उलझा हुआ है. विपक्षी एकता के पहले ही टूट फूट शुरू हो गई थी. तेलंगाना से केसीआर को नहीं बुलाया गया. विपक्ष के प्रेस कॉन्फ्रेंस के पहले ही दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल पटना से रवाना हो गए. इससे साफ यह है कि आने वाले दिनों में विपक्ष के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर टकराव और बढ़ने की संभावना है. बाद में यही होगा कि कांग्रेस का जिन दलों के साथ समझौता चल रहा था, उतनी ही सीटों पर समझौता होगा. कांग्रेस को अपने हितों से समझौता नहीं करना चाहिए कांग्रेस को करीब से जानने वाले पत्रकार रशीद किदवई का कहना है कि विपक्षी एकता के कारण कांग्रेस को कई राज्यों में काफी नुकसान हो सकता है. कांग्रेस को विपक्षी एकता कायम रखने के साथ ही साथ अपने हितों को भी ध्यान में रखना चाहिए, जिससे क्षेत्रीय दल उस पर भारी न पड़ जाएं. कांग्रेस करे विपक्षी एकता का लीडरशीप प्रियंका गांधी के सलाहकार आचार्य प्रमोद कृष्णम का कहना है कि कांग्रेस को विपक्षी एकता का लीडरशीप करना चाहिए. कांग्रेस ही एक ऐसी पार्टी है, जो केंद्र की मोदी सरकार को हरा सकती है. इसके लिए जरूरी है कि विपक्षी दलों को सबसे पहले आपस में दिल मिलाए. एजेंडा तय करें, उसके बाद आगे बढ़े. ऐसा न हो कि कांग्रेस को कमजोर करने के लिए यह एकता बनाई जाए, जो भविष्य में कांग्रेस को नुकसान पहुंचाए. Post navigation चार गुणा की जिद्द छोड़ सीईटी पास सभी को दें मौका : कुमारी सैलजा कांग्रेस हाईकमान के पास अटकी लिस्ट, आरक्षण लागू हुआ तो फिर से किया जाएगा मंथन