पीपीपी भाजपा की नैया पार कराएगा या डूबोयगा महंगाई बेरोजगारी पीपीपी वृद्धावस्था पेंशन राशन कार्ड आदि सरकार की कमजोर नस पर हुड्डा कर रहे हैं वार क्या दो बार मिली हार के बाद सत्ता हासिल कर पाएगी? हरियाणा में कांग्रेसी खरीदी अंतर कलह से अछूती नहीं अशोक कुमार कौशिक क्या कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव के कुछ महीने बाद होने वाले हरियाणा चुनाव में अपनी लगातार दो हार के बाद सत्ता हासिल कर सकती है? अक्टूबर 2019 के चुनावों में कांग्रेस ने अंतर्कलह के बावजूद 28.10 प्रतिशत वोट हासिल किए, जो 2014 के 20.58 प्रतिशत से अधिक है, जब उसने 2009 में अपनी 40 सीटों की तुलना में 15 सीटें जीती थीं। कांग्रेस के नेतृत्व में उसे 31 सीटें मिली थीं। भूपेंद्र हुड्डा जाट नेता हैं, जिन्होंने मार्च 2005 से अक्टूबर 2014 तक मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। भाजपा ने 40 सीटें जीतने के साथ, 36.48 प्रतिशत वोट हासिल किए, जो 2014 के विधानसभा चुनावों में 33.20 प्रतिशत से अधिक था जब उसने 47 सीटें हासिल की थीं। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों के कुछ महीने बाद ही इसने 20 प्रतिशत वोट शेयर खो दिया, जब इसने सभी 10 सीटों पर जीत हासिल की। कभी प्रमुख क्षेत्रीय संगठन रहे इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) की 2019 के विधानसभा चुनावों में सबसे बड़ी हार हुई थी। उसका वोट शेयर 2014 में 24.11 प्रतिशत से घटकर 2.45 प्रतिशत हो गया। पहली बार हरियाणा के चुनाव मैदान में उतरी आम आदमी पार्टी (आप) 0.48 प्रतिशत के मामूली वोट शेयर के साथ हार गई थी। दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व में इनेलो से अलग हुए समूह जननायक जनता पार्टी (जेजेपी), और निर्दलीय उम्मीदवारों ने 27.33 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। जेजेपी पार्टी ने अपने पहले चुनाव में 10 सीटें जीतीं, जबकि जेल में बंद उनके दादा ओ.पी. चौटाला की इनेलो एक पर सिमट गई। 75 सीटों के लक्ष्य के मुकाबले, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में भाजपा 90 सदस्यीय विधानसभा में सरकार बनाने के लिए छह सीटों की कमी के साथ 40 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। 2014 में नरेंद्र मोदी की लहर पर भरोसा करके राज्य में पहली बार सत्ता में आई भाजपा के लिए यह सबसे शर्मनाक बात यह थी कि मुख्यमंत्री खट्टर और अनुभवी अनिल विज को छोड़कर सभी कैबिनेट मंत्री हार गए थे। प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की जो लहर 2014 में चली थी वह उसे 2019 में बरकरार नहीं रख पाई परिणाम यह हुआ कि उसे जननायक जनता पार्टी के सारे सरकार बनानी पड़ी। मुख्यमंत्री खट्टर के खिलाफ अपनी जाति को हर जगह प्राथमिकता देना भाजपा की राह में थोड़ा बन गया। मुख्यमंत्री भले ही अब तक प्रधानमंत्री मोदी की बदौलत निरंकुश शासन करते रहे पर अब हिमाचल और कर्नाटक के बाद हरियाणा में भाजपा की स्थिति को देखते हुए संगठन ने उनको जनता के बीच जाने पर विवश कर दिया। उनके 4 जिलों में हो चुके जनसंवाद में उठ रहे विवाद के कारण भाजपा की लोकप्रियता का सहजता से ही पता लग रहा है। सरकार और जनता के बीच दूरी को देखते हुए संगठन भी अब मैदान में उतर रहा है। राजनीति के अनुभवी भूपेंद्र सिंह हुड्डा बेरोजगारी, महंगाई, कर्मचारी पुरानी पेंशन, परिवार पहचान पत्र में आय में त्रुटि, गरीबी रेखा का राशन कार्ड, वृद्धावस्था पेंशन, किसान की फसलों का मुआवजा तथा खरीद के मुद्दों के साथ-साथ सरकार की कमियों को बड़ी कुशलता से उजागर कर रहे हैं। वह कांग्रेस में लोगों को जोड़ तो रहे हैं पर कांग्रेस में उनको लेकर बन रही गुटबाजी को वह अभी दूर नहीं कर पाए हैं। प्रदेश में कांग्रेसी जहां सशक्त विपक्ष बनता दिखाई दे रहा है वही उसकी गुटबाजी उसकी कमजोरी बनी हुई है। हिमाचल और कर्नाटक में कांग्रेस को मिली सफलता ने पार्टी नेताओं में आत्मविश्वास फूंका है। भाजपा ने 2009 के विधानसभा चुनाव में केवल चार विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। इसकी अब तक की सर्वाधिक सीटों की संख्या 16 थी। विधायकों ने 2019 में हुए कुल मतों के औसत 43.55 प्रतिशत से जीत हासिल की, जबकि 2014 में यह 39.84 प्रतिशत था। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि कांग्रेस की तरह, जिसने 2014 के राज्य चुनावों में दोहरी सत्ता विरोधी लहर का सामना किया था, यह भाजपा है जो भ्रष्टाचार, कानून और व्यवस्था और बेरोजगारी को लेकर लोगों के बीच इसी तरह के असंतोष का सामना कर रही है। एक पर्यवेक्षक ने आईएएनएस से कहा, 2014 के संसदीय चुनावों में भाजपा की अभूतपूर्व सफलता ने लोकसभा और बाद में विधानसभा, दोनों चुनावों में राज्य की राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव को चिह्न्ति किया है। भीतर के दुश्मनों को नाकाम करने के बाद 76 वर्षीय अनुभवी राजनेता हुड्डा मानते हैं कि वे (जी23) सुधारवादी हैं और पार्टी के बागी नहीं हैं, वह पार्टी को एक बार फिर जीत की ओर ले जाने के प्रयास में हैं। पर उनकी राह में उनके विरोधी रुकावट बने हुए हैं। ग्रामीण इलाकों में रहने वाली 65 फीसदी आबादी को लुभाने के लिए हुड्डा हाथ से हाथ जोड़ो अभियान के जरिए हर रोज पंचायत स्तर तक जनता के बीच पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। इस अभियान को जुलाई के अंत तक बढ़ा दिया गया है। हुड्डा का कहना है कि भाजपा-जजपा सरकार की दोषपूर्ण नीति के कारण युवा नशे और अपराध के जाल में फंस रहे हैं। अपने अभियान में वह राज्य सरकार पर तीखे हमले कर रहे हैं और युवाओं के मुद्दे उठा रहे हैं। राज्य की राजनीति के बारे में बात करते हुए हुड्डा ने हाल ही में एक साक्षात्कार में आईएएनएस को बताया कि भाजपा सरकार के आठ साल के कार्यकाल में कोई काम नहीं हुआ। उन्होंने कहा, मेट्रो या रेल लाइन या मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना का एक इंच भी चालू नहीं किया गया है। इन सभी वर्षो में एक भी मेडिकल कॉलेज या विश्वविद्यालय स्थापित नहीं किया गया है। उनके विपरीत, मुख्यमंत्री खट्टर, जो मुख्य रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे पर भरोसा कर रहे हैं, कह रहे हैं कि राज्य सरकार समाज के हर वर्ग के लिए केंद्र की योजनाओं को अपना रही है। वह कह रहे हैं कि लोग परिवार पहचानपत्र, चिरायु हरियाणा, आयुष्मान भारत योजना, वृद्धावस्था पेंशन, मेरा पानी मेरी विरासत और मेरी फसल मेरा ब्योरा जैसी राज्य योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं। उनका मानना है कि पिछले साढ़े आठ वर्षो में सरकार ने राज्य के सर्वागीण विकास के साथ-साथ व्यवस्था में कई आमूल-चूल परिवर्तन किए हैं। सरकार अपनी इन पोर्टल की उपलब्धियों का बखान तो कर रही है पर इन पोर्टलों के कारण जनता को हो रही परेशानी को वह अनदेखा भी कर रही है। सरकार और जनता के बीच यही कमजोर कड़ी है जिसे न सरकार समझ रही है और न ही संगठन। उन्होंने आईएएनएस से कहा, परिवार पहचानपत्र इसका एक उदाहरण है, जिसके जरिए हम शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और आत्मनिर्भरता पर केंद्रित योजनाओं को लागू कर रहे हैं। सरकार का यही परिवार पहचान पत्र अगर उसको नाको चने चबवा दिए तो कोई बड़ी बात नहीं। खट्टर अक्सर कहते हैं कि 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा के गठबंधन पर कोई भी फैसला उचित समय पर लिया जाएगा, हालांकि अपने चल रहे जनसंवाद कार्यक्रमों में वह जनता के गुस्से का सामना कर रहे हैं। सिरसा जिले में 15 मई को उस समय खलबली मच गई, जब एक महिला सरपंच मुख्यमंत्री से भिड़ गई और अपना दुपट्टा उतारकर उनके पैरों पर फेंक दिया। एक हफ्ते के अंदर मुख्यमंत्री मनोहर लाल के सामने ऐसे तीन मामले सामने आए। पांच महीने के भीतर होने वाले संसदीय और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की पुरजोर वकालत करने वाले मुख्यमंत्री का मानना है कि जनसंवाद एक ऐसा मंच है, जहां लोग कांग्रेस शासन और वर्तमान शासन के अंतर के बारे में बात कर रहे हैं। संसदीय और विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा ने राज्य में अपनी सरकार को दोहराने और लोकसभा के लिए अधिकतम सीटें जीतने के लिए अपनी चुनावी तैयारी तेज कर दी है। केंद्र में भाजपा के नौ वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में 17 मई को यमुनानगर में भाजपा की राज्य कार्यकारिणी की बैठक आयोजित की गई, जिसमें विशेष संपर्क अभियान चलाने पर विचार-विमर्श किया गया। हालांकि, चौटाला खानदान में फूट के बाद अस्तित्व में आई भाजपा की अहम सहयोगी जेजेपी भी मैदान में है। इसके नेता दुष्यंत चौटाला जाटों के गढ़ पानीपत, भिवानी और हांसी के निर्वाचन क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं, जहां राज्य की 28 फीसदी आबादी रहती है। चौटाला भविष्य में भाजपा के साथ गठबंधन कर सकते हैं, लेकिन फिलहाल वह अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं। हाल ही में मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा : मैं ज्योतिषी नहीं हूं। मैं नहीं कह सकता कि भविष्य में क्या होगा। आज तक, हमारा भाजपा के साथ गठबंधन है और यह अच्छी तरह से काम कर रहा है। 2024 में एक बार फिर अपने ब्रांड मोदी के साथ भाजपा के लिए नैरेटिव सेट करने के बावजूद लोगों को लगता है कि हरियाणा में कांग्रेस 2024 की चुनावी लड़ाई के लिए अच्छी तरह से रोडमैप तैयार कर रही है। Post navigation खुद सुनिये क्या कहा….. मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने गुरुग्राम सेक्टर 79 में रविवार को आयोजित राहगिरी कार्यक्रम में आखिर, जिसका भय था,वही हुआ ऑनलाइन ट्रांसफर में रोङवेज कर्मचारियों के साथ : दोदवा