कानून के विशेषज्ञों का तो यही मानना है कि अंबाला में आगामी 6 महीने तक उपचुनाव कराना जरूरी है लेकिन आम चुनाव नजदीक होने की स्थिति में चुनाव आयोग इस उपचुनाव को टाल भी सकता है अब देखते हैं कि इस मामले में क्या फैसला लिया जाएगा
अंबाला के उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी ही नहीं कांग्रेस पार्टी के लिए भी करो या मरो की स्थिति देखने को मिल सकती है।

धर्मपाल वर्मा

चंडीगढ़ – अंबाला के भाजपा सांसद रतनलाल कटारिया के निधन के बाद ऐसी राजनीतिक स्थिति बन गई है कि हरियाणा में 2019 के चुनाव के बाद जहां विधानसभा के 3 उपचुनाव हुए हैं वही ‌आगामी नवंबर माह तक निर्वाचन आयोग को ‌ यहां लोकसभा का भी एक उपचुनाव कराना होगा। अंबाला के उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी ही नहीं कांग्रेस पार्टी के लिए भी करो या मरो की स्थिति देखने को मिल सकती है। माना जा रहा है कि भाजपा की डबल इंजन की सरकार जहां अंबाला में जीत हासिल कर एक बड़ा संदेश देना चाहेगी वही कांग्रेस भी इस चुनाव के माध्यम से अपनी लोकप्रियता का परिचय देने की कोशिश करेगी। यहां दोनों पार्टियां महिला उम्मीदवारों के दम पर राजनीतिक जोर आजमाइश करती नजर आ सकती हैं क्योंकि अंबाला जहां कांग्रेस की महासचिव पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा की पारंपरिक सीट है वही सहानुभूति बटोरने के लिए भारतीय जनता पार्टी दिवंगत सांसद रतनलाल कटारिया की पत्नी श्रीमती बन्तो कटारिया को मैदान में उतार सकती है। बेशक अंबाला का अगला सांसद 6 महीने के लिए ही इस पद पर रह पाएगा लेकिन यह जीत कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए बहुत अधिक निर्णायक रहेगी इसमें कोई संदेह नहीं है।

जहां कांग्रेस में कुमारी शैलजा के अलावा और कोई उपयुक्त और मजबूत उम्मीदवार नहीं है ऐसी ही स्थिति भारतीय जनता पार्टी की है। उसके पास भी अभी तक दिवंगत सांसद रतनलाल कटारिया की पत्नी बन्तो कटारिया के अलावा कोई और उपयुक्त उम्मीदवार नजर नहीं आ रहा।

यहां यह बताना आवश्यक है कि कुछ समय पहले शाहबाद मारकंडा के पूर्व विधायक अनिल धंतोडी कांग्रेस छोड़ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे तब उन्हें अंबाला लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के भावी उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत किया गया था। लेकिन उपचुनाव में पार्टी को बंतो कटारिया के नाम पर विचार करना जरूरी हो गया है।

2019 के चुनाव में रतनलाल कटारिया की टिकट काटकर उनकी पत्नी बंतो कटारिया को देने की चर्चाएं खूब चली थी परंतु आखिर में रतनलाल कटारिया को ही मैदान में उतार दिया गया था। भाजपा सहानुभूति बटोरने के ख्याल से श्रीमती बन्तो कटारिया को ही उम्मीदवार बना सकती है। आमतौर पर यही माना जा रहा है कि कांग्रेस की प्रत्याशी कुमारी सेलजा ही होंगी। उन्हें मजबूत उम्मीदवार के रूप में देखा जाता है लेकिन कांग्रेस की गुटबाजी और उसी के साइड इफेक्ट भारतीय जनता पार्टी के भावी उम्मीदवार के काम भी आ सकते हैं।

अब कुमारी शैलजा अंबाला से उपचुनाव में प्रत्याशी खुद होंगी या किसी और को मैदान में उतारा जाएगा ,यह अभी तय होना बाकी है लेकिन कांग्रेस में बड़ी अंदरूनी राजनीति आगामी उपचुनाव को रोचक बनाने का काम कर सकती है। इस समय अंबाला लोकसभा क्षेत्र के 9 विधानसभा क्षेत्रों में से पांच में भाजपा के विधायक है तो 4 विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस के विधायक हैं । 2014 में विधानसभा के चुनाव में अंबाला लोकसभा क्षेत्र के सभी 9 विधानसभा क्षेत्रों में भारतीय जनता पार्टी के विधायक चुने गए थे ।उसके बाद से यह मान लिया गया था कि अंबाला क्षेत्र में भाजपा की स्थिति काफी मजबूत है लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में भारतीय जनता पार्टी को अंबाला लोकसभा क्षेत्र में खुद को साबित करने के लिए खून पसीना एक करना पड़ेगा। लेकिन इन परिस्थितियों में भी भारतीय जनता पार्टी यहां बाजी मार ले गई तो उसे 2024 के संसदीय चुनाव में निश्चित तौर पर लाभ होगा । ऐसा करके भारतीय जनता पार्टी प्रदेश में कांग्रेस को बैकफुट पर लाने का काम कर सकती है।

अंबाला लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा तो उसके मजबूती और सरकार बनाने के सारे दावे धरे के धरे रह जाएंगे। इस क्षेत्र में यह मानने और कहने वालों की कमी नहीं है कि हरियाणा में कांग्रेस में कुछ ऐसे बड़े नेता मौजूद हैं जिनके मुंह में राम-राम और बगल में छुरी रहती है और उनकी मंशा कांग्रेस को जिताने के स्थान पर कांग्रेस के उम्मीदवार को हराने की रह सकती। वह अंबाला को भी ऐलनाबाद की तरह अपने पक्ष में ले जाने की कोशिश करेंगे और कांग्रेस की हार को उम्मीदवार की हार के रूप में प्रस्तुत करते हुए एक बार फिर नए गुल खिलाने की कोशिश करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ेंगे। यही कारण है कि अंबाला में कांग्रेस क्या करेगी यह जानने के लिए पहले कुमारी शैलजा की राय जानने जरूरी होगी।

कुमारी शैलजा ने अंबाला से 2014 में भी चुनाव नहीं लड़ा था परंतु 2019 में वे रतन लाल कटारिया से ही हार गई थी। जहां तक तीसरे दल का सवाल है अंबाला में आम आदमी पार्टी भी इस चुनाव को तिकोना मुकाबला बनाने की कोशिश करेगी । पार्टी कांग्रेस और भाजपा दोनों की जीत में निर्णायक स्थिति में भी नजर आ सकती है। कानून के विशेषज्ञों का तो यही मानना है कि अंबाला में आगामी 6 महीने तक उपचुनाव कराना जरूरी है लेकिन आम चुनाव नजदीक होने की स्थिति में चुनाव आयोग इस उपचुनाव को टाल भी सकता है अब देखते हैं कि इस मामले में क्या फैसला लिया जाएगा।

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