आखिर क्यों बिखर रहा एनडीए का कुनबा?
कॉमन मिनिमम प्रोग्राम व अन्य मुद्दों में भी सहयोगी दलों को तरजीह नहीं
उचाना सीट को लेकर उपजा विवाद, रामकरण काला के इस्तीफे पर पहुंचा
दोनों पार्टियां खुद को मजबूत कर रही है, लोकसभा चुनाव में गठबंधन पर फैसला होगा, तो बताएंगे: धनखड़

अशोक कुमार कौशिक

तामिलनाडु में एआईएडीएमके से रिश्ते में तनाव के बीच हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेजेपी से भी बीजेपी की ठन गई है. एआईएडीएमके की तरह ही जेजेपी ने भी गठबंधन तोड़ने की धमकी दी है.सियासी गलियारों में जल्द जेजेपी और बीजेपी की राह जुदा होने की बात भी कही जा रही है. बीजेपी प्रभारी बिप्लव देव ने खुद की बदौलत सरकार चलाने का दावा भी कर दिया है. हालांकि आज बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने कुछ मलहम लगाने की कोशिश की है. उधर इससे उल्टा शाहबाद के विधायक रामकरण काला ने चेयरमैनशिप से इस्तीफा दे दिया.

2019 विधानसभा चुनाव के बाद जेजेपी और बीजेपी के बीच गठबंधन हुआ था. हाल में नई संसद के उद्घाटन में जब एनडीए की ओर से एक पत्र जारी किया गया था, तो उसमें जेपी नड्डा के साथ दुष्यंत चौटाला ने भी हस्ताक्षर किए थे.

बीजेपी-जेजेपी का गठबंधन अगर टूटता है तो हरियाणा की सियासत में मनोहर लाल खट्टर सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. इतना ही नहीं पिछले 4 साल में जेजेपी नौंवी राजनीतिक पार्टियां होंगी, जो एनडीए गठबंधन से बाहर जाएगी. 2019 के बाद एनडीए के कई नए और पुराने सहयोगी बीजेपी का साथ छोड़ चुके हैं. इनमें शिवसेना, जेडीयू और शिरोमणि अकाली जैसे प्रमुख दल भी है. केंद्र में सरकार होने और विपक्षी एकता की कवायद के बीच एनडीए का बिखराव ने कई गुत्थियों को उलझा दिया है.

हरियाणा का सियासी विवाद क्या है?

2014 में मोदी लहर में अपने दम पर सरकार बनाने वाली भाजपा 2019 के विधानसभा चुनाव में हरियाणा की 90 सीटों में बीजेपी 70 पार का नारा दिया था. पर जनता ने उसको 40 पर ही समेट दिया. कांग्रेस को 31, जेजेपी को 10, इनेलो-एचएलपी को 1-1 और निर्दलीय को 7 सीटों पर जीत मिली. बीजेपी 46 के जादुई आंकड़े से काफी पीछे रह गई. ऐसे में बीजेपी ने जेजेपी से गठबंधन किया.

सरकार में जेजेपी को भी भागीदारी दी गई, लेकिन पिछले कुछ महीनों से दोनों के बीच कुछ मुद्दों और सीटों को लेकर विवाद शुरू हो गया है. 2 महीने पहले जेजेपी की पेंशन वाली मांग को हरियाणा के मुख्यमंत्री ने खारिज कर दिया था.

हाल ही में बीजेपी के राज्य प्रभारी बिप्लव देव ने जींद की उचाना कलां सीट पर 2024 में बीजेपी कैंडिडेट उतारने की बात कही थी. उचाना कलां से 2019 में डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने बीजेपी की प्रेमलता सिंह को 47 हजार वोटों से हराया था.

जेजेपी ने साफ कर दिया है कि सीटों पर कोई समझौता नहीं होगा और बीजेपी ज्यादा बयानबाजी करेगी तो गठबंधन पर फैसला किया जा सकता है.

उचाना कलां पर बीजेपी के दावे के बाद जेजेपी भी हमलावर है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सारा खेल लोकसभा चुनाव की सीटों को लेकर है. 2019 में बीजेपी हरियाणा की 10 सीटों पर अकेले जीत दर्ज की थी.

