अशोक कुमार कौशिक कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी का किला ध्वस्त करके कांग्रेस ने सिर्फ सत्ता में ही वापसी नहीं की है बल्कि मजबूत स्थिति में भी आ गई है. किसी बड़े राज्य में लंबे समय बाद कांग्रेस को जीत हासिल हुई है और इसका श्रेय राहुल गांधी को दिया जा रहा है. दक्षिण भारत में मिली इस जीत ने कांग्रेस को विपक्षी एकता के केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया है. 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए विपक्षी एकता की कवायद हो रही है, जिसमें कर्नाटक चुनाव से पहले तक कांग्रेस बैकफुट पर खड़ी थी. कांग्रेस इस मिशन के लिए खुद पहल करने के बजाय पर्दे के पीछे से दांव चल रही थी. विपक्षी एकता के लिए बुने जा रहे सियासी तानेबाने में अभी तक कांग्रेस से दूरी बनाकर चलने वाले दलों के सुर कर्नाटक चुनाव नतीजे के बाद बदलने लगे हैं. ये बीजेपी के अंत की शुरुआत- ममता बनर्जी कर्नाटक चुनाव नतीजे पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, यह साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के अंत की शुरूआत है. कर्नाटक के बाद छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भी बीजेपी को हार का सामना करना पड़ेगा.” सोमवार को ममता ने कहा, ‘कांग्रेस जहां मजबूत है, हम उसका समर्थन करने के लिए तैयार हैं, लेकिन कांग्रेस को यहां हमारे खिलाफ हर दिन लड़ना बंद करना चाहिए.’ पीडीपी की अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर की पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती ने कर्नाटक चुनाव के नतीजों को ‘उम्मीद की किरण’ बताया. साथ ही ओडिशा के सीएम और बीजेडी चीफ नवीन पटनायक ने भी बीजेपी पर इशारों ही इशारों में तंज कसा है. पटनायक ने कहा, ‘सिंगल या डबल इंजन की सरकार कोई मायने नहीं रखती, बल्कि सुशासन ही किसी पार्टी को जिताने में मदद करता है.’ वहीं, शिवसेना नेता व सांसद संजय राउत ने कहा, कर्नाटक तो झांकी है, अभी पूरा हिंदुस्तान बाकी है. कर्नाटक में कांग्रेस की जीत को संजय राउत ने विपक्ष की जीत बताई. साथ ही कहा कि महाविकास अघाड़ी में आंतरिक रूप से कोई गलतफहमी नहीं है और न कोई मतभेद है. हम एकजुट हैं और 2024 में बीजेपी का नाम लेवा कोई नहीं होगा. कर्नाटक नतीजे से कैसे बदले विपक्षी नेताओं के सुर? महाविकास अघाड़ी में शामिल शिवसेना (उद्धव गुट), एनसीपी और कांग्रेस तीनों दल अभी तक अलग-अलग सुर में बात कर रहे थे. कांग्रेस और एनसीपी नेताओं के बीच बयानबाजी से एमवीए के बिखरने का संदेश जा रहा था, लेकिन कर्नाटक चुनाव नतीजे के बाद बैठक कर एकजुट रहने का संदेश दिया. इसके साथ ही यह भी कहा कि महाराष्ट्र में होने वाले एमवीए की रैली में तीनों ही दल के नेता शामिल होंगे. एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा कि कर्नाटक के नतीजों से सभी को एक संदेश मिला है और सभी विपक्षी पार्टियों को एक रास्ता दिखाया है. साथ ही उन्होंने कहा कि कर्नाटक जैसी स्थिति अन्य राज्यों में पैदा करने की जरूरत है. कर्नाटक जैसे हालात पैदा करने के लिए दूसरे राज्यों में भी मेहनत करने की जरुरत है. पवार ने एनडीए के खिलाफ विपक्षी दलों को लामबंद करने की अपील करते हुए कहा कि अलग-अलग राज्यों में समान विचारधारा वाली पार्टी एक साथ आकर जनता को एक विकल्प दे सकती हैं. कुछ महीने पहले विपक्षी एकता की कवायद पर टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी कहा था कि उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव में अकेले लड़ेगी. कांग्रेस को दरकिनार कर विपक्षी एकता की बात ममता कर रही थी, लेकिन कर्नाटक के चुनावी नतीजे और हाल ही में नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद से उनके रुख में कुछ बदलाव आया है. इतना ही नहीं बीजेपी के प्रति नरम रुख अपना रखने वाले नवीन पटनायक के सुर बदल गए हैं. कांग्रेस का बढ़ा मनोबल कर्नाटक चुनाव में जीत किसी बड़े राज्य में लंबे समय बाद कांग्रेस को हासिल हुई है. इस जीत के बाद निश्चित तौर पर कांग्रेस का मनोबल बढ़ा है तो विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करने का कांग्रेस का दावा और भी मज़बूत होगा. विपक्षी एकता की मुहिम से कांग्रेस को दरकिनार करने की बात करने वाले दलों के सुर भी बदलने लगे हैं. कांग्रेस से विपक्षी एकता के लिए पहल करने की भी बात करने लगे हैं. राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह कहते हैं कि अभी तक जो चुनावी नतीजे आए थे उनमें कांग्रेस बैकफुट पर ही रही थी, लेकिन कांग्रेस का विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करने का दावा कर्नाटक जीत से मजबूत होगा, क्योंकि ये जीत एक बड़े राज्य में और बड़े अंतर से हुई है. इसके अलावा विपक्ष में कांग्रेस ही एकलौती पार्टी है, जिसका राजनीतिक आधार देशभर के राज्यों में है. 200 सीटों पर कांग्रेस VS बीजेपी कांग्रेस का पहले से ही कई राज्यों में गठबंधन है. बिहार में कांग्रेस का आरजेडी, जेडीयू, लेफ्ट पार्टियों के साथ तालमेल है. झारखंड में जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी गठबंधन है. महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव गुट), कांग्रेस और एनसीपी है. बीजेपी के खिलाफ अलग-अलग राज्यों में पहले से ही गठबंधन मौजूद है और जहां अन्य क्षेत्रीय पार्टियां नहीं हैं वहां सीधी लड़ाई कांग्रेस-बीजेपी के बीच है. अरविंद सिंह कहते हैं कि देश भर के अलग-अलग राज्यों की 200 लोकसभा सीटें ऐसी है, जहां कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला है. कांग्रेस अगर कर्नाटक में ना भी जीतती तो भी वह कई क्षेत्रीय पार्टियों के मुकाबले में मजबूत ही रहती. विपक्षी एकता में पहले भी कांग्रेस को निगलेट नहीं किया जा सकता था. कर्नाटक की जीत के बाद कांग्रेस विपक्षी एकता के केंद्र में आ गई है. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में इसी साल विधानसभा चुनाव है. कांग्रेस अगर इन तीनों ही राज्यों में जीत दर्ज करने में भी सफल रहती है तो कांग्रेस के इर्द-गिर्द ही 2024 का चुनाव होगा. विपक्षी एकता को कांग्रेस लीड करती हुई, 2004 की तरह नजर आएगी. विपक्षी एकता की मुहिम के केंद्र में भले ही कांग्रेस खड़ी नजर आ रही हो, लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी के सामने विपक्ष का चेहरा कौन होगा इसे लेकर संशय बना रहेगा? Post navigation मिशन 2024, कर्नाटक के बाद अब इन राज्यों में जीत पर कांग्रेस की नजर कांग्रेस की न कोई नीति न कोई सिद्धांत सत्ता पाना केवल और केवल सत्ता सुख है कांग्रेस की पहचान : प्रो.रामबिलास शर्मा