आबादी करीब 13 लाख, पेड़-पौधों की संख्या 22 लाख, एक व्यक्ति के दो पेड़ भी हिस्से में नहीं
वन विभाग द्वारा प्रतिवर्ष लगाए गए पौधों की संख्या और जीवित पौधों की संख्या का कोई विश्लेषण नहीं
वन विभाग ने परंपरागत देसी पौधों की बजाय विदेशी पौधों लगा खड़ी कर दी समस्या
वन राजिक अधिकारी का रवैया मनमाना

भारत सारथी/ कौशिक

नारनौल। जिला महेंद्रगढ़ में आबादी के अनुपात में पेड़-पौधों की संख्या बेहद कम है। वन विभाग की गणना तो यही कहती है। यदि एक व्यक्ति के हिस्से में दो पेड़-पौधे डाल दिए जाएं तो आबादी के अनुरूप पेड़-पौधों की संख्या लगभग 26 लाख से ऊपर होनी चाहिए, लेकिन संख्या महज 22 लाख ही है। यह स्थिति तब है जब वन विभाग द्वारा प्रतिवर्ष लाखों वृक्ष लगाने का दावा किया जाता है। ऐसे में बढ़ते प्रदूषण के दौर में शुद्ध ऑक्सीजन की पूर्ति कैसे होगी, यही यक्ष प्रश्न उभरता जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि शुद्ध वायु मंडल के निर्माण में प्राकृतिक संसाधनों का बड़ा अहम योगदान है और शुद्ध ऑक्सीजन के लिए पेड़-पौधों को तो वरदान माना गया है, लेकिन जिला महेंद्रगढ़ में आबादी की तुलना में पेड़-पौधों की स्थिति काफी सुदृढ़ नहीं है। एक तरफ जहां कंकरीट से बने भवनों का जाल फैल रहा है, वहीं पेड़-पौधों के रूप में हरियाली दिनों दिन घटती जा रही है। यह हाल तब है, कोरोना जैसी महामारी सबको डरा एवं चौंकान्ने के साथ ही सतर्क होने का संदेश भी दे चुकी है। कोरोना महामारी में सबसे ज्यादा मरने वालों की संख्या शुद्ध ऑक्सीजन की कमी के कारण हुई थी। तब ऑक्सीजन के सिलेंडरों की मारामारी इतनी अधिक थी कि एक-एक सिलेंडर ब्लेक में बिकते थे और धनाढ्य लोगों को भी जरूरत के हिसाब से ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं मिल पा रहे थे।

उसके बाद भी लोगों ने कोई सबक नहीं नहीं लिया तथा पेड़-पौधों के प्रति अब भी वह सजगता नहीं दिखा रहे, जिसकी आवश्यकता है। जबकि पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक शुद्ध ऑक्सीजन के लिए सबसे बेहतरीन विकल्प पेड़-पौधे ही हैं, जो मुफ्त में प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के ऑक्सीजन की पूर्ति करते रहते हैं, लेकिन फिर भी आम आदमी पेड़-पौधों को लगाने में रुचि नहीं दिखा रहे। आम जनता को छोटे फलदार व फूलदार पौधे वितरित किए जाते हैं। जी ने लंबे समय तक संरक्षण की जरूरत होती है। यहां यह भी देखने को मिला है कि वन विभाग बड़े और विकसित पौधे स्वयं या पंचायत स्तर पर लगाने का प्रयास करता है।

वन विभाग राजनेताओं अधिकारियों के द्वारा वृक्षारोपण करवाकर वाहीवाही लूटता है लेकिन इसके संरक्षण पर कोई ध्यान नहीं देता। वन विभाग की ओर से लगाए जाने वाले प्रतिवर्ष के पौधों को आंकड़ों को देखा जाए और उनकी गिनती आज की जाए धरातल में पर लगे पनप रहे पौधे मुश्किल से कुछ सैकड़ों में ही मिल पाएंगे। बड़े और विकसित पौधे उन पर्यावरण प्रेमियों को नहीं दिए जाते जो गांवों में लगाकर इनका संरक्षण करते हैं। वृक्षारोपण कर संरक्षण करने वाले एक पर्यावरण प्रेमी ने बताया कि स्वयं वन राजिक अधिकारी रजनीश का रवैया मनमाना है। कुछ वर्ष पहले बड़े और विकसित होते एक निश्चित धनराशि पर आम जनता के लिए उपलब्ध कराए जाते थे इसे अब समाप्त कर दिया गया।