लोकसभा में बीजेपी-जेजेपी का गठबंधन रहा तो जेजेपी 3 सीट से कम पर शायद ही लड़ने को राजी हो. ऐसे में बीजेपी को अपने 3 सांसद खोने पड़ सकते हैं.

आज बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ओपी धनखड़ का बयान आया है जिसमें उन्होंने कहा है कि दोनों पार्टियां खुद को मजबूत कर रही है. बीजेपी अपनी पार्टी के कार्यों में लगी हुई है और जेजेपी भी अपने काम कर रही है. आगामी लोकसभा चुनाव में गठबंधन पर फैसला होगा, तो बताएंगे.

विधायक रामकरण काला का चैयरमैन पद से इस्तीफा

कुरुक्षेत्र में किसानों पर हुए लाठीचार्ज व वॉटर कैनन को लेकर खफा रामकरण काला ने चैयरमैन पद से इस्तीफ़ा दे दिया. रामकरण काला किसानों को सूरजमुखी कि फसल पर न्यूनतम समर्थन मूल्य देने कि मांग के समर्थन में थे. कल ही 24 घंटे में किसानों को एमएसपी देने के लिए इस्तीफा देने को लेकर अल्टीमेटम दिया था.

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन क्या है?

एनडीए का मतलब नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन है. 1996 में संयुक्त मोर्चा की वजह से जब बीजेपी सरकार बनाने से चूक गई तो 1998 में एनडीए बनाने की पहल हुई. एनडीए बनाने में जेडीयू के जॉर्ज फर्नांडिज और बीजेपी के लालकृष्ण आडवाणी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

एनडीए के घटक दल अब तक साथ में मिलकर 6 लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं. एनडीए के पहले चेयरमैन अटल बिहारी वाजपेयी थे. 2004 से 2012 तक आडवाणी ही इसके चेयरमैन रहे. एनडीए में दूसरा अहम पद संयोजक का होता है.

जार्ज फर्नांडिज एनडीए के पहले कन्वीनर (संयोजक) रहे. आडवाणी के समय शरद यादव एनडीए के संयोजक थे. फिलहाल अमित शाह एनडीए के चेयरमैन हैं, लेकिन संयोजक का पद खाली है.

25 साल में कितना बदला एनडीए का स्ट्रक्चर?

1998 में एनडीए का गठन कर बीजेपी केंद्र की सत्ता में लौटी थी. हालांकि, 13 महीने बाद सरकार गिर गई. बीजेपी ने एनडीए को और मजबूत किया और 1999 में 24 पार्टियों की सहयोग से एनडीए की सरकार बनाई.

उस वक्त एनडीए में मुद्दों को लेकर कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाया गया था. साथ ही किसी भी बड़े मुद्दों पर एनडीए के घटक दलों की बैठक बुलाई जाती थी. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में 24 दल साझेदार थी.

सत्ता में प्रतिनिधित्व को आधार बनाकर सहयोगी दलों को सत्ता में भागीदारी दी गई थी. हालांकि, 2004 में एनडीए का कुनबा बिखर गया और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार चली गई. इसके बाद 10 साल तक बीजेपी सत्ता से बाहर रही. 2014 में भी बीजेपी एनडीए बनाकर चुनावी मैदान में उतरी, लेकिन बीजेपी को मिले पूर्ण बहुमत के बाद एनडीए के दलों में उथल-पुथल शुरू हो गया. कई दलों ने आरोप खुद की उपेक्षा का भी आरोप लगाया.

शिवसेना और जेडीयू जैसी पुरानी पार्टियों ने खुद को कमजोर करने का भी आरोप लगाया. 2019 के बाद तो एनडीए में भगदड़ सी मच गई. पीएमके को छोड़ दिया जाए तो 1998 में सहयोगी रहे एक भी दल अब एनडीए का हिस्सा नहीं है.

हालांकि, 1998 की तुलना में एनडीए का जनाधार जरूर बढ़ा है. खुद बीजेपी 10 राज्यों की सत्ता पर काबिज है. 6 राज्यों में सहयोग से सरकार चला रही है.

2019 के बाद एनडीए के भीतर 2 वजहों से टूट हुई

शिवसेना, जेडीयू, गोरखा जनमुक्ति मोर्चा और जनसेना जैसे दलों ने आरोप लगाया कि उसे कमजोर करने की साजिश रची जा रही है. इन दलों का आरोप था कि बीजेपी राज्य में अपना जनाधार बढ़ाने के लिए पीछे से खेल करती है.

इतना ही नहीं, गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने बीजेपी पर लोगों के साथ विश्वासघात करने का आरोप भी लगाया. यानी पहली बड़ी वजह अविश्वनीयता है. 2. शिरोमणि अकाली दल और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने कृषि बिल के खिलाफ सरकार का साथ छोड़ दिया. इन दलों का कहना था कि बिल बनाने से पहले सहयोगी दलों से चर्चा नहीं की गई. यानी बीजेपी ने बड़े मुद्दों पर कॉमन मिनिमम प्रोग्राम की अनदेखी की.

शिअद और राएलपी का किसानों के बीच जनाधार माना जाता रहा है. हालांकि, बाद में आंदोलन के आगे मोदी सरकार झुक गई और यह कानून वापस ले लिया गया.

क्यों बिखर रहा है एनडीए का कुनबा?कॉर्डिनेशन की समुचित व्यवस्था नहीं

मोदी सरकार बनने के बाद से ही एनडीए में कॉर्डिनेशन कमेटी बनाने की मांग उठ रही है, लेकिन 9 साल बीत जाने के बाद भी यह सफल नहीं हो पाया है. गठबंधन का सबसे महत्वपूर्ण पद संयोजक का अब भी खाली है.

केसी त्यागी जनता दल यूनाइटेड के सलाहकार हैं और एनडीए गठन में बड़ी भूमिका निभा चुके हैं. एनडीए गठबंधन में रहते वक्त त्यागी कॉर्डिनेशन कमेटी बनाने की मांग कर चुके हैं. एनडीए बिखरने के पीछे त्यागी इसे बड़ी वजह मानते हैं.

अटल बिहारी वाजपेयी के वक्त जॉर्ज फर्नांडिज सभी मुद्दों पर नेताओं से राय लेते थे. किसी भी विवाद को मीटिंग बुलाकर तुरंत खत्म किया जाता था, लेकिन हाल के वर्षों में एनडीए के भीतर ऐसा कोई दृश्य नहीं देखा गया है. आज सत्ता केवल कुछ हाथों में सिमट गई है.

बीजेपी के पास सीटों की ताकत-

2014 के बाद 2019 के चुनाव में भी बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिला, जिसके बाद गठबंधन की राजनीति कमजोर पड़ गई. बीजेपी ने सरकार में सहयोगी दलों के प्रतिनिधित्व के बदले सांकेतिक भागीदारी दी.

इससे कई सहयोगी दल नाराज हो गए. जेडीयू ने तो सरकार में शामिल होने से ही इनकार कर दिया. इतना ही नहीं, कॉमन मिनिमम प्रोग्राम और मुद्दों में भी सहयोगी दलों को तरजीह नहीं मिली. कई दलों ने इसको वजह बताते हुए गठबंधन से किनारा कर लिया.

एनडीए के कमजोर होने से कितने सीटों पर होगा असर?

एक ओर कांग्रेस और कई क्षेत्रीय पार्टियां विपक्षी पार्टियां गठबंधन की कवायद में जुटी है, तो दूसरी ओर एनडीए लगातार बिखरती जा रही है. ऐसे में सवाल है कि इसका असर क्या लोकसभा की सीटों पर होगा? अगर हां तो कितनी सीटों पर?दरअसल, कमजोर होने की वजह से बीजेपी असम, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, हरियाणा और तमिलनाडु जैसे राज्यों में गठबंधन बनाने की पहल की थी. इन राज्यों में लोकसभा की करीब 150 सीटें हैं. गठबंधन टूटने की स्थिति में करीब इतने ही सीटों पर इसका असर हो सकता है.श दुनिया न

हालांकि, महाराष्ट्र, असम और हरियाणा में बीजेपी ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली है. ऐसे में इन तीन राज्यों में चुनाव का वोट फीसदी से सबकुछ तय होगा.