कम हैं पेड़-पौधे

हालांकि वर्ष 2011 के बाद से देश में जनगणना नहीं हुई है, लेकिन तब की तुलना में अनुमान है कि अब जिला महेंद्रगढ़ की जनसंख्या करीब 13-14 लाख होगी। तब यह संख्या 922088 थी। जबकि वन विभाग की हालिया गणना के अनुसार जिला महेंद्रगढ़ में पेड़-पौधों की संख्या 22,87,733 है। जबकि एक व्यक्ति के हिस्से में दो पेड़-पौधे डाल दिए जाएं तो इनकी संख्या 26-27 लाख होनी चाहिए थी, लेकिन यह संख्या लगभग चार लाख पेड़-पौधे कम है। जबकि पर्यावरण प्रदूषण बढ़ रहा है तथा पर्यावरण सूचकांक प्रतिदिन खतरनाक स्थिति बताता रहा है।

जिले में हैं तीन रेंज

नारनौल जिला मुख्यालय होने के बावजूद वन विभाग का जिला स्तरीय कार्यालय महेंद्रगढ़ में खोला गया है। इस जिला में वन विभाग ने तीन रेंज बनाई हुई हैं, जिनमें महेंद्रगढ़, नारनौल एवं नांगल चौधरी शामिल हैं। महेंद्रगढ़ रेंज में पेड़-पौधों की संख्या 1301778 है, जबकि नारनौल में 700938 है तथा नांगल चौधरी में सबसे कम केवल 285017 है। कुल मिलाकर जिला में पेड़-पौधों की संख्या 2287733 ही है। जिले में सरकारी नर्सरियों की संख्या भी कम कर दी गई।

नहीं बढ़ रहा वन क्षेत्रफल का रकबा

जिला महेंद्रगढ़ में वन क्षेत्र का रकबा कई दशकों से नहीं बढ़ा है। जिला महेंद्रगढ़ में वन आरक्षित क्षेत्र बेहद सीमित है। इसका मूल कारण वन विभाग द्वारा पेड़-पौधों के लिए जमीन नहीं खरीद पाना है। क्योंकि जमीने महंगी हो चुकी हैं तथा कोई पंचायत अब वन क्षेत्र के लिए मुफ्त जमीन देने को तैयार नहीं होती। इसके पीछे एक अहम कारण यह भी है कि विदेशी बबूल टोटलस प्रजाति लगाई गई। पंचायतों की जमीन पर अब इन्हीं पेड़ों की भरमार है। हालांकि जब प्रदेश के वन विभाग के मंत्री किरण चौधरी एवं कैप्टन अजय सिंह यादव थे, तब जिला के कई गांवों में हर्बल पार्क तैयार किए गए थे, लेकिन एक दशक से जिला में एक भी हर्बल पार्क तैयार नहीं किया गया है, जबकि पेड़-पौधों पर रोजाना ऑरी चल रही है। यदि हरियाली घटती रही और कंकरीट के जंगल फैलते रहे तो आने वाले समय की भयावह तस्वीर से भावी पीढ़ी को कौन कैसे बचाएगा, यह रामभरोसे ही नजर आता है।

विदेशी पौधे बने अब जंजाल

वन विभाग की समय-समय पर गलत नीति के चलते देसी परंपरागत पौधों के बजाय विदेशी मरुस्थलीय पौधों के जंगल तैयार कर दिए। अब यह विदेशी पौधे जनता और सरकार के लिए समस्या बनते जा रहे हैं। विदेशी पौधों में सबसे ज्यादा टोटलस तथा विलायती कीकर है। यह तेजी से फैल रही है और उपजाऊ भूमि को खराब कर बंजर बनाती जा रही है। इनकी लकड़ी जलाने के अलावा ओर कोई काम की नहीं। इसके साथ वन विभाग ने ऐलनथस विलायती नीम के पेड़ भी लगाए। दक्षिण हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले में विदेशी पेड़ों के कारण पर्यावरण में सुधार होना तो दूर की बात उल्टा इसके विपरीत परिणाम देखने को मिल रहे हैं। वन विभाग की समय-समय पर गलत नीतियों के चलते ऐसे पेड़ लगाए जाते हैं जो खुली जमीन के लिए उपयुक्त नहीं है इससे पहले दलदली पौधा सफेदा युकेलिप्टस लगायें गए थे । देसी और स्थानीय प्रजाति खेजड़ी (जांटी), देसी कीकर, बबूल, फ्रांस, जाल अन्य मरुस्थलीय पौधे जो पर्यावरण के लिए भी अनुकूल थे और जिनकी लकड़ी भी इमारती काम में काम आती थी को अनदेखा किया गया।

हरियाली बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा

वन राजिक अधिकारी रजनीश यादव ने बताया कि हर साल पेड़-पौधे लगाकर हरियाली को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है। इस बार भी लगभग पांच लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया है। इसमें स्कूली बच्चों एवं ग्राम पंचायतों का सहयोग लिया जाएगा, लेकिन शुद्ध वातावरण की कल्पना तब तक साकार नहीं होगी, जब तक प्रत्येक व्यक्ति अपने हिस्से का रोल अदा नहीं करेगा। प्रत्येक व्यक्ति को हर साल कम से कम दो पौधे लगाने चाहिए।

